धरती
पर भेज तूने, रहने के लिए जगह दी।
चलने के लिए पांव, सोने के लिए सतह दी।
खाना, पानी, हवा, दवाई, सिर पे छाँव दिया,
प्यार बेसुमार दिया, गर कभी तूने विरह दी।
राहों में पड़े कांटे, पांवों में,कभी चुभ गए,
लेने को निकाल उन्हें, काटों से ही सुलह दी।
हो गए दुश्मन जितने, होता दुस्वार जीना,
बुद्धि से लड़े उन सबसे, और तूने फतह दी।
रिश्ते नाते दिए, दोस्त और यार भी दिये,
उनके संग रह के हमें, मुस्कराने की वजह दी।
सभी उन लोगों का, हम, बहुत शुक्रगुजार हुये,
आने पर वक्त जिन्होंने, दिल में अपने जगह दी।
दुर्दिन घेर लेते तो, क्या भला कर लेते हम!
उन सबको मात दिया, और तूने हमें सह दी।
कैसे कर पाएं खुदा, तेरा हम शुक्रिया अदा,
बीते हर साल तूने तीन सौ पैंसठ सुबह दी।
No comments:
Post a Comment