यूरोप देखा
मैंने ठोप ठोप देखा,
यूरोप देखा।।
भवन आलीशान देखा
मकान एक समान देखा।।
बर्फ से ढके पहाड़ देखा
ठंड, कंपाती हाड़ देखा।।
हरे भरे खेत देखा
धूल ना रेत देखा।।
प्रकृति का उपहार देखा
धरा का शृंगार देखा।।
मैदान में चरती गैया देखी
नहर में चलती नैया देखा।।
वादियों में हरियाली देखा
कहीं न बुर्के वाली देखा।।
जगह जगह नहर देखा
नहरों का शहर देखा।।
हर जगह सफाई देखा
दूध बिना मलाई देखा।।
आम बिना चोप देखा
यूरोप देखा।।
नगर साफ सुथरा देखा
आते जाते बदरा देखा।।
सड़क पर पटरी देखा
छत पर छतरी देखा।।
लोगों को करते चीयर देखा
पानी से ज्यादा बीयर देखा।।
बीयर से मंहगी चाय देखा
भारतीयों को करते हाय देखा।।
अंग्रेजों को पीते देखा
पीकर ही जीते देखा।।
अपनों को नेपते देखा
पीने मे झेंपते देखा।।
सम्बन्धों में खाईं देखा
ससुराल बिना जमाई देखा।।
रात देखा, भोर देखा
मगर नहीं चितचोर देखा।।
आत्मीयता का लोप देखा
यूरोप देखा।।
नेताओं का न भाव देखा
अधिकारियों का न ताव देखा।।
शासन देखा, अनुशासन देखा
चुस्ती भरा प्रशासन देखा।।
पटरी पर ना कब्जा देखा
भवन से निकला ना छज्जा देखा।।
उलटे हाथ की ड्राइव देखा
माइकल की नौवीं वाइफ देखा।।
डेढ़ सौ की स्पीड देखा
टैक्सी में चलती मरसीडीज देखा।।
कार का कारखाना देखा
ड्राइवर दीवाना देखा।।
शौचालय बिना पानी देखा।।
भारतीयों की परेशानी देखा
पेशाब पर यूरो खरचते देखा
कुछ एक को सटकते देखा।।
जबरदस्त महगाई देखा
पुलिस की ढिठाई देखा।।
शीशी में सोप देखा
यूरोप देखा।।
खामोश गाड़ी के हार्न देखा,
थियेटर में पार्न देखा।।
करते न बात खास देखा
गाइड की बकवास देखा।।
भारतीयों को खाने मे संलिप्त देखा
रोटी पाकर तृप्त देखा।।
बेल्जियम का ब्रूज देखा
कैनाल में क्रूज देखा।।
आस्ट्रिया, बेल्जियम देखा
नेशनल म्यूजियम देखा।।
चाकलेट की दुकान देखा
क्रिस्टल का सामान देखा।।
हवा को बनाते बिजली देखा
फूलों से उड़ाते तितली देखा।।
सड़क बाड़़ के अन्दर देखा
कहीं न उछलते बन्दर देखा।।
ट्रेन देखा, ट्राम देखा
चुम्बन सरेआम देखा।।
तम्बाकू न पान देखा
थूकते ना इन्सान देखा।।
सिगरेट के फेके टुकड़े देखा
कहते गोरों को दुखड़े देखा।।
चिपके गोपी गोप देखा।
यूरोप देखा।।
गोरी गोरी मेम देखा
मर्द सेम टू सेम देखा।।
वहां भी कौवा काला देखा
कार्ड से खुलता ताला देखा।।
सत्रह घंटे का दिन देखा
जीवन थोड़ा भिन्न देखा।।
भोजन का विचित्र राग देखा
खाते हॉट डॉग देखा।।
आटा का डब्बा खाली देखा
घरों में ना कामवाली देखा।।
तनहा जीता व्यक्ति देखा
कैसिनो में बिताते वक्त देखा।।
धूप सेंकते नदी का कूल देखा
सबको पालन करते रूल देखा।।
कमाल करते लुटेरा देखा
जालसाजों का डेरा देखा।।
हिटलर का गैस चैम्बर देखा
निर्दयता का अम्बर देखा।।
कार पर चलती साइकिल देखा
चर्च मे रखी बाइबल देखा।।
सुन्दर बने चर्च देखा
भारी भरकम खर्च देखा।।
प्रेम में डूबा पोप देखा
यूरोप देखा।।
एस. डी. तिवारी
कुछ क्षणिकाएं
समागम में -
दूर दूर से आये लोग मिले,
एक परिवार सा लगा।
चले जाने के बाद,
सूखे के मौसम में
पड़ी बौछार सा लगा।
समागम में -
प्रयोजन से अधिक
व्यवस्था की चिंता होती है
फिर भी सेकता तो
आयोजक ही रोटी है।
अपनों का साथ था
फोटो खींचने में भी पक्षपात था।
हर आगंतुक अपनी रोता है,
समागम कुछ ऐसा ही होता है।
हाथ मिलाये, अजनवी से भी मिले
हाथ हिलाये, घर को चले।
एस. डी. तिवारी
मैंने ठोप ठोप देखा,
यूरोप देखा।।
भवन आलीशान देखा
मकान एक समान देखा।।
बर्फ से ढके पहाड़ देखा
ठंड, कंपाती हाड़ देखा।।
हरे भरे खेत देखा
धूल ना रेत देखा।।
प्रकृति का उपहार देखा
धरा का शृंगार देखा।।
मैदान में चरती गैया देखी
नहर में चलती नैया देखा।।
वादियों में हरियाली देखा
कहीं न बुर्के वाली देखा।।
म्यूनिख एम्सटर्डम देखा
गोरी लम्बी मेम देखा।।जगह जगह नहर देखा
नहरों का शहर देखा।।
हर जगह सफाई देखा
दूध बिना मलाई देखा।।
आम बिना चोप देखा
यूरोप देखा।।
नगर साफ सुथरा देखा
आते जाते बदरा देखा।।
सड़क पर पटरी देखा
छत पर छतरी देखा।।
शाम को बार पर जुटते देखा
गिलासों पर टूटते देखा।।लोगों को करते चीयर देखा
पानी से ज्यादा बीयर देखा।।
बीयर से मंहगी चाय देखा
भारतीयों को करते हाय देखा।।
अंग्रेजों को पीते देखा
पीकर ही जीते देखा।।
अपनों को नेपते देखा
पीने मे झेंपते देखा।।
सम्बन्धों में खाईं देखा
ससुराल बिना जमाई देखा।।
रात देखा, भोर देखा
मगर नहीं चितचोर देखा।।
आत्मीयता का लोप देखा
यूरोप देखा।।
नेताओं का न भाव देखा
अधिकारियों का न ताव देखा।।
शासन देखा, अनुशासन देखा
चुस्ती भरा प्रशासन देखा।।
पटरी पर ना कब्जा देखा
भवन से निकला ना छज्जा देखा।।
सड़कों पर सन्नाटा देखा
भीड़ का न ज्वार भाटा देखा।।
भवनों की भव्यता देखा
पाश्चात्य सभ्यता देखा।।
साइकिल का अलग ट्रैक देखा
पैदल वालों के लिए ब्रेक देखा।।उलटे हाथ की ड्राइव देखा
माइकल की नौवीं वाइफ देखा।।
डेढ़ सौ की स्पीड देखा
टैक्सी में चलती मरसीडीज देखा।।
कार का कारखाना देखा
ड्राइवर दीवाना देखा।।
शौचालय बिना पानी देखा।।
भारतीयों की परेशानी देखा
पेशाब पर यूरो खरचते देखा
कुछ एक को सटकते देखा।।
जबरदस्त महगाई देखा
पुलिस की ढिठाई देखा।।
शीशी में सोप देखा
यूरोप देखा।।
खामोश गाड़ी के हार्न देखा,
थियेटर में पार्न देखा।।
करते न बात खास देखा
गाइड की बकवास देखा।।
भारतीयों को खाने मे संलिप्त देखा
रोटी पाकर तृप्त देखा।।
बेल्जियम का ब्रूज देखा
कैनाल में क्रूज देखा।।
आस्ट्रिया, बेल्जियम देखा
नेशनल म्यूजियम देखा।।
चाकलेट की दुकान देखा
क्रिस्टल का सामान देखा।।
हवा को बनाते बिजली देखा
फूलों से उड़ाते तितली देखा।।
सड़क बाड़़ के अन्दर देखा
कहीं न उछलते बन्दर देखा।।
ट्रेन देखा, ट्राम देखा
चुम्बन सरेआम देखा।।
तम्बाकू न पान देखा
थूकते ना इन्सान देखा।।
सिगरेट के फेके टुकड़े देखा
कहते गोरों को दुखड़े देखा।।
चिपके गोपी गोप देखा।
यूरोप देखा।।
गोरी गोरी मेम देखा
मर्द सेम टू सेम देखा।।
वहां भी कौवा काला देखा
कार्ड से खुलता ताला देखा।।
सत्रह घंटे का दिन देखा
जीवन थोड़ा भिन्न देखा।।
भोजन का विचित्र राग देखा
खाते हॉट डॉग देखा।।
आटा का डब्बा खाली देखा
घरों में ना कामवाली देखा।।
तनहा जीता व्यक्ति देखा
कैसिनो में बिताते वक्त देखा।।
धूप सेंकते नदी का कूल देखा
सबको पालन करते रूल देखा।।
कमाल करते लुटेरा देखा
जालसाजों का डेरा देखा।।
हिटलर का गैस चैम्बर देखा
निर्दयता का अम्बर देखा।।
कार पर चलती साइकिल देखा
चर्च मे रखी बाइबल देखा।।
सुन्दर बने चर्च देखा
भारी भरकम खर्च देखा।।
प्रेम में डूबा पोप देखा
यूरोप देखा।।
एस. डी. तिवारी
कुछ क्षणिकाएं
समागम में -
दूर दूर से आये लोग मिले,
एक परिवार सा लगा।
चले जाने के बाद,
सूखे के मौसम में
पड़ी बौछार सा लगा।
समागम में -
प्रयोजन से अधिक
व्यवस्था की चिंता होती है
फिर भी सेकता तो
आयोजक ही रोटी है।
फोटो खींचने में भी पक्षपात था।
हर आगंतुक अपनी रोता है,
समागम कुछ ऐसा ही होता है।
हाथ मिलाये, अजनवी से भी मिले
हाथ हिलाये, घर को चले।
एस. डी. तिवारी
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