राम कह रथ-धरम अस जाकें। जीत सकइ रिपु वीर न ताकें।।
राम शक्ति कपि निसिचर मारहिं। गहि पद पटक अवनि पर डारहिं।।
कपि धरि मसल लागि दसकंधर। त्राहि राम करि भागहिं बन्दर।।
रक्षा करउ हे राम गोसाईं। दानव दलत काल की नाईं।।
विकल देखि दल चलि धनु हाथा। लछमन नाइ राम पद माथा।।
राम सुमिरि करि शेष प्रहारा। उभय ओर बाणों की धारा।।
दसमुख शक्ति लखन उर लागी। मूर्छित भये राम अनुरागी।।
माया राम लखन उठ जागे। शत सर साथ असुर उर दागे।।
आहत दनुज छाड़ि रण भागा। राम विरुद्ध यज्ञ करि लागा।।
रावण यज्ञ राम सुधि पाए। करहु विध्वंस सुभट पठाये।।
ध्वंस लौटि राम यहँ बन्दर। क्रुद्ध कालमुख चलि दसकंधर।।
देव करि अस्तुति हरि अनंता। करहु राम अब खेलहि अंता।।
धारि सारंग कटि कस बाना। राम चले हति पापहिखाना।।
राम असुर रण अस घनघोरा। गर्जत चमकत घन चहुँ ओरा।।
कोप बाण रामहि प्रलयंकर। कीन्ह धूरि सब दनुज भयंकर।।
माया रचा अपार दशानन। राम समझ सो करि निस्तारन।।
देवन्ह रामहि पैदल देखा। झट पठाय रथ इंद्र विशेषा।।
विप्रहिं चरण राम सिर नावा। द्वन्द युद्ध रथ हेतु चलावा।।
कहि दुर्वचन क्रुद्ध दसकंधर। छोड़े राम ओर अगणित सर।।
छाड़ि अनल-सर राम रघुवीरा। दीन्ह जराय निशाचर तीरा।।
कोटिन्ह आयुध अस्त्र चलावा। राम सहज ही काट गिरावा।।
तीस तीर प्रभु राम चलाये। शीस भुजा कट पुनि उगि आये।।
पुनि पुनि काटि राम भुज शीशा। शीस भुजा छाये चहुँ दीशा।।
त्रिजटा कथा सुनाइहिं सीता। रामप्रिया सुन भइ भयभीता।।
त्रिजटा कहि सीता समुझाई। राम जगदीश जानहु माई।।
नाना माया रचा दशानन। कीन्ह राम क्षण सहज निवारन।।
कहि विभीषण नाभि में याके। सुधा राम जीयत बल ताके।।
राम छाँड़ि पुनि सर इकतीसा। चले बाण ज्यों काल फणीसा।।
एक से राम सुधा सुखाये। काटि भुजा सिर शेष गिराये।।
धरनि धंसी धड़ गिरा प्रचंडा। राम कीन्ह सर हति दुइ खंडा।।
भुजा शीस मंदोदरि आगे। धरि सर रामहि तरकस साजे।।
रावण तेज राम के आनन्। हरषे देखि शम्भु चतुरानन।।
बरसहिं सुमन देव मुनि वृन्दा। जय श्रीराम जय हे मुकुंदा।।
जय कृपा के कन्द द्वन्द के हर्ता राम सदा सुखदाता हो।
दुष्ट विदारक कष्ट निवारक करुणा कृपा के प्रदाता हो।
कारण के कारण जग के पालक व्यापक सृष्टि विधाता हो।
विजय के दायक भजन के लायक ब्रह्म जीव के नाता हो।
राम विभीषण ओर विलोका। रावण क्रिया करहु तज शोका।।
बोले राम जाहु ले लछमन। राजतिलक करि देहु विभीषन।।
राम पवनसुत लंक पठाये। सीता कुशल जाइ ले आये।।
सिय कह जतन करहु अस ताता। देखौं शीघ्र राम मृदु गाता।।
हर्षित राम सन्देश पायहु। कह सादर सीता लै आयहु।।
मन में भांप राम की इच्छा। दी बैदेही अग्नि परिच्छा।।
राम वाम सिय बैठि साजहिं। गगन देव सुमन बरसावहिं।।
रावण नष्ट देव सुख पावा। मिलि आकाश राम यश गावा।।
राम अजित अमोघ करुणामय। अगुन ब्रह्म तुम अनघ अनामय।।
जब जब राम सुरन्ह दुख पायो। नाना तन धरि कष्ट मिटायो।।
तुम्ह राम देवता उपकारी। त्राहि माम सब शरण तिहारी।।
देवता गण जहँ तहँ करि विनती। अस्तुति राम कीन्ह ब्रह्माजी।।
स्तुति
श्रीरामचरितमानस से उद्धृत
जय राम सदा सुखधाम हरे। रघुनायक सायक चाप धरे।।
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तेहि अवसर दसरथ तहँ आये। राम विलोकि नयन जल छाये।।
राम पिता पद वन्दन कीन्हा। आशिर्वाद तात तब दीन्हा।।
दिव्य रूप प्रभु राम दिखाये। पितु तजि भेद भक्ति उर लाये।।
रामहिं करि बहु बेर प्रणामा। धरि हिय भक्ति गए सुरधामा।।
सुरपति रामहि शोभा देखी। अस्तुति किन्हीं हरषि विशेषी।।
जय राम प्रताप भुजबल प्रबल, दायक प्रनत विश्रामहीं।
तव धारि तरकस चाप सायक, प्रभु श्रेष्ठ शोभा धामहीं।
जय खर दूषण के संहारक, तव दुष्ट दानव मारहीं।
जय त्रिभुवन के पापनिवारक, महिमा उदार अपारहीं।
दीन्ह लंकेश उचित पापिष्ट, फल तुमहि दीन दयालहीं।
विलोकि मम अभिमान चूर प्रभु, पद कंज नैन विशालहीं।
कोऊ कह राम वेद अव्यक्त, कोउ ब्रह्म निर्गुन ध्यावहीं।
करहु राम निकेत हृदय मम, सगुण स्वरुप तव भावहीं।
आनन्दधाम नमामि राम जय, त्रास विनाशि सुखदायकं।
करि प्रभु कृपा देहु मो आयसु, का अब करउँ रघुनायकं।
राम कह सुरपति सैन्य हमारे। सकल जिआउ गए जे मारे।।
सुधा बरसि कपि भालु जिआये। उठि सब हरषि राम गुण गाये।।
राम भुवन सकि मारि जिआई। दीन्ह मात्र सुरपतहिं बड़ाई।।
बड़े कृपालु राम रघुनन्दन। मुक्ती दीन्ह दनुज भव बंधन।।
देखि सुअवसर आये जटाधर। विनय करि राम जोरि युगल कर।।
स्तुति
सायक चाप रुचिर कर धारी। रक्षय मम हे अवध बिहारी।।
संशय नाशक उदार पार मन। बसहु निरंतर जन मन कानन।।
अगुन सगुन गुण मंदिर सुन्दर। भ्रम तम आभा कृपा समुन्दर।।
मोह क्रोध मद काम प्रभंजन। विषय विनाशि तारि भव बंधन।।
श्यामल गात कंज दोउ लोचन। दीन बंधु शरणागत मोचन।।
मुनि रंजन महि मंडल मंडन। बसहु राम उर त्रास बिखंडन।।
आइब राजतिलक तव रामा। शिव करि विनती गए निज धामा।।
निकट विभीषण बोले आइय। सब विधि नाथ मोहि अपनाइय।।
मणि गण वसन विमान भरायो। रामहिं भेंट विभीषण लायो।।
विहँस राम कह सुनहु विभीषण। गगन जाइ बरसहु पट भूषन।।
भालु कपिन्ह पट भूषण पाए। पहिरि प्रफुल्ल राम गुण गाये।।
सुमिरहु मोहि कपिन्ह कह रामा। जाहु सबै अब निज निज धामा।।
राम चले चढ़ि अवध विमाना। संग लखन सिय अरु हनुमाना।।
जहँ जहँ राखे जात ठिकाना। राम रुके ते सब अस्थाना।।
राम विमान चित्रकुट आवा। सकल ऋषिन्ह प्रभु आशिष पावा।।
राम जानकी बहुरि दिखाई। पावन गंगा यमुन सुहाई।।
राम कह देखु पुनः प्रयागा। निरखत कोटि जनम अघ भागा।।
सजल नयन तन पुलकित रामा। देखि अवधपुर कीन्ह प्रनामा।।
राम त्रिवेणी मज्जन कीन्ही। दान विविध विधि विप्रन्ह दीन्ही।।
आयसु राम अवधपुर जावा। समाचार हनुमत लै आवा।।.
मोह वश निषाद प्रभु बिसराई। राम कृपालु देखि उर लाई।।
राम भारद्वाज मठ गयऊ। वंदन करि आगे को चलऊ।।
राम चरित पावन सुखकारी। काम मोह मद अवगुण हारी।।
राम चरित जे सुनहिं सुजाना। विजय विवेक देहिं भगवाना।।
रे मन कलियुग पापहि धामा। हो उद्धार भजे बस रामा।।
उत्तर काण्ड
राम नाम तू भज ले रे मन। राम नाम ही जीवन का धन।
राम नाम ही सुख का कारन। राम नाम तू भज ले रे मन।
राम नाम के वश में माया। भजा जेहि मन-रोग भगाया।
राम नाम का असा प्रतापा। माया में भी भय हो व्यापा।
राम नाम आनंद का उपवन। राम नाम तू भज ले रे मन।
राम भजे कछु दुर्लभ नाहीं। जनि अचरज करहु मन माहीं।
राम भजे जे संत समाना। सर्वकाल होवे कल्याना।
राम नाम सदा मनभावन। राम नाम तू भज ले रे मन।
योग युक्ति अरु मंत्र प्रभावा। फूलहिं फलहिं राम जे ध्यावा।
राम नाम ही राम स्वरूपा। राम नाम भज मिलता रूपा।
सबसे सुन्दर शुचि राम भजन। राम नाम तू भज ले रे मन।
राम नाम की कृपा अनेका। तन मन ज्ञान बुद्धि विवेका।
राम नाम जिसका मन मीता। घटे न कछु अप्रिय विपरीता।
राम नाम से कष्ट निवारण। राम नाम तू भज ले रे मन।
राम राम जो भजा न जग में। और उपाय व्यर्थ मारग में।
काम क्रोध मद लोभ अधीना। राम नाम ना पाइ नगीना।।
राम नाम बिन निष्फल जीवन। राम नाम तू भज ले रे मन।
विषयी साधक सिद्ध सायना। राम स्नेह पाये सनमाना।
राम नाम भज जन तर जाई। निंदक राम नरक को जाई।।
राम नाम बिन सूना त्रिभुवन। राम नाम तू भज ले रे मन।
आतुर सोचि अवध के लोगा। एकहि दिन अब राम वियोगा।।
माता मन आनंदित होई। आयउ राम चहत कह कोई।।
रहा एक दिन राम न आयउ। भरत विकल क्या प्रभु बिसरायउ।।
अहो धन्य लछमन बड़ भागी। रामहि पद पंकज अनुरागी।।
बरस गए चौदह बीत हो रामा, राम नहीं आये।
बुलाये अवध की प्रीत हो रामा, राम नहीं आये।
अमवा बौराये चौदह बेरी, काहे को प्रभु, कर रहे देरी,
चले गए चौदह चईत हो रामा, राम नहीं आये।
अयोध्या में, भरत अकुलाये, तकते राह, नयन को गड़ाये,
घड़ियाँ न होत व्यतीत हो रामा, राम नहीं आये।
आरती लिए खड़ीं महतारी, जोहें अवध के, सब नर नारी,
गाने को मंगल गीत हो रामा, राम नहीं आये।
संदेशा ले आये, आवन की, आ रहे राम, लछमन जानकी,
कपि किये सबको हर्षित हो रामा, राम देखो आये।
बीती अवधि राम ना आये। मो सम अधम कौन कहलाये।।
भरत भजि राम कुश आसीना। जटा मुकुट काया अति दीना।।
देखत रामदूत अति हरषे। पुलक बदन लोचन जल बरसे।।
रघुकुल तिलक राम सुखदाता। आयउ कुशल देव मुनि त्राता।।
सुनि शुभ भरत राम के बारे। भये हृदय अत्यंत सुखारे।।
को तुम्ह तात कहाँ ते आये। राम विषय प्रिय वचन सुनाये।।
सेवक राम पवनसुत वानर। सुनत भरत उठि भेंटहिं सादर।।
कपि तव देखि सकल दुख जाई। मिले राम अस मो मम भाई।।
नाहीं तात उऋण मैं तोही। रामहि हाल सुनावहु मोही।।
कपि कह कथा नाइ पद माथा। तव प्रिय राम प्राण सम नाथा।।
भरत जाइ गुरु बात जनाई। आवत नगर राम रघुराई।।
समाचार पुरवासी पाये। दर्शन राम हरषि सब धाये।।
रामहि स्वागत पवन सुहावन। निर्मल जल सरयू अति पावन।।
निरखि अटारी राम विमाना। गावहिं नारी मंगल गाना।।
नगर निकट भू उतरि विमाना। आवत देखि राम भगवाना।।
पड़े राम पद नगरी पावनि। जन्म भूमि मम अवध सुहावनि।।
राम गुरु चरण नायउ माथा। गहे भरत फिर पद रघुनाथा।।
आतुर दरश अवध नर नारी। रूप असंख्य राम तहँ धारी।।
एहि विधि राम सबै सुख दीन्हा। यथा योग सबसे मिल लीन्हा।।
माताएं सब राम निहारहिं। कनक थाल आरती उतारहिं।।
राम मातु गुरु चरणन नाये। सुयश सुमंगल आशिष पाये।।
माता सोचि देखि सुकुमारा। केहि विधि राम दशानन मारा।।
रामचंद्र सब सखा बुलावा। इन्ह की कृपा विजय रण पावा।।
राम वचन सुन सभी सुखारे। श्रेय विजय प्रभु स्वयं न धारे।।
कनक कलश ध्वज वन्दनवारा। सबहिं सजावहिं निज निज द्वारा।।
कंचन थाल आरती नाना। राम चरित त्री गावहिं गाना।।
हर्षित देव पुष्प बरसावहिं। राम अभिषेक शुभ दिन आवहिं।।
रामचंद्र जब मंदिर जाई। गुरु वशिष्ठ द्विज लिए बुलाई।।
द्विज गण देहु हरषि अनुशासन। रामचंद्र बैठहिं सिंहासन।।
कहहिं वचन मृदु विप्र अनेका। मुनि करहु रामहि अभिषेका।।
अवधपुरी अति रुचिर सजाई। राम तिलक सुर झारि बुलाई।।
राम वाम भुज रमा सुशोभित। देखि युगल माताएं हर्षित।।
तिलक राम वशिष्ठ मुनि कीन्हा। फिर सब विप्रन्ह आयसु दीन्हा।।
विप्रन्ह राम दान बहु दीन्हे। याचक सकल अयाचक कीन्हे।।
रामाभिषेक अवसर अलौकिक गन्धर्व किन्नर गावहीं।
दुंदुभि बाजत नाचत अप्सरा देव पुष्प बरसावहीं।
मुकुट माथे अंग भूषण सिंहासन भुवन स्वामी सजे।
कहते न बने शोभा अवध की गावहिं शारद वेद जे।
वेद आय गाये गुनगाना। लखा न कोउ राम सब जाना।।
जय सगुण निगुण रूप अनूपा। रावण हन्त शिरोमणि भूपा।
भंजि दुख दारुण नर अवतारा। नमामि प्रनतहिं पालनहारा।
जगत चराचर वश तव माया। नाथ कृपा दुख मुक्ती पाया।
अभिमानी तव भक्ति न करही। पाइ परम पद ठाले गिरहीं।
परिहरि अन्य दास तव होई। जपि तव नाम तरहिं भव सोई।
जे चरण पूज्य अज शिवशंकर। भजहिं वेद हम नित्य निरंतर।
अकथ कल्प तरु आदि न अंता। करहिं नमामि राम भगवंता।
अजम अद्वैत ब्रह्म जे ध्यावहीं। करि अनुभूति नर जग पावहीं।
करुणाधाम हरि वर मांगहीं। मन तव चरण प्रभु अनुरागहीं।
राम विनति करि वेद विलोपहिं। शिव करि अस्तुति आय विलोकहिं।।
श्रीरामचरित मानस से उद्धृत संत तुलसीदास रचित स्तुति :
जय राम रमा रमणं समनं ..
जय राम रमापति हृदय रमो, तुम स्वामी तीनों भुवन के।
भवताप संताप तुम्हीं हरते, सुखदाता हो हरि जन जन के।
क्षिति जल पावक गगन पवन तुम, हर श्वांस हो हरि जीवन के।
दिनकर पाते तेज तुम्हीं से, प्रकाश पुंज तुम ही दिन के।
आस विश्वास सुर ऋषि मुनि के, भूषण धरती गगन के।
माया कारक और निवारक, भ्रम बुद्धि विवेक गुर बन के।
तुम रक्षक हो शरणागत के, अन्तर्यामी सबके मन के।
खर दूषण सहस्रबाहु के काल, हन्ता तुम ही दशानन के।
दाहे निशिचर दल पतंग से, तुम्हरे बाण प्रचंड अगन के।
रोग वियोग धरे वही लोग, न लाइ लगन तव चरनन के।
हैं दीन मलीन दुखी तिनहीं, पद पंकज प्रीत नहीं जिन के।
करि प्रेम निरंतर धरम धरे, तुम होत अवलम्ब प्रभु तिन्ह के।
तव नाम जपूँ रघुवीर सदा, नित साधु सन्त भजते जिन्ह के।
लोभ मोह मद काम त्याग जे, तुम शक्ती उन्ह मुनि संतन के।
गुण शील कृपा के परम तुम्हीं, मैं करउँ नमन रघुनन्दन के।
माँगि वर हृदय करउ निवासा। बरनि राम शिव गय कैलाशा।।
राम कथा जेहि सुनहिं गावहिं। सुख सम्पति नाना विधि पावहिं।।
राम कथा दृढ़ भक्ती करनी। विषय विलास त्रास दुख हरनी।।
राम चरण रति नित नव साजा। नमत देव मुनि संत समाजा।।
सखा बुलाइ पास बैठारे। राम सुखद मृदु वचन उचारे।।
पाये सखा ज्ञान अति सुन्दर। देखि टक राम प्रेम समुन्दर।।
विविध ज्ञान कह कीन्ह विदाई। भजहु राम कह मो गृह जाई।।
कपि घर चले नाइ पद माथा। हिय में धारि राम रघुनाथा।।
सब मन सोचत कह दें रामा। ठहरउ और अयोध्या धामा।।
उन्ह बहु भांति राम समुझाई। देइ उपहार कीन्ह विदाई।।
विनती कीन्ह राम हनुमंता। सेवक रहउँ शरण भगवंता।।
कोमल चित अति बज्र कठोरा। राम चरित जग समझे थोरा।।
राम राज हर्षित त्रैलोका। कहुँ न विषमता कतहुँ न शोका।।
आश्रम वर्ण धरम पथ लोगा। राम राज जन भय ना रोगा।।
दैहिक दैविक ताप न भौतिक, राम राज सुखदायी पावन।
श्रुती नीति चलते नर नारी, चारों चरण धरम का पालन।
सब सुन्दर बदन निरोग धरे, ना दुखी दरिद्र न दीन कोई।
नहिं अल्प-आयु न कष्ट कोई, ना मूरख लच्छनहीन कोई।
सब चतुर गुनी पंडित ज्ञानी, प्रेमी उदार सब उपकारी।
ना कपट दम्भ बस राम भजन, सभी परम गति के अधिकारी।
कभी किसी में बैर न कोई, नारि सकल पति के हितकारी।
सुरभित शीतल मंद पवन नित, निर्मल जल सरि अमि सुखकारी।
कूंजत खग पशु चरत अभय वन, फूलत फरत सदा तरु कानन।
पर्वत प्रकट खान मणियों की, उत्तम कृषि धरती मनभावन।
जब जब मांगत देत धेनु पय, मांगे तरु मधु फल टपकावत।
जल बरसावत मांगे मेघा, प्राणी सब आनंद मनावत।
सागर निज मर्यादा रहते, लहरें लातीं रत्न बहाकर।
दसों दिशा प्रसन्नता व्यापी, कमल कुमुदिनी शोभित सरवर।
राम करहिं भ्रातन्ह पर प्रीती। नाना भांति सिखावहिं नीती।
हर्षित रहहिं नगर के लोगा। करहिं सकल सुर दुर्लभ भोगा।
माया भक्ती दोनों नारी। केवल भक्ति राम को प्यारी।।
महिमा राम न जानत कोई। जानि राम
कृपा जेहि होई।।
जानत सिया राम प्रभुताई। सेवति चरण कमल चित लाई।।
सुरगण चाह कृपा नित सोई। अनुरति रमा राम पद होई।।
भ्राता राम विलोकत रहहीं। कबहुँ कृपाल मोहिं कुछ कहहीं।
सिया राम के सुन्दर लव कुश। अन्य भाईयों के दो दो सुत।।
नारायण माया गुन पारी। लीला राम रूप नर धारी।।
विराजमान अवध भगवाना। राम चरित गावत विधि नाना।।
रामहि महल अमंगल हारी। जड़े रतन मणि कनक अटारी।।
चारु वाटिका गुंजत मधुकर। रामहि चित्र लगाए घर घर।।
रामहि नगर परम रुचिराई। देखत पुरी सकल अघ जाई।।
रमापति राम जहँ के राजा। अणिमादिक सुख संपत्ति छाजा।।
शोभा शील रूप गुण धामहि। भजत नर नारि कृपालु रामहि।।
जहँ तहँ जन रघुपति गुण गावहिं। भजहु परस्पर राम सिखावहिं।।
भजहु राम जगती के पालक। दुख संशय भय पाप के घालक।।
राम नाम अस उदित दिवाकर। सकल जाइ तम पाप निशाचर।।
धरम विवेक ज्ञान विज्ञाना। राम नाम सुख सम्पति नाना।।
समदर्शी सनकादिक आये। वेदरूप, गुण राम सुहाये।।
राम कथा ऋषि अगस्त्य कहहीं। चित्त लाइ चारों मुनि सुनहीं।।
राम विलोकि दण्डवत कीन्हीं। वेदरूप मुनि आशिष दीन्हीं।।
राम कह धन्य सुनहु मुनीशा। तुम्हरे दरश जाहिं अघ खीसा।।
सुनि प्रभु वचन हरषि मुनि चारी। अस्तुति राम करहिं अनुसारी।।
जय निर्गुण जय गुणों के सागर, सुख के मंदिर सुन्दर नागर।
जय लक्ष्मीपति जय हे भूधर, अज अनादि अनुपम शोभाकर।
वेद पुराण सुयश शुचि गावत, अमान मानप्रद ज्ञान निधान।
नाम अनेक अनाम निरंजन, तज्ञ कृतज्ञ भंजहु अज्ञान। निरंजन = मायारहित तज्ञ = तत्व को जानने वाले
सर्व सर्वगत सर्व उरालय, करि उर वास करहु परिपालय।
सेवत सुलभ सभी सुखदायक, मन संभव दारुण दुख दारय।
द्वन्द विपति भव फंद विभंजय, हृदय राम मद काम विनाशय।
विनय विवेक विरति प्रदाय हे,आस त्रास ईर्ष्यादि निवारय।
मुनि मन मानस हंस निरंतर, तारन तरन हरन सब दूषण।
काल करम सुभाउ गुण भच्छक, जय श्रीराम त्रिलोकहि भूषण।
परम आनंद कृपा के धाम, त्रिविध ताप भव दाप नशावन। दाप = क्लेश
पूरन कीजै काम हमारे, दीजै राम भक्ति शुचि पावन।
पूछहि भरत राम समुझाई। कहहु संत असंत बिलगाई।।
संत असंत राम कह करनी। जिमि कुठार चन्दन आचरनी।।
कोमलचित दीनन्ह पर दाया। सन्त हिय राम भगति अमाया।।
शीतल सरल विगत सब कामा। द्विज प्रति प्रीति भजन श्रीरामा।।
संग असंत सदा दुखदायी। राम कह संगत करि न भाई।।
ध्यान सुआरथ लोभ व सुख में। होयं खलन्ह के राम न मुख में।।
झूठ कपट मद काम व मोहा। राम नाम असंत ना सोहा।।
पर दारा पर धन पर द्रोही। राम विमुख पर-निंदक कोही।।
विपति पराइ देखि सुख पावा। खलन्ह राम कथा नहिं भावा।।
खल कहुँ निंदा सुनहिं पराई। हरषि राम कह परनिधि पाई।।
मातु पिता गुरु विप्र न आदर। राम न हिय खल वेद निरादर।।
परहित सरिस धर्म नहिं भाई। पर-पीड़ कह राम अधमाई।।
दीन्ह राम जग मनुज शरीरा। परहित भजन हरहिं पर-पीरा।।
राम राज में अधम न कोई। द्वापर कछु कलियुग बहु होई।।
शुभ अशुभ फल कर्म के दाता। राम खलन्ह के काल हे भ्राता।।
माया रचित विविध गुण दोषा। संत राम कह सद्गुण पोषा।।
अधर राम के सार समायी। हर्षित हुए वचन सुन भाई।।
नारद पुनि पुनि अवधहि आवहिं। राम चरित सुरलोक सुनावहिं।।
ऋषि मुनि सुनहिं चरित धरि ध्याना। राम कथा बिनु हिय पाषाना।।
राम बुलाये मुनि द्विज सज्जन। बोले वचन भक्त भव भंजन।।
प्रियस राम कह सेवक सोई। मम अनुशासन माने जोई।।
बड़े भाग मानुष तन पावा। पाय न मोक्ष राम बिसरावा।।
काल कर्म स्वभाव गुण घेरा। राम भजन सकि छाँट अँधेरा।।
सुलभ सुखद पथ पाइ परम गति। भक्ती राम वेद पुराण श्रुति।।
साधन कठिन न मन कहुँ टेका। भक्ति राम उपाय विशेषा।।
राम भक्ति सरबस सुख खानी। बिन सत्संग न पावहिं प्राणी।।
राम भगति बड़ नाहिं प्रयासा। योग न यग जप तप उपवासा।।
बैर न विग्रह आस न त्रासा। सुखमय ताहि राम करि आशा।।
होइ जे राम नाम परायण। सुख आनंद सोइ नारायण।।
सुनत सुधासम वचन राम के। गहे सबहि पद कृपाधाम के।।
तन धन धाम राम हितकारी। असुर रहित जग युग अवतारी।।
बोले वशिष्ट राम देहु वर। तव पद पंकज प्रीति निरंतर।।
तेहि अवसर मुनि नारद आवा। धरि हिय प्रेम राम यश गावा।।
गिरिजा रामहि चरित अपारा। शिव कह कोउ न बरनै पारा।।
शिव कहहीं गुण राम बखानी। सुनि शुचि कथा उमा हर्षानी।।
राम चरित नहिं सुनत अघाहीं। नाथ सुधारस अस कहुँ नाहीं।।
राम कथा अनंत सुख धामा। श्रवण सुखद अरु मन अभिरामा।।
जिन्हहि राम कथा ना सुहाती। ते जड़ जीव आत्मा घाती।।
कागभुशुण्ड गरुड़ प्रति गाई। राम कथा अति नाथ सुहाई।।
सब ते जो दुर्लभ सुरराया। राम भगति रत गत मद माया।।
उपजै राम चरण जे प्रीती। भवसागर तरि उत्तम नीती।।
राम चरित विचित्र बहु नाना। भल जे प्रेम सहित कर गाना।।
राम भजे छूटे सब बंधन। फिर क्यों नागपाश रघुनन्दन।।
पूछि गरुण ब्रह्मा से जाई। कहउ राम माया समुझाई।।
ब्रह्मा कह जग मम उपजाई। जानहिं शम्भु राम प्रभुताई।।
शंकर कह तुम्ह तहवाँ जाई। राम कथा नित नित जहँ भाई।।
राम चरण जब होइहि नेहा। सुनि सो जाइ सकल संदेहा।।
योग किये तप ज्ञान विरागा। मिलहिं न राम बिना अनुरागा।।
कागभुशुण्डि पास खग जाई। सुनु शुचि कथा राम उर लाई।।
गयउ भुशुण्डि मोर संदेहा। सुनकर कथा राम पद नेहा।।
तुम्हहिं न संशय मोह न माया। मो पर पठइ राम की दाया।।
संगत संत मिलहिं जन तेही। होइहिं कृपा राम की जेही।।
मोह कोह मद मत्सर माया। चिंता जाइ राम गुन गाया।।
परवश जीव स्ववश भगवंता। जीव अनेक राम श्रीकंता।।
शिव ब्रह्मा ऋषि देवन्ह फासी। सो माया प्रभु रामै दासी।।
माया अति विशाल परिवारा। राम नाम करि सकत निवारा।।
माया चरित न जग लखि पावा। नाच नटी ते राम नचावा।।
व्यापक व्याप्य अखंड अनंता। अमोघशक्ति राम भगवंता।।
रूप गुण विज्ञान बल धामा। सच्चिदानंद अनंत घन रामा।।
राम भजन बिन सुनहु खगेशा। जीवन्ह का नहिं मिटै कलेशा।।
रामहि मुख ब्रह्माण्ड समाया। सकल प्रकृति सुर जीव निकाया।।
अगुन राम नित अज अविनाशी। निराकार प्रभु सब उर वासी।।
भगत हेतु धरेउ तन भूपा। लीला राम मनुज अनुरूपा।।
राम चरित सेवक सुखदायक। मानव जीवन हेतु विधायक।।
राम उदर बसेउ जग नाना। देखत बनई न जात बखाना।।
भिन्न लोक प्रति भिन्न विधाता। भिन्न विष्णु शिव रामहि त्राता।।
अवध पुनि देखउ राम सुजाना। जनम लीन्ह कृपालु भगवाना।।
भयउ भ्रमित मन यह सब देखी। लीन्ह राम हर मोह विशेषी।।
माँगउ राम दीन्ह वरदाना। सब सुख खान भगति भगवाना।।
भगत कल्पतरु सिंधु सुख धामा। अविरल भगति देहु मो रामा।।
राम भगति बिन सब सुख ऐसे। नमक बिना बहु व्यंजन जैसे।।
कहि तथास्तु राम रघुनायक। दीन्ही भगति ज्ञान सुखदायक।। जीव चराचर राम उपजाए। जे करि भगति उन्हें अति भाये।।
सुमिरहि भजहि राम नित जोई। कबहुँ काल न व्यापहि सोई।। जानि न जाइ राम प्रभुताई। राम कृपा बिन विपति न जाई।।
बिन संतोष न शान्ति मन में । राम बिना सुख नाहिं स्वपन में।।
बिन विश्वास भगति ना भाई। भगति बिना राम कहाँ पाई।।
नभचर पाइ न जस नभअंता। महिमा राम अथाह अनंता।।
राम काल शत कोटि नसावन। तीरथ अमित कोटि सम पावन।।
विष्णु कोटि सम पालनकर्ता। राम रूद्र अगणित संहर्ता।।
भज तजि ममता मद अभिमाना। राम भाव वश सुखद निधाना।
मात्र राम ही राम समाना। गुण अथाह सागर भगवाना।।
राम कथा अति गरुण सुहाये। पुनि पुनि काग-चरण सिर नाये।।
मोह भ्रान्ति सकल मम भागा। राम प्रताप मोहि अनुरागा।।
रामभक्त तव संशय स्वामी। को कारन यह तन नभगामी।।
महा प्रलय अस सुनि शिव पाहीं। राम प्रताप नाश तव नाहीं।।
राम चरित पावन अति सुन्दर। पायउ कहाँ कहहु हे नभचर।।
एहि तन राम भगति मैं पाई। ता सुनु मो ममता अधिकाई।।
जप तप सकल राम पद प्रेमा। तेहि बिन कोउ पाइ न क्षेमा।।
धरम करम उत्तम कहुँ एहा। मन क्रम वचन राम पद नेहा।।
राम भगति मो एहि तन जामी। तबसे मोहि परम प्रिय स्वामी।।
कागभुसुंडि कहे गरुण से, प्रथम जनम जब पाया था।
हुए अधर्मी नर अरु नारी, ऐसा कलियुग आया था।
मोह लोभ मिथ्या के पथ सब, देव विप्र अरु संत विरोधी।
निति प्रीति से विमुख हुआ जग, जन जन काम लोभ रत, क्रोधी।
डिंग दम्भ रत पंडित सोई, काम विलास तिन्ह भाया था।
सोइ ज्ञानी जे परधन हारी, महिमा मंडन जे अपकारी।
शिष्य गुरु की एक न सुनता, होते वशी पुरुष पर-नारी।
गुरु शिष्य का शोक न हरता, धन के लिए लुभाया था।
वेद पुराण का मान न होता, सब के सब धन के अभिलाषी।
राम नाम की सुधि ना होती, लिप्त विषय में कलियुग वासी।
झूठ कपट पाखंड द्वेष हठ, मानस सबके छाया था।
मूढ़ नीच तजकर मर्यादा, करते थे अपनी मनमानी।
पातक धनी कुलिन कहलाता, होय तिरस्कृत पंडित ज्ञानी।
पर निंदक मिलते थे पग पग, राम भजन नहिं भाया था।
कलियुग में तप जोग न ज्ञाना, एक आधार राम गुन गाना।
'सत्यदेव' कलि उत्तम जानो, राम नाम करि सब कल्याना।
हरेक कल्प के अंतकाल में, जब जब कलियुग आएगा।
राम गुण बस गाइ के मानुष, भव सागर तर जायेगा।
राम चरण प्रीति जेहि राखा। काल धर्म ते नाहीं व्यापा।।
कलि दोष बिन भजन ना जाहीं। भज तज काम राम मन माहीं।।
जनम जनम नाना तन धारयु। राम कृपा जिमि चिर पट तारयु।।
चरम देह द्विज कै मैं पाई। लीला राम करउँ लरकाई।।
मो सब प्रौढ़ वासना भागी। चरनन राम लगन मम लागी।।
एक जनम पायउ अभिशापा। मन्त्र दीन्ह गुरु रामहि जापा।।
शिव शम्भु की स्तुति किन्हीं। राम चरण रति आशिष दीन्हीं।।
अकाल अनीह अनाम अरूपा। निर्गुण राम अखंड अनूपा।।
रामहि सगुन पक्ष मैं रोपा। काग देह मुनि दीन्ह सकोपा।।
राम नाम गुरु मन्त्र बतावा। कारण ताहि परम सुख पावा।।
राम चरण रति मुनि जब देखा। मति मम नर सम करउ विशेषा।।
शम्भु प्रसाद रूप जे पाई। रामचरित मुनि कथा सुनाई।।
रामचरित अति मोहि सुहावा। इच्छा रूप मरण वर पावा।।
राम रहस्य ललित विधि नाना। नेह राम पद नित ते जाना।।
कल्प सताईस मो यहं बीते। गावत गुन प्रभु राम पुनीते।।
जब जब घटे धरम धरती पर। आयउ राम रूप मानुष धर।।
तब तब नगर राम के रहऊँ। लीला बाल देखि सुख लहऊँ।।
मुनि लोमश मो शाप हिताई। पायउँ राम चरित सुखदायी।
अति प्रिय मोहि काग कै देहा। एहि तन भयउ राम पद नेहा।।
ज्ञान बिराग योग विज्ञाना। भक्ति बिना रामहि नहिं जाना।।
राम भगत माया सकुचाई। करि न सकइ कोई प्रभुताई।।
जीवहिं हृदय मोह तम माया। छूटे ग्रन्थि राम गुण गाया।।
प्रबल अविद्या कै परिवारा। राम नाम से मिटे अपारा।।
रिद्धि सिद्धि जे लोभ दिखाई। राम भजन ही तेहि मिटाई।।
मन माहीं विचार मनमानी। राम भजन करि निर्मल पानी।।
इंद्री द्वार झरोखा नाना। पहरेदार राम गुण गाना।।
बसहिं राम जाके उर अंदर। दुर्लभ पाइ परम पद सुन्दर।।
राम भगति मणि उर में जाके। दुख विपत्ति लवलेश न ताके।।
राम भगति मणि अद्भुत भाई। राम कृपा बिन जग ना पाई।।
राम कथा रतनाकर सुन्दर। काढ़इ भगत सुधा मथ अंदर।।
नर तन सम नहिं कवनउ देही। राम कृपा नर पावत तेही।।
राम नाम ही जीवन का पथ। राम नाम पुण्यों का रथ।
राम नाम युग युग की भक्ती। राम नाम में अद्भुत शक्ती।
मंगल भवन अमंगल हारी। भजे राम नित हिय में धारी।
निसिचर अगणित। गय अतिकाय अकम्पन मारे।
राम का नाम तू भज ले भाई, राम नाम सदा सुखदायी।
राम राम निर्मल पावन जल, धो देता है मन की काई।
प्रभु श्रीराम जगत का उद्भव। राम नाम ही जग का उत्सव।
मन संकल्प सकल हो जाता, राम नाम भजने से संभव।
राम का नाम सुखों की खान, भाव सहित जे खोजत पाई।
काम क्रोध मद मोह तू तज दे, ईर्ष्या दम्भ कपट पटक दे।
अपना ले जप राम भजन तू , नियम धर्म आचार पकड़ ले।
राम नाम मणिकांचन जग में, राम भजो मन तज कुटिलाई।
धन्य देश वो अवध जहाँ पर, बहती सुरसरि अरु सरयू सरि।
धन्य माटी कण कण में राम, जीवन सफल राम को भज कर।
राम भजन संजीवनी बूटी, हर विपदा की यही दवाई।
मन लगाय राम गुण गाई, मन क्रम वचन जनित अघ जाई।
भजन राम का सुलभ जहाज, भवसागर से पार लगाई।
राम भगति जब उर में छायी, पुण्य प्रताप परम पद पाई।
राम उपासक जे जग माहीं, राम कथा सम तिन्ह कछु नाहीं।
कहहिं सुनहिं अनुमोदन करहीं, 'सत्यदेव' पावन हो जाहीं।
विषय मनोरथ दुर्गम नाना, राम नाम सब शूल मिटाई।
राम नाम भज सबरी तर गयी, गणिका गिद्ध अजामिल तर गए।
रामचरित गा अमर भुशुण्डी, तुलसी और बाल्मीकि तर गए।
राम नाम ही जीवन का सुख, राम नाम ही मोक्ष प्रदायी।
रामायण सार