कांच के टुकड़े लिया, कोई पागल था
मुट्ठी को भींच दिया, कोई पागल था
न तो उफ़ किया, न ही कराहा उसने
शरबत सा दर्द पीया, कोई पागल था।
कोरोना ने विश्व पर, फेंका ऐसा जाल।
हाथ धोना सिखा दिया, बीस बीस का साल।
बीस बीस का साल, सिखाया पीना काढ़ा।
घर में रहकर बंद, बिताना गर्मी, जाड़ा।
पति-पत्नी का साथ रसोई घर में होना।
मानव का बहु-भांति, भ्रम भगाया कोरोना।
एस डी तिवारी
मनुष्य की अवकात क्या, दिखाया कोरोना।
दो हजार बीस लाया, मुसीबत भरा साल।
कोरोना की भीति से, जगत हुआ बेहाल।
जगत हुआ बेहाल, बड़ी मनहूसी छायी।
महामारी डायन, करोड़ों जीवन खायी।
सहा बंदी, मंदी, इंसान नत मस्तक हो।
अब तो करो उपाय, भगवन ! इससे मुक्ति दो।
माथा फोड़ लिया उसने सिंदूर समझा
उम्र मस्ती
धूप बरसात सह कर किसान
वो अपहरण करने आया था
अपने घर ले गया
मैं तो तेरे घर में वो सब करूँगा
वो मरने तक सफल नहीं हो पाया
उसके बेटे मरने के लिए घर से निकले
हम बचने के लिए
वो अपहरण करने आया था
अपने घर ले गया
मैं तो तेरे घर में वो सब करूँगा
वो मरने तक सफल नहीं हो पाया
उसके बेटे मरने के लिए घर से निकले
हम बचने के लिए
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