Wednesday, 27 May 2020

Haiku 2020


धरे न धीर

पाने को धारे
व्यवहार अशिष्ट
मन अभीष्ट

मन पागल
हवा संग उड़ता
बन बादल

मन को भाये
ऐसी सुंदर वस्तु 
कहाँ से आए

आँखों को मूंद
सोया पड़ा सूरज 
ओढ़ के धुंध


नयी थी  आयी 
खींचते रहे दोनों 
छोटी रजाई 

झुकीं नारियां
रोप रहीं क्यारियां
धान की पौध



उठे श्रीमान
बैठने का निशान
घास पे छोड़

अब क्या खाएं 
कोरोना ही खा गया 
सारा राशन

ढूंढता चारा 
पीठ पे लिए पानी 
ऊंट बेचारा 

मिलने चली 
सिंधु से लिए आब 
नदी बेताब 
  
हुई सुबह
खिलते ही कमल
मुक्त भ्रमर 

गिरा उतान 
सिर पर झरना 
रोई चट्टान 


बेटी के माथ
माँ धरे दोनों हाथ 
जुएं हेरते 

गांव की नदी 
गर्मियों में बहती 
गरम हवा 


सावन आया 
झुलूंगी झूला डाल 
नीम की डाल

लेह से मित्र
भेजा लॉन का चित्र
बर्फ की घास

रोये बादल 
अम्बर में बिजली
नीचे बिछली

जाड़े में स्वेद
बहाता रहा नभ
नीचे कुहेश

हो गया तेज
दवा दो इंद्र देव !
पृथ्वी का ज्वर


हिन्द की हिंदी
बन के रह गयी
नन्हीं सी बिंदी

थन के नीचे
गर्र गर्र करते
चौधरी बैठे

चली हैं साथ
ननद और सास
गंगा नहान

हद कर दी
निकला आधा माघ
ज्यों की त्यों सर्दी

सौ पर भारी
पांच ही धर्मचारी
महाभारत

खाकर कीड़ा
मटर की फलियां
आंख गिरोड़ा

जैसे ही मिली
झूम के लहराई
सिंधु से नदी

फूल न पत्ती
बैठी शोक मनाती
तितली रानी

श्रम करती
तभी पेट भरती
नन्हीं तितली

गमले पर
मंदिर में तितली
राम भजती

आवा बदरा
सुखात बाटे खेत
नीचे के झरा


पसंद नापसंद
पावन प्यार

ध्रुव प्रह्लाद
जाने कब हो गए
सांप्रदायिक

राहु भी आया
धुंध का देने साथ
सूर्य ग्रहण

खींची दीवार
मेरे सूर्य के बीच
नभ में धुंध

भंडारा चला
साहित्य का सम्मान
सबको मिला

शाम सुहानी
केतली में गा रहे
घोंघा बसंत

घर में घुसे
जूते में लगी मिट्टी
पांव पोंछते

उठीं श्रीमती
बैठने का निशान
घास पे छोड़

कथा समाप्त
मखियाँ भी आ गयीं
खाने प्रसाद

एक मच्छर
मच्छरदानी भेद
घुसा अंदर

कीड़े की लाश
जुट गयीं चीटियां
हेतु संस्कार

छिटका गुड़
भिन-भिन करता
मक्खी का झुण्ड

काम ही काम
सुस्ताने का न नाम
चींटी के जिम्मा

धुएं से खींच
राम नाम लिखती
अगरबत्ती

शब्दों का तीर
वेध कर जिगर
देता है पीर

शब्दों का फूल
सहला के हटाता 
मन के शूल

शब्दों का शूल
वेध देता दिल में
खिलाया फूल

दिखाई गर्मी
धरती से बेरुखी
नदियां सूखीं

हरश्रृंगार
उतरे आये तारे
हमारे द्वार

उनसे डरा
उनका ही बकरा
ईद आ रही

बहेलिया से डरा
नीड़ छोड़ा

रोज डालता
गमलों
पौधों से प्यार

'आई लव यू'
जैसे ही बोली वह
बैटरी ख़त्म

चैराहों पर
बिताया बचपन
गरी बेचते

चौराहों पर
करतब दिखाती
दो पैसे लाती

देखी ना सखी 
रही नयना मूंदे 
भादों की बूँदें 

अपना बचा
निकाल रहा मेघ
हमारा स्वेद

आ के यहाँ तू
पीया बहुत आंसू
मेरे न बहा

एस. डी. तिवारी

कहाँ है ठाँव 
नन्हें से मेरे पांव
जिंदगी! बता

एस. डी. तिवारी

बनी बेदर्दी
हाड़ कंपकंपाती
अबकी सर्दी

भरा है पेट
भूखा किन्तु हवसी 
मरा विवेक

टटोल बस 
दो चार ही चावल 
लेती परख  
   
मिडिया बन 
समाज का दर्पण  
बिम्ब दिखाती 

बीती लोहड़ी  
अभी पीछा न छोड़ी
शीत लहरी
- एस डी तिवारी 


लॉक डाउन
तीन माह से बंद
पूरा टाउन


रुक ना रहा
कोरोना का कहर
गर्मी ऊपर

टिड्डी का दल
झट से किया चट
खड़ी फसल

त्रस्त जनता
टिड्डी गर्मी कोरोना
तीनों का रोना

नौकरी छूटी
श्रमिक चला गांव
कौड़ी न फूटी

आया ना रास
मजदूर को गांव
एकांत वास

गए ठहर
शहर के शहर
कोरोना व्याधि

पकाती साग
मुल्क में लगा आग
सत्ता की भूख


दुम हिलाती
पुलिस नेता द्वारे
दीन को मारे

खाकर लाल
न्याय के दोनों गाल
साथ तमाचा

मेरी कुटीर  
इसी में मनाऊंगा 
नूतन वर्ष  

घर के पीछे 
बासों का झुरमुट  
झांकता चाँद 

नभ से चाँद 
झुरमुटों से झांक 
मेरी मुरेड़

करवा चौथ 
उड़ाते पकवान 
देख के चाँद 


जलाये बोटी
सेंकने हेतु रोटी
खुद के माँ की
आज कल का नेता
यूँ ही नईया खेता

दिल के रंग 
नयनों से छलक 
दिए झलक 

हिम्मत हो तो 
चीन जा के दिखाओ 
दुष्ट टिड्डियों !

गये ठहर
शहर के शहर
चीनी कहर

बिना बन्दूक
ले ली लाखों की जान
छोटी सी चूक

कल्ले ही नाची
इस वैसाखी मोना
छाया कोरोना



बनाया बंदी
कोरोना का कहर
पूरा शहर 

दैत्य कोरोना 
मचाया हाहाकार 
बंद बाजार  

हाथों को धो के 
भगाएंगे कोरोना
सजग हो के  

एस. डी. तिवारी 

Thursday, 21 May 2020

Ram ka naam


आखर अरथ अलंकृत नाना। छंद प्रबंध अनेक विधाना।।
भाव भेद रस भेद अपारा। कवित दोष गुण विविध प्रकारा।।
कवित विवेक एक नहिं मोरे। सत्य कहउँ लिखि कागद कोरे।।\
एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुराण श्रुति सारा।। 

विषय क्रम 

प्रथम सोपान 

राम नाम महिमा 
रामावतार 
अयोध्या में राम
अरण्य में राम 
किष्किंधा में राम 
सीता  की खोज में राम 
लंका में राम 
राम विजय 
राम-राज्य   
राम नाम छंद 


राम नाम जो जन भजे, धर के मन में धीर।
विधि जीवन सुखमय रखे, मन में होय न पीर।। 

जीवन का सार धारे, भज ले रे मन राम। 
जीव को भव से तारे, भज ले रे मन राम। 
राम नाम वह शक्ति है, बन जाए सब काम।।
भजन उसकी भक्ति है, भज ले रे मन राम।  
राम नाम हीरा रतन, भज ले रे मन राम।
भांति भांति करके यतन, भज ले रे मन राम।।  
मन की जब चिंता बढ़े, भज ले रे मन राम।
बाधा कोई भी अड़े, भज ले रे मन राम।।
भजने से तृष्णा मरे, भज ले रे मन राम।
धर्म-संकट दूर करे, भज ले रे मन राम।।
कलुष मन का मैल धुले, भज ले रे मन राम
जीवन का अमृत मिले, भज ले रे मन राम।


है बहुत सुखकारी, श्री रामचंद्र का नाम।
जगती में भजकर भक्त, बहुत सुख पायो जी।।

राम नाम समाहित, अनमोल सुखों की खान।
देव, ऋषि, मुनि, संत सभी, राम गुण गायो जी।।

मचाने आते भू पर, जब जब दानव उत्पात

ले रामचंद्र अवतार, उनको मिटायो जी।
हेतु मिटाने पाप, खुद धरती पर भगवान। 
धर मनुज रूप श्रीराम, अवध मेंं जायो जी।।
दशरथ के महल में, थी किलकारी की गूंज।
विहँसत बालक श्रीराम, माँ को रिझायो जी।।
देख दिव्य श्रीराम, चकित कौसल्या माँ। 
नवजात पूजा प्रसाद, केहि विधि खायो जी।। 
भज लेने से राम, मिट जाते सारे पाप।
दुर्गुणों से लड़ने का, मनुज बल पायो जी।। 

विश्व में सब संभव, कृपा से राम की होय। 

आनंद राम का नाम, भजे बरसायो जी।।

सुधा कलश अनमोल, प्रभु रामचंद्र का नाम।  
मानव भवसागर पार, मन जो बसायो जी।। 


आनंद का दाता, राम का नाम। त्रिभुवन का विधाता, राम का नाम।।
रहती नहीं झोली उसकी खाली। जो हृदय से गाता, राम का नाम।।

सबसे उत्तम मन्त्र, राम का नाम। कष्ट निवारक यंत्र, राम का नाम।।
इस जीवन के भवसागर से पार। ले जाने का तंत्र, राम का नाम।।

प्रभु राम से बढ़कर, राम का नाम। मिले शांति भजकर, राम का नाम।। 
बन जाते बिगड़े उसके सब काम। जो जपता निरंतर, राम का नाम।। 

ब्रह्माण्ड का उद्भव, राम का नाम। करता सब संभव, राम का नाम।। 
शक्ति है ये अद्भुत और अलौकिक। देता है वैभव, राम का नाम।।  

ब्रह्माण्ड से बड़ा, राम का नाम। ब्रह्म से ऊपर खड़ा, राम का नाम।। 
जीवन का यह सबसे उत्तम धन। रत्न अनमोल जड़ा, राम का नाम।।  

देता सच्चा सुख, राम का नाम। हर लेता हर दुख, राम का नाम।।
हृदय मनुष्य का पावन हो जाता। हो जिसके मन मुख, राम का नाम।।

जन जन को प्यारा, राम का नाम। सबको है तारा, राम का नाम।
कोई विपत्ति जब ऊपर आती। बन जाता सहारा, राम का नाम।। 

देता अपार शक्ति, राम का नाम।। भरता मन में भक्ति, राम का नाम।। 
नाना भांति के पाप कर्मों से। देता है विरक्ति, राम का नाम।।
 
रिपुओं को हराता, राम का नाम। हर भय को भगाता, राम का नाम।। 
विपत्ति जो आती दूर हो जाती। भूतों को डराता, राम का नाम।। 

ऋषि मुनियों की भक्ति, राम का नाम। जग में श्रेष्ठ शक्ति, राम का नाम।। 
सन्मार्ग पर ये चलने का बोध। सत्य की अभिव्यक्ति, राम का नाम।। 

भक्तों का आधार, राम का नाम। निराकार साकार, राम का नाम।। 
देकर लोभ भोग काम से मुक्ति। लाता मोक्ष द्वार, राम का नाम।। 

सत्पुरुष बनाता, राम का नाम। पापों से बचाता, राम का नाम।। 
संवर जाता उस मनुज का जीवन। जो प्रेम से गाता, राम का नाम।। 

सभी सुख का दाता, राम का नाम। शम शान्ति दिलाता, राम का नाम।। 
कलुषतान विकार दूर कर देता। मन स्वच्छ बनाता, राम का नाम।। 

सबसे बड़ा विधान, राम का नाम। सृष्टि का संविधान, राम का नाम।
जगाने वाला 
सूरज को नित्य। त्रिभुवन का विहान, राम का नाम।

समझो नहीं शब्द, राम का नाम सृष्टि का आरब्ध, राम का नाम।
कण कण में होता राम का वास। सबको सहज लब्ध, राम का नाम।

सुखों का आधार, राम का नाम इस जीवन का सार, राम का नाम।
आस्था नहीं बसअटल सत्य यह। करता सब साकार, राम का नाम।

अनादि अनंत अमर, राम का नाम। जन जन के अंतर, राम  का नाम।  
कोई भी मन्त्र नहीं कर सकता। जो कुछ जाता कर, राम का नाम।। 

मन  का दृढ़ विश्वासराम का नाम। उत्तम फल की आसराम का नाम।।
हर लेता बहुतों के दुखों को। बुरी शक्ति का त्रासराम का नाम।।

धरा की प्रबल शक्ति, राम का नाम। हरि की सच्ची भक्ति, राम का नाम।। 
जो भी भजता, रख हृदय में श्रद्धा। हर लेता विपत्ति, राम का नाम।। 

रखता इतना दमराम का नाम। हर ले पाप का तम, राम का नाम।। 
डोलता पाप जब सिर पर चढ़कर। करता जड़ से भस्म, राम का नाम।। 

भगाता कष्ट विकट, राम का नाम। सुख पहुंचाता झट, राम का नाम।।  
सुखी जीवन व निर्मल मन उसका। होता जिसके घट, राम का नाम।। 

बड़ी शक्ति समाये, राम का नाम। परम भक्ति समाये, राम का नाम।।
राम नाम कितना प्यारा जग में। जन-अनुरक्ति समाये, राम का नाम।

है बड़ा श्रेयष्कर, राम का नाम। पिघला दे पत्थर, राम का नाम।। 
राम का नाम जग में उपकारी। सिद्ध मन की भजकर, राम का नाम।।  

है अमृत का पान, राम का नाम। सभी सुखों की खान, राम का नाम।। 
पाते अनोखी आत्मिक शांति। नित करते जो ध्यान, राम का नाम।।  

जीने का आधार, राम का नाम। सत्कर्मों की धार
, राम का नाम।।
जीवन की गाड़ी चलती छुक छुक।  ऊपर विद्युत् तार, राम का नाम।। 

सिखाता सदाचार, राम का नाम। भगाये दुष्विचार, राम का नाम।। 
करता यही 
हर सांस को पावन। रुग्ण मन का उपचार, राम का नाम।।  

हरता कष्ट अपार, राम का नाम। दुर्गुण का प्रतिकार, राम का नाम।।
कुदृष्टि, ईर्ष्या को दूर ये रखता। देता भाग्य संवार, राम का नाम।।  

सच्चरित्र करता पुष्टराम का नाम। हरता मन के कष्टराम का नाम।। 
उत्पन्न जो भी आसुरी शक्तियां। करता उन को नष्टराम का नाम।। 

भव पार लगाताराम का नाम संताप भगाताराम का नाम।
धरती पर जब जब राक्षस आते। उन सबको मिटाता, राम का नाम।। 

सृष्टि की सच्चाई, राम का नाम। दुर्गुणों की सफाई, राम का नाम।।
धो डालता सभी दुष्विचारों की। जमी मन पर काई, राम का नाम।।

महाशक्ति का स्रोत, राम का नाम। सद्गुण से ओत प्रोत, राम का नाम।। 
गहनतम तम भी कर देता दूर। मन मानस की ज्योति, राम का नाम।। 

जीवन का मंत्र, राम का नाम।`पाप नाश का तंत्र, राम का नाम।। 
चलाने वाला जग शांति पथ पर। सरलतम दिव्य यंत्र, राम का नाम।।

भजने से समुचित, राम का नाम। न होने दे अनुचित, राम का नाम।। 
सद्गुण सच्चरित्र का है स्वामी। जीव लगा ले चित्त, राम का नाम।।

है अनन्त अमर, राम का नाम। हर पल जल थल पर, राम का नाम।
राम नाम हर प्राणी के घट में। पर्वत, मरुथल पर, राम का नाम।। 

जो जन अपनाता, राम का नाम दुर्गुण को भगाता, राम का नाम।
करता आया हर बाधा को दूर। हर व्यथा मिटाता, राम का नाम।।  

बुरे समय में साथ, राम का नाम। बन जाता है हाथ, राम  का नाम।। 
कारज सारे पूरे हो जाते। लगा लेने से माथ, राम  का नाम।।

भूले भी बोले, राम का नाम। भाग्य को खोले, राम का नाम।।  
स्वच्छ, निष्पाप, निर्मल हो जाता। यदि मन में डोले, राम का नाम।।  

ऋषि, मुनि सब भजते, राम का नाम। साधु-संत रटते राम का नाम।। 
पावन विचार रखते नर नारी। नित नित जो जपते, राम का नाम।। 

हर प्राणी जपता, राम का नाम। सारा जग रमता, राम का नाम।
थलचर, जलचर, नभचर हर कोई। पग पग पर भजता, राम का नाम।

लेकर योगी जगते, राम का नाम। ऋषि मुनि साधु जपते, राम का नाम।। 
संतों का मनोरथ 
भजकर सिद्ध। भज संकट मिटते, राम का नाम।।  

है ईश्वर का अंश, राम का नाम। रोके हर विध्वंस, राम का नाम।। 
महिमा को पाकर विलग कर देता। क्षीर से नीर हंस, राम का नाम।।

पग पग पे सहारा, राम का नाम। अघ से छुटकारा, राम का नाम।। 
फंस गयी यदि नईया मझधार। भवसागर तारा, राम का नाम।। 
 
हिय के तम का नाश, राम का नाम। अमल मन-आकाश, राम का नाम।। 
स्मरण मात्र भर देता ज्योति। मणि सम तीव्र प्रकाश, राम का नाम।। 
  
भगाता सकल संताप, राम का नाम। मिटाता मन के पाप, राम का नाम।।
विघ्न बाधायें पास ना आतीं। कर लेने से जाप, राम का नाम।।  
 
जग में परम पवित्र, राम का नाम। है क्षण क्षण का मित्र, राम का नाम।। 
भरे हुए शक्तियां चमत्कारी करता शुभ चरित्र, राम का नाम।। 

जीवन की पतवार, राम का नाम। रामायण का सार, राम का नाम।। 
जीवन रुपी गहरे सागर से। लेकर जाता पार, राम का नाम।। 

शुचि जल सा शीतल, राम का नाम। शशि जैसा उज्जवल, राम का नाम।। 
सूरज के जैसा आभामय है। वसुधा जैसा अटल, राम का नाम।। 

अनुकम्पा का सागर, राम का नाम। जीव भव पार पाकर, राम का नाम।।
जीवन नईया चलती राम नाम से।  रत्नों का गागर, राम का नाम।। 

आदर्शों का पालक, राम का नाम। सत्कर्मों का चालक, राम का नाम।। 
सत्य के मार्ग पर ले जाने वाला। दुर्गुणों का घालक, राम का नाम।। 

संसार में सत्य है, राम का नाम। शब्दों में भव्य है, राम का नाम।। 
हर युग में है ये अमृत के जैसा। क्षण क्षण जो श्रव्य है, राम का नाम।।
 
दूर करता विकार, राम का नाम। कुत्सित हरे विचार, राम का नाम।।
मन में बुरी भावना जो आतीं। देता सकल नकार, राम का नाम।। 


करे दनु प्रवृत्ति भस्म, राम का नाम। लोभ, तृष्णा ख़त्म, राम का नाम।
प्रेम से भजने से प्रेरित करता। करने उत्तम कर्म, राम का नाम।।  

खोले मन की किवाड़, राम का नाम। दुष्विचार को दे गाड़, राम का नाम।। 
सच्चरित्र का करता है निर्माण। दुष्ट संगत से आड़, राम का नाम।। 

तीरथ काशी प्रयाग, राम का नाम। बैठे तीरथराज, राम का नाम।। 
राम के दर्शन प्राप्त कर लेता। भज साधु समाज, राम का नाम।। 

मारुत को सुहाता, राम का नाम। खग मृग को लुभाता, राम का नाम। 
कोई भी मन्त्र नहीं इस जग में। जो काम कर जाता, राम का नाम।  

जब जपता मानव, राम का नाम। जपे संग हों राघव, राम का नाम।। 
जो जग में आता, भस्म कर देता। उधम करने दानव, राम का नाम।। 

नातों का सहारा, राम का नाम। करे भाई चारा, राम का नाम।। 
होता उस जन का कल्याण सहज। जिसने भी पुकारा, राम का नाम।।  

वह मन मंदिर, बसे, राम का नाम। जन आनंदित, भजे, राम का नाम।। 
राम नाम से मन मानस पावन। होवे पंडित, रमे, राम का नाम।। 

जपता संत जमघट, राम का नाम। होय जन जन के घट, राम का नाम।।कर लेते जीवन को धन्यसफल। मात्र लगाकर रटराम का नाम।
सदा सन्मति देता, राम का नाम। हर कुमति हर लेता, राम का नाम। 
बुरे दलदल में फंस जाय जब नाव। उसको भी खेता, राम का नाम। 
हर समय सुखदायक, राम का नाम। संकट में सहायक, राम का नाम।। 
मन की इच्छा पूरी कर देता। सुख का परिचायक राम का नाम।। 
करोड़ों का आधार, राम का नाम। इस जीवन का सार, राम का नाम।।
आस्था नहीं, एक अटल सत्य यह। सब करता साकार, राम का नाम।।

हर संकट से मुक्ति, राम का नाम। हर झंझट से मुक्ति, राम का नाम।। 
राम नाम से हो हर मार्ग सरल। हर कंटक से मुक्ति, राम का नाम।। 
 
हरि के कीर्तन में, राम का नाम। रामायण पठन में, राम का नाम।। 
मंदिर के शुभ घंटा की ध्वनि में। जप, पूजा, हवन में, राम का नाम।। 
 

आदर्श और नीति, राम का नाम। जग में सत्य व प्रीति, राम का नाम। 

नित ध्यान मनन करने वाले को। देता यश व कीर्ति, राम का नाम। 
 
जग में अद्भुत नशा, राम का नाम। बदले मन की दशा, राम का नाम।। 
उस जन को भला और क्या चाहिए। जिसके घट में बसा राम का नाम।। 

अवध से रामसेतु तकराम का नाम। जोड़े राष्ट्र को सबराम का नाम।।

बल अपार समाहित राम नाम में रोके कुपरिणाम सकलराम का नाम।।

भारत का सपना, राम का नाम। हर जीव का जपना, राम का नाम।।
आती जाती धन और संपत्ति। रहता बस अपना, राम का नाम।।
 
भारत के कण कण में, राम का नाम। भक्तों के क्षण क्षण में, राम का नाम।। 
बस राम नाम से यह चलता त्रिभुवन। जीवन के कारण में, राम का नाम।।  

धारे गहरे भेद, राम का नाम। सुन के भागते प्रेत, राम का नाम।। 
बन जाते हैं उन सबके सब काम। भजे कुटुंब समेत, राम का नाम।।  

यदि क्रूर भी जपता, राम का नाम। क्रूरता को तजता, राम का नाम।। 
दुष्ट पापी भी नित्य प्रति भजकर। कई अघ से बचता, राम का नाम।। 

जो भी अपनाता, राम का नाम। दुर्गुण को भगाता, राम का नाम।।
करता आया हर बाधा को दूर। हर कष्ट मिटाता, राम का नाम।।   
 
श्रेष्ठ जगत की निधि, राम का नाम। सुखी जीवन की विधि, राम का नाम।। 
विपदाओं को आने से रोकता। सशक्त रक्षा परिधि, राम का नाम।। 

दया क्षमा कृपा सत्य, राम का नाम। सृष्टि चलने का तथ्य, राम का नाम।।
जाना नहीं दुष्ट रावण अज्ञानी। धरे है क्या रहस्य, राम का नाम।।

इस जग की धरोहर, राम का नाम। करे मंदिर मनोहर, राम का नाम।।  
राम नाम बिन पत्ता नहीं हिलता। सब सत्ता की मोहर, राम का नाम।।  


मानवता का प्रतीक, राम का नाम। मानव मग का दीप, राम का नाम।
राम नाम शक्ति विशेष जीवन की है इक मन्त्र सटीक, राम का नाम।। 

यज्ञ का हवन हविष्य, राम का नाम। मनुष्य का भविष्य, राम का नाम।।
राम नाम ही कलियुग का सहारा। त्रिभुवन का गुरु व शिष्य, राम का नाम।। 
,

साधु संतों का जीवन, राम का नाम। बझाये कोटिक मन, राम का नाम।  

कितनों के कठिन समय का सहारा। अमोल मन का रंजन, राम का नाम। 

राम अलौकिक, प्रकट, राम का नाम। भजने से राम निकट, राम का नाम।। 
प्रभु श्रीराम सदा होते हैं सहाय। होता जिसके भी घट, राम का नाम।।  

हिंदुत्व का आधार, राम का नाम। सब मन्त्रों का सार, राम का नाम।।  

करा देता सब कुछ सिद्ध सहज ही। कर लेने से उच्चार, राम का नाम।।  


आदर्शों का सूत्र, राम का नाम। दशरथ का पुत्र, राम का नाम।।
जो डुबकी लगाता, वह तर जाता। परमानन्द समुद्र, राम का नाम।।  

गाती बहती सरयू, राम  का नाम।  भज लो
 कहती सरयू, राम का नाम।। 
संतों को पावन स्नान कराती।  तन छिड़कती सरयू, राम का नाम।।  

अवध में कण कण पर, राम का नाम। चराचर के घट पर, राम का नाम।।  
राम का नाम है कष्ट निवारक। सभी जीते रट कर, राम का नाम।।  

धर अवध अति पावन, राम का नाम। रट सरयू मन भावन, राम का नाम।। 
साधु संतों का गायन, राम का नाम। बोल बरसता सावन, राम का नाम।। 

अवध हर पल रटता , राम का नाम।  घर, मंदिर गूंजता, राम का नाम ।। 
गलियों, उद्यानों, मैदानों में। बूढ़ा, युवा, बालक भजता, राम का नाम।। 

दशरथ के अंगना, राम का नाम। कौशिल्या के पलना, राम का नाम।।
रामचन्द्र की तीनों महतारी। ले के खिलावें ललना, राम का नाम।। 

सीता हृदय लगायीं, राम का नाम। लिए वन वन धाईं, राम का नाम।। 
लंका पुर के अशोक वाटिका में। जपते समय बितायीं, राम का नाम।। 

रहा सीता के मन, राम का नाम। ले भटकी वन वन, राम का नाम।। 
रावण ने छल से जब किया हरण। 
बिलखीं करके सुमिरन, राम का नाम।।  

जटायु को मुक्ति दिया, राम का नाम। कपीश को भक्ति दिया, राम का नाम।।  
सुग्रीव को राज, बालि को मोक्ष। नल नील को युक्ति दिया, राम का नाम।।

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करता पाप संहार, राम का नाम। करता बेड़ा पारराम का नाम।।
जगत में परम शक्ति, राम का नाम। रावण पर क्यों भार? राम का नाम।। 

भुवन में मन भावन, राम का नाम रखे जग को पावन, राम का नाम।
सागर लाँघ गए राम जब लंका। लगा रटने रावण, राम का नाम।। 

सभी धर्मों का धाम, राम का नाम। सबका कृपानिधान, राम का नाम।।
सृष्टि राक्षसों से मुक्त कराता। हर युग में भगवान, राम का नाम।

था बुद्ध से पहले, राम का नाम। गुरुनानक देव भजेराम का नाम।।
नहीं धरा पर जीसस पैगम्बर। भू के लोग भजतेराम का नाम।।

चलते फिरते बोलो, राम का नाम। काम करते बोलो, राम का नाम।।
करते नमस्ते बोलो, राम का नाम। आह भरते बोलो, राम का नाम।। 

मात्र नहीं है नाम, राम का नाम। सकल गुणों का धाम, राम का नाम।। 
जो भजता भव से तर जाता। करके मन निष्काम, राम का नाम।। 
 
भज मन कर जोड़ राम का नाम। वेदों का निचोड़, राम का नाम।। 
भर देता उस समग्र स्थल को। जीवन का हो खोड़, राम का नाम।।  

जग में परम पवित्र राम का नाम। अद्भुत रखे चरित्र राम का नाम।।
मात्र शब्द नहीं यह परम ब्रह्म है। श्रीराम स्वयं सचित्र, राम का नाम।।  

है जन जन को पाले राम का नाम। संसार संभाले, राम का नाम।।
तप कर स्वच्छ पावन बन जाता। जो हृदय में ढाले, राम का नाम।।

जग को प्रेम सिखाता, राम का नाम सन्मार्ग दिखाता, राम का नाम।
जीवन उसका अति सुखमय होता। जो मन में बसाता राम का नाम।। 

भजे करोड़ों का मन राम का नाम। साधु संतों का जीवन राम का नाम।।  
कितनों के कठिन समय का सहारा। निःशुल्क मन का रंजन राम का नाम।। 
 
करोड़ों का आश्रय, राम का नाम। हरेक कष्ट में प्रश्रय, राम का नाम।।
ठान लेने पर कोई प्रताप का काम। सफलता का निश्चय, राम का नाम।। 

रामायण का सूत्र राम का नाम। समाये ब्रह्म, रूद्र, राम का नाम।। 
मानवता आदर्श राम नाम में। आनंद का समुद्र, राम का नाम।।

करुणा, कृपा, क्षमा, राम का नाम। दान, दया, धर्म रमा, राम का नाम।।
विश्व में शांति हेतु संतों ने। दिया दिव्य मन्त्र थमा, राम का नाम।।

दे लोगों को भक्ति, राम का नाम। पापों से विरक्ति राम का नाम।। 
धर्म पथ पे चलो, प्रेरित करता। अलौकिक प्रेम शक्ति, राम का नाम।।

सुग्रीव का सहारा, राम का नाम। अहिल्या को तारा, राम का नाम।। 
जूठे बेर खाने को पहुँच गए। सबरी ने पुकारा, राम का नाम।। 

बाल्मीकि को भाया, राम का नाम। मन तुलसी समाया, राम का नाम।। 

राम नाम भजे नानक सूर रैदास। मीरा ने गाया राम का नाम।। 

पूरी सृष्टि चलाता राम का नाम। मन के मर्म जगाता राम का नाम। 
र से रचयिता, आ से आश्रयदाता, म से मोक्ष प्रदाता राम का नाम।


करुणा का दाता, राम का नाम। कृपा वृष्टि कराता, राम का नाम।। 
निकृष्टता समूल नष्ट करके। जीवन श्रेष्ठ बनाता, राम का नाम।।

हरता हर विपत्ति, राम का नाम। शुद्ध कर देता चित्त, राम का नाम।। 
करता है हर प्रकार कल्याण। देता सिद्धि संपत्ति, राम का नाम।। 

है तो ढाई अक्षर, राम का नाम। परमानन्द का घर, राम का नाम।।
मनुष्य के जीवन की यात्रा का। जग में अंतिम पत्थर, राम का नाम।। 

सरि कल कल कहती, राम का नाम। गाती हवा बहती, राम का नाम।।
जग को ज्वाला प्रकाश बांटती। कहती अग्नि धधकती, राम का नाम।।  
  
हटाए दनुज वृत्ति, राम का नाम। बझाये बड़ी शक्ति, राम का नाम।।   
विध्वंस कार्य में जाने से रोक। बचाये भारी क्षति, राम का नाम।।   

खग की चहचहाहट, राम का नाम। पत्तों की आहट, राम का नाम।। 
वन उपवन वृक्षों और फसल में। फूल की मुस्कराहट, राम का नाम।। 
 
जल थल से गगन तक, राम का नाम। पूजन से नमन तक, राम का नाम।
हर प्राणी की रट राम का नाम। सुन झुक जाता मस्तक राम का नाम।।

देता है वीरता राम का नाम। हरता अधीरता राम का नाम।। 
सर्वगुण संपन्न हो जाता। जो कोई सुमिरता राम का नाम।।  


कौड़ी लगे ना दाम, भज ले मन राम।   
विपदाओं को हरने वाला। सब संभव करने वाला।
कष्ट मिटाये राम, भज ले रे मन राम। 
सब तीर्थों से ऊपर। मिल जाए मुक्ति भजकर।
भोर हो या शाम, भज ले रे मन राम।  
वही है जग का रखवाला। सुख सम्पति सब देने वाला। 
सभी गुणों का धाम, भज ले रे मन राम। 
  
राम का नाम अति सुखदायी। राम भजे जो सद्गति पायी।। 
राम नाम ही भुवन विधाता। राम नाम सबका सुखदाता।।
राम नाम भजे जेहि कोई। बड़े पुण्य का भागी होई।।
दुनिया चलती राम नाम से। धरती पलती राम नाम से।। 
होत सवेरा राम नाम से। साँझ अँधेरा राम नाम से।।
राम नाम हि राम से प्रेमा। राम भजो यदि चाहो क्षेमा।।
राम नाम जो भी अपनाये।दुर्गुण दूषण पास न आये।। 
राम का नाम ब्रह्म अनादी। गाते गुण पुराण रघुनाथी।। 
राम नाम जे हृदय लगाया। गूढ़ तत्व को सहजहि पाया।।   
राम नाम जो भजता है नित। होता कभी न उसका अनहित। 
नित नित राम भजे जे कोई। सुन्दर जीवन शुभ सब होई।। 
राम नाम वह दियासलाई। रूई सम पापों को जलाई।। 
नित नित भजे राम रघुराई। होती रहती पुण्य कमाई।। 
राम नाम जिसके मन नाहीं। जीवन होय मूढ़ की माहीं।। 
राम नाम बिन नहिं चतुराई। कुमति मिले जे दे बिसराई।।  
राम नाम में होय रमा जो। उसके मन में कृपा क्षमा हो।।  
राम नाम पे दे जो ध्याना। रामचंद्र हों कृपानिधाना।। 
राम नाम जप बारम्बारा। मानुष मूढ़ परम गुण धारा।। 
राम नाम में ज्ञान विज्ञाना। सज्जन ज्ञानी जो यह जाना।।
राम नाम से होवे निश्छल। करे स्वभाव भक्त का निर्मल।।    
राम नाम से प्रकट कृपाला। स्वयं भक्त का बन रखवाला।।
राम नाम रस भर बेरी में। दिया राम को चख सबरी ने।  
राम नाम ही सबरी रट कर। धन्य हो गयी दर्शन पाकर।।  
राम नाम जो निस दिन ध्याते। दुर्विकार पास नहीं आते।।
दानव बड़े धरा पर आये। राम नाम से गए मिटाये।।
राम नाम में होवे ध्याना। तेहि का राम कृपानिधाना।।   
राम नाम में युग की भक्ती। राम नाम में अनुपम शक्ती।।
मानव पर जब विपदा आयी। राम नाम ही होय सहाई।। 
राम बोल शुभ काम लगाओ। राम बोल यात्रा पर जाओ। 
घड़ी परीक्षा की जब पाओ। श्रीराम को ध्यान में लाओ। 
राम नाम के अगणित प्रहरी। राम भजे विपत्ति ना ठहरी।।
राम भजे हर्षित हनुमाना। देहि सार्थक उत्तम ज्ञाना।।  
राम नाम जो हिय में ढाले। सहज ही गति परम को पा ले।।
राम नाम हरि कथा प्रसंगा। राम नाम ही पावन गंगा।। 
राम नाम जेहि नहीं गाना। धरती पर वो मृतक समाना।। 
राम नाम तरु कल्प समाना। सुमिरै देत मधुर फल नाना।। 
राम नाम गुण धरेअनंता। बढ़ाये ज्ञान, यश, आनन्दा।। 
राम का नाम भुवन संभाले। राम नाम जन जन को पाले।।                                                      
राम नाम ही प्रेम सिखाता। मानव को सन्मार्ग दिखाता।। 
राम नाम भजता जो मानव। निकट न आता उसके दानव।। 
राम नाम रतन जेहि पाये। जीवन अति सुखमय हो जाये।। 
कारन शाप अहिल्या पाहन। भजकर राम हो गयी पावन।। 
राम नाम लै नौका खेवत। गंगा पार उतारा केवट।।
भज लेने से रामा रामा। सिद्ध होंय बिगड़े भी कामा।।  
राम नाम से हृदय जुड़ाये। परमानन्द अमित सुख पाये।। 
राम नाम जब हिय बस जाये। भरी कलुषता सकल मिटाये।। 

राम नाम से होंय कृपाला। राम स्वयं बहु विधि रखवाला।। 
राम नाम जे नांहि बखानी। वो है मूरख या अज्ञानी।। 
होवे ग्रस्त मोह के वश में। राम नाम ना जाके घट में।। 
मन में जमी विषय की काई। राम नाम वह जपे न भाई।। 
होय मनुज मन लोचन हीना। राम नाम धन पाय न दीना।। 

राम नाम आदित्य प्रकाशा। पाप रूप हो तम का नाशा।।  
राम नाम अस दिव्य दिनेशा। खल विचार मन रहे न शेषा।। 
राम नाम नित जेहि बखाना। शोक विषाद दूर सब नाना।। 
राम राम भजे जेहि कोई। सकल मनोरथ पूरन होई।। 
रामचंद्र त्रिभुवन के धारक। राम नाम सब मंगल कारक।। 
जाके प्रभाव भ्रम मिट जाई। राम नाम वह मंत्र सुहाई।।
राम नाम है सुख का दाता। भजहिं कृपा बरसाय विधाता।। 
राम नाम का करके ध्याना। ऋषि मुनि पाते अनुपम ज्ञाना।। 
राम राम रट मिलती भक्ती। पाये भक्त अलौकिक शक्ती।।
राम नाम चिन्मय, अविनाशी। तीरथ राज प्रयाग व काशी।।

राम नाम गुण महिम अपारा। ऋषि, मुनि, वेद, पुराण विचारा।।  
राम नाम की कृपा अनंता। एहि कारन भजते सब संता।।
जब जब होय धरम की हानी। राम नाम भज तरिहैं प्रानी।।  
राम नाम जो भजे सुजाना। मिटे मोह मद अरु अभिमाना।। 
राम नाम भज कर नर नारी। होते पवित्र पर-उपकारी।।  
राम नाम प्रति शंका करहू। सद्गुण सद्बुधि खुद ही हरहू।। 
राम नाम सुन्दर पतवारा। दुर्गम भव से पार उतारा।।  
राम नाम में रमा सुजाना। दुःख विषाद से पाय निदाना।।
राम नाम वह दिव्य प्रसादा। सुमिरत होवे दूर विषादा।। 
राम नाम करने से सुमिरन। मंगलमय हो जाता जीवन।। 
राम नाम बाल्मिकिहि भाया। राम नाम मन तुलसि समाया।।

मंगल दशरथ महल बधावा। राम नाम ले सोहर गावा।। 

राम नाम रट कपि हनुमंता। पाये प्रभु की भक्ति अनंता।। 
राम नाम परमाणु समाना। धारे सकल चरित भगवाना।। 
राम नाम भक्तन हितकारी। सेवत सुलभ सकल दुखहारी।। 
राम नाम रतन जेहि पावा। जनम जनम के पाप मिटावा।।
राम नाम तू भज ले भाई। सब रोगों की एक दवाई।।
बसहिं जहाँ मुनि संत समाजा। राम नाम वहं रहता छाजा।। 
ॐ मन्त्र में राम समाया। राम ॐ की एक हि माया।। 
राम नाम भजता नित जोई। नयनन देखि परम सुख होई।। 
राम नाम जे विधिवत भजहीं। प्रभु श्री राम भक्त वश रहहीं।।
  
राम नाम भजते सब ज्ञानी। मन धोने को सुरसरि पानी।।
राम भजन जलकुंड समाना। डूबे धुले रोष अभिमाना।।
दुर्विकार दुर्गुण ना जागे।। राम से रावणीयत भागे।।
राम नाम में नहीं समातीं। बहु शक्ति आसुरी हो जातीं।  
राम नाम में होय रमा जो। उसका गुण नित धर्म क्षमा हो।
राम नाम जीवन के पथ पर। जीवन होय पुण्य के रथ पर। 
राम नाम युग युग की भक्ती। राम नाम में अद्भुत शक्ती। 
राम नाम ही सृष्टि चलाता। राम भजन मन मर्म जगाता।।
'र' से रचयिता, 'आ'श्रयदाता। 'म' राम में मोक्ष का दाता।।
राम भजन बिन जीवन सूना। भजहु राम प्राणी दो जूना।।
कहहिं संत अरु वेद पुकारा। राम भजे भागे अंधियारा।।   
राम भजन है बहुत लुभावन। होय भजे मन अतिशः पावन।। 
राम शब्द को शब्द न जानो। ईश्वर का प्रतिरूपहि मानो।।  
राम नाम रामहि आशीषा। जपत सतत हर्षित जगदीशा।।
राम नाम जे हिय में राखा। मिटे क्षुधा  ज्यों मधु फल भाखा।।   
धरम धुरी का ये ही धारक। राम नाम हर क्षोभ निवारक।।  

 



बाल काण्ड 


वर्ण, शब्द, छंद, रस, वाणी। हे अधीश्वरी  वीणापाणी !

देने वाली जगत को ज्ञान। माँ सरस्वती! कोटि प्रणाम 

 

सब कार्य को मंगल करते। विघ्न वाधा सदा ही हरते।

करने वाले सफल सब काम। गणेश, गणपतिकोटि प्रणाम 

 

महादेव, हे ! ज्ञान  भंडार। करते उत्पत्ति और संहार। 

त्रिपुरारी सबके भगवान। जय शिव शंकर कोटि प्रणाम 

 

जिनके वशीभूत है सृष्टि। जो करते कृपा की वृष्टि। 

भक्त वत्सल, कृपा के धाम। जय श्रीरामकोटि प्रणाम 

 

राम भक्त हो, बल के धाम। नहीं असंभव कोई काम। 

अंजनिपुत्र पवनसुत नाम , जय हनुमान!कोटि प्रणाम 

 

देवि, देवता, साधु, संत को। धरा, गगन, सूर्य, चंद्र को।।

करते नित जग का कल्याण , जय वेद पुराणकोटि प्रणाम।


गौरा गयीं जहाँ त्रिपुरारी। रामकथा सुनि  मनहिं विचारी।।  
कहहि उमा जोड़ दोउ हाथा।  कहहु रामकथा मोहि नाथा।।
कहहु राम कहुँ ब्रह्म अनादी। सादर जपत तुमहुँ दिन राती।।
मैं वन देखि राम प्रभुताई। मोरि मलिन मन बोध न आई।।. 
रामकथा मन रुचि सुरनाथा। कहहु पुनीत राम गुन गाथा।।
तुम्ह त्रिभुवन गुरु वेद बखाना। कहहु राम रहस्य मो नाना।।
उमा प्रश्न सुनि अति सुख पावा। रामचरित शम्भू उर लावा।।     
करि वन्दन रामहि त्रिपुरारी। अमिय सम रामकथा उचारी।।
रामकथा तरु कल्प समाना। कहत सुनत सबकर कल्याना।।  
मंगल भवन अमंगलहारी। रामकथा जन जन उपकारी।।   
काम क्रोध मद मोह नसावन। राम कथा सुविवेक बढ़ावन।।
राम ब्रह्म अनन्त जग जाना। परमानन्द चरित गुन गाना।।    
राम दिनेश जगत आभामय। माया सत्य भास उन्ह प्रश्रय।।  
आदि अंत जग जानि न पाई। राम कृपा सब भ्रम मिट जाई।।
दसरथ सुत सो राम भवानी। मानव रूप सृष्टि के स्वामी।।
राम नाम नित सुमिरत जोई। जग कछु दुर्लभ नाहीं सोई।।
विवशहुँ राम नाम नर कहहीं। पाप अनेक स्वतः ही दहहीं।।
राम अतर्क्य जाइ नहिं बरनी। उन्ह माया ब्रह्माण्ड व धरनी।।
राम होहिं जाके विपरीता। रज्जु सांप रज अचल प्रतीता।। 
राम नाम गुण अमित अपारा। संत प्रज्ञ सुर पाइ न पारा।।
राम अनंत उन्ह कथा अनंता। गुण गावत ऋषि मुनि सुर संता।।            
राम कथा वहि सुनहु भवानी। भुशुण्डि वेद पुराण बखानी।।
धरम ह्रास असुरन्ह बल भारी। वारण राम मही अवतारी।। 
कीन्ह राम जग चरित अनेका। कहहुँ प्रमुख गौरा सुनु एका।। 
लछमन राम फिरत वन देखा। सुनहु कथा तुम वही विशेषा।।

तप से रावण का माया बल, लोकहिं परलोक अपार बढ़ा। 
उपद्रव करने दानव का दल, बलशाली अति परिवार बढ़ा। 
सुर ऋषि मुनि  नर सब त्रस्त भये, दानव का अत्याचार बढ़ा। 
त्रिभुवन का अधिपति खल रावण, धरा पे पाप का भार बढ़ा। 
सुर मुनि धरती किन्ही विनती, हरि हम सब का संताप हरो। 
सुरपुर असुरों से निर्भय कर, वसुधा से सारे पाप हरो। 
गगन वचन हरि प्रकट धरा पर, राम रूप नर दसरथ के घर।   
करउँ विनाश असुर समूल सब, हरउँ विपति सब रावण वध कर। 

रावण  माँगा ब्रह्मा से वर 
मार् सके न सुर असुर गन्धर्व 
त्रिकूट पर्वत पर लंका का राजा बना 
पर धन पर नारी हरण ही धर्म 
 
यज्ञ करिय पुत्रेष्टि विचारी। राम सहित सुत दसरथ चारी।। 
चैत्र शुक्ल तिथि नवमी होई। जनमे राम धरा दिन सोई।।
व्यापक ब्रह्म जगत सुखदाता। अंक राम कौसल्या माता।।
लग्न राशि पढ़ राम पुकारा। नाम राम वसिष्ठ ने धारा।। 
अनुपम सुत कौसिल्या जायी। राम नाम शुभ जगत सुहाई।। 
समाचार अवध पुरी पावा। राम राम रटते सब धावा।। 
एक दिवस भय एक मास भर। राम दरश लइ ठहरे दिनकर।।
राम जनम सुन तिरियाँ आयीं। बजा बधावा सोहर गायीं।। 
 

सोहर गीत 

कहवाँ पे मंगल गान, केवन गावे सोहर हो।

ललना, कहवाँ पर बाजे बधाई, कि कहवाँ मनोहर हो।
अरे अवध में मंगल गान, रमणी गावें सोहर हो।
रामा, अयोध्या में बाजे बधाई, कि लागे मनोहर हो।
 
कहाँ जनम लिए राम, केकरि शुभ अंगना हो।
रामा के हो खेलावेला गोदिया झुलावेला पलना हो। 
अयोध्या जनम लिए राम कि दशरथ के अंगना हो। 
रामा, कौशिल्या खेलावेलीं गोदी कि सोनवा की पलना हो।  
 
कौन लुटावे अन्न धन सोनवा, कि कौन सी नगरी हो।
ललना, अम्बर से बरसे फूल, प्रसन्न नर नारी हो।
दशरथ लुटावें अन्न धन सोनवा, अयोध्या नगरी हो।
ललना, हर्षित तीनों महतारी, कि पुर के नर नारी हो।

दिव्य विराट स्वरुप कि अद्भुत रूप प्रकट हुए रामा हो। 
ललना लोचन ललित, छवि विशिष्ट, बदन घनश्यामा हो। 
करुणा के सागर, सब गुण आगर कि सुखों के दाता हो। 
ललना बालक रूप कौशिल्या के अंक स्वयं ही विधाता हो। 

राम जनम सुनि दशरथ हर्षित। देहि दान मन होइहि पुलकित।।  
राम नाम ले जे भी आवा। भूप दीन्ह उन्ह सब मन भावा।।

बधाई मांगे पवनी, राम की बधाई। 
कोई मांगे अन्न धन सोनवा। कोई मांगे मुदरी गहना। 
बधाई मांगें दासी, राम की बधाई।।
छुरी ले आयी काटने नारि। बधाई मांगे दाई, नारि की कटाई।।
ले के आयी बजाने को नगाड़ा। बधाई मांगे महरिन नगाड़ा बजाई।।
ले के आयी डुगडुगी बाजा। बधाई मांगे नाउन डुगडुगी फेराई।।
ले के आयी फूल का तोरण। बधाई मांगें मालिन फूल की लोढ़ाई।।
ले के आयी जच्चा का लुग्गा। बधाई मांगें धोबिन लुग्गा की धुलाई।।
ले के आयी रामजी के झुल्ला। बधाई मांगे दरजी, झुल्ला की सिलाई।।
ले के आया रामजी क पलना। बधाई मांगे बढ़ई पलना के गढ़ाई।। 
पत्रा पोथी ले के आये पुरोहित। बधाई मांगे पंडित पत्री की लिखाई।।


दशरथ महल विष्णु अवतारा। राम राम तिहुँलोक पुकारा।। 
आदि न अन्त अगोचर जोई। दसरथ धाम राम शिशु सोई।।
राम रहे जब नन्हें बचना। राम राम दसरथ के अंगना।।
इधर उधर राम कहीं जाते। दशरथ रामहिं राम बुलाते।।  
अवध नगर का पल पल रटना। राम राम जन जन का जपना।।  
मातु पुकारें रामहिं ललना। बारम्बार झुलावें पलना।। 
रामहि बालचरित नित गावत। परमानन्द मातु सब पावत।। 

छोटी पैजनिया छोटे से पांव। 
रूनझुन करत ठुमक चलें राम।। 
ललित अति नयना तन घनश्याम 
रूनझुन करत ठुमक चलें राम।।
पावत मातु देखि आनंद अति 
गिरत उठत धावत शिशु राम।।
माता करत दुलार गोद ले    
किलकि किलकि विहँसत हरि राम।। 
राम ही राम गूंजत पल पल  
सुबह से शाम दसरथ धाम।।
धन्य मनावत अवध निवासी 
बालक रूप उतरे भगवान्।।

भइया राम हरेक बुलाता। भरत शत्रुघ्न लक्ष्मण भ्राता।।
राम राम सब सखा बुलाते। क्रीड़ा का आनंद वो पाते।।   
माता जब जब राम बुलावें। ठुमक ठुमक हरि लामे धावें।। 
माँ  करि पूजा भोग चढ़ावा। अचरज उठा राम शिशु खावा।।
रामहि राम अवध में गूंजा। राम राम रट होती पूजा।। 
भजकर राम अवध के वासी। हर्ष मनाते बारह मासी।। 
बालक बूढ़ा पुरुष व नारी। राम नाम प्रिय हिय में धारी।।
देखिअ राम बाल छवि जोई। उर आनंद निरंतर होई।।  
विश्वमित्र गय दशरथ धामा। कहे संग मम भेजहु रामा।।
असुर समूह उपद्रव करहीं। राम लखन मम चिंता हरहीं।।
राम लखन सुन्दर दो भाई। मुनि भय हरन संग में जाई।। 
राह ताड़का असुरी आयी। राम के हाथों मुक्ति पायी।।  
छुआ चरण मग पाहन भारी। प्रकट राम कह सुन्दर नारी।।
गौतम शाप अहिल्या पाथर। तर गइ कृपा राम की पाकर।। 

बड़ी है राम की लीला न्यारी। 
अहिल्या हो गयी शिला से नारी।
ऋषि गौतम के शाप से बनकर, 
पड़ी रही वर्षों तक पत्थर, 
आकर राम ने उसको तारी।
बड़ी है राम की लीला न्यारी। 
वह पा रही थी, सजा किये की,
धूप बारिश में, पड़ी शिला सी।
बन गए रामचंद्र उपकारी।
बड़ी है राम की लीला न्यारी। 
जैसे ही चरण छुई राम की, 
राह चमक गयी, परम धाम की,  
भजकर राम, परलोक सुधारी। 
बड़ी है राम की लीला न्यारी।

राम लखन मिलि दोऊ भाई। गुरु आश्रम में शिक्षा पाई।।

रामहिं गुरु बहु पाठ पढ़ाये। अलप काल विद्या उर लाये॥ 
राम लखन मिलि दोऊ भाई। गुरु आश्रम में शिक्षा पाई।।
चलो राम अब बोले गुरुवर। भूप जनक ने रचा स्वयंवर।।
मुनि दो भ्रात जनकपुर लावा। राम लखन नृप जनक मिलावा।। 
राम लखन पुर देखन चाहा। कह विनीत मुनि आयसु पावा।।  
निकले राम लखन दो भाई। देखन रम्य जनकपुर जाई।।
समाचार पुरवासी पाये। पाने झलक राम की धाये।।
पुर रम्यता राम ने देखी। पुष्प वाटिका चारु विशेषी।।
  
सखिन संग सीता परम पुनीता पुष्प हेतु उपवन में।  
गयीं मन ठाने सुन्दर लाने ध्यान लगाये सुमन में।
पधारे राम जनकपुर धाम ना मनहर रूप भुवन में। 
रूप निहारी मुदित मन हारी बसा छवि रामहि मन में। 
जाइ भूमिजा मंदिर गौरा स्तुति करि देवि मुदित भव।  
भव भव विभव पराभव कारिणी सिद्ध मनोरथ करउ तव। 

रचा स्वयंवर भूप जनक घर भूपति समाज विराजहीं। 
राम लछमन राकेश के सम तहँ मध्य उडगन साजहीं। 
जानि शुभ अवसर जनक वहां पर लीन्ह सिया बुलवावहीं  
करि जे भूपति शिव-धनु खण्डित सौभाग सिय-वर पावहीं। 
महिपाल चले अभिमान भरे रह विफल बारी बारहीं। 
भूप सहस्र दस साथ मिलकर कोदंड सके न टारहीं।  

जनक जी घोर निराश हो रामा, धनुष नहीं टूटी। 
दुखी पुरी के सब नर नारी। 
कौन विघ्न डाले त्रिपुरारी। 
कैसे हो सिय का व्याह हो रामा भाग्य ही रूठी। 
कोई नहीं अस वीर धरा पर, 
चढ़ा सके जो चाप धनुष पर। 
धरे जगत के नरेश हो रामा, शान ही झूठी। 
प्रण रख दीन्हा असंभव भारी, 
रह जाये ना बेटी क्वारी।
रहूंगा कैसे पी के हो रामा, अपयश की घूंटी।   

जनक भवन में घोर निराशा। सिय को रही राम से आशा।।
भ्रात राम से बोले लछमन। आयसु देहु मोहि धनु भंजन।। 
मुनि लखन को शांत करावा। धनु भंजन श्रीराम पठावा।।  
सुनि गुरु वचन चरण सिर नावा। राम सहज ही धनुष उठावा।।
देख राम सिय हर्ष मनाईं। तोड़े धनु मृणाल की नाईं। 

धनुही ज्यों खंडित हुए प्रफुल्लित पूरन यज्ञ जनक का।   
सीता पायीं  हिय जो बसायीं वर सर्वश्रेष्ठ भुवन का। 
बाजत मृदंग झाल शहनाई किन्नर समूह गावहीं। 
मंगल गान मंत्रोचार हर्षित सुर पुष्प बरसावहीं।  
जीते राम स्वयंवर सीता चलीं हाथ वरमाल लिये। 
मन हर्ष अपार प्रसून हार गले राम के डाल दिये। 

राम कि जय से त्रिभुवन गूंजा। सिया जोग जग वर नहिं दूजा।। 
चकित उपस्थित सब नर नारी। राम रूप बहु बेर निहारी।। 
परशुराम निनाद सुनि आवा। राम भंजि धनु रोष दिखावा।।
तर्क वितर्क लखन भृगुनाथा। सादर राम नवावहिं माथा।।
भृगुपति कुपित कुठार उठावा। रघुपति राम प्रभाव दिखावा।। 
विष्णु चाप आपहि चल गयऊ। राम महिम मुनि विस्मय भयऊ।। 
भृगुनन्दन त्यागे सब क्रोधा। जय बोले जब रामहिं बोधा।।
विनय  शील करुणा गुण सागर। जय हे राम वचन अति नागर।।  
लेकर बरात दसरथ आये। दूलह राम देख हर्षाये।। 
राम राम रट सकल बराती। रामहिं गुण बरनै बहु भाँती।। 
बोले जय श्रीराम घराती। सुर में सुर मिलाये बराती।। 

गीत -
 
आये जनक जी के द्वार, राम बने दूल्हा। 
दशरथ जी लाये बरात, राम बने दूल्हा। 

गज घोड़ों पे आयी बरात। विविध वाहन हो के सवार। 
मृदंग तुरही नगाड़ा बाजा।  त्रिभुवन ख्यात मंडप साजा।  
सुरभित माल जनक जी डाल  
किये दशरथ का सत्कार, राम बने दूल्हा।

नाना भांति हो रहा खेला। बरात देखन लागा मेला।  
स्त्रियां गा रहीं मंगल गान। जनकपुरी सुरलोक समान।     
मन्त्रों का करके उच्चारण   
कीन्ह वशिष्ठ द्वाराचार, राम बने दूल्हा। 

बरात देखन सुर-गण आये। प्रभु राम पर फूल बरसाए। 
ऐसी रही बारात की शोभा। वो पछताया जो नहीं देखा। 
प्रेम मग्न हो जनक सुनयना 
चरण राम के रहे पखार, राम बने दूल्हा। 
  
सीता-राम विवाह विशेषा। आये देव हेतु आशीषा।। 
राम नाम सुर मुनि मुख-वृंदा। दिव्य व्याह सीता-रघुनन्दा।। 
मंगल गीत त्रियों ने गाया। छंद छंद में राम समाया।। 
राम-विवाह धन्य जे देखा। पाया वह आनंद विशेषा।। 
 कर के व्याह राम घर आये।  पुलकित अवध मोद सब पाये।।


ले आये राम पतोहू प्यारी, कि हर्षित तीनों महतारी ना।
भुवन में जानकी दुल्हन न्यारी, कि हर्षित तीनों महतारी ना।
अवध में बाज रहा बधावा, दुल्हन श्रेष्ठ सृष्टि की आवा।  
सासु पालकी से बहू उतारी, कि हर्षित तीनों महतारी ना। 
परछन करने चलीं तत्काल, मातु सजा सोने की थाल। 
अक्षत हल्दी पान सुपारी, कि हर्षित तीनों महतारी ना।
आगे सीता पीछे राम। स्त्रियां गा रहीं मंगल गान।  
फूलों के तोरण बंधे दुआरी, कि हर्षित तीनों महतारी ना। 
अवधपुरी के सब नर नारी।  कौतुक हो सिय रूप निहारी।  
सुंदर अस ना सृष्टि में सारी, कि हर्षित तीनों महतारी ना। 




अयोध्या काण्ड 

श्याम रंग और कोमल अंग। विराजमान सीता जी संग।। 

धारण किये धनुष और बाण। भक्तों का करने कल्याण।। 

रक्षा करना, प्रभु श्रीराम! जय श्रीराम, जय जय श्रीराम।।  

  

सुखों के धाम हे रघुनायक। कष्ट निवारि प्रनत सुखदायक।। 

सदा ही करने वाले मंगल। भक्तों के हरि कृपा के वत्सल।। 

रक्षा करना, कृपा के धाम ! जय श्रीराम, जय जय श्रीराम।।


कृपा के कन्द , सब द्वन्द हरण। सभी को देने वाले शरण।।

मोह माया दुखों के हर्ता। सुखदायक दैत्यों के हन्ता।।

रक्षा करना, हे रघुनाथजय श्रीराम, जय जय श्रीराम।।


अगुण सगुण गुण मंदिर सुन्दर। करहु निवास मम उर अंदर।। 

कर पंकज राजीव विलोचन। दीन बंधु  प्रभु संकट मोचन।। 

रक्षा करना, हे भगवान। जय श्रीराम, जय जय श्रीराम।।



छोड़ अवध की गली, सीता वन को चली। 
थी महलों में पली, सीता वन को चली। 

जनकदुलारी थी वो, राम प्यारी थी वो। 
मूरत थी त्याग की, आदर्श नारी थी वो। 
वन बड़ा था विकट, थी वो कोमल कली। 
सीता वन  को चली।  

मन में करने का प्रण, पतिव्रता निर्वहन। 
कष्ट वन के कर लेगी, राम हेतु सहन। 
पति का देने को साथ, पल पल तप में जली। 
सीता वन  को चली।  

पति की खातिर परीक्षा, उसने दी पग पग पर।  
इच्छाओं को रख दी, राम के ही चरण।  
हाल जिस राम रहे, वह भी उसमें ढली। 
सीता वन  को चली।  


जबसे व्याह राम घर आवा। सकल शुभ घटित अवध सुहावा।।   
अवधपुरी में घर घर चरचा। अस ना जोड़ी राम भूमिजा।।   
राम सुयश फैला चहुँ ओरा। सुनि दसरथ मन हर्ष  विभोरा।।
गुरु मंत्री से बोले राजा। क्यों ना राम करें युवराजा।।
राजतिलक की सबकी सहमति। सबके मन हों राम अवधपति।।
रामहिं राज नागरिक चाहे। राजतिलक की बात उगाहे।।
नृप आज्ञा से शुरु तैयारी। रामाभिषेक विधि अनुसारी।।
डुगडुगि पिटी राम युवराजा। घर बाजार अवधपुर साजा।।
राम राम करते पुरवासी। पूरन जिसके थे अभिलाषी।। 
दसरथ महल मंथरा दासी। क्षुब्ध राम से रहती खासी।।  
काल-चक्र मंथ्रा को घेरा। राम विरोधहिं मति को फेरा।।
कुटिल चाल कुबड़ी  ने चल दी। राम अहित कैकइ मन भर दी।।
कैकयी को कुनीति सिखाई। रामहिं वन सुत राज सुझाई।। 
कैकेयी सिर बैठी माया। राम अहित ही उसको भाया।। 
कोपभवन में रची प्रपंचा। धरि वनवास राम की मंसा।।
आव-भाव कर नृप मन तोली। राम को वन मधुर सुर बोली।।  
पठाययु राम मुनि के वेशा। कीजौ भरतहिं अवध नरेशा।। 
राम वनवास सुनि संदेसा। राम रटत नृप गिरे अचेता।। 
रटते रहे राम रजनी भर। दिवस दिखाया क्या हे ईश्वर।।
जाकर सुमंत्र हाल बताये। सुने राम ज्यों दौड़े आये।।
श्रीराम वृतांत सब जाने। वन जाने की तत्पल ठाने।। 

कैकयी जब राम रुख पायी। झूठे मन की राम बड़ाई।। 
दशरथ ज्यों मूर्छा से जागे। राम राम रट मन्नत मांगे।।
देहि कृपा शिव ऐसी मोहीं। राम न ओझल नैन सु होहीं।। 

किन्ही याचना भार्या से अवधपति सुन ले भामिनी।  
बन री ना तू स्वार्थ के कारण विषैली जैसे साँपिनी।  
कही जायेगी प्रतिकूलता से राम की कुल-घातिनी।  
ले राज भरत को त्याग पर वनवास राम का पापिनी। 
आतुर नहीं राम राज के धुरी धरम की धारण किये।  
होगा न  विघ्न राम से भरत को राज में कोई  प्रिये।   

कैकयी दसरथ की न मानी। राम पठाने वन में ठानी।। 
बोले राम शोक ना कीजै।  तात गमन की अनुमति दीजै।।  
संग राम के सिय लछमन भी। किये अनुग्रह वन चलने की।। 
रामचंद्र नाना समुझाये। हठ में उनके काम न आये।। 
राम मातु पद शीश नवाये। सर्व मंगल आशीष पाये।।
जुटे नागरिक दसरथ द्वारे। दर्शन पाने राम सुखारे।।  
निकले राम सिया अरु शेषा। बीहड़ को धरि मुनि का वेषा।। 
आज्ञा दीन्ह सुमंत्रहि दसरथ। जाहु बिठा सिय राम शेष रथ।।   
सुमंत्र रथ घोड़े जुतवाये। चले राम  सिय लखन बिठाये।।   
विकल राम को जात विलोका। साथहि चले अवध के लोका।। 
तमसा तट पर राम बसेरा। वहीं प्रजा ने डाला डेरा।।  

रामचंद्र बहु विधि समझाये। दुखी प्रजा को घर लौटाए।। 
चले राम पहुंचे गंगा तट। कीन्ही मज्जन मिटी थकावट।।  
राम विलोकि गंगेय तरंगा। कहि सिय नाना कथा प्रसंगा।।
निषाद राज सनेशा पावा। राम दरश को व्याकुल धावा।। 
निषाद खुद को कृतज्ञ माना। किया राम रट स्वागत नाना।।   
सन्यासी बन वन को आये। आव भगत नहिं राम सुहाये।। 
तज प्रासाद राम भू सोई। मन निषाद विषाद में खोई।। 
लछमन निषाद को समुझावा। राम धरम प्रतिरूप बतावा।। 
सम्पति विपति करम अरु काया। गृह कुटुंब सब रामहिं माया।। 
जान यही विषाद ना करहू। राम राम कह सब दुख हरहू।। 
राम की अब हुई तैयारी। चलने को सुरसरि के पारी।।
रामचंद्र जब नाव मंगावा। केवट आपनु संशय गावा।।

हे राम! प्रणाम बूझहिं हम जोइ मरम राउर धारिहौं। 
छूवत चरण-रज शिला नारि भई कइसे हम उबारिहौं।  
नाथ काठ की नइया हमरी परिवार जे से पालिहौं। 
पद कमल पखारि एहि नाव पर हम राउरे बिठाइहौं।   

कहत जग के जेहि खेवइया। 
लाओ केवट अपनी नईया। 
जाना है हमको गंगा पार। 
खेवो नाव ले कर पतवार। 
कैसे बिठाऊँ नाव रे दइया। गहरी गंगा काठ की नईया। कहत  ... 
जानत हूँ मैं बन गयी नारी। 
राउर पग छुइ पाथर भारी। 
पुरानी मोरी छोटी नईया। पालूं कुटुंब बन खेवइया। कहत ... 
चढ़इबों नाव प्रभु हम तोहें। 
देबो चरण पखारन मोहें।  
पहिले देहु पखारन पइयाँ। जानूं तुम ही जग खेवईया। कहत  ...    
बोले राम लो पांव पखारो। 
हमको गंगा पार उतारो।  
नाव में बैठे दोनों भईया। साथ बैठीं सीता मईया। कहत ... 

प्रेम धारि उर पांव पखारा। केवट रामहिं पार उतारा।। 
सीता जानि राम मन धारी। दीन्ह केवट मुदरी उतारी।।
नाथ न चाही मो उतराई। सब धन राम दरश में पायी।।  
पहुंचे तीरथ राज सुहावा। राम त्रिवेणी दर्शन पावा।। 
भारद्वाज मुनि मिलने आये। रामचंद्र ने शीश नवाये।। 
मुनि अतिशः आनन्द मनावा। रामचंद्र के दर्शन पावा।।  
गंगा नहान कर अति भोरा। राम चले कानन की ओरा।।
राम गए जमुना उस पारी। राह करहिं दर्शन नर नारी।। 

झूमर 
चले राम लखन जानकी हो, दुर्गम वन में। 
लीला रची श्रीराम की हो, दुर्गम वन में।  
राम-पद पड़ेबढ़ी पावनता,
चित्रकूटप्रयाग धाम की हो, दुर्गम वन में। 
जीव प्रसन्न सभी कानन के 
दर्शन पाय रघुनाथ की हो, दुर्गम वन में। 
आव भगत सबऋषि मुनि कीन्हीं 
जय बोले प्रभु राम की हो, दुर्गम वन में। 
कोयल शुका मयूरा की रट 
हरे राम सुबह-शाम की हो, दुर्गम वन में।
वन के संकट सह लीं सीता 
सुमिरत नाम प्रभु राम की हो, दुर्गम वन में। 

 

जहँ जहँ राम चरण को धारे। पावन स्थल तीर्थ सुखारे।।
जे सरवर श्रीराम नहाई। सुरसरि सर भी किये बड़ाई।। 
आये राम विष्णु अवतारा। हेतु दरश उमड़ा जन सारा।।     
राम लखन सिय सुंदरताई। लोग विलोकहिं नयन गड़ाई।। 
जे जन रामहिं दर्शन पावा। तिन आपन बड़ भाग मनावा।।
गमन वहां से मनहिं विचारी। श्रीराम की हुई तैयारी।।  
समाचार सुन खिन नर नारी। राम गमन से भये दुखारी।।  
पैदल चले राम बिनु पनहीं। काहे बने पदुक सब कहहीं।।   
वस्त्र बनाया व्यर्थ विधाता। मुनि पहनावा राम सुहाता।।
विधि ने दीन्हा व्यंजन नाना। कंद मूल फल रामहिं खाना।।
 
जे जन राजमहल में रहहीं। सिया राम वन के दुख सहहीं।। 
खोजे भुवन न अस नर नारी। नाम राम सिय मंगलकारी।। 
राम लखन सिय जँह जँह जाई। रूप विलोक जीव सुख पायी।। 
राम कथा जंगल में छायी। सुनि सब जीव चले अकुलाई।।
मिल जाये प्रभु राम झलक भर। रखें बसाये नयनन भीतर।। 
राम गए बाल्मीकि आश्रम। तड़ाग उपवन देवलोक सम।। 
नारायण को आश्रय दीन्हा। ऋषिवर राम स्तुति कीन्हा।। 
तुम हो राम जगत के स्वामी। हे रघुनन्दन अंतर्यामी।। 
रामहिं महिमा देव बखानें। राउर मरम भक्त ही जाने।। 
चिदानंदमय रूप तिहारा। राम चरित आनंद पिटारा।।

काम क्रोध मद मान न मोहा। लोभ क्षोभ रति राम बिछोहा।।
एक हि फल हर कोई मांगे। राम चरण में प्रीती लागे।।
राम रउर बिन गति कछु नाहीं। है वह धन्य राम मन माहीं।। 
सब तज रामहिं जे उर लायी। रहहुँ नाथ मम हृदय में आयी।
चित्रकूट गिरि श्रृंख सुहावन। ठहर राम कर दीजै पावन।।    
राम यहाँ सब ऋषि मुनि संता। बहती सरि मंदाकिनि कंता।।
कोल भील बन देवा आये। राम हित पर्णकुटी छवाये।। 
चित्रकूट सब ऋषि मुनि आये। दर्शन राम परम सुख पाए।। 
पशु पक्षी शुक मोर चकोरा। वनहिं राम चहके चहुँ ओरा।। 
चित्रकूटहिं राम पग धारे। स्वर्गलोक सम ठौर सुखारे।।
पर्णकुटी अति रामहिं भावा। कन्द मूल फल वन में खावा।। 
राम लखन अति ठाँव सुहावा। रह विचरत वहँ हर्ष मनावा।।
लौट सुमंत अवध पुर आये। राम-कुशल अरु क्षेम बताये।।


पुनि पुनि पूछत क्षेमहि दशरथ किस हाल राम सुनाइहौ। 
कहत सुमंत्र नृप आप ज्ञानी हृदय शोक नहीं धारिहौ।  
जनम-मरण 
संग-वियोग लाभ-क्षति सुख-दुख वश काल करम।    
धीर वीर विद्वान पंडित समुझत हाल दोऊ एक सम।
भेजि राम प्रणाम कोटि पितु मातु गुरु जन-श्रेष्ठ चरणन। 
हेतु मंगल अवध के वन में राम करते नित्य वंदन। 


सुनत नरेश गिरे अकुलाई। राम बिछोह सहा नहिं जाई।। 
राम राम कह थामे सीना। विकल पीड़ से दूभर जीना।। 
रोवत बिलखत दौड़ीं रानी। राम वियोग न जाय बखानी।। 
राम वियोगहिं राम ही टेरू। नहीं बचेंगे प्राण पखेरू।। 
राम राम कहि बारम्बारा। पूछे नृप कहँ राम पिआरा।। 
राम बिना अब जीना नाहीं। भूमि पड़े शून्य की माहीं।। 
प्राणों का बस राम सहारा। राम बिना जीवन धिक्कारा।। 
पुनि पुनि दसरथ राम पुकारे। थोरि काल बैकुंठ सिधारे।। 
नानियायुर से वापस आये। भरत राम नहिं घर पर पाये।।
दुखी अत्यंत विकल हुआ मन। ब्रह्मलोक पितु भ्रात राम वन।।  
अस करनी माँ की न सुहावा। पितृ घात वन राम पठावा।।
राम अहित तू सोची जननी। अधम कहायेगी यह करनी।।
कही मातु सुत तेरे ही हित। बुनी प्रपंच राम के अनहित।।
राम विरुद्ध सोच अपराधी। बना पाप का मैं भी भागी।।
गुरु समुझाइ राजपद लेहू। फिरें राम उन्ह वापस देहू।।
हित हमार रामहिं सेवकाई। प्राण बिना कहँ देह सुहाई।।
राम बिना नहिं राज सुहावा। भल लछमन रामहिं पद पावा।।
आज्ञा देहु अरण मैं जाऊं। राम लछमन सिय को मनाऊं।।
देखि राम प्रति बहु अनुरागा। भरत वचन सबको प्रिय लागा।।
सबके मन अति मोद समाया। मिलेंगे पुनि राम रघुराया।।  
लाने राम विकल अकुलाई। उत्सुक खड़े लोग लोगाई।। 
करने लगे विविध तैयारी। रामहिं लाने पुर नर नारी।। 
तिलक सामान लेहु समाजा। वहिं करहुं मुनि राम को राजा।। 
राम मिलन रथ पालकि घोड़े। चली प्रजा पैदल कर जोड़े।। 
चले बैठ रथ गुरु दो भाई। मना लाने राम रघुराई।।
देखा निषाद भरतहिं आते। राम विरुद्ध परिस्थिति आंके।।
रक्षा-राम हेतु अकुलाई। सुमिर राम वाहिनी लगायी।।     
वृद्ध नागरिक तब समुझावा। भरत राम से मिलने आवा।।
सत्य जान तज दिया विषादा। राम राम कह मिला निषादा।। 
रामचंद्र मोहें उर लीन्हा। कुल समेत पावन मम कीन्हा।।
राम नाम भजे जेहि कोई। ओकरे अंग पाप न होई।।
राम बखान जे केहु गाई। जड़ खल सबै परम गति पाई।।
जे जग मंगल मोद निधाना। रामहिं सम्मुख बाधा नाना।
बड़े भाग राम जहाँ आवा। जनम जनम के पाप मिटावा।   
राम भक्ति अति भरत सुहाई। बढ़ निषाद को वक्ष लगाई।।
अगले वासर होत सवेरा। चला भरत ले रामहिं डेरा।।
सियाराम जय जय सियरामा। कहते चले चित्रकुट धामा।।  
मारग करत निषाद बड़ाई। रुके राम जँह ठौर बताई।।  
जड़ चेतन मग राम को देखा। पावा सब पद परम विशेषा।।
चाहे सुरेश रचें कुचालू। मिलें ना राम भरत भुआलू।। 
देव वृहस्पति तब समुझावा। कोइ राम से पार न पावा।। 
जे अपराध भक्त प्रति करई। राम कोप पावक में जरई।।
भक्त अहित सोचे जे कोई। राम प्रभाव से अनरथ होई।।
राग रोष बिन सदा एकरस। रहें राम नित भक्त प्रेम वश।। 
गुरु से सुन प्रभु राम प्रशंसा। इन्द्र किये पुष्पों की वर्षा।। 
भरत जा रहे संग समाजा। रामहिं राम हृदय में छाजा।। 
जिस जिस ठौर राम विश्रामा। किये भरत कर-जोड़ प्रणामा।।
राह भरत को जेहि विलोके। मनाये मिलन राम सु होवे।।    
उत्तर दिशा देखि कोलाहल। रहा होइ मन राम का विकल।। 
पशु पक्षी सब आ रहे भागे। थमे कई रामाश्रम आगे।। 
कोल भील संदेशा लाये। रामहिं मिलन भरत वन आये।। 
राम लछमन सोच में दोचित। संग भरत क्यों सेना पोषित।।
चाह भरत निष्कंटक राजू। समर राम से मन में आजू।। 
राम निरादर मन में लाई। आज्ञा रामहिं देउँ सिखाई।। 
कह लछमन ने चाप चढ़ावा। हेतु राम मति माथ घुमावा।।
राम मगन गगन भई बानी। विपुल बलधाम लखन बखानी।।
राम सुझाये सुनि सुर बानी। सके न राज भरत भटकानी।।
उचित अनुचितहिं पहले परखो। बोले राम धीर धर बरसो।। 
राम कह भरत धरमहिं रूपा। चाह न उनकी बनना भूपा।। 
रामहिं देखि भरत झट धावा। लगा रंक पारस मणि पावा।।
गिरे राम-पद ज्यों ही आये। मातु कि करनी खेद जताये।।
रामचंद्र उठाय उर लाए। भ्रात मिलाप न बरनी जाए।। 
हर्षित राम भरत सम भाई। सुरगण गगन पुष्प बरसाई।। 
गुरु को देख राम अनुरागे। करन प्रणाम दंडवत लागे।।

रामहिं मिल जे कुटी पधारे। मिटी थकान अतिथि जो धारे।। 

वन को आये सब नर नारी। निज निज भाव राम अनुहारी।।
राम विलोकि सभी अनुरागे। बखान रामहिं गावन लागे।। 
राम मिले तीनों मातायें। पांव लागि के आशिष पाये।।  
गुरु से सुन पितु स्वर्ग सिधारे। राम क्रिया करि वेद विचारे।।  
विलोकन गए अतिथि राम गिरि। देखे शोभा लोचन भरि भरि।।
विटप सफल जल राम प्रसादा। भूख प्यास सब मिटा विषादा।।
कंद मूल फल भोजन पावा। राम शरण आनंद मनावा।।
नृप जनक संग मिथिला वासी। आये राम दरश अभिलाषी।। 
आश्रम राम विटप मनभावन। जनक सुआगत ऋतू सुहावन।।
परमारथ स्वारथ सुख सारे। राम प्रेम में भरत निहारे।।  
कैसे कहें सोच में भारी। भरत राम से मन-उदगारी।।
कहे वशिष्ठ राम रघुराई। नीत प्रीत हित सबके सांई।। 
ऊंच नीच अरु भेद विहीना।  रामचंद्र बस प्रेम अधीना।। 
कहो राम से अपनी बानी। जो भी करेंगे जग कल्यानी।।
विनय राम से भरत सुजाना। धरम नीति गुन ज्ञान निधाना।। 
लौटें अवध सिय राम लछमन। हम दो भाई रह लेंगे वन।। 
अथवा जायें राम व सीता। भ्रात शेष एहि वन पुनीता।।

चैता 

भरत गए चित्रकूट हो रामा, राम को मनाने। 
तुम बिन छायी अवध उदासी। करत विलाप सभी पुर वासी। 
राम से प्रेम अटूट हो रामा, राम को मनाने।
चलो अयोध्या राज संभालो। प्रजा के मन से पीड़ निकालो।  
रघुवर गये क्यों रूठ हो रामा, राम को मनाने। 
सब अनर्थ का मैं ही कारण। कृपा-सिंधु प्रभु करो निवारण। 
बीति जो जाओ भूल हो रामा, राम को मनाने। 
नीति नियम पर मुझको चलना। करतब से ना पीछे हटना। 
प्राण भी जाए छूट हो रामा, राम को मनाने।  
ले जाओ तुम मेरे खड़ाऊं। राज करो मैं धर्म निभाऊं। 
धरम सृष्टि का मूल हो रामा। राम को मनाने।

राम कहे उर भरत लगाई।  जग में नाहीं तुम सम भाई।।
भरत शील गुण विनय बड़ाई। पुनि पुनि करहिं राम रघुराई।।
भरत भुवन में सत्य पुजारी। प्रेम त्याग प्रति राम उचारी।।
राउर राम सुहृद गुरु स्वामी। पूज्य हितैषी अंतर्यामी।।
क्रूर कुटिल खल कुमति कलंकी। होंय राम शरणागत संगी।।     
स्वारथ छल फल चारि बिहाई। राम स्नेह बस मुझे सुहाई।।
जानहु राम तात कुल रीती। सत्य प्रतिष्ठा कीरति प्रीती।।
दुख जस दिवस दिनेश बिछोहू। राम सूर्यकुल पालक होहू।। 
जस प्रभु रामहिं आज्ञा होई। करूँ शीश धरि सादर सोई।। 
बोले राम सुयश पुरुषारथ। आज्ञा तात धरम परमारथ।। 
सुन संवाद गुरू समुझावा। कहहिं राम सोई उर लावा।। 
विषयी साधक सिद्ध सयाना।  दिलाय राम स्नेह सम्माना।। 
राम प्रेम बिन होवत ज्ञानी। बिन पतवार जहाज समानी।।

भरत कूप वन राम प्रतापा। तीरथ पावन सब जग व्यापा।। 
राम कृपा कर पादुक दीन्हा। विह्वल प्रेम भरत धर लीन्हा।।  
कहे करजोड़ भरत सुजाना। देहु सीख मँह राम निधाना।।
राज काज सब राम प्रभावहु। रामहिं कृपा प्रजा सुख पायहु।। 
भरत चले कर राम प्रणामा। कर्म निभाने वापस धामा।।
आश्रम राम जेहि जन आये। राम विनय कर निलय पठाये।। 
सम दम संयम नियम उपासा। राम नाम जप भरतहिं रासा।। 
राम पादुका रखि सिंहासन। पर्णकुटी से चलता शासन।।  





अरण्य 


कौड़ी लगे ना दाम, भज ले रे मन राम।   
अमृत सम जिसका नाम, भज ले रे मन राम।
जटा मुकुट जिसके सिर पर ,  तन धारे  पीत परिधान  
हाथों में ले धनुष  बाण, करता  जो सबका कल्याण;
परमानन्द का धामभज ले रे मन राम।
विपदाओं को हरने वाला। सब संभव करने वाला।
जगत का है वही रखवाला। सुख सम्पति देने वाला। 
हर कष्ट मिटाये राम, भज ले रे मन राम। 
सभी तीर्थों से वो ऊपर। मिल जाती मुक्ति भजकर।
सभी गुणों का है वो धाम, भक्तों का कृपा निधान। 

प्रातः हो या शाम, भज ले रे मन राम।  


     


एक दिन चुन पुष्प ले आये। भूषण सुन्दर राम बनाये।। 
राम स्फटिक शिला विराजे। सिय तन गहने मन से साजे।। 
इंद्र-सुत जयंत थाह पाने। चला राम का बल अजमाने।। 
राम जहाँ आया बन कागा। चोंच मार सीता को भागा।।
तृण का बाण राम ने छोड़ा। जयंत भय के मारे दौड़ा।।
शरण दिया ना उसको कोई। कौन रखे भल रामहिं द्रोही।।
नारद देखे विकल जयंता। पठए राम शरण में संता।।
पकड़ा चरण राम के जाई। त्राहि माम् कृपालु रघुराई।।
होय उचित वध अस अपराधी। राम दयालु हरे इक आंखी।।                 
चित्रकूट से लिए विदाई। सीता चलीं राम दो भाई।।
अत्रि मुनी के आश्रम आये। धाय मुनी उर राम लगाये।।
हर्षित मुनि छवि राम सुहाए। दिए मूल फल हरि मन भाये।। 
अति सम्मान राम को दीन्हीं। हाथ जोड़ ऋषि स्तुति कीन्हीं।।

श्रीरामचरितमानस से उद्धृत स्तुति 

नमामि भक्त  वत्सलं  .... 


सिय राम लखन अति समय सुहावन आश्रम अत्रि बितावहीं। 
देवि सिय से तपस्वनि अनुसुइया धरम नीति बखानहीं।    
मातु पिता भ्राता से आपुनो पति सुखदायी जानिहौ। 
धीरज धरम मित्र और नारी काल विपति पहचानिहौ।  
पति प्रतिकूल अपमान उपेक्षा नारि निकृष्ट बखानिहौ।    
पर-पुरुष परस्परअधम कुलटा हेतु क्षणिक सुख मानिहौ। 

राम नाम सब सुख का मूला। नाशक कलियुग पाप समूला।।
कठिन काल ना धर्म न ज्ञाना। भजते रामहि चतुर सयाना।।
आगे चले राम सिय संगा। जा पहुंचे जहँ मुनि सरभंगा।।
कह मुनि सुनु हे राम कृपाला। समय मोर अब ब्रह्महिं शाला।।
धन्य भाग मो रामहिं दर्शन। मोर हृदय बस रहेहु भगवन।। 
जप तप योग ज्ञान मुनि धारे। राम नाम कह स्वर्ग सिधारे।  
चले प्रभु राम वन में आगे। देखि अस्थि की ढेरी लागे।।
जानि राम ऋषि मुनि हत हड्डी। निशिचर हीन करूँ प्रण धरती।
अगस्त शिष्य सुतिक्षण जाना। आये जहाँ राम भगवाना।।
राम भक्ति अविरल मुनि पायी। बैठे मारग ध्यान लगाई।। 
मुनिहि राम बहु भांति जगावा। हृदय चतुर्भुज रूप दिखावा।। 
बोले मुनि मति थोड़ी मोरी। राम केहि विधि वंदन तोरी।। 
निर्गुण सगुण विषम सम रूपा। राम ज्ञान मन इन्द्रिय भूपा।।
अतुलित प्रताप भुज-बल धामा। पाप विभंजन रामहि नामा।। 
हे नाथ राम हमरे स्वामी। बसहु हृदय मम अंतर्यामी।।
वांछित वर दे राम निधाना। अगस्त्य पास चले भगवाना।।
 
जाय सुतीक्ष्ण मुनिहिं बताये। राउर कुटी राम श्री आये।। 
समाचार सुनि मुनि अकुलाये। राम विलोकि नयन जल छाये।।
रामहिं सुन्दर आसन दीन्हा। ऋषि ने सादर पूजन कीन्हा।।
आये पास राम मुनि वृन्दा। पाये मिल अति सुख आनन्दा।। 
बोले राम देहु मम मन्तर। मारूं द्रोही राक्षस ऋषिवर!
राम! जनावत मानुष नाईं। सकल लोक के तुमहीं साईं।। 
राम ही ब्रह्म अछुड़ अनंता। ज्ञान भक्ति भज पावत संता।।
पंचवटी स्थल एक सुंदर। करें राम वहं कृपा मुनिन्ह पर।.   
कर निवास थल पावन करहू। गौतम शाप राम अब हरहू।। 
चले राम मुनि आयसु पाई। संग सिया अरु लछमन भाई।। 
कुटी निकट गोदावरि छाई। रहने लगे राम रघुराई।। 
जब से राम कीन्ह तहँ वासा। सुखी जीव सब बीते त्रासा।। 
राम वहां सब मुनि आनंदित। खग मृग हर्षित पुष्प सुगन्धित।।  
लछमन पूछि राम कर दाया। कहहु ज्ञान विराग अरु माया।।
ईश्वर जीव भेद समुझाई। कैसे राम मोह भ्रम जाई।। 

कहे राम सुनहु तुम थोर में, मन मति व चित्त लगाइ के। 
मोर, मैं, तुम, तोर माया ये, रखते जीव भरमाइ के।  
लागे ये मन, भागे जहँ तक, तुम जान लो माया उसे। 
उसके भी हैं द्वि भेद विद्या अरु अविद्या मानस बसे।
एक करती रचना जगत की गुण जेहि के वश में रहे। 
एक दुष्ट और कूप भव की नित नित जहाँ पे दुख बहे।    
मान आदि बिन दोष ज्ञान हो, सम भाव देखे ब्रह्म को।
त्याग सिद्धि व तीनों गुणों को, ईश्वर में संलग्न हो। 
माया, ईश्वर, स्व-स्वरुप  को, जो  जाने न वह जीव है।  
देता बंधन, मोक्ष सबको, जो, जान लो वह ईश है।
करता भक्ति श्रीराम की जो, होयँ प्रसन्न उस व्यक्ति पर। 
भक्ति राम की ले आये सुख, पाये राम को भक्ति कर। 
प्रीत करे प्रभु राम से जे मनुज विषय से बैराग ले। 
पथ सुगम पाने का राम को निज करम धरम सु ठान ले। 
हो प्रीत संत अरु विप्र चरण, व भजन नियम अनुसारहीं।  
गुरु मातु पिता पति बन्धु देव सब राम को ही जानहीं। 
पुलक-तन मन लगाइ राम में गुण राम गावत सर्वदा।  
काम मोह मद दम्भ परे हो, हों राम उसके वश सदा। 
धरम से बिरति, योग से ज्ञान, ज्ञान से मोक्ष पाइ लो। 
बिन अवलम्ब, स्वतंत्र भक्ति कर विज्ञान ज्ञान वश लाइ लो। 
 
भक्ति योग सुनकर सुख पावा। लछ्मण राम चरण सिर नावा।।
सुनत राम से ज्ञान कि बातें। बीत गए कुछ दिन अरु रातें।। 

सुर्पनखा रावण की बहिनी। देखी राम लखन भर नयनी।।
होइ विकल वह मन ना रोकी। रुचिर रूप धर राम विलोकी।।  
मम अनुरूप पुरुष जग माहीं। राम सिवाय लोक में नाहीं।। 
देख राम कह सिय की ओरी। मैं विवाहित भार्या मोरी।। 
गयी वहां से लछमन पासा। कहे लखन मैं रामहिं दासा।। 
समर्थ राम अवध के राजा। जो कुछ करहिं उनहिं सब छाजा।। 
राम लखन फेरे दुइ बारी। रूप भयंकर तब वह धारी।। 
समुख राम सीता पर झपटी। लछमन उसे बनाये नकटी।। 
खर दूषण के यहं वह धाई। राम विरुद्ध उन्हें भड़कायी।।  
चले लेइ खर दूषण दलबल। रामचंद्र ने भांपा हलचल।। 
राक्षस कहत करत लड़ाई। राम लखन धरहु दोउ भाई।। 
देख राम की सुंदरताई। निशिचर ठाढ़ रहे मोहाई।।
कोई कहे राम नहिं मारो। बहिन प्रतिशोध सिया उठा लो।। 
कितने राम राम चिल्लाते। राम उधर कह शस्त्र चलाते।।     
लेकर परस शूल धनु तोमर। टूट पड़े सब दैत्य राम पर।।
राम धनुष पर बाण चढ़ावा। अगणित निशिचर मार गिरावा।।
कितने दैत्य गिर फिर उठते। राम समझ माया वध करते।।
शत्रु तनिक भी टिक ना पाया। रामचंद्र ने किया सफाया।। 
राम विजय विलोक हरषाये। सुर सब गगन सुमन बरसाए।।
राम की जय गगन में गूंजा। ऋषि मुनि कीन्ह राम की पूजा।।
सूपनखा लंका पुर जाई। राम कृति रावण को बताई।।   
पंचवटी में दोउ कुमारा। राम लखन खर दूषण मारा।। 

तुम्ह करत मदिरा पान सोवत अचिन्त अरि द्वारे खड़ा।
राम लखन करि विनाश दोऊ राछस हेतु संकट बड़ा। 
नीति बिनु राज, धरम हीन धन, बिना विवेक विद्या अहो।  
वह करम जानो व्यर्थ है जो समर्पण हरि को नाहिं हो।   
मान से ज्ञान, मद्य से लाज, जाये अकड़ से प्रीतिहीं। 
दम्भ से गुण का नाश होता, मैं सुनि जगत में नीतिहीं। 
आग पाप रिपु रोग लंकेश, इन्ह छोट न कबहुँ जानहू।  
करने चले राक्षस विहीन, मही सुत दसरथ मानहू।
  
रामहिं बल सुनकर लंकेशा। होयं विधाता करि अंदेशा।। 
मारे खर दूषण बलवंता। होयँ न राम स्वयं भगवंता।। 
मैं वहं जाय बैर हठ करऊँ। राम हाथ मर भव से तरऊँ।। 
राम होय जे राजकुमारा। मारि हर लेहुँ ओकर दारा।। 
राम तभी अस युगत लगाई। अकेल में सिय को समुझाई।। 
राम कहे सुन सिया सुशीला। करना मोहिं ललित कछु लीला।।
तोहिं बिम्ब धर अनल समानी। राम मरम यह लखन न जानी।।
मारीच यहाँ रावण जाई। राम कीन्ह जो कथा सुनाई।। 
कपट राम से तुमहीं करनी। हरना मुझको उसकी घरनी।। 
करहु कपट बन मृग छलकारी। हरउँ सरल राम संग नारी।। 
कह मारीच सुनहु दसशीशा। रूप नर राम भू पर ईशा।।   
एक बार राम मोंहि मारा। गिरा कोस शत योजन न्यारा।।
राम समक्ष कीट की नाईं। तिनहीं विरोध को कर पाई।।
सुबाहु ताड़का गए सिधारे। वही रम खर दूषण मारे।। 
होय कुपित अति रावण कहहीं। राम शत्रु अबोध तू बनहीं।।
कायर होय राम से डरहू। मेरे हाथों अब ही मरहू।।
मारिच सोच उभय अवसाना। रामहिं हाथ मरहुँ कल्याना।। 
संग चला स्व कुशल विचारी। राम नाम मन भीतर धारी।।
 
निकट राम कुटि मारीच गयउ। कनक शरीर कपट मृग भयउ।।
सिया देख कहि राम कृपाला। एहि मृग की अति सुन्दर छाला।।
आनहु चर्म कहहिं वैदेही। सुनि सर चाप राम कर लेही।।
बोले राम सिया रखवारी। करहु लखन बल बुद्धि विचारी।।
देखि राम मृग चला पराई। दौड़े हरि सर चाप चढ़ाई।। 
कभी दूर निकट कभी आवा। मृग विलोकि रामहिं सुख पावा। 
कभी प्रकट कबहूँ छुप जाई। रामहिं छल बहु भांति देखाई।। 
तबहिं राम कठोर सर मारा। मृगा गिरा  करि घोर पुकारा।। 
वाणि राम धरि लखन पुकारा। सिय समझीं को विपति अपारा।।
प्राण तजत निज प्रकट शरीरा। सुमिरत राम लुप्त सब पीरा।।
हाथ जोड़ मृग शीश नवावा। राम प्रताप परम गति पावा।।
राम पुकार सुनि भइ अधीरा। भेजी सिय वहं लछमन वीरा।
चले कह खींच राम यहं रेखा। यहि ना करहु मातु अनदेखा।।
साधु रूप धरि पाय सुअवसर। पहुंचा राम-कुटी दसकंधर।। 
भिक्षा देहु मो राम दुहाई। सीमा लाँघ कृपा करि माई।।
सुमिरत राम लाँघि सिय रेखा। आया रावण असली वेषा।।
धरि रावण रथ सियहिं बिठाई। राम राम सिय करत रुलाई।।
यान चला उड़ नभ में ऊंचा। राम भक्त जटायु वहं पहुंचा।।
रामहिं कारज कीन्ह लड़ाई। सिय रक्षा में पाँख कटाई।।  
राम राम बिलखत वैदेही। विपदा राम सुनावहु केही।। 
लछमन आवत राम विलोका। सोच अकेली सिय अति शोका।।
अनहोनी की रामहिं शंका। दौड़े आश्रम लछमन संगा।।
आश्रम देखि जानकी हीना। राम दुखी जस मानुष दीना।।
विकल राम लखन दोउ भाई। ढूंढन सीता इत उत धाई।। 
पूछत राम लता तरु पाती। खग मृग शुक कोयल बहु भाँती।।
कहत राम हे मधुकर श्रेनी। तुम्ह देखी सीता शुभनयनी।।
आगे पड़ा जटायू देखा। सुमिरत राम भगत की लेखा।।
फेरि कमल-कर गिद्ध माथ पर। निरखि राम छवि पीर छुमंतर।।
राम दशानन गति यह किन्ही। वही दुष्ट सीता हर लीन्ही।।   
दक्षिण दिशा ले रावण गयउ। राम राम रट बिलख सिय रहउ।।  
दरस हेतु प्रभु प्राण रखेहू। मोहिं राम अब मुक्ती देहू।।
नयन भर रामहिं स्तुति गायहु। तज तन जटायु राम समायहु।। 


   राम की स्तुति 

जय राम रमापति हृदय रमो, नित चरणों में स्थान मिले।     
विषय से विरति राम में राग, अटूट हे कृपानिधान मिले। 

प्रभु  रूप अनूप सगुण निर्गुण, अनादि अनंत अगोचर हो। 
प्रेरक-सत्य अव्यक्त अजन्मा, बदन घनश्याम मनोहर हो। 
मुख-सरोज राजीव विलोचन,  विशाल बाहु बल असीम धरे। 
सर प्रचंड दसशीश विखंडन, जे सकल भव भय मोचन करे। 
भजते संत जो मन्त्र हमें भी, सच राम नाम का ज्ञान मिले। 
  
गोबिंद अनादि अनंत अव्यक्त, धरनिधर द्वन्द के हारी हो।  
शीतल सदैव निर्मल स्वभाव, ज्ञान विज्ञान के धारी हो। 
शोभा वृन्द करुणा के कन्द , जड़ चेतन सारे मोह रहे। 
प्रभु साक्षात् प्रकट यहाँ पे, बहुभांति हृदय में सोह रहे। 
कामादि खल दल दुर्गुणों से, हरि सदा हेतु अवसान मिले। 
 
 मायारहित निर्विकार ब्रह्म, अज व्यापक कहि श्रुति गावत हैं।  
करि ध्यान ज्ञान योग विराग,  जेहि संत मुनि सुख पावत हैं। 
मन व इन्द्रियां जिनके वश में, भक्तों के वश त्रिभुवन स्वामी। 
अगम सुगम सम विषम शांत नित, बसहु हृदय मम अंतर्यामी। 
उर में रहे प्रभु अविरल भक्ति, हे राम यही वर
दान मिले। 





भक्ति मांग हरिलोकहिं जावा। गिद्ध क्रिया निज राम निभावा।।  
खोजत सिय चलि पुनि घन कानन। राम लखन जहँ गज पंचानन।।
राह कबंध राक्षस आवा। राम बाण लइ मार गिरावा।। 
ता निज धर्म राम समुझावा। विप्र निरादर  मो न सुहावा।।  
यदपि दीन्ह गति उदार रामा। फिर पहुंचे सबरी के धामा।।
राम लखन देखि दोउ भाई। सबरी पड़ी चरण लपटाई।।
राम लखन के पाँव पखारी। बैठहुँ सुन्दर आसन धारी।। 

सबरी के घर राम पधारे। 
हुई दीवानी खुशी के मारे। सबरी के घर राम पधारे। 
क्या क्या रक्खा है घर में, ढूंढे एक एक बर्तन सबरी। 
करने राम की आवभगत, कर रही बहु भांति जतन सबरी। 
कूंचा ले घर अंगना बुहारे। सबरी के घर   ...  
क्या खिलाऊँ, कहाँ से लाऊँ, अपने राम को कैसे रिझाऊं। 
भाता क्या है राम को मेरे, मैं तो अधम कुछ समझ ना पाऊं। 
बैठ राम का रूप निहारे। सबरी के घर  ... 
अपने प्रभु के पांव पखारी, घर चुन कर लायी बेरी सबरी।  
चख चख कर वह मीठे छांटी, राम को जूठे परोसी सबरी।    
प्रेम भक्ति को हिय में धारे। सबरी के घर  ...
कही अधम जड़मति मैं नारी, प्रभु जानूँ  कैसे भक्ति तिहारी।     
बोले राम सुनु हे भामिनी, मैं तो उसका प्रेम जे धारी।  
भजे जे मुझको होय सुखारे। सबरी के घर  ...

                                           
राम का नाम रट कर सबरी, कर गयी नाम अमर सबरी। 
इक न इक दिन आएंगे राम, रखी कई वर्ष सबर सबरी। 
जाने ना कब राम पधारें, 
सजाय रखती नित घर सबरी।
मन विस्वास अटल वो धारे, निहारती रोज डगर सबरी। 
राम भक्ति में हुई दिवानी, भजती उन्ह आठ पहर सबरी। 
राम भजन में जीवन अर्पित, करती रट राम बसर सबरी। 
  
जागा भाग्य राम पधारे, पड़ि पंकज पद प्रभु धर सबरी।  
अपने को जो अधम समझती, राम को पा, गयी तर सबरी।    

राम अधम मैं जड़मति नारी। जानूँ नाहीं भक्ति तिहारी।     
नीच कुल मैं भीलनी हेहू। चरणन मोहिं राम रति देहू।

राम कह नर भक्तिविहीन सुन, नारि जलधर बिन नीरहीं।    
धरे जाति धरम कुल ख्याति धन गुण धीरज चतुर वीरहीं। 
सुनहु कर ध्यान नौ भांति भक्ति, कहउँ  मन में जे धारिहौ। 
प्रथम भक्ति सत्संग जान तू, द्वि मम कथा रति लगाइहौ। 

तीसरी भक्ति गुरुवर की सेवा, चत्वार मम गुण गावहीं।   
पंचम भजन जप मन्त्र मम छठ धर शम करम कुछ त्यागहीं।   
सप्तम मो में देखि मय जग मो से अधि संत विचारिहौ।   
अष्ट यथा लाभ तुष्टी नौ भरोष मम निश्छल राखिहौ।
मम दर्शन फल परम जानि धरे सकल भगति तू साधवी । 
जानती पता जो जानकी की राह बता हे मानवी।    


राम चरण सिर सबरी नाई। जाइ सुग्रीवहिं करहु मिताई।। 
जानत सब मो पूछत रघुबर। जाहु राम तुम पम्पा सरवर।।
राम लखन चलि वन में आगे। लता फूल तरु सुन्दर लागे।। 
खग मृग मादा संग सुहाई। सिय बिन रामहिं मन अकुलाई।।   
वन में कामदेव का डेरा। करने भ्रमित राम को घेरा।।  
काम क्रोध तृष्णा मद माया। सब मिट जाय राम की दाया।।  
राम नाम ही जीवन का सच। जग ये सपना हरि को भज।।
पहुंचे राम सरोवर तीरा। पिअहिं जीव सब निर्मल नीरा।  
कुमुद मीन जल नाना रंगा। राम विलोकहिं गूंजत भृंगा।। 
चारु विटप मुनिन्ह गृह छाये। कोकिल कूक राम मन भाये। 
ताल नहाइ राम सुख पावा। स्तुति हेतु देव मुनि आवा।।
जहाँ राम थे सुख आसीना। आये नारद साजत वीना।। 
गावत राम चरित मृदु वानी। कह नाथ हे कृपा के दानी।। 
माँगउँ राम एक वर स्वामी। यद्यपि जानत अंतर्यामी।। 
यद्यपि प्रभु के नाम अनेका। राम नाम श्रेष्ठतम नेका।।
राम नाम जस नभ राकेशा। नाम होय तारा यदि शेषा।।   
एवमस्तु कह राम रघुनाथा। नारद तुरत नवाये माथा।।
मैं विवाह जब चाहउँ कीन्हा। काहे राम नाहिं कर दीन्हा।। 
संतन के लक्षण रघुवीरा। कहहु राम भव भंजन भीरा।। 


कह राम भजहि मुनि भरोष कर, मम ताहि सुत सम पालहीं।   
प्रौढ़ भये माँ प्रीति करइ पर, स्व-रक्षा सुत बल धारही।  
मोह विपिन लइ नारी बसंत, जे जप तप नियम सुखायिनी।     
काम क्रोध मद डाह लोभ धरि मायारूप दुखदायिनी। 
सकल धरम-सरोज वृन्द तिन्ह, हिम होइ नारी 
दाहती।  
सत्य शील बल बुद्धि नाश कर, पापहि उलूक उगाहती।  
  
षट-विकार
 तज पुण्य अकाम सुचि सत्यसार धरि ज्ञानही।   
योगी मितभोगी अचल अकिंचन गहि निष्पाप धारही।  
सतर्क मानद मदहीन धीर, धरम-प्रवीण सम भावही।  
रहउँ संतवश कारण एहि धरि निर्मल सरल स्वभावही। 
जप तप व्रत संयम नियम दम से ईश्वर से प्रेम करे।  
विवेक विराग विनय विज्ञान वेद पुराण का ज्ञान धरे।  
करि श्रवण गात मम लीला अरु परहित में मन लगावही। 
सुनु मुनि गुण संतन के ना सकत शारद वेद बखानही।  

अस गुण संत हरि निज मुख कहे। सुनि मुनि राम पद पंकज गहे।।   
युवती तन मन हो न पतंगा। राम भजन कर अरु सत्संगा।।    
राम चरित जे सुनहिं गावहीं। तप विराग बिन राम पावहीं।। 


किष्किंधा काण्ड 


शब्द नहीं इष्ट है 'राम'', धूप छाँव  वृष्टि  है 'राम'। 
सृष्टि को रचने वाला, अनुपम दिव्य दृष्टि है राम। 
पूरी करता अभीष्ट राम। बोलो राम राम राम। 
देवों से सेवित राम, वेदों से वन्दित राम।  
बल जिनका अतुलित राम, निशाचरों पर विजित राम। 
ज्ञान विज्ञान के धाम; बोलो राम राम राम
धनुष बाण के धारक राम, पापों के निवारक राम।  
दैत्यों के संहारक राम, त्रिपुरारी के उपासक राम। 
बना देते बिगड़े काम; बोलो राम राम राम 
श्यामल रूप सुहावन राम, अतिशः वो मनभावन राम। 
सुख के हैं बरसावन राम, सबसे जग में पावन राम। 
अमृत सा जिनका नाम; बोलो राम राम राम  


राम लखन फिर दोनों भ्राता। पहुंचे ऋष्यमूक गिरिराजा।।
देखि राम कह सुनु हनुमाना। कौन पुरुष दोऊ बलवाना।।
गए कपीश सुग्रिव निर्देशा। राम समीप विप्र के वेशा। 
को तुम श्यामल गौर शरीरा। रामहिं पूछत हनुमत वीरा।। 
राम लखन दशरथ के जाए। तात वचन धरि वन को आये।।
हमहि राम सीता मम दारा। निशिचर कोइ सघन वन हारा।।
कह राम हे विप्र गोसाईं। खोजत विकल तेहि हम भाई।।
जैसे ही रामहिं पहचाना। पड़े दण्डवत करि हनुमाना।।
राम उठाइ विप्र उर लावा। हनुमत प्रकट रूप निज आवा।।
माया वश मैं फिरउँ भुलाना। कारण राम नहीं पहचाना।।
जानउँ ना कछु भजन उपाई। मोहिं राम काहे बिसराई।।
पर्वत श्रृंग सुग्रीव निवासा। हे प्रभु राम ते तव दासा।।
राम अभय करि बालिहि सोई। सिया खोज में सेवक होई।   
राम लखन लइ पीठ चढ़ाई। जाइ सुग्रीव कराइ मिताई।।

साधु बनकर राम जहाँ पर, आयो हनुमान जी। 
रघुवर के चरणों में माथ, नवायो हनुमान जी। 
देख मनहर छवि पम्पा की, भये मुग्ध श्रीराम।  
पम्पा सरवर के उन्ह दरश, करायो हनुमान जी।
पहचान लिए अपने राम को, पड़े चरण साष्टांग,
नयन भर पूछे प्रभु! क्यों मोहँ, भुलायो हनुमान जी।       
ऋष्यमूक अति सुन्दर तुंग, जँह रहते नृप सुग्रीव। 
प्रभु राम को उनकी कथा सब, बतायो हनुमान जी।
राम लछमन दोनों भ्रात को, बिठाय अपने कांधे,  
वानरराज सुग्रीव से लाय, मिलायो हनुमान जी। 
जहाँ कहीं भी सीता होंगी, लाएंगे उन्हें खोज।
रामचंद्र को दृढ़ विस्वास, दिलायो हनुमान जी।   


लछमन राम चरित सब भाषा। मिले सुग्रीव नाइ पद माथा। 
सुनहु राम यहाँ एक बारा। सह मंत्रिन्ह कर रहउँ विचारा।   
राम राम हा राम पुकारी। नभ मग जाइ रही इक नारी।।
हमहि देख पट वसन गिराये। राम को ला सुग्रीव दिखाये।। 
सुनहु राम त्यागहु आकुलता। खोज जानकी हमरी चिंता।।
रामचंद्र मम बालि सहोदर। भया शत्रु बस एक बात पर।। 
सुनहु राम मम इक पखवारा। बालि बिठाकर मांदहि द्वारा।।  
मायावी सु करने लड़ाई। खोह राम हे घुसि मम भाई।। 
राम माह मैं एक गुजारा। बहती कढ़ी रुधिर की धारा।।
भय के मारे चला पराई। तबसे राम शत्रु मम भाई।।
मोहिं राम वह रिपु सम मारा। छीना सरबस अरु मम दारा।।
 दीन्ह राम सुग्रीव दिलासा। हरऊँ कपि तव सकल विषादा।।
राम वचन सुन गदगद होई। आज्ञा नाथ करब कह सोई।। 
चले राम ले सर धनु हाथा। भेजि सुग्रीवहिं बालि निवासा।। 
राम बल पाय बालि के द्वारा। जाय सुग्रीव उसे ललकारा।।
दौड़ा बालि नारि समुझावा। नाथ सुग्रीव राम बल पावा।।
सुग्रीव बालि कहि तृण कि भाँती। राम कर मरउँ सदगति भागी।।
मुष्टि प्रहार बज्र सा लागा। विकल सुग्रीव राम यहँ भागा।।
बोले राम रूप सम दोऊ। भ्रम ते नाहीं मारउँ सोऊ।।  
पहना राम सुमन के माला। भेजे पुनि बल देइ विशाला।।
पुनि दोनों में घोर लड़ाई। विटप ओट सर राम चलाई।।
गिरा बालि खा बाण कठोरा। बोला चितइ राम की ओरा।। 
मैं बैरी सुग्रीवहिं प्यारा। कारण केहि राम मह मारा।।  
अनुज बधू भगिनी सुत नारी। राम कह ये सुता सम चारी।।
जेहि प्रकार पाप तुम करई। राम कह बधे दोष न परई।। 
राम बालि तन खींचहिं  तीरा। कहो प्राण युत रखउँ शरीरा।। 
मोक्ष काल प्रभु दर्शन प्यारा। देहु राम मम भक्ति अपारा।। 
मम सम बली राम तव दासा। राखउ अंगद अपने पासा।। 


तारा ने पुकारा राम को किष्किंधा में। 
मारा क्यों मेरे नाथ को किष्किंधा में?
भांप ली पहले ही,तारा, आया था जो काल सुनो। 
बड़ा समझाई, पर न माना, अभिमानी था बालि सुनो।  
मिला मोक्ष राम के हाथ से, किष्किंधा में। 

रो रो के पागल तारा, सती होने की ठानी वो।  
सब समझाए बन जाओ सुग्रीव की महरानी हो। 
युवराज बनवा ली लाल को, किष्किंधा में। 

क्षिति जल अगन गगन पवन, पंच तत्व का बना बदन।  
जीव तो है नित्य जगत में, काहे फिर करना रुदन। 
धारी माथ परम ज्ञान को, किष्किंधा में। 


पुरजन विप्र समाज बुलावा। राम सुग्रिवहिं राज दिलावा।।

राम लीन्ह सुग्रीव बुलाई। राज की नाना निति सिखाई।। 
राम प्रवर्षण गिरि पर आवा। गुफा चारु कछु काल बितावा।।
विपिन मनोहर शैल अनूपा। राम विराजै मंगलरूपा।।  
राम विलोकि घटा घनघोरा। गरजत बरसत नाचत मोरा।।
छलकत चलि सरि भरि जल सोई। हर्षित मही राममय होई।। 

धरि वसन हरा शोभित धरा, घन जहँ तहँ छटा बिखेरहीं।     
बरसात बीति उदित अगस्त, ऋतु शिशिर वसुधा निखारहीं।  
खग खंजन स्वच्छ आकाश निर्मल भूमि कहुँ कीचड़ नहीं। 
गूंजत भ्रमर निशि ताप हरे शशि पाप हरे जस संतहीं। 
मिटे बरसाती जीव जस पाय सद्गुरु भ्रम संशय मिटै।   
पुष्प पंकज तड़ाग शोभित भव निर्गुण ब्रह्म सगुण दिखै। 
लगाय टकी चकोर चन्द्रमा जस भक्त हरि को ध्यावहीं।  
राम सोचत शरद ऋतु सोहई, सिय सुधि नाहीं पावहीं। 

रिम झिम होय रही सावन में, राम अकेले वन में ना। 
सिया की धरे वियोग मन में, राम अकेले वन में ना। 

बादल अमृत जल बरसाए, तरुवर पुष्प लता हरषाये 
सारे जीव युगल कानन में, राम अकेले वन में ना। 

दादुर मोर मचावें शोर, पपीहा गावे होते भोर  
बिजली चमके रह रह घन में, राम अकेले वन में ना। 

सुग्रीव हनुमत को पठायो, जाओ शीघ्र ढूंढ के लाओ 
सीता छुपी कहाँ त्रिभुवन में, राम अकेले वन में ना। 


वर्षा बीति शरद ऋतु आयी। सोचत राम न सिय सुधि पायी।। 
लछमन रामहिं मन को जाना। चलि सुग्रीव यहँ ले धनु बाना।।    
देखि पवनसुत मनहिं विचारी। कारज राम सुग्रीव विसारी।।
नृपहिं चरण हनुमत सिर नावा। राम काज उन्ह याद दिलावा।। 
कह लछमन तुम भय ना खायी। कारज रामहिं सोइ भुलाई।।   
रघुपति राम सुयश गा तारा। विनय कर लखन कोप उतारा।।  
राम की माया बड़ी अजूबा। रहा विषय में सुग्रिव डूबा।। 
नाथ हुई अब ऋतू सुहानी। राम काज लइ दूत पठानी।।
मांग राम से क्षमा याचना। भेजसि नृप सिय खोजहिं सेना।।  

रामप्रिया सब खोजहु जाई। एक माह में आयहु भाई।।
कारज राम पाय हनुमाना। आपन जनम सुफल करि माना।।
राम हनुमान निकट बुलाई। काढ़ि मुद्रिका उन्हें थमाई।।
देहु जानकी रामहिं चीन्हा।आयउँ भीतर एक महीना।। 
राम काज करिबै को आगर। हर्षित चले दिशा चहुँ वानर।। 
अंगद नील जामवन हनुमत। चलि सिय खोजन रामहि सुमिरत।। 
चले नदी वन पर्वत खोहा। राम काज विसारि तन छोहा।। 
लगे अकुलाने प्यास के मारे। राम रटत ढूंढत जल सारे।।
राम कृपा अस होइ विशेषा। गिरि चढ़ि कपि गुफा एक देखा।।
घुसे राम की जय कर अंदर। भीतर उपवन मंदिर सरवर।।    
स्वयंप्रभा थी रामहिं ध्याना। सबहिं कराइ सुरुचि जलपाना।।
आँखें मूँद कहो श्रीरामा। मारग पायउ तुम्हरे कामा।। 
नयन मूँद पुनि खोलहिं वीरा। माया राम सिंधु के तीरा।।
स्वयंप्रभा गइ जहँ रघुनाथा। राम कमल पद नाई माथा।।
लेइ राम से आशीष परम। जाई प्रभा बद्रिका आश्रम।।
कारज  राम विषय तट सागर।  करत विचार परस्पर वानर।।
जामवंत बहु कथा सुनावा। राम ब्रह्म अज अजित बतावा।।

सुनि बतकही कहहि सम्पाती। दीन्ह राम भोजन बहु भाँती।। 

कपि भयाकुल सुनि गिध वाणी। राम सुमिरि लागे सब प्राणी।। 
अंगद कह मन सोच उपाया। राम काज जटायु तजि काया।।   
सुनि सम्पाति बंधु की करनी। आय समीप राम गुण बरनी।।
सम्पाती निज कथा सुनावा। मिलिहैं राम दूत वर पावा।।
गिरा गगन से पंख जरावा। राम काज करिबै दिन आवा।।
लंका अशोक उपवन अहई। रामप्रिया तहँ दोचित रहई।।    
देखउँ सिन्धु पार शत योजन। राम कृपा गिध दृष्टि विलोकन।।
लांघ सके विशाल जो सागर। ढूंढे सिया राम बल पाकर।।
राम कृपा गिध पुनि पर पावा। सागर लाँघ उपाय सुझावा।।
राम दूत सब बल अजमाई। सक्षम नाहिं पार जे जाई।।
जामवंत कह सुनु हनुमाना। राम कृपा तुम अति बलवाना।।
राम काज लइ तव अवतारा। सुन हनुमान पर्वताकारा।।
सिंहनाद करि बारहिं बारा। लाघउँ  सिंधु राम लइ खारा।। 
जाय गिराऊं रावण मारी। राम को देउँ त्रिकुट उखारी।।  
जामवन्त हनुमत समुझाई। लायहु रामप्रिया सुधि जाई।। 
करि करनी जे राम बड़ाई। सिया लियावन राम सुहाई।। 
निशिचर मारि राम सिय आनी। जइहैं यश रघुवीर बखानी।।
रामहिं यश भेषज सुखकारी। सिद्ध मनोरथ सुनि नर नारी।।
नील कमल सम श्यामल काया। नाशहिं पाप राम गुण गाया।। 


 

सुन्दर कांड 


कोमल काया, जिन वश माया, श्याम रूप सुहावन।  
अति मन भावन, सुख बरसावन, जग में सबसे पावन 
अमृत है जिनका नाम, वो हैं मेरे प्रभु श्रीराम।  

लोचन सरोज, पीत परिधान, कर में धनुष व बाण।  
सिर जटा मुकुट, सुन्दर तिलक, तन भूषण शोभायमान  
भक्तों के कृपा निधान, वो हैं मेरे प्रभु श्रीराम ।

रघुकुल नायक, भजन के लायक, जो त्रिभुवन के पालक। 
पाप निवारक, दैत संहारक, शिव जी के उपासक। 
जो परम आनंद के धाम, वो हैं मेरे प्रभु श्रीराम ।

बल अतुलित, वेदों से वन्दित, सभी गुणों के धाम।  
ऋषि मुनि देवों से जो सेवित, हैं जग के कृपानिधान। 
जिनसे सकल ज्ञान विज्ञान, वो हैं मेरे प्रभु श्रीराम। 
 
ब्रह्मा विष्णु शिव में जो, वाणी, शब्द, अक्षर में जो। 
ज्योति और कृशानु में जो, वायु, तोय, दिनकर में जो। 
जो वेद पुराणों के प्राण, वो हैं मेरे प्रभु श्रीराम।  


राम बखानि कहहि जमवन्ता। हर्षित अतीशः सुनि हनुमन्ता।। 
सिंधु तीर एक पर्वत सुन्दर। रामदूत चढ़ेउ ता ऊपर।।
जस अमोघ रामहिं कर बाना। चले तीव्र गति अति हनुमाना।।
जलनिधि देखि दूत श्रीरामा। कह मैनाक देहु विश्रामा।।
गिरि छू कपीश कीन्ह प्रणामा। राम काज पूरहिं विश्रामा।।
रामदूत वहं आवत देखा। सुरसा कह आहार विशेषा।। 
सुनत वचन कह पवनकुमारा। राम काज कर बनउं अहारा।।
सुन अबहीं जावन दे माई। राम काज करि तव मुख जाई।।.
वहि तब योजन बदन पसारा। कपि कह राम दुगुन विस्तारा।।                  
सोलह योजन मुख ते करऊ। रामदूत झट बत्तिस भयऊ।।
शत योजन जब आनन कीन्हा। रामदूत सूक्ष्म हो लीन्हा।।
सुमिर राम कपि मुख में जावा। सुरन्ह बल बुद्धि मरम दिखावा।।  
आशिष पाइ चले हनुमाना। राम काज करिबै को ठाना।। 
छायाग्रही सिंहिका आवा। रामदूत धरि मारि गिरावा।।
लांघे सिंधु राम की माया। पहुँचि पवनसुत धरि लघु काया।।
सुमिरि राम निहारहीं लंका। धरि निशाचरी लंकिनि शंका।। 
रामभक्त को वह ललकारी। कहवाँ जाइ कीट तन धारी।।
अंजनिसुत मुक्का इक मारी। गिरी लंकिनी राम पुकारी।।
लंकिनी  मनहि धन्य मनावा। रामदूत  के दर्शन पावा।।
जाहु नगर भीतर कपि राजा। हृदय राम रखि करि सब काजा।।  
अपरम्पार राम की माया। जो कुछ जग में वही बनाया।।
अति लघु रूप धारि हनुमंता। सुमिरत राम घुसहिं पुर लंका।।
रामप्रिया को खोजत कपिवर। भीतर महल रूप सूक्ष्म धर।।
अचरज देखि नगर में मंदर। राम जपत साधु कोउ अंदर।।
 विप्र रूप धरि गए हनुमाना। रामहिं भक्त विभीषण जाना।।
राम कथा हनुमंत सुनावा। वैदेही खोजत यहँ आवा।।
राम चरित्र विभीषण भावत। पुलकित दोनों सुनत सुनावत।।  
कृपा राम की तव यहँ आवा। सियहिं विभीषण हाल बतावा।।   
उपवन अशोक सुनु कपि अहहीं। जाउ रामप्रिय जहवाँ रहहीं।। 
कपि लघु रूप वाटिका जाई। सुमिरि राम तरु पात लुकाई।। 
देखि दुखित कपि सीता दीना। मनहीं राम कमल पद लीना।   
रावण आकर भय देखावा। सीता अडिग राम चित लावा।।
रामहिं बल न जानेउ पापी। तुम्हरे दर्प मिलइहैं माटी।।
निशिचरिन्ह कह महल को जायउ। रामप्रिया पर त्रास बढ़ायउ।।  
त्रिजटा दनुजा गुणी विवेका। चरणन राम रति अति विशेषा।।
देखि स्वप्न कह सियहिं पुकारी। रामदूत आ लंका जारी।।
दसमुख प्राण राम हर लीन्हा। लंका-भूप विभीषण कीन्हा।।
सीता अपनी व्यथा बताई। राम गए कहुँ मोहिं भुलाई।।  
त्रिजटा सुनि सियहिं समुझावा। राम महिम बल सुयश सुनावा।। 
तबहीं कपि करि हृदय विचारी। अंकित राम मुद्रिका डारी।। 
सीता देख चकित अति भारी।। मुदरी राम दीन्ह को डारी।।
रामप्रिया विचारि करि नाना। मधुर वचन बोले हनुमाना।।
रामदूत मैं मातु जानकी। मुदरी यह करुणानिधान की।।
राम कथा कपि बरनै लागा। सुनत सिया का सब दुख भागा।।
सुनिय राम गुण सिय विश्वासा। कह नहिं सहन होय अब त्रासा।। 
अइहैं राम शीघ्र अति माई। हरिहैं तव सब दुख रघुराई।।
कह कपि हृदय धीर धरु माता। सुमिरउ राम सकल सुखदाता।।
जे प्रभु राम होत सुध पाई। करते नहीं देर रघुराई।।
रामचन्द्र शीघ्र अति अइहैं। निशिचर मारि तोहिं ले जइहैं।।
अबहीं मातु मैं संग ले जायउ। राम से पर न आयसु पायउ।।
सीता ने संदेह दिखावा। रामदूत निज रूपहिं आवा।।
रामप्रिया से अनुमति पाई। चले कपीश चारु फल खाई।।
रावण पठये सब रखवारे। रामदूत हाथों गय मारे।।
रावण सुत अक्षय जब आया। रामदूत ने स्वर्ग पठाया।।

देखि राक्षस विनाश रावण, सुत इन्द्रजीत पठावहीं।।    
तुम हो बल के धाम जे वोहि, लघु कीश को धरि लावहीं।। 
हनुमान उखाड़ मार तरु से, रथ के कई टुकड़े किये।। 
लंकेशसुत को मारि मुक्का, झट उछल तरु पर जा चढ़े।।   
अभिमंत्रित कर किया मेघ ने ब्रह्मास्त्र का संधानहीं।। 
तटस्थ हुए तब हृदय धारि हनुमान राम का ध्यानहीं।। 

ब्रह्माजी का करि सम्माना। बँधेउ राम सुमिरि हनुमाना।। 
राम काटते बंधन भव के। दूत बंध गए कारज उनके।। 
रावण सभा मेघ ले जावा। हनुमत राह राम को ध्यावा।।
वानर कौन कहाँ से आया। रामहिं दूत उन्हहीं पठाया।। 
धरि जे राम विविध अवतारा। बार बार राछस संहारा।। 
चले बल जाके सृष्टि सारी। हर लाये तुम राम कि नारी।। 
सोइ प्रभु राम से बैर न कीजै। मातु जानकी लौटा दीजै।।
रावण तुम निज कुलहि विचारी। भजहु राम उर भक्ती धारी।।
राम नाम बिनु कंठ न सोहा। देहु त्याग रावन मद मोहा।। 
राम विमुख सम्पति प्रभुताई। जाइ रही पाई ना पाई।।
 होहिं मोह मद अति दुखदायक। भज सब त्याग राम रघुनायक।।
राम गुणगान सुनि लंकेशा। पूँछ जरायउ कह आवेशा।।
जेहि राम की करत बड़ाई। पूंछहीन वानर वहं जाई।।
पूंछ लपेटहिं वसन निशाचर। रामदूत करि बड़ी बढ़ाकर।।  
वसन लपेट घृत तेल सोखावा। रामदूत को नगर घुमावा।।
कपि पूँछहिं जब आग लगाई। राम नाम लइ लंक जराई।। 
नगर निवासी अति अकुलाई। त्राहि माम् करि राम दुहाई।।
रामदूत सागर को जाई। लागि पूंछ की आग बुझाई।।
जा कह देहु मातु कछु चीन्हा। जैसे रामचंद्र ने दीन्हा।। 
तात मोर चूड़ामणि लीजै। रामहिं मम संदेशा दीजै।।

हरने दुःख हमरी, कब आएंगे मोरे रामा हो, बताओ हनुमान जी।
सीता को अपनी, ले जायेंगे मोरे रामा हो, बताओ हनुमान जी। 
सुमिरत राम मैं, काटूं दिन रतिया। 
कब तक हरेंगे प्रभु हमरी विपतिया।  
राम कृपा अपनी, बरसायेंगे मोरे रामा हो, बताओ हनुमान जी। 
शोक में डूबी रामा, अशोक वाटिका में। 
जल रही विरह की अग्नि शिखा में। 
कौने भांति मोहें, छुड़ाएंगे मोरे रामा हो, बताओ हनुमान जी। 
प्रभु नहीं आये जो, माह के भीतर। 
पाएंगे मुझको, जीवित नहीं रघुबर। 
माया प्रताप कब, दिखलायेंगे मोरे रामा हो, बताओ हनुमान जी।

दीन दयाल विरद संभारी। हरहु राम मम संकट भारी।।
मास दिवस जे राम न आयउ। वैदेही को जीवित न पाययु।। 
सिंधु पार कर आय कपीशा। पूर काज सब राम अशीशा।। 
राम कपीशहिं आवत देखा। पूर काज मन हरष विशेषा।। 
राम हरषि हनुमत उर लाये। कपि उन्ह चूड़ामणी दिखाये।।
राम विरह में सीता जरई। भारी विपति न जाई कहई।।  
राम कह कोउ नाहिं तनधारी। कपि तुम सम सुर नर उपकारी।।
राम वचन सुन हरषि कपीशा। निहुरि परेउ चरण जगदीशा।।
पूछि राम भांति केहि लंका। दहेउ जाई तुम हनुमंता।। 
बोलि कपीश राम रघुराई। मम करनी राउर प्रभुताई।।
राम कृपा ना अड़चन कोई। राम सुमिरि सब मंगल होई।। 
बोलि कपिन्ह रामहिं जयकारा। आज्ञा दें प्रभु लंक प्रहारा।। 
कीश राम कृपा बल पावहीं। चले रावण पाठ सिखावहीं।।  
राम सिंधु तट लेकर दलबल। भय आकुल लंका में हलचल।। 
मय-पुत्री रावण समुझावा। भार्या राम देहु लौटावा।। 
राक्षस झुंड मेढ समाना। विषधर नाग राम कै बाना।।
राम बखान न दसमुख भाया। मंदोदरी सुमति ठुकराया।।
बैठउ सभा सूचना पायी। सेना राम सिंधु तट आयी।। 
विभीषण कह चाह कल्याना। जानहु राम सृष्टि भगवाना।।
काम क्रोध मद नरक के पन्था। भजहु राम भजहिं जेहि सन्ता।।
राम नहीं नर जग रखवाला। अनादि अनंत कालहु काला।।  
कृपा सिंधु मानुष तन धारी। गो द्विज देव राम हितकारी।।
तेहि राम से बैर न करहू। सीता देइ नाम उन्ह भजहू।।
राम नाम तहँ संपत्ति नाना। राम विमुख वहं विपति निदाना।।  
सुनि गुण राम कुपित लंकेशा। लात मारि निकालहीं देशा।।  

मारि मोहि भले ही भ्रात मम,  पिता समान तुम्ह मानहीं। 
चलउं त्याग राज तोहार हित, राम भजन और ध्यानहीं।
चलेउ विभीषण हरषि तत्पल, रघुबर शरण सुख-दायिहों।
जिन्ह चरणन उर-भरत पादुका, दरश उन्हकर नित पाइहौं।
  
 
मारग वायु राम शरणागत। कीन्ह विभीषण लेटि दंडवत।।
राम! दशानन का मैं भ्राता। शरण लेहु मो अपन विधाता।।
आयउँ सुन यश प्रभु सुखदायी। राम उठाय हरषि उर लाई।।
रहउ ठाढ़ि छवि राम विलोकी। विभीषण पलक एकटक रोकी।। 
रावण निशिचर दुष्ट सुभावा। राम ताहि राज्य तजि आवा।। 
लोभ मोह मत्सर मद माना। राम नहिं बसत उर खल नाना।।
देखि राम पद कमल तुम्हारे। कुशल कृपालु मिटे भय सारे।।
सगुण उपासक परहित प्रेमा। राम कह करउँ ते जन क्षेमा।। 
तुम्हरे उर गुण सकल समाया। कह उर लाय राम रघुराया।।
लंकापति अब तुमही सुहावा। राम कह राजतिलक लगावा।।  
पूछसि राम लंक भूपाला। केहि विधि पार जलधि विशाला।।
चाहेउ राम बाण चलाई।  क्षण में सागर देउ सुखाई।।
सिंधु प्रतिष्ठा राम विचारी। विनय करि देहु मग जलधारी।।
सखा कही तुम नीक उपायी। बैठे राम तट कुश बिछायी।।  
रावण भेजे पाकर अवसर। राम शिविर घुसे दो गुप्तचर।।   
शुक जासूस बांध कपि लाये। राम अनुज हँसि उन्हें छुड़ाये।।
वापस भेजहिं देइ संदेशा। रामहिं भय करि कहु लंकेशा।।
रामचंद्र हैं बड़े कृपाला। जनि बुलायहू आपन काला।।
राम को लौटा दे जानकी। त्राण कर अपनों के प्राण की।। 
दूत नाइ लछमन पद माथा। गावत चले राम गुण गाथा।।
दूत लौट सब कही कहानी। रामहिं गुण लंकेश बखानी।। 
सैन राम जनि जानहुँ वानर। हरेक उनमें बल का सागर।।  
रामचंद्र त्रिलोक के स्वामी। बैर लेहु नहीं तिन्ह से स्वामी।।
मारि कुपित हो रावण लाता। चलि शुक शरण राम रघुनाथा।। 
विनय तीन दिन जलधि न माना। राम उठाय तानि धनु बाना।।
कोपहिं राम उदधि भय खायी। जीव जंतु सब लगि अकुलाई।। 
गहि पद सिंधु राम रघुराई। नाथ ना  हरहुँ मोरि बड़ाई।। 
राम नील नल कपि द्वौ भाई। परस किये गिरि जल तर जाई।।
 तिन्ह वरदान प्रयोगहिं लाई। लेहु राम सिल सेतु बनाई।। 
मंगलदायि राम गुण गाना। सादर सुनहिं तरहिं भव नाना।।                    


 लंका 


प्रसन्न  हो प्रभु मन में बसतेजो भजते श्रीराम।

सफल मनोरथ होते नकेजो भजते श्रीराम।।  

 

बिगड़ी बनाने को पर्याप्त, लेना हरि का नाम।    

दूर करते, पापों को मन केजो भजते श्रीराम।। 

 

करने से ही नाम स्मरणपूरे होते काम। 

मन विकार सब ही के हरते, जो भजते श्रीराम।।  

 

चरण तुम्हारे, मेरे स्वामी, सभी सुखों के धाम।  

शरण में प्रभु की  वे ही बसतेजो भजते श्रीराम।। 

 

पड़ी है नइया, मेरी भंवर में, आकर के तू थाम।   

भव से बेड़ापार लगाते, जो भजते श्रीराम।। 

 

भज ले प्यारे, नाम है पावन, कौड़ी लगे  दाम।  

भंडार सुखों का, उनके भरतेजो भजते श्रीराम।। 




क्यों ना भजता राम नाम मन। पार करे भव जिनका वंदन।। 
काल राम के धनुष समाना। कल्प वरष युग जिन्हके बाना।।
सिंधु वचन सुन मंत्रि बुलावा। राम शीघ्र कह सेतु बनावा।। 
जामवंत कह पुल तव नामा। उतरहिं नर चढ़ि भव से रामा।।
जामवंत बुला दोउ भाई। राम कथा नल नील सुनाई।।
वानर दल फिर सकल बुलावा। राम काज के अर्थ लगावा।।
विटप शिला उखाड़ि जस खेला। राम सुमिरि थमाय नल नीला।।  
छुवत नील नल गिरि कपि लाई। राम कृपा जल पर तर जाई।। 
राम नाम लै पाथर लाये।  डाल सिंधु पर सेतु बनाये।। 
सुन्दर सेतु सुदृढ़ बनावा। रामचंद्र के मन अति भावा।। 
राम कह भूमि यह मनभावन। इस थल करउँ शम्भु अस्थापन।। 
राम वचन सुनि दूत पठाये। सुग्रीव ऋषि मुनि सकल बुलाये।।
लिंग प्रतिष्ठ राम करि पूजा। शिव समान प्रिय देव न दूजा।।
जे भक्त शिव शम्भू ध्यावहीं। राम कृपा अति सहज पावहीं।। 
जे रामेश्वर दर्शन करहीं। राम कह तन तजि मुक्ति तरहीं।।  
रामसेतु चढ़ि चलि रघुराई। दर्शन करि जलचर उतराई।। 
मकर व्याल नक् जीव विशाला। राम दरश करि होइ निहाला।।
आयसु राम चले कपि पायी। देखत बनि कपि दल विपुलाई।।
सिंधु पार कपि डालहिं डेरा। लंका नगर राम भय घेरा।। 
समाचार अस रावण पावा। सागर बांध राम यहँ आवा।।
मंदोदरी बोलि सिर नाई। रामहिं देहु सिया लौटाई।।  
तुमहि राम में अंतर ऐसा। भगजोगिनी भानु के जैसा।।  

राम विरोध नाहिं करि नाथा। काल करम जीव जेहि हाथा।।

प्रभु श्रीराम प्रनत अनुरागी। तिन्ह को भजहु विषय को त्यागी।। 
मानहु दशमुख मोर सिखावन। करिहैं राम तोहिं यश पावन।।
नाहक प्रिये राम भय पाला। भुजबल जितउँ सकल दिकपाला।।
रामहिं माया समझ न आई। जाई सभा मंत्रिन्ह बुलाई।। 
बोलि प्रहस्त तात मैं कहहूँ। राम विरोध भूलि ना करहू।।  
सिंधु बांध जे लंका आई। करि विचार रामहिं प्रभुताई।।
सुनहु नाथ एहि में भलाई। जइहैं राम लौट सिय पायी।। 
सुत सुन कह दसकंठ रिसाई। मोरि अधीन राम गुन गाई।।
निरखत बीस भुजा घर चलऊ। महिमा राम  समझ ना परऊ।।
देखि अप्सरा नृत्य घर जाई। राम जस अरि सिर चिंता नाईं।। 
सुबेल पर्वत राम उतारी। बलशाली कपि सेना भारी।।  
देखहिं राम तड़ित नभ चमकत। दक्खिन घेरि घोर घन गरजत।। 
विभिषण कह सुनु राम कृपाला।  मेघ न वो रावण नृतशाला।। 
राम उठा धनु बाण चलावा। रंगमहल दसमुख तम छावा।।
छत्र मुकुट गिरे रामहि बाना। सभा पाइ भय असगुन माना।।
मंदोदरि कह पुनि कर जोरी। राम भक्ति करि विनती मोरी।। 

राम स्वयं भगवान अवतरित उन्ह रूप त्रिलोक जानिहौ।  
पद-पाताल ब्रह्मलोक-मस्तक लोचन-दिनकर मानिहौ।  
अश्विनकुमार-घ्राण दिशादस-कान पलक-निशि-दिन अहो। 
वेद-वाणि उदर-उदधि यमराज-दन्त अनल-आनन् कहो। 
स्वास-वायु रोम-पादप अस्थि-शैल सरि-नस इंद्री-नरक। 
होंठ-लोभ काल-भ्रू  वरुण-जीभ  क्रिया - जनन पालन प्रलय। 
शिव-अहं  ब्रह्म-बुद्धि निशिपति-मन विधाता भवरूप वही। 
राम स्वरुप सुनि विहसि रावण करि अनसुनी मद अंधही।  
कह अष्ट अवगुण नारि उर धरि होहिं  वश जे मोर प्रभुता।  
साहस अविवेक मिथ्य  माया  भय असौच निठुर चपलता। 


कीन्ह मंत्रणा राम बुलाई। संग सचिव का करिय उपाई।। 
भेजि राम अंगद लंकेशा। देहु जाइ सन्धी संदेशा।।
भय में नगरी कपि वहि आया। रामदूत जे लंक जराया।।
रामहिं सुमिरि सभा कपि जाई। लंकेशहिं सन्देश सुनाई।।
सिर दस बीस नयन अरु काना। महिमा राम धरे नहिं ध्याना।। 
कुटुंब समेत तुम्हरे प्राना। करि तनहीन राम के बाना।। 
सुनु रावण परिहरि चतुराई। भजहु कृपालु राम रघुराई।। 
जाहु तज काम मद अभिमाना। राम शरण होइहि कल्याना।।
सुन कपि अधम राम के दासा। गुण-विहीन गृह तात निकासा।। 
क्रोधित अति सुन रामहिं निंदा। मारि भुजा महि तमकि कपिंदा।।
सुन्दर मुकुट गिरे कइ भूतल। फेंकि कछुक जहँ राम सैन दल।।
आयसु राम अगर मैं पाऊं। तोहिं इसी पल मार् गिराऊं।। 
रावण कह निसिचरहिं रिसाई। राम दूत धरि मारहु खाई।। 
नारि चोर! मम रामहिं दूता। जानसि नाहिं धरउँ का बूता।।  
जौं मम चरण सकहु सठ टारी। फिरहिं राम वैदेही हारी।।
राम सुमिरि अंगद पद धरई। बड़ बड़ वीर सकहि ना टरई।।
दसमुख उठा स्वयं सब हारहु। अंगद कहसि राम हिय धारहु।।
गहि तू राम चरण सठ जाई। बइठा रावण लौट लजाई।।
अंगद लौटि राम पद धारी। घटित कथा सारी कह डारी।।
मंदोदरी पुनः समुझायहु। ईश्वर राम नृप ना जानहु।।  
शिवधनु भंजि राम सिय व्याहे। तुम सम नृपति देखि लजाये।। 
दूषण मारिच बालि जे मारा। राम शरण ही होहि उबारा।। 
राम विरोध काल के माहीं। काल दंड गहि मारत नाहीं।।
नारि वचन रावण ठुकराई। चला राम से करन लड़ाई।। 
वानर योद्धा राम बुलाई। दीन्ह आदेश करिय चढ़ाई।।      
करत रामचन्द्रहिं जयकारा । धाये योद्धा भरि हुंकारा।।       
प्रबल विशेष दुर्ग अति लंका। राम प्रताप वीर निःशंका।।
जय श्रीराम गूंजि भू अम्बर। सुनि भय काँपहिं सारे निशिचर।। 

राम विभीति छुपावहि रावण। कह रजनीचर जाहु करउ रण।।
अस्त्र शस्त्र ले निशिचर धाये। राम वीर कइ मार गिराये।। 
उठाय शैल विटप अति भारी। राम सुमिर कपि दैतहिं मारी।।
रामहिं रावण दल बलवाना। अस्त्र शस्त्र गहि शक्ती नाना।। 
उत रावण इत राम दुहाई। छिड़ि कपि निसिचर विकट लड़ाई।।
राम सुमिरि हनुमत लइ घाती। लात मारि इन्द्रजित छाती।।
बोलि जय राम कपि रथ तोड़हि। मेघनाद वापस घर दौड़हि।।
राम रटत अंगद हनुमंता। ढाह दीन्ह महल अरि लंका।। 
रामचंद्र कीर्ति कपि गावहीं। कपि-लीला करि दैत्य डरावहिं।। 
कुचल मसल कपि निसिचर मारहिं। राम पठाय सुरधाम तारहिं।।
औचक छाया घन अँधियारा। जहँ तहँ कपि करि राम पुकारा।।
रामचंद्र माया सब जानहि। बाण छोड़ि तम दूर भागहि।।
रामहि प्रताप पाइ करत रण। ढाहन लागि प्रमुख गढ़ कपि गण।।.
मेघनाद सुनि युद्धहिं आवा। राम सैन पर बाण चलावा।।
राम दूत हनुमत जब देखहिं। पर्वत विशाल उखाड़ फेंकहिं।। 
रामहिं निकट गयउ घननादा। लछमन चले रणहिं आमादा।।
हाथ विटप गिरि शैल उठाये। राम कि जय कर वानर धाये।।

सैन राम करि घोर प्रहारा। बड़े बड़े निसिचर को मारा।। 
राम सुमिरि प्रहार करि शेषा। राच्छस भयउ प्राण अवशेषा।।
वीरघातिनी मेघ चलाई। राम अनुजहिं मूर्च्छा आई।।
रामहिं दल व्यापहि संतापा। रामचंद्र करि घोर विलापा।।  
डूबि शोक में रामहिं सेना। लाहु पवनसुत वैद सुषेना।।
वैद राम पद शीश नवावा। सँजीवनि औषधी मंगावा।।
राम दूत द्रोणागिरि जाई। कालनेमि वहं कपट रचाई।।
माया रुपी मंदिर सरवर। साधु भेष भजि राम निशाचर।।
राम प्रतापहिं कपि पहचानहि। कालनेमि पठाय सुरधामहि।। 
औषधि जब पहचान न पावा। रामभक्त उखारि गिरि लावा।। 
उड़त विलोकि अवध के ऊपर। जानि भरत रामहिं अरि निशिचर।।      
राह भरत कपि मार गिरावा। मुखहिं राम सुन करि पछतावा।।
कुशल राम फिर पूछि सुनाई। पवनतनय लंका उड़ि जाई।। 
लछमन बूटी पीस पिलाई। रामहिं कृपा उठे हर्षायी।।
राम सैनिकों ने संहारे। दुर्मुख सुररिपु निशिचर सारे।।
कुम्भकरण दसकन्ध जगावा। राम सु करिबै समर पठावा।।
सोवत जागत जेहि छ मासा। रामहि हाथ मुक्ति को जागा।।    
राम रूप गुण सुमिरत दानव। रण को जाइ जहाँ थे राघव।।
देखि विभीषण आगे आययु। परेउ चरण गुण राम सुनायउ।। 
कीश वीर करि शिखर प्रहारा। राम कृपा बिनु पाइ न पारा।।
कोटि कोटि कपि धरि धरि खाई। देखि बाण प्रभु राम चलाई।।
लाखों बाण राम जे मारे। कोटि वीर निशिचर संहारे।।    
राम चाप विकराल चढ़ावा। कुम्भकर्ण बैकुण्ठ पठावा।। 
गिरा दैत पर्वताकारहि। हेठि दबे कपि राम पुकारहि।।
राम कृपा कपिन्ह बल बाढ़े। भरि उत्साह हेतु रण ठाढ़े।।
नभ में देव राम गुण गाये। अस्तुति करहिं सुमन बरसाये।।
मेघनाद चलि पितु समुझाययु। करउँ युद्ध मम राम हराययु।।
शक्ति शूल तलवार कृपाना। राम ओर बरसावहि बाना।।
छाड़इ सर जे होइहि नागा। राम भये वश नागहि पाशा।।
रण शोभा लइ राम बँधायो। नागपाश देवन्ह भय पायो।।
इन्द्र राम यहं गरुड़ पठायो। खगपति धरि सब विषधर खायो।।
लीला राम न जाय बखानी। भजहि तर्क तज ऋषि मुनि ज्ञानी।।
विजय यज्ञ करि दानव जाई। राम कह लखन नाशउ भाई।।
राम प्रताप लखन उर धारी। मेघनाद वध चले विचारी।।
छिड़ी लखन घन घोर लड़ाई। पलटन राम विलोकि डेराई।। 
सुमिरि राम लछमन संधाना। सर अस कीन्ह मेघ निष्प्राना।।
गगन देव दुन्दुभी बजावहीं। प्रभु श्रीराम विमल यश गावहिं।।
सुत वध असुर पाइ संदेशा। राम सु रण को चलि लंकेशा।।
सपनेहुँ नाहिं सुख विश्रामा। कामासक्त विमुख जेहि रामा।।    
चले मत्त गज जूथ घनेरे। राम विरुद्ध दशानन प्रेरे।।
रावण वाहिनि आयुध नाना। राम बिरथ, नहिं तन पद त्राना।। 
कीन्ह विभीषण मन संदेहू। राम होहिं विजयी विधि केहू।।  

कहहि राम सुनु विजय देहि जे, होइहिं रथ वह विशेषही। 
शौर्य-धीर पहिया सोइ रथ, शील अरु सत्य पताकही। 
बल-विवेक-दम-परहित तुरंग, समता-कृपा-क्षम डोरही।
भजन सारथी, ढाल बिरति, परस दान, खड्ग संतोषही।
धनुष विज्ञान, अमल-मन तरकस, कवच विप्र गुरु पूजही। 
बुद्धि शक्तिशम-यम-नियम तीर
, विजय उपाय ना दूजही।     

राम कह रथ-धरम अस जाकें। जीत सकइ रिपु वीर न ताकें।

राम शक्ति कपि निसिचर मारहिं। गहि पद पटक अवनि पर डारहिं।।

कपि धरि मसल लागि दसकंधर। त्राहि राम करि भागहिं बन्दर।।

रक्षा करउ हे राम गोसाईं। दानव दलत काल की नाईं।।

विकल देखि दल चलि धनु हाथा। लछमन नाइ राम पद माथा।। 

राम सुमिरि करि शेष प्रहारा। उभय ओर बाणों की धारा।।  

दसमुख शक्ति लखन उर लागी। मूर्छित भये राम अनुरागी।।

माया राम लखन उठ जागे। शत सर साथ असुर उर दागे।।

आहत दनुज छाड़ि रण भागा। राम विरुद्ध यज्ञ करि लागा।।

रावण यज्ञ राम सुधि पाए। करहु विध्वंस सुभट पठाये।।

ध्वंस लौटि राम यहँ बन्दर। क्रुद्ध कालमुख चलि दसकंधर।।

देव करि अस्तुति हरि अनंता। करहु राम अब खेलहि अंता।।

धारि सारंग कटि कस बाना। राम चले हति पापहिखाना।।

राम असुर रण अस घनघोरा। गर्जत चमकत घन चहुँ ओरा।।

कोप बाण रामहि प्रलयंकर। कीन्ह धूरि सब दनुज भयंकर।। 

माया रचा अपार दशानन। राम समझ सो करि निस्तारन।।  

देवन्ह रामहि पैदल देखा। झट पठाय रथ इंद्र विशेषा।।

विप्रहिं चरण राम सिर नावा। द्वन्द युद्ध रथ हेतु चलावा।।

कहि दुर्वचन क्रुद्ध दसकंधर। छोड़े राम ओर अगणित सर।।

छाड़ि अनल-सर राम रघुवीरा। दीन्ह जराय निशाचर तीरा।।

कोटिन्ह आयुध अस्त्र चलावा। राम सहज ही काट गिरावा।।

तीस तीर प्रभु राम चलाये। शीस भुजा कट पुनि उगि आये।।   

पुनि पुनि काटि राम भुज शीशा। शीस भुजा छाये चहुँ दीशा।।

त्रिजटा कथा सुनाइहिं सीता। रामप्रिया सुन भइ भयभीता।।    

त्रिजटा कहि सीता समुझाई। राम जगदीश जानहु माई।।

नाना माया रचा दशानन। कीन्ह राम क्षण सहज निवारन।।    

कहि विभीषण नाभि में याके। सुधा राम जीयत बल ताके।। 

राम छाँड़ि पुनि सर इकतीसा। चले बाण ज्यों काल फणीसा।।

एक से राम सुधा सुखाये। काटि भुजा सिर शेष गिराये।।     

धरनि धंसी धड़ गिरा प्रचंडा। राम कीन्ह सर हति दुइ खंडा।।

भुजा शीस मंदोदरि आगे। धरि सर रामहि तरकस साजे।।

रावण तेज राम के आनन्। हरषे देखि शम्भु चतुरानन।।

बरसहिं सुमन देव मुनि वृन्दा। जय श्रीराम जय हे मुकुंदा।।


जय कृपा के कन्द द्वन्द के हर्ता राम सदा सुखदाता हो। 

दुष्ट विदारक कष्ट निवारक करुणा कृपा के प्रदाता हो। 

कारण के कारण जग के पालक व्यापक सृष्टि विधाता हो।  

विजय के दायक भजन के लायक ब्रह्म जीव के नाता हो।  

 

राम विभीषण ओर विलोका। रावण क्रिया करहु तज शोका।।

बोले राम जाहु ले लछमन। राजतिलक करि देहु विभीषन।। 

राम पवनसुत लंक पठाये। सीता कुशल जाइ ले आये।।

सिय कह  जतन करहु अस ताता। देखौं शीघ्र राम मृदु गाता।।

हर्षित राम सन्देश पायहु। कह सादर सीता लै आयहु।।

मन में भांप राम की इच्छा। दी बैदेही अग्नि परिच्छा।।

राम वाम सिय बैठि साजहिं। गगन देव सुमन बरसावहिं।।   

रावण नष्ट देव सुख पावा। मिलि आकाश राम यश गावा।। 

राम अजित अमोघ करुणामय। अगुन ब्रह्म तुम अनघ अनामय।।

जब जब राम सुरन्ह दुख पायो। नाना तन धरि कष्ट मिटायो।।

तुम्ह राम देवता उपकारी। त्राहि माम सब शरण तिहारी।।

देवता गण जहँ तहँ करि विनती। अस्तुति राम कीन्ह ब्रह्माजी।। 


स्तुति 


श्रीरामचरितमानस से उद्धृत   


जय राम सदा सुखधाम हरे। रघुनायक सायक चाप धरे।।

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तेहि अवसर दसरथ तहँ आये। राम विलोकि नयन जल छाये।। 

राम पिता पद वन्दन कीन्हा। आशिर्वाद तात तब दीन्हा।। 

दिव्य रूप प्रभु राम दिखाये। पितु तजि भेद भक्ति उर लाये।। 

रामहिं करि बहु बेर प्रणामा। धरि हिय भक्ति गए सुरधामा।।

सुरपति रामहि शोभा देखी। अस्तुति किन्हीं  हरषि विशेषी।। 


जय राम प्रताप भुजबल प्रबल, दायक प्रनत विश्रामहीं। 

तव धारि तरकस चाप सायक, प्रभु श्रेष्ठ शोभा धामहीं। 

जय खर दूषण के संहारक, तव दुष्ट दानव मारहीं। 
जय त्रिभुवन के पापनिवारक, महिमा उदार अपारहीं। 
दीन्ह लंकेश उचित पापिष्ट, फल तुमहि दीन दयालहीं। 
विलोकि मम अभिमान चूर प्रभु, पद कंज नैन विशालहीं। 
कोऊ कह राम वेद अव्यक्त, कोउ ब्रह्म निर्गुन ध्यावहीं।   
करहु राम निकेत हृदय मम, सगुण स्वरुप तव भावहीं।
आनन्दधाम नमामि राम जय, त्रास विनाशि सुखदायकं। 
करि प्रभु कृपा देहु मो आयसु, का अब करउँ रघुनायकं। 

राम कह सुरपति सैन्य हमारे। सकल जिआउ गए जे मारे।। 
सुधा बरसि कपि भालु जिआये। उठि सब हरषि राम गुण गाये।। 

राम भुवन सकि मारि जिआई। दीन्ह मात्र सुरपतहिं बड़ाई।।
बड़े कृपालु  राम रघुनन्दन। मुक्ती दीन्ह दनुज भव बंधन।।   

देखि सुअवसर आये जटाधर। विनय करि राम जोरि युगल कर।।
  
स्तुति 

सायक चाप रुचिर कर धारी। रक्षय मम हे अवध बिहारी।। 
संशय नाशक उदार पार मन। बसहु निरंतर जन मन कानन।।   
अगुन सगुन गुण मंदिर सुन्दर। भ्रम तम आभा कृपा समुन्दर।।
मोह क्रोध मद काम प्रभंजन। विषय विनाशि तारि भव बंधन।।
श्यामल गात कंज दोउ लोचन। दीन बंधु शरणागत मोचन।।
मुनि रंजन महि मंडल मंडन। बसहु राम उर त्रास बिखंडन।।

आइब राजतिलक तव रामा। शिव करि विनती गए निज धामा।।
निकट विभीषण बोले आइय। सब विधि नाथ मोहि अपनाइय।।
मणि गण वसन विमान भरायो। रामहिं भेंट विभीषण लायो।।
विहँस राम कह सुनहु विभीषण। गगन जाइ बरसहु पट भूषन।।  
भालु कपिन्ह पट भूषण पाए। पहिरि प्रफुल्ल राम गुण गाये।।
सुमिरहु मोहि कपिन्ह कह रामा। जाहु सबै अब निज निज धामा।।  
राम  चले चढ़ि अवध विमाना। संग लखन सिय अरु हनुमाना।। 
जहँ जहँ राखे जात ठिकाना। राम रुके ते सब अस्थाना।। 
राम विमान चित्रकुट आवा। सकल ऋषिन्ह प्रभु आशिष पावा।। 
राम जानकी बहुरि दिखाई। पावन गंगा यमुन सुहाई।। 
राम कह देखु पुनः प्रयागा। निरखत कोटि जनम अघ भागा।।
सजल नयन तन पुलकित रामा। देखि अवधपुर कीन्ह प्रनामा।।   
राम त्रिवेणी मज्जन कीन्ही। दान विविध विधि विप्रन्ह दीन्ही।।
आयसु राम अवधपुर जावा। समाचार हनुमत लै आवा।।.
मोह वश निषाद प्रभु बिसराई। राम कृपालु देखि उर लाई।।
राम भारद्वाज मठ गयऊ। वंदन करि आगे को चलऊ।। 
राम चरित पावन सुखकारी। काम मोह मद अवगुण हारी।। 
राम चरित जे सुनहिं सुजाना। विजय विवेक देहिं भगवाना।।
रे मन कलियुग पापहि धामा। हो उद्धार भजे बस रामा।।



उत्तर काण्ड 


राम नाम तू भज ले रे मन। राम नाम ही जीवन का धन।
राम नाम ही सुख का कारन राम नाम तू भज ले रे मन।
राम नाम के वश में माया। भजा जेहि मन-रोग भगाया। 
राम नाम का असा प्रतापा। माया में भी भय हो व्यापा।  
राम नाम आनंद का उपवन। राम नाम तू भज ले रे मन।
राम भजे कछु दुर्लभ नाहीं। जनि अचरज करहु मन माहीं। 
राम भजे जे संत समाना। सर्वकाल होवे कल्याना। 
राम नाम सदा मनभावन। राम नाम तू भज ले रे मन।
योग युक्ति अरु मंत्र  प्रभावा। फूलहिं फलहिं राम जे ध्यावा।  
राम नाम ही राम स्वरूपा। राम नाम भज मिलता रूपा। 
सबसे सुन्दर शुचि राम भजन। राम नाम तू भज ले रे मन।
राम नाम की कृपा अनेका। तन मन ज्ञान बुद्धि विवेका। 
राम नाम जिसका मन मीता। घटे न कछु अप्रिय विपरीता।
राम नाम से कष्ट निवारण। राम नाम तू भज ले रे मन। 
राम राम जो भजा न जग में। और उपाय व्यर्थ मारग में। 
काम क्रोध मद लोभ अधीना। राम नाम ना पाइ नगीना।।
राम नाम बिन निष्फल जीवन। राम नाम तू भज ले रे मन।
विषयी साधक सिद्ध सायना। राम स्नेह पाये सनमाना। 
राम नाम भज जन तर जाई। निंदक राम नरक को जाई।।
राम नाम बिन सूना त्रिभुवन। राम नाम तू भज ले रे मन।


आतुर सोचि अवध के लोगा। एकहि दिन अब राम वियोगा।।
माता मन आनंदित होई। आयउ राम चहत कह कोई।।
रहा एक दिन राम न आयउ। भरत विकल क्या प्रभु बिसरायउ।।
अहो धन्य लछमन बड़ भागी। रामहि पद पंकज अनुरागी।।

बरस गए चौदह बीत हो रामा, राम नहीं आये। 
बुलाये अवध की प्रीत हो रामा, राम नहीं आये। 
अमवा बौराये चौदह बेरी, काहे को प्रभु, कर रहे देरी,
चले गए चौदह चईत हो रामा, राम नहीं आये। 
अयोध्या में, भरत अकुलाये, तकते राह, नयन को गड़ाये,
घड़ियाँ न होत व्यतीत हो रामा, राम नहीं आये। 
आरती लिए खड़ीं महतारी, जोहें अवध के, सब नर नारी,
गाने को मंगल गीत हो रामा, राम नहीं आये। 
संदेशा ले आये, आवन की, आ रहे राम, लछमन जानकी,
कपि किये सबको हर्षित हो रामा, राम देखो आये। 
 
बीती अवधि राम ना आये। मो सम अधम कौन कहलाये।।
भरत भजि राम कुश आसीना। जटा मुकुट काया अति दीना।।
देखत रामदूत अति हरषे। पुलक बदन लोचन जल बरसे।। 
रघुकुल तिलक राम सुखदाता। आयउ कुशल देव मुनि त्राता।।
सुनि शुभ भरत राम के बारे। भये हृदय अत्यंत सुखारे।।
को तुम्ह तात कहाँ  ते आये। राम विषय प्रिय वचन सुनाये।।
सेवक राम पवनसुत वानर। सुनत भरत उठि भेंटहिं सादर।।
कपि तव देखि सकल दुख जाई। मिले राम अस मो मम भाई।।
नाहीं तात उऋण मैं तोही। रामहि हाल सुनावहु मोही।। 
कपि कह कथा नाइ पद माथा। तव प्रिय राम प्राण सम नाथा।।
भरत जाइ गुरु बात जनाई। आवत नगर राम रघुराई।।
समाचार पुरवासी पाये। दर्शन राम हरषि सब धाये।।
रामहि स्वागत पवन सुहावन। निर्मल जल सरयू अति पावन।।
निरखि अटारी राम विमाना। गावहिं नारी मंगल गाना।।
नगर निकट भू उतरि विमाना। आवत देखि राम भगवाना।।
पड़े राम पद नगरी पावनि। जन्म भूमि मम अवध सुहावनि।। 
राम  गुरु चरण नायउ माथा। गहे भरत फिर पद रघुनाथा।।
आतुर दरश अवध नर नारी। रूप असंख्य राम तहँ धारी।।
एहि विधि राम सबै सुख दीन्हा। यथा योग सबसे मिल लीन्हा।।
माताएं सब राम निहारहिं। कनक थाल आरती उतारहिं।।  
राम मातु गुरु चरणन नाये। सुयश सुमंगल आशिष पाये।।
माता सोचि देखि सुकुमारा। केहि विधि राम दशानन मारा।।
रामचंद्र सब सखा बुलावा। इन्ह की कृपा विजय रण पावा।।
राम वचन सुन सभी सुखारे। श्रेय विजय प्रभु स्वयं न धारे।।  
कनक कलश ध्वज वन्दनवारा। सबहिं सजावहिं निज निज द्वारा।। 
कंचन थाल आरती नाना। राम चरित त्री गावहिं गाना।।
हर्षित  देव पुष्प बरसावहिं। राम अभिषेक शुभ दिन आवहिं।।
रामचंद्र जब मंदिर जाई। गुरु वशिष्ठ द्विज लिए बुलाई।।
द्विज गण देहु हरषि अनुशासन। रामचंद्र बैठहिं सिंहासन।।
कहहिं वचन मृदु विप्र अनेका। मुनि करहु रामहि अभिषेका।।
अवधपुरी अति रुचिर सजाई। राम तिलक सुर झारि बुलाई।।
राम वाम भुज रमा सुशोभित। देखि युगल माताएं हर्षित।। 
तिलक राम वशिष्ठ मुनि कीन्हा। फिर सब विप्रन्ह आयसु दीन्हा।।
विप्रन्ह राम दान बहु दीन्हे। याचक सकल अयाचक कीन्हे।।

रामाभिषेक अवसर अलौकिक गन्धर्व किन्नर गावहीं। 
दुंदुभि बाजत नाचत अप्सरा देव पुष्प बरसावहीं।   
मुकुट माथे अंग भूषण सिंहासन भुवन स्वामी सजे। 
कहते न बने शोभा अवध की गावहिं शारद वेद जे। 

वेद आय गाये गुनगाना। लखा न कोउ राम सब जाना।।   

जय सगुण निगुण रूप अनूपा। रावण हन्त शिरोमणि भूपा। 
भंजि दुख दारुण नर अवतारा। नमामि प्रनतहिं पालनहारा। 
जगत चराचर वश तव माया। नाथ कृपा दुख मुक्ती पाया।
अभिमानी तव भक्ति न करही। पाइ परम पद ठाले गिरहीं।
परिहरि अन्य दास तव होई। जपि तव नाम तरहिं भव सोई। 
जे चरण पूज्य अज शिवशंकर। भजहिं वेद हम नित्य निरंतर।  
अकथ कल्प तरु आदि न अंता। करहिं नमामि राम भगवंता।
अजम अद्वैत ब्रह्म जे ध्यावहीं। करि अनुभूति नर जग पावहीं।  
करुणाधाम हरि वर मांगहीं। मन तव चरण प्रभु अनुरागहीं। 

राम विनति करि वेद विलोपहिं। शिव करि अस्तुति आय विलोकहिं।। 

 श्रीरामचरित मानस से उद्धृत संत तुलसीदास रचित स्तुति :

 जय राम रमा रमणं समनं  .. 

जय राम रमापति हृदय रमो, तुम स्वामी तीनों भुवन के।  
भवताप संताप तुम्हीं हरते, सुखदाता हो हरि जन जन के। 
क्षिति जल पावक गगन पवन तुम, हर श्वांस हो हरि जीवन के। 
दिनकर पाते तेज तुम्हीं से, प्रकाश पुंज तुम ही दिन के। 
आस विश्वास सुर ऋषि मुनि के, भूषण धरती  गगन के।  
माया कारक और निवारक, भ्रम बुद्धि विवेक गुर बन के। 
तुम रक्षक  हो शरणागत के, अन्तर्यामी सबके मन के। 
खर दूषण सहस्रबाहु के काल, हन्ता तुम ही दशानन के। 
दाहे निशिचर दल पतंग से, तुम्हरे बाण प्रचंड अगन के।  
रोग वियोग धरे वही लोग, न लाइ लगन तव चरनन के। 
हैं दीन मलीन दुखी तिनहीं, पद पंकज प्रीत नहीं जिन के। 
करि प्रेम निरंतर धरम धरे, तुम होत अवलम्ब प्रभु तिन्ह के। 
तव नाम जपूँ  रघुवीर सदा, नित साधु सन्त भजते जिन्ह के। 
लोभ मोह मद काम त्याग जे, तुम शक्ती उन्ह मुनि संतन के।  
गुण शील कृपा के परम तुम्हीं, मैं करउँ नमन रघुनन्दन के।  


माँगि वर हृदय करउ निवासा।  बरनि राम शिव गय कैलाशा।।  
राम कथा जेहि सुनहिं गावहिं। सुख सम्पति नाना विधि पावहिं।।
राम कथा दृढ़ भक्ती करनी।  विषय विलास त्रास दुख हरनी।।                
राम चरण रति नित नव साजा। नमत देव मुनि संत समाजा।। 
सखा बुलाइ पास बैठारे। राम सुखद मृदु वचन उचारे।।
पाये सखा ज्ञान अति सुन्दर। देखि टक राम प्रेम समुन्दर।।
विविध ज्ञान कह कीन्ह विदाई। भजहु राम कह मो गृह जाई।।
कपि घर चले नाइ पद माथा। हिय में धारि राम रघुनाथा।। 
सब मन सोचत कह दें रामा। ठहरउ और अयोध्या धामा।। 
उन्ह बहु भांति राम समुझाई। देइ उपहार कीन्ह विदाई।। 
विनती कीन्ह राम हनुमंता। सेवक रहउँ शरण भगवंता।।
कोमल चित अति बज्र कठोरा। राम चरित जग समझे थोरा।।  
राम राज हर्षित त्रैलोका। कहुँ न विषमता  कतहुँ न शोका।।
आश्रम वर्ण धरम पथ लोगा। राम राज जन भय ना रोगा।। 

दैहिक दैविक ताप न भौतिक, राम राज सुखदायी पावन।   
श्रुती नीति चलते नर नारी, चारों चरण धरम का पालन। 
सब सुन्दर बदन निरोग धरे, ना दुखी दरिद्र न दीन कोई।  
नहिं अल्प-आयु न कष्ट कोई, ना मूरख लच्छनहीन कोई। 
सब चतुर गुनी पंडित ज्ञानी, प्रेमी उदार सब उपकारी। 
ना कपट दम्भ बस राम भजन, सभी परम गति के अधिकारी।    
कभी किसी में बैर न कोई, नारि सकल पति के हितकारी। 
सुरभित शीतल मंद पवन नित, निर्मल जल सरि अमि सुखकारी।  
कूंजत खग पशु चरत अभय वन, फूलत फरत सदा तरु कानन।  
पर्वत प्रकट खान मणियों की, उत्तम कृषि धरती मनभावन। 
जब जब मांगत देत धेनु पय, मांगे तरु मधु फल टपकावत। 
जल बरसावत मांगे मेघा, प्राणी सब आनंद मनावत।   
सागर निज मर्यादा रहते, लहरें लातीं रत्न बहाकर। 
दसों दिशा प्रसन्नता व्यापी, कमल कुमुदिनी शोभित सरवर।  


राम करहिं भ्रातन्ह पर प्रीती। नाना भांति सिखावहिं नीती। 
हर्षित रहहिं नगर के लोगा। करहिं सकल सुर दुर्लभ भोगा। 

माया भक्ती दोनों नारी। केवल भक्ति राम को प्यारी।।

महिमा राम न जानत कोई। जानि राम कृपा जेहि होई।।  

जानत सिया राम प्रभुताई। सेवति चरण कमल चित लाई।।
सुरगण चाह कृपा नित सोई। अनुरति रमा राम पद होई।।
भ्राता राम विलोकत रहहीं।  कबहुँ कृपाल मोहिं कुछ कहहीं। 
सिया राम के सुन्दर लव कुश। अन्य भाईयों के दो दो सुत।।
नारायण माया गुन पारी। लीला राम रूप नर धारी।।
विराजमान अवध भगवाना। राम चरित गावत विधि नाना।।
रामहि महल अमंगल हारी। जड़े रतन मणि कनक अटारी।।
चारु वाटिका गुंजत मधुकर। रामहि चित्र लगाए घर घर।।
रामहि नगर परम रुचिराई। देखत पुरी सकल अघ जाई।।
रमापति राम जहँ के राजा। अणिमादिक सुख संपत्ति छाजा।।
शोभा शील रूप गुण धामहि। भजत नर नारि कृपालु रामहि।।
जहँ तहँ जन रघुपति गुण गावहिं। भजहु परस्पर राम सिखावहिं।।
भजहु राम जगती के पालक। दुख संशय भय पाप के घालक।।
राम नाम अस उदित दिवाकर। सकल जाइ तम पाप निशाचर।।
धरम विवेक ज्ञान विज्ञाना। राम नाम सुख सम्पति नाना।।
समदर्शी सनकादिक आये। वेदरूप, गुण राम सुहाये।। 
राम कथा ऋषि अगस्त्य कहहीं। चित्त लाइ चारों मुनि सुनहीं।।
राम विलोकि दण्डवत कीन्हीं। वेदरूप मुनि आशिष दीन्हीं।।  
राम कह धन्य सुनहु मुनीशा। तुम्हरे दरश जाहिं अघ खीसा।। 
सुनि प्रभु वचन हरषि मुनि चारी। अस्तुति राम करहिं अनुसारी।।

जय निर्गुण जय गुणों के सागर, सुख के मंदिर सुन्दर नागर। 
जय लक्ष्मीपति जय हे भूधर, अज अनादि अनुपम शोभाकर। 
वेद पुराण सुयश शुचि गावत, अमान मानप्रद ज्ञान निधान। 
नाम अनेक अनाम निरंजन, तज्ञ कृतज्ञ भंजहु अज्ञान।    निरंजन = मायारहित  तज्ञ = तत्व को जानने वाले 
सर्व सर्वगत सर्व उरालय, करि उर वास करहु परिपालय। 
सेवत सुलभ सभी सुखदायक, मन संभव दारुण दुख दारय।  
द्वन्द विपति भव फंद विभंजय, हृदय राम मद काम विनाशय।
विनय विवेक विरति प्रदाय हे,आस त्रास ईर्ष्यादि निवारय।   
मुनि मन मानस हंस निरंतर, तारन तरन हरन सब दूषण।  
काल करम सुभाउ गुण भच्छक, जय श्रीराम त्रिलोकहि भूषण।   
परम आनंद कृपा के धाम,  त्रिविध ताप भव दाप नशावन।  दाप = क्लेश 
पूरन कीजै काम हमारे, दीजै राम भक्ति शुचि पावन।  
 
पूछहि भरत राम समुझाई। कहहु संत असंत बिलगाई।।  
संत असंत राम कह करनी। जिमि कुठार चन्दन आचरनी।।
कोमलचित दीनन्ह पर दाया। सन्त हिय राम भगति अमाया।। 
शीतल सरल विगत सब कामा। द्विज प्रति प्रीति भजन श्रीरामा।।
संग असंत सदा दुखदायी। राम कह संगत करि न भाई।।
ध्यान सुआरथ लोभ व सुख में। होयं खलन्ह के राम न मुख में।।
झूठ कपट मद काम व मोहा। राम नाम असंत ना सोहा।।
पर दारा पर धन पर द्रोही। राम विमुख पर-निंदक कोही।।
विपति पराइ देखि सुख पावा। खलन्ह राम कथा नहिं भावा।।  
खल कहुँ निंदा सुनहिं पराई। हरषि राम कह परनिधि पाई।।
मातु पिता गुरु विप्र न आदर। राम न हिय खल वेद निरादर।। 
परहित सरिस धर्म नहिं भाई। पर-पीड़ कह राम अधमाई।।
दीन्ह राम जग मनुज शरीरा। परहित भजन हरहिं पर-पीरा।। 
राम राज में अधम न कोई। द्वापर कछु कलियुग बहु होई।।
शुभ अशुभ फल कर्म के दाता। राम खलन्ह के काल हे भ्राता।।
माया रचित विविध गुण दोषा। संत राम कह सद्गुण पोषा।।
अधर राम के सार समायी। हर्षित हुए वचन सुन भाई।।
नारद पुनि पुनि अवधहि आवहिं। राम चरित सुरलोक सुनावहिं।। 
ऋषि मुनि सुनहिं चरित धरि ध्याना। राम कथा बिनु हिय पाषाना।।
राम बुलाये मुनि द्विज सज्जन। बोले वचन भक्त भव भंजन।।
प्रियस राम कह सेवक सोई। मम अनुशासन माने जोई।।
बड़े भाग मानुष तन पावा। पाय न मोक्ष राम बिसरावा।।
काल कर्म स्वभाव गुण घेरा। राम भजन सकि छाँट अँधेरा।।
सुलभ सुखद पथ पाइ परम गति। भक्ती राम वेद पुराण श्रुति।।
साधन कठिन न मन कहुँ टेका। भक्ति राम उपाय विशेषा।।
राम भक्ति सरबस सुख खानी। बिन सत्संग न पावहिं प्राणी।।
राम भगति बड़ नाहिं प्रयासा। योग न यग जप तप उपवासा।।
बैर न विग्रह आस न त्रासा। सुखमय ताहि राम करि आशा।।
होइ जे राम नाम परायण। सुख आनंद सोइ नारायण।। 
सुनत सुधासम वचन  राम के। गहे सबहि पद कृपाधाम के।।
तन धन धाम राम  हितकारी। असुर रहित जग युग अवतारी।।
बोले वशिष्ट राम देहु वर। तव पद पंकज प्रीति निरंतर।।
तेहि अवसर मुनि नारद आवा। धरि हिय प्रेम राम यश गावा।। 
गिरिजा रामहि चरित अपारा। शिव कह कोउ न बरनै पारा।।
शिव कहहीं गुण राम बखानी। सुनि शुचि कथा उमा हर्षानी।।
राम चरित नहिं सुनत अघाहीं। नाथ सुधारस अस कहुँ नाहीं।।
राम कथा अनंत सुख धामा। श्रवण सुखद अरु मन अभिरामा।।
जिन्हहि राम कथा ना सुहाती। ते जड़ जीव आत्मा घाती।।
कागभुशुण्ड गरुड़ प्रति गाई। राम कथा अति नाथ सुहाई।। 
सब ते जो दुर्लभ सुरराया। राम भगति रत गत मद माया।।
उपजै राम चरण जे प्रीती। भवसागर तरि  उत्तम नीती।।
राम चरित विचित्र बहु नाना। भल जे प्रेम सहित कर गाना।। 
राम भजे छूटे सब बंधन। फिर क्यों नागपाश रघुनन्दन।।
पूछि गरुण ब्रह्मा से जाई। कहउ राम माया समुझाई।। 
ब्रह्मा कह जग मम उपजाई। जानहिं शम्भु राम प्रभुताई।।  
शंकर कह तुम्ह तहवाँ जाई। राम कथा नित नित जहँ भाई।।
राम चरण जब होइहि नेहा। सुनि सो जाइ सकल संदेहा।।
योग किये तप ज्ञान विरागा। मिलहिं न राम बिना अनुरागा।।
कागभुशुण्डि पास खग जाई। सुनु शुचि कथा राम उर लाई।। 
गयउ भुशुण्डि मोर संदेहा। सुनकर कथा राम पद नेहा।।
तुम्हहिं न संशय मोह न माया। मो पर पठइ राम की दाया।।
संगत संत मिलहिं जन तेही। होइहिं कृपा राम की जेही।। 
मोह कोह मद मत्सर माया। चिंता जाइ राम गुन गाया।। 
परवश जीव स्ववश भगवंता। जीव अनेक राम श्रीकंता।। 
शिव ब्रह्मा ऋषि देवन्ह फासी। सो माया प्रभु रामै दासी।। 
माया अति विशाल परिवारा। राम नाम करि सकत निवारा।। 
माया चरित न जग लखि पावा। नाच नटी ते राम नचावा।।
व्यापक व्याप्य अखंड अनंता। अमोघशक्ति राम भगवंता।।
रूप गुण विज्ञान बल धामा। सच्चिदानंद अनंत घन रामा।।
राम भजन बिन सुनहु खगेशा। जीवन्ह का नहिं मिटै कलेशा।।
रामहि मुख ब्रह्माण्ड समाया। सकल प्रकृति सुर जीव निकाया।। 
अगुन राम नित अज अविनाशी। निराकार प्रभु सब उर वासी।।
भगत हेतु धरेउ तन भूपा। लीला राम मनुज अनुरूपा।।
राम चरित सेवक सुखदायक। मानव जीवन हेतु विधायक।।
राम उदर बसेउ जग नाना। देखत बनई न जात बखाना।।
भिन्न लोक प्रति भिन्न विधाता। भिन्न विष्णु शिव रामहि त्राता।।
अवध पुनि देखउ राम सुजाना। जनम लीन्ह कृपालु भगवाना।।
भयउ भ्रमित मन यह सब देखी। लीन्ह राम हर मोह विशेषी।। 
माँगउ राम दीन्ह वरदाना। सब सुख खान भगति भगवाना।। 
भगत कल्पतरु सिंधु सुख धामा। अविरल भगति देहु मो रामा।।
राम भगति बिन सब सुख ऐसे। नमक बिना बहु व्यंजन जैसे।। 
कहि तथास्तु राम रघुनायक। दीन्ही भगति ज्ञान सुखदायक।।                                                                              जीव चराचर राम उपजाए। जे करि भगति उन्हें अति भाये।।
सुमिरहि भजहि राम नित जोई। कबहुँ काल न व्यापहि सोई।।                                                                              जानि न जाइ राम प्रभुताई। राम कृपा बिन विपति न जाई।।
बिन संतोष न शान्ति मन में । राम बिना सुख नाहिं स्वपन में।।
बिन विश्वास भगति ना भाई। भगति बिना राम कहाँ पाई।।  
नभचर पाइ न जस नभअंता। महिमा राम अथाह अनंता।।  
राम काल शत कोटि नसावन। तीरथ अमित कोटि सम पावन।।
विष्णु कोटि सम पालनकर्ता। राम रूद्र अगणित संहर्ता।।
भज तजि ममता मद अभिमाना। राम भाव वश सुखद निधाना। 
मात्र राम ही राम समाना। गुण अथाह सागर भगवाना।।
राम कथा अति गरुण सुहाये। पुनि पुनि काग-चरण सिर नाये।।
मोह भ्रान्ति सकल मम भागा। राम प्रताप मोहि अनुरागा।।
रामभक्त तव संशय स्वामी। को कारन यह तन नभगामी।। 
महा प्रलय अस सुनि शिव पाहीं। राम प्रताप नाश तव नाहीं।।
राम चरित पावन अति सुन्दर। पायउ कहाँ कहहु हे नभचर।।
एहि तन राम भगति मैं पाई। ता सुनु मो ममता अधिकाई।।
जप तप सकल राम पद प्रेमा। तेहि बिन कोउ पाइ न क्षेमा।।
धरम करम उत्तम कहुँ एहा। मन क्रम वचन राम पद नेहा।।    
राम भगति मो एहि तन जामी। तबसे मोहि परम प्रिय स्वामी।।
                                                                                                                                                                                                     
कागभुसुंडि कहे गरुण से, प्रथम जनम जब पाया था। 
हुए अधर्मी नर अरु नारी, ऐसा कलियुग आया था।

मोह लोभ मिथ्या के पथ सब, देव विप्र अरु संत विरोधी। 
निति प्रीति से विमुख हुआ जग, जन जन काम लोभ रत, क्रोधी। 
डिंग दम्भ रत पंडित सोई, काम विलास तिन्ह भाया था। 

सोइ ज्ञानी जे परधन हारी, महिमा मंडन जे अपकारी। 
शिष्य गुरु की एक न सुनता, होते वशी पुरुष पर-नारी।                
गुरु शिष्य का शोक न हरता, धन के लिए लुभाया था। 

वेद पुराण का मान न होता,  सब के सब धन के अभिलाषी। 
राम नाम की सुधि ना होती, लिप्त विषय में कलियुग वासी।  
झूठ कपट पाखंड द्वेष हठ, मानस सबके छाया था। 

मूढ़ नीच तजकर मर्यादा, करते थे अपनी मनमानी।
पातक धनी कुलिन कहलाता, होय तिरस्कृत पंडित ज्ञानी।   
पर निंदक मिलते थे पग पग, राम भजन नहिं भाया था। 

कलियुग में तप जोग न ज्ञाना,  एक आधार राम गुन गाना।  
'सत्यदेव' कलि उत्तम जानो, राम नाम करि सब कल्याना।  
हरेक कल्प के अंतकाल में, जब जब कलियुग आएगा। 
राम गुण बस गाइ के मानुष, भव सागर तर जायेगा। 

राम चरण प्रीति जेहि राखा। काल धर्म ते नाहीं व्यापा।।
कलि दोष बिन भजन ना जाहीं। भज तज काम राम मन माहीं।।
जनम जनम नाना तन धारयु। राम कृपा जिमि चिर पट तारयु।।
चरम देह द्विज कै मैं पाई। लीला राम करउँ लरकाई।।
मो सब प्रौढ़ वासना भागी। चरनन राम लगन मम लागी।।
एक जनम पायउ अभिशापा। मन्त्र दीन्ह गुरु रामहि जापा।।
शिव शम्भु की स्तुति किन्हीं। राम चरण रति आशिष दीन्हीं।।
अकाल अनीह अनाम अरूपा। निर्गुण राम अखंड अनूपा।।
रामहि सगुन पक्ष मैं रोपा। काग देह मुनि दीन्ह सकोपा।।
राम नाम गुरु मन्त्र बतावा। कारण ताहि परम सुख पावा।।
राम चरण रति मुनि जब देखा। मति मम नर सम करउ विशेषा।।
शम्भु प्रसाद रूप जे पाई। रामचरित मुनि कथा सुनाई।।
रामचरित अति मोहि सुहावा। इच्छा रूप मरण वर पावा।।
राम रहस्य ललित विधि नाना। नेह राम पद नित ते जाना।।
कल्प सताईस मो यहं बीते। गावत गुन प्रभु राम पुनीते।।
जब जब घटे धरम धरती पर। आयउ राम रूप मानुष धर।।
तब तब नगर राम के रहऊँ। लीला बाल देखि सुख लहऊँ।।
मुनि लोमश मो शाप हिताई। पायउँ राम चरित सुखदायी।  
अति प्रिय मोहि काग कै देहा। एहि तन भयउ राम पद नेहा।।
ज्ञान बिराग योग विज्ञाना। भक्ति बिना रामहि नहिं जाना।।
राम भगत माया सकुचाई। करि न सकइ कोई प्रभुताई।।
जीवहिं हृदय मोह तम माया। छूटे ग्रन्थि राम गुण गाया।।
प्रबल अविद्या कै परिवारा। राम नाम से मिटे अपारा।।
रिद्धि सिद्धि जे लोभ दिखाई। राम भजन ही तेहि मिटाई।।
मन माहीं विचार मनमानी। राम भजन करि निर्मल पानी।। 
इंद्री द्वार झरोखा नाना। पहरेदार राम गुण गाना।।
बसहिं राम जाके उर अंदर। दुर्लभ पाइ परम पद सुन्दर।।
राम भगति मणि उर में जाके। दुख विपत्ति लवलेश न ताके।। 
राम भगति मणि अद्भुत भाई। राम कृपा बिन जग ना पाई।।
राम कथा रतनाकर सुन्दर। काढ़इ भगत सुधा मथ अंदर।।  
नर तन सम नहिं कवनउ देही। राम कृपा नर पावत तेही।। 

राम नाम ही जीवन का पथ राम नाम पुण्यों का रथ 
राम नाम युग युग की भक्ती। राम नाम में अद्भुत शक्ती 

मंगल भवन अमंगल हारी। भजे राम नित हिय में धारी। 


                                                                      
निसिचर अगणित।   गय अतिकाय अकम्पन मारे।    




राम का नाम तू भज ले भाई, राम नाम सदा सुखदायी। 
राम राम निर्मल पावन जल, धो देता है मन की काई।  

प्रभु श्रीराम जगत का उद्भव।  राम नाम ही जग का उत्सव। 
मन संकल्प सकल हो जाता, राम नाम भजने से संभव। 
राम का नाम सुखों की खान, भाव सहित जे खोजत पाई।  

काम क्रोध मद मोह तू तज दे, ईर्ष्या दम्भ कपट पटक दे।  
अपना ले जप राम भजन तू , नियम धर्म आचार पकड़ ले।  
राम नाम मणिकांचन जग में, राम भजो मन तज कुटिलाई। 

धन्य देश वो अवध जहाँ पर, बहती सुरसरि अरु सरयू सरि। 
धन्य माटी कण कण में राम, जीवन सफल राम को भज कर। 
राम भजन संजीवनी बूटी, हर विपदा की यही दवाई। 

मन लगाय राम गुण गाई, मन क्रम वचन जनित अघ जाई। 
भजन राम का सुलभ जहाज, भवसागर से पार लगाई। 
राम भगति जब उर में छायी, पुण्य प्रताप परम पद पाई। 

राम उपासक जे जग माहीं, राम कथा सम तिन्ह कछु नाहीं। 
कहहिं सुनहिं अनुमोदन करहीं, 'सत्यदेव' पावन हो जाहीं। 
विषय मनोरथ दुर्गम नाना, राम नाम सब शूल मिटाई।  
 
राम नाम भज सबरी तर गयी, गणिका गिद्ध अजामिल तर गए। 
रामचरित गा अमर भुशुण्डी, तुलसी और बाल्मीकि तर गए।  
राम नाम ही जीवन का सुख, राम नाम ही मोक्ष प्रदायी। 



रामायण सार 
जनम लिए दशरथ के आलय, राम उतारने पाप धरा से।
तोड़े शिव का धनुष जनकपुर, व्याह रचाये जनकसुता से।
धारे कुटिल विचार मंथरा, कैकेयी को कलह पढ़ाई।
वर मांगी ले सीख अधम की, रामचंद्र को विपिन पठाई।

सेवा कीन्ह दिलाकर गुरु का, दुष्ट निशिचरों से छुटकारा।
हो गइ पाहन शाप के कारण, देवि अहिल्या को है तारा।
प्रभु राम चले वनवास सखे, आज्ञा तात का सिर पे धारे।
रक्षा करने हेतु धरम की, दानव दैत्यों को संहारे।

करना सुरसरि पार राम को, जग का है जो खेवनहारा। 
पांव पखार बिठाया नैया, केवट गंगा पार उतारा।
सूर्पणखा जो कीन्ह ढिठाई, प्रभु से, अपनी नाक कटाई।
जाय बिलखती लंका नगरी, भाई रावण को भड़कायी।

माया के वश आ के मांगीं, सीता स्वर्णिम मृग की छाला।
लक्ष्मण रेखा तोड़ीं सीता, कपटी रावण ने हर डाला।
राम सदैव भक्त के वत्सल, जूठे बेर सबरी के खाया।
सिंधु कृपा के हैं भक्तों के, पवनतनय को हृदय लगाया।

बालि से रक्षा की सुग्रीव की, अपना मित्र विशेष बनाया। 

सेना भेज सुग्रीव वानरी, देवि सिया का पता लगाया।

लेकर मदद नल अरु नील की, सागर पर सुन्दर सेतु बना।
करते उछल कूद उस पुल से, लंका पहुंची वानर सेना।

सीख दुष्ट को दीन्ह विभीषण, गया निकाला अपने घर से। 
घर का भेद दिया रघुवर को, नाभि सुधा को सोखे सर से।
सँजीवनि बूटी गिरि से ला, कपि लछमन के प्राण बचाये। 
राम लखन मिल दसकंधर का, सारा कुटुंब सुरलोक पठाये। 

कर के बैर राम से रावण, स्वयं, स्वयं का काल बुलाया।  
सोने की लंका को उसकीकपि ने जैसे फूस जलाया।  
नेति की बात कही सब ही की, रावण ने तत्पल ठुकराया।
दर्प, दुष्टता के कारण ही, लंकेश अधोगति को पाया।

दुष्टदलन की नीति राम की, लंकापति पर विजय दिलाई।
धीरज, धर्म, विवेक, वीरता से दैत्यों से मुक्ति पायी। 
रावण के साथ मरे लाखों, पुत्र, मित्र व सगे सम्बन्धी। 
साथ बुरे का देता है जो, जग में पाता आचार वही।

तज द्वेष, दम्भ, घृणा, अदाया; करुणा, प्रेम, क्षमा को धारो।   
धारे भिन्न चरित्र पृथक गुण; सीख समझ के करम सुधारो। 
भाई, पुत्र, मित्र, दास और, लघु से होवे व्यवहार उचित।

कितनी भी हो बली बुराई, होना होता उसे पराजित।



 हमें शरण मिले, हे राम! तुम्हारे चरणों में 

 दीनदयाल बिरिदु सम्भारी। हरहु राम मम संकट भारी।


संत तुलसीदास के प्रताप और पुण्य के सागर से कुछ बूँदें ग्रहण कर मैंने अपना जीवन धन्य करने का प्रयत्न किया है।  

धरे हुए सोने की काया। मारीच मृग बनकर आया

 राम चंद्र की अद्भुत माया 




ढाई अक्षर धारे राम का नाम
जग संचालक, प्रनत पालक रघुनाथ 

 हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे।
राम राम हरे हरे, राम राम हरे हरे। 
हरे राम हरे हरे। हरे राम हरे हरे।  
हरे रामा हरे रामा, रामा रामा हरे हरे। 
हरे हरे हरे राम हरे, हरे हरे हरे राम हरे। 
राम हरे हरे राम हरे। राम हरे हरे राम हरे। 
हरे राम हरे, हरे राम हरे, हरे राम हरे, हरे रामा।  


कोमल काया, जिन वश माया, धरे श्याम रूप सुहावन।  
अति मन भावनसुख बरसावन,  जग में जो सबसे पावन 
अमृत है जिनका नाम, वो हैं मेरे प्रभु श्रीराम।  

लोचन सरोज, पीत परिधानहाथों में धनुष अरु बाण।  
सिर जटा मुकुट, सुन्दर तिलक, तन भूषण  शोभायमान  
भक्तों के कृपा निधान, वो हैं मेरे प्रभु श्रीराम ।

रघुकुल नायक, भजन के लायक,  जो हैं त्रिभुवन के पालक। 
पाप निवारक, दैत्य संहारकशिव जी के हैं उपासक। 
जो परम आनंद के धामवो हैं मेरे प्रभु श्रीराम ।

बल अतुलितवेदों से वन्दित, और सभी गुणों के धाम।  
ऋषि मुनि देवों जो सेवित, हैं जो जग के कृपानिधान। 
जिनसे सारा ज्ञान विज्ञान; वो हैं मेरे प्रभु श्रीराम। 

 ब्रह्मा विष्णु शिव में हैं जो, वाणी, शब्द, अक्षर में जो। 
ज्योति और कृशानु में जो, वायु, जल, दिनकर में जो। 
जो वेद पुराणों के प्राण, वो हैं  मेरे प्रभु श्रीराम।  



केसरी नंदन, हो जग वंदनगुणों के तुम हो निधान;  
जय, जय, जय हनुमान। 

राम भक्त, वानरों के स्वामीबजरंग बली तुम अंतर्यामी।  
जग में सबसे बलवानजय, जय, जय हनुमान। 

लांघे समुद्रलंका जलायेसीता का जा पता लगाये। 

बसाये हृदय में रामजय, जय, जय हनुमान। 

दैत्य पिशाच दूर भगाते,  उन पर हैं कृपा बरसाते।  

जो भजे लगा के ध्यान जय, जय, जय हनुमान। 



साधु बनकर राम जहाँ पर, आयो हनुमान जी। 
माथ रघुवर के चरणों में, नवायो हनुमान जी। 
देख मनहर छवि पम्पा की, भये मुग्ध श्रीराम।  
उन्हें पम्पा सरवर के दरश, करायो हनुमान जी। 
ऋष्यमूक अति सुन्दर तुंग, जहाँ के नृप सुग्रीव। 
राम को पहचान लिए जब, बतायो हनुमान जी।
राम लखन दोनों भ्रात को, बिठाय अपने कांधे,  
कपि नरेश सुग्रीव से लाय, मिलायो हनुमान जी। 
गिराया था सीता ने जो, वहां वस्त्र आभूषण  
झट से लाकर प्रभु राम को, दिखायो हनुमान जी।  
जहाँ कहीं भी सीता होंगी, लाएंगे उन्ह खोज।  
रामचंद्र को दृढ़ विस्वास, दिलायो हनुमान जी।   

सौ योजन सागर के ऊपर, उड़ आयो हनुमान जी।
पता जानकी का लंका में, लगायो हनुमान जी।    
वृक्ष से देखे माँ सीता को, नमन किये कर जोड़, 
दी मुद्रिका राम की उनको, थमायो  हनुमान जी।
अशोक वाटिका में लगे, खाने सुन्दर फल,  
रक्षक राक्षसों को मार, भगायो हनुमान जी। 
रावण सुत अक्षय आया, पकड़ने हेतु कपि को,   
अक्षय कुमार को परलोक, सिधायो हनुमान जी।
ब्रह्मपाश में फांस राक्षस, लगाए पूंछ में आग,   
सोने की रावण की लंका, जलायो हनुमान जी। 
सीता जी को ढांढस देकर, शीघ्र ले जायेंगे राम,  
आकर राम को सिय का हाल, बतायो हनुमान जी।   


     

कपि किये सबको हर्षित हो रामा, राम देखो आये


राम जी तारे संसार, करो जी मेरा भी बेड़ा पार। 
अहिल्या को तारा, भीलनी को तारा। 
केवट को तारा, सुग्रीव को तारा। 

जटायु का किये उद्धार, करो जी मेरा भी बेड़ा पार। 

दानव मानव और देव तर गए। 
ऋषि मुनि नारद शुकदेव तर गए। 
सृष्टि का तुम आधार, करो जी मेरा भी बेड़ा पार।
रावण को मारा, बालि को मारा। 
सहस्रबाहु खर दूषण को मारा।  
विभीषण का किये उपकार। करो जी मेरा भी बेड़ा पार। 

 

राम का नाम लेकर 

पातक पापी 

सुगन्धित मन कानन, भजकर राम 

पावन घर आंगन, भजकर राम 





प्रभु श्रीराम का कीर्तन करते हैं किन्तु। अत्याधिक वृहत ग्रन्थ होने व समयाभाव के कारण लोग पूरे श्रीरामचरितमानस का पाठ नहीं कर पाते। इस ग्रन्थ में भाषा को भी सरल  और बोधगम्य करने का प्रयास किया गया है। प्रभु श्रीराम की कथा कुछ संक्षिप्त और सरल हो जाय तो यह अधिक लोगों तक पहुँच सकती है।  

भागीरथी को तो कोई अपने घर में नहीं रख सकता, किन्तु सभी सनातनी छोटे या बड़े पात्रों में गंगाजल अपने घर में रखते हैं। राम माहात्म्य के महासागर से कुछ बूँदें इस ग्रन्थ के द्वारा आप तक लाने का प्रयास किया है।  

राम का नाम किसी भी रूप में उर तक पहुंचनी चाहिए 

मैं सन्त तुलसीदास का कोटिशः कृतज्ञ हूँ जिन्होंने यह पावन कार्य करने हेतु मुझे प्रेरणा दिया। 

उन्होंने श्रीरामचरितमानस के द्वारा प्रभु राम के प्रति अनुराग जगाकर उनकी कृपा पाने का सुअवसर दिया।