श्री एस. डी. तिवारी का जीवन परिचय
साहित्य की दुनिया में श्री एस. डी. तिवारी का नाम संभवतः नया प्रतीत हो रहा हो किन्तु वे बीस से भी अधिक काव्य पुस्तकों के रचनाकार हैं। आकर्षक व्यक्तित्व और चहुंमुखी प्रतिभा के धनी श्री एस. डी. तिवारी का जन्म सन 1955 में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जनपद के एक गांव में, एक साधारण किसान परिवार में हुआ। गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ते, गुल्ली डंडा और बांस की हाकी बनाकर खेलते, वे बड़े हो गए। बचपन गांव में व्यतीत होने के कारण, उनकी प्रकृति से निकटता बनी रही और प्रकृति का यह लगाव अंत तक कम नहीं हुआ। बचपन में बारिश देखना, बारिश में भीगना, भरे ताल तलैया, मेढकों की टर्र टर्र उनके मन को आनंद से भर देते। भोर के अँधेरे में ही जाकर, अपने बाग से टपके हुए पके आम बिन कर लाना और अपनी पसंद के आम अलग रख लेना, उनके बचपन का अति सुन्दर पहलू होता। आंधी आने पर जहां लोग घर में छुप कर बैठते, वे गांव के अन्य बच्चों के साथ आम बिनने के लिए बाग़ में धावा बोलते। बचपन से ही वे अत्यंत कर्तव्यनिष्ठ, मेधावी, सचेत और दयालु प्रकृति के हैं। प्रतिभाशाली छात्र होने के कारण, अपनी उम्र के बच्चों की टोली में उनका सतत सम्मान रहता।
उनके माता पिता श्रीमती दुर्गावती एवं श्री वंश नारायण तिवारी, आजीविका की खोज में दिल्ली आ गए थे, इस कारण श्री एस. डी. तिवारी का भी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ग्रहण करने के पश्चात्, उच्च शिक्षा के लिए, दिल्ली पदार्पण हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा की अवस्था में ही उनके हृदय में कवि का जन्म हो चुका था। तत्कालीन पाठ्य पुस्तकों की कवितायेँ उन्हें अत्यंत प्रिय थीं। उस समय मीरा, सूर और कबीर के अतिरिक्त, रामधारी सिंह दिनकर, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, मैथलीशरण गुप्त आदि की कवितायेँ पाठ्यपुस्तकों में होने के कारण उन्हें पढ़ने का अवसर मिला और ये सभी उनके प्रिय कवियों में से हैं । परिस्थितियों वश, उन्होंने रोजगार परक शिक्षा की आवश्यकता का अनुभव किया, इस कारण स्नातक स्तर पर वाणिज्य विषय को चुना। अभी शिक्षा पूरी भी नहीं हुई थी कि मां बाप ने वैवाहिक सूत्र में बांध दिया। विवाह के पश्चात् उनकी पत्नी सुनैना ने, शिक्षा ही नहीं, अपितु जीवन के हर यज्ञ में उन्हें भरपूर सहयोग दिया। अपनी पढ़ाई चालू रखते हुए, उन्होंने वाणिज्य में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त किया और इसके अतिरिक्त विधि में स्नातक और कार्मिक प्रबंध में डिप्लोमा भी किया।
शिक्षा पूरी होते ही उन्हें, एक सार्वजानिक संस्थान में सेवा करने का अवसर मिल गया। केंद्रीय सरकार के सार्वजनिक उपक्रम में, वे प्रबंधकीय पद पर तीस वर्षों तक विभिन्न विभागों में कार्यरत रहे। अपने कुशल एवं निष्ठापूर्ण कार्य के कारण, वे पूरे ही कार्यकाल में वरिष्ठ और अधीनस्थ दोनों ही अधिकारियों व कर्मचारियों के प्रिय रहे, और उनका कार्य प्रशंसनीय रहा। इन्हें आरम्भ से ही सरल और सीधा सादा जीवन पसंद रहा, इस कारण स्वयं भी वे सरल स्वाभाव के ही हैं। अपने सेवा काल में, वे साहित्य के क्षेत्र में कोई विशेष योगदान नहीं दे पाए, बस छुटपुट काव्य रचनायें करते रहे। इस अवधि में उन्होंने श्री दुर्गा सप्तशती का हिंदी काव्य रूपांतरण किया। सेवा निवृत्ति के पश्चात् उनकी लेखनी ने गति पकड़ी और काव्य उनके जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया। वैसे तो दिल्ली के न्यायालयों में वकालत भी करते हैं, परन्तु वे साहित्य के लिए पूर्णतः समर्पित हैं।
उन्हें प्रकृति से बहुत प्रेम है और साथ ही देशाटन का। पर्वत की वादियों और समुद्र की लहरों के साथ उन्हें हरे-भरे उद्यानों में रंग बिरंगे खिले फूल देखना भी बहुत भाता है। वे देश के लगभग सभी प्रमुख स्थलों की यात्रा के अतिरिक्त, कई विदेश यात्रायें भी कर चुके हैं। एक बार उन्हें ऑस्ट्रेलिया जाने का अवसर मिला, वहां उन्होंने अंग्रेजी में कुछ कवितायेँ लिखीं जो कि वहां की पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। यह उनके अंग्रेजी में कविता लिखने का प्रेरणा स्रोत बन गयी। तत्पश्चात, अंग्रेजी की अनेकों कवितायेँ लिखीं और कविताओं की वेबपृष्ठों पर प्रकाशित होती रहीं। उन्होंने उन वेबपृष्ठों पर अंग्रेजी की कई प्रतियोगिताओं के लिए भी अनेकों कवितायेँ लिखीं और उनमें से कई कविताओं ने प्रथम या द्वितीय स्थान प्राप्त किया। इस बात ने उन्हें और लिखने के लिए, उत्साह से भर दिया। उनकी हिंदी काव्य यात्रा सेवानिवृत्ति के पश्चात् गतिमान हो गयी और कुछ ही वर्षों में इनकी लेखनी ने विभिन्न विधाओं की रचनाओं का भरमार लगा दिया।
अंग्रेजी की कविता लिखने और काव्य वेबपृष्ठों पर प्रकाशित होने के क्रम में इनका हाइकु विधा से साक्षात्कार हुआ और अंग्रेजी भाषा में अन्य विधाओं के साथ हाइकु भी खूब लिखे। अंग्रेजी से हाइकु सीखने के पश्चात् हिंदी में भी हाइकु लिखना प्रारम्भ किया और हाइकु लिखने की सम्पूर्ण विधि बताते हुए अपनी पुस्तक 'हाइकु शास्त्र' की रचना की है। हाइकु शास्त्र के अतिरिक्त इनकी हाइकु रचनाओं में नन्हीं, बोलते मोती, मोतियन की लड़ी, तेरे नाम के मोती, मुहब्बत के मोती प्रकाशित हाइकु संग्रह हैं। हाइकु के अतिरिक्त गीत, गजल, मुक्तक, गद्य गीत, दोहे, कुंडलियां, कह मुकरी, कहानियां आदि भी इनकी रचना विधाएँ हैं।
अन्य विधाओं में श्री एस. डी. तिवारी की हिंदी काव्य रचनाएँ हैं : दिल्ली के झरोखे, दुनिया गिर गयी, गुनगुनाती हवा, कविता तो बोलेगी, प्यार का पिंजरा, क्या सखि साजन, चाँद के गांव इत्यादि और कहानी संग्रह, जिनमें साहित्य के विभिन्न रसों का स्वादन किया जा सकता है। इनके भाषा की शैली में, आम बोलचाल की खड़ी हिंदी है। अंग्रेजी भाषा की भी उनकी दो काव्य रचनाएँ प्रकाशित हैं : 'द सिंगिंग ब्रीज' और 'बर्ड्स ऑफ चांटिंग वर्ड्स'। ये दोनों पुस्तकें देश के अत्यंत प्रतिष्ठित प्रकाशक 'नोशन प्रेस' ने प्रकाशित की हैं। यह तो उनकी साहित्यिक यात्रा का आरम्भ भर है, अंतिम पड़ाव की खोज में यह यात्रा कहाँ तक ले जाती है, समय ही तय करेगा। उनकी साहित्यिक यात्रा का आरम्भिक दौर होने के कारण, अभी वे साहित्यिक अलंकरणों से अछूते रहे हैं। उनको मात्र, अधूरा मुक्तक फेस बुक साहित्यिक मंच द्वारा 'साहित्य रत्न' सम्मान प्रदान किया गया है। किन्तु यह बात अति विस्वास के साथ कहा जा सकता है, यह साहित्यकार अपनी रचनाओं के द्वारा, हिंदी साहित्य में अपना एक विशेष स्थान अवश्य बनाएगा।
कवि परिचय
नाम
: सत्य देव तिवारी
आत्मज श्री वंश नारायण तिवारी एवं दुर्गावती देवी
पत्नी - सुनैना तिवारी
आत्मज श्री वंश नारायण तिवारी एवं दुर्गावती देवी
पत्नी - सुनैना तिवारी
जन्म तिथि : २० दिसम्बर, १९५५
जन्म स्थान : जनपद गाज़ीपुर, उ. प्र.
शिक्षा
: एम० काम०, एलएल० बी०, कार्मिक प्रबंध में स्नातकोत्तर डिप्लोमा
सम्प्रति : स्वतन्त्र लेखन व दिल्ली में वकालत
पता
: ५७ सी, ऊना एन्क्लेव, मयूर विहार फेज १, दिल्ली ११००९१
मोबाइल :
7982202009, 9868924139
ईमेल
: sdtiwari1@gmail.com
काव्य विधाएँ : हाइकु, गीत, गीतिका, गजल, मुक्तक, दोहा, कुंडलियां, कह-मुकरी, तांका, माहिया, छंद मुक्त काव्य एवं कहानियां
सम्मान : १. अधूरा मुक्तक फेसबुक साहित्यिक मंच द्वारा 'साहित्य रत्न' सम्मान
२. छंद मुक्त विधा में स्वर्णकार तेजमन स्मृति सम्मान
३. ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड
९ . इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल द्वारा सम्मानित
१०. मेरी पुस्तक 'राम का वकील' को 'महर्षि बाल्मीकि' सम्मान
११. अखिल भारतीय हिंदी साहित्य समागम, पलामू द्वारा सारस्वत सम्मान
१२. आई. सी. एम्. डी. आर. द्वारा सम्मानित
१३. अंतराष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा ऑस्ट्रिया में सम्मानित
१४. ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा 'साहित्य जगत के शिला लेख' सम्मान
१५. मुक्तक लोक द्वारा 'मुक्तक-लोक गीत रत्न' सम्मान
१६. ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा शब्द सारथी सम्मान
३. ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड
४. बीस पुस्तकों के एक साथ लोकार्पण पर साहित्य प्रेमी मंडल द्वारा सम्मान
५. अंतराष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा 'साहित्य भूषण' सम्मान
६. इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में सर्वाधिक पुस्तकों के एक साथ विमोचन के कीर्तिमान हेतु नाम
७ . अंतराष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा 'साहित्य भूषण' सम्मान
८. राज रचना कला एवं साहित्य समिति, रायपुर द्वारा पर्यावरण संरक्षण सम्मान७ . अंतराष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा 'साहित्य भूषण' सम्मान
९ . इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल द्वारा सम्मानित
१०. मेरी पुस्तक 'राम का वकील' को 'महर्षि बाल्मीकि' सम्मान
११. अखिल भारतीय हिंदी साहित्य समागम, पलामू द्वारा सारस्वत सम्मान
१२. आई. सी. एम्. डी. आर. द्वारा सम्मानित
१३. अंतराष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा ऑस्ट्रिया में सम्मानित
१४. ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा 'साहित्य जगत के शिला लेख' सम्मान
१५. मुक्तक लोक द्वारा 'मुक्तक-लोक गीत रत्न' सम्मान
१६. ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा शब्द सारथी सम्मान
१८. मेरी पुस्तक 'जी लो बचपन' को शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान
१९. इंडियन लिटरेचर एंड आर्ट सोसाइटी ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया द्वारा सम्मानित
२०. कविता की सबसे बड़ी वेब साइट आल पोएट्री पर ४७ स्वर्ण, ६८ रजत, ८४ कांस्य पदक के अतिरिक्त ३५७ रचनाओं पर सम्माननीय उल्लेख
प्रकाशित पुस्तकें : हिंदी - हाइकु शास्त्र, कविता तो बोलेगी, क्या सखि साजन, चाँद के गांव, दुनिया गिर गयी, नन्हीं, बोलते मोती, दिल्ली के झरोंखे, गुनगुनाती हवा, मुहब्बत के मोती, तेरे नाम के मोती, मोतियन की लड़ी, पांच दाने मोती, गीत गुंजन, प्यार का पिंजरा, हाइकु रामायण, आशिक अली की होली, बसे विदेश, विदेश की चटनी, इनकी उनकी, राम का वकील, त्रिपदी रामायण, जी लो बचपन, दिल प्रेम समुन्दर, भगवती माई, सखि कह मुकरी, श्रीदुर्गा कथा, दिल में दिल्ली, हिन्दू धर्म - दर्शन व मंथन
साँझा संग्रह : शताब्दी हाइकुकार, अधूरा मुक्तक, अधूरी गजल, वृक्ष वसुंधरा, शब्द सारथी, गीत शब्द हुए सिंदूरी
कोई न और
जग का रखवाला
कृष्ण गोपाला
श्री एस. डी. तिवारी, काव्य का पर्याय
प्रारम्भिक शिक्षा की अवस्था में ही उनके हृदय में कवि का जन्म हो चुका था। तत्कालीन पाठ्य पुस्तकों की कवितायेँ उन्हें अत्यंत प्रिय थीं। उस समय तुलसीदास, सूरदास, मीरा, रसखान, कबीर, रहीम के तिरिक्त, रामधारी सिंह दिनकर, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, मैथलीशरण गुप्त, महादेवी आदि महाकवियों की कवितायेँ पाठ्यपुस्तकों में होने के कारण उन्हें पढ़ने का अवसर मिला और ये सभी उनके प्रिय कवियों में से हैं । इनमें से किसी एक जैसा बनने की ललक उनके मन में तभी घर कर गयी थी। अपने छात्र जीवन में भी वे गहरी सोच और चिंतन में डूबे रहते थे। परिस्थितियों वश, उन्होंने रोजगार परक शिक्षा की आवश्यकता का अनुभव किया, इस कारण आगे की शिक्षा में वाणिज्य विषय को चुना। परिणाम स्वरुप उनके अंदर का कवि उनकी शिक्षा तथा कार्यकाल की अवधि में सुप्तावस्था में ही रहा। अभी शिक्षा पूरी भी नहीं हुई थी कि मां बाप ने वैवाहिक सूत्र में बांध दिया। विवाह के पश्चात् उनकी पत्नी सुनैना ने, शिक्षा ही नहीं, अपितु जीवन के हर यज्ञ में उन्हें भरपूर सहयोग दिया। अपनी पढ़ाई चालू रखते हुए, उन्होंने वाणिज्य में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त किया और इसके अतिरिक्त विधि में स्नातक और कार्मिक प्रबंध में स्नातकोत्तर डिप्लोमा भी प्राप्त किया।
परिचय।
विनयशील चतुर्वेदी
जन्म तिथि- 04 अक्टूबर 1961
ग्राम+पोस्ट- कमलसागर, ज़िला- मऊ
उत्तर प्रदेश, भारत।
माँ- श्रीमती निर्मला चौबे (सेवानिवृत्त प्रधानाचार्या)।
पिता- श्री चंद्रभूषण चौबे (सेवानिवृत्त असिस्टेण्ट डेवलपमेंट अॉफीसर,सहकारिता, उत्तर प्रदेश)।
पत्नी- श्रीमती कुमुद लता चतुर्वेदी (प्रवक्ता इतिहास)।
पुत्रियाँ- शिल्पी (इंजीनियर, आस्टर्ेलिया) और सृष्टि (नौकरी)
बहन- श्रीमती वीणा पाण्डेय
भाई- विवेक शील चतुर्वेदी
व्यवसाय- शिक्षण
योग्यता- स्नातकोत्तर (हिन्दी), योग व संगीत (सितार)।
पद- अध्यक्ष(सोच ' सोशल अॉर्गनाईजेशन फॉर केयर एंड हारमनी), ट्रेजरार (गैस्टा, गवर्नमेंट एडेड स्कूल टीचर्स एसोसिएशन), सदस्य(ट्रू मीडिया)।
वर्तमान पता- सी-485/बी, गली सं.- 24, भजनपुरा, दिल्ली- 110053
साहित्यिक योगदान - 80 से अधिक कविताओं की रचना। सम्राट अशोक के जीवन पर आधारित नृत्य-नाटिका का लेखन व संगीत समायोजन। डॉ. प्रवीण शुक्ल (सुविख्यात हास्य-व्यंग्य कवि व संचालक) पर आधारित लेखों का संकलन ".........." का उप संपादन।
रचनात्मक योगदान- सोच के माध्यम से सुप्रसिद्ध कवि- गीतकार श्री किसन सरोज, प्रख्यात गीतकार - ग़ज़लकार डॉ. कुँअर बैचन एवं सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कवि व श्रेष्ठ मंच संचालक डॉ. प्रवीण शुक्ल का संवेदना सम्मान से सम्मान। श्री बृज शुक्ल घायल (हिन्दी साहित्य सेवी) को जीवन पर्यन्त हिन्दी सेवी सम्मान से सम्मानित किया। नवोदित रचनाकारों को काव्य संगोष्ठियों के माध्यम से मंच प्रदान किया। विश्व हिन्दी सम्मेलन में फिजी के रचनाकारों का अभिनन्दन व भोज। ट्रू मीडिया में सक्रिय भागीदारी।
सामाजिक- सांस्कृतिक योगदान - निशांत नाट्य मंच से जुड़कर देश के विभिन्न हिस्सों में नुक्कड़ नाटकों के मंचन में भागीदारी के द्वारा हिंदू-मुस्लिम एकता व भाईचारे के लिए , मज़दूरों के बीच शराब बंदी के लिए, ख़ालिस्तान अातंकवाद के विरुद्ध, लोगों के बीच एकता व अखण्डता के लिए कार्य।
वैद्यराज आरोग्य फाउंडेशन, दिल्ली द्वारा आयोजित आरोग्य उत्सवों में भागीदारी के द्वारा भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के प्रचार-पसार का कार्य।
हास्य योग केन्द्र,दिल्ली में रचनात्मक भागीदारी। योग से संबंधित अनेक कार्यक्रमों व शिविरों का दिल्ली और दिल्ली से बाहर आयोजन।
पूर्वाभ्यास नाट्य, मुंबई द्वारा सामाजिक विसंगतियों पर आधारित नाटको सुगंधी (मंटो), रक्त बीज (शंकर शेष), मोजेल (मंटो) के आयोजन में सहयोग तथा विद्यालय के छात्रोंक के साथ अभिनय और साहित्यिक कार्यशालाओं का आयोजन।
सामाजिक कुरीतियों और आवश्यकताओं पर आधारित लघु फिल्मों " सी राइट एंड लेफ्ट बीफोर कर्ास दि रोड" (सड़क दुर्घटनाओं पर जागरूकता के लिए), "मैडम"(स्त्री सुरक्षा और सजगता के लिए), "मेरा बेटा" (वृद्ध आश्रमों में बुजुर्गों की दीनता पर) का निर्माण।
बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ की परिकल्पना पर आधारित हिन्दी फीचर फिल्म बावली का निर्माण। महिला सशक्तीकरण पर आधारित टी. वी. सीरियल (दूरदर्शन में लंबित) का निर्माण।
सम्मान-
साहित्य गौरव सम्मान 2016 (सत्यम प्रकाशन, राजस्थान)
साहित्य सेवा सम्मान 2017 (नवांकुर साहित्य सभा, दिल्ली)
पृष्ठभूमि और घटनाएँ-
बचपन।
मेरा जन्म 04 अक्टूबर 1961 गाँव कमलसागर तत्कालीन जिला आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश (वर्तमान जिला मऊ) में हुआ। पिताजी (श्री चंद्रभूषण चौबे) की नौकरी लग गई थी अतः मेरा शैशव काल सुखमय रहा, यद्यपि पिताजी पर संयुक्त परिवार जिसमें हमारा परिवार सबसे बड़ा था , पिता जी, बाबा, दादी, तीनों चाचा, बूआ आदि का भार था। मैं ज्येष्ठ पुत्र था अत: तत्कालीन समय में मेरी सुख- सुविधा का विशेष ध्यान रखा गया।
मेरी प्रारंभिक शिक्षा कमलसागर में ही हुई। माँ (श्रीमती निर्मला चौबे) ने ही पाँचवीं कक्षा तक मुझे पढ़ाया । वे वहाँ शिक्षिका थी। माँ के मै बहुत करीब रहा और मेरी मूल प्रवृत्ति उन्हीं सें मिली। 5 जी बाहर नौकरी करते थे। वे अपनी पीढ़ी में घर के बड़े थे। उनका और उनकी राय का सब लोग सम्मान करते थे। शनिवार को ही घर लौटते थे। हम उनसे रिजर्व रहते थे और काम की ही बात करते थे।
हमारा घर पाँच पीढ़ियों का एक संयुक्त कुलीन ब्राह्मण परिवार जो मुख्य रूप से कृषि और नौकरी पर आश्रित था , तत्कालीन समय में एक तरह से साहित्यिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र था। मेरे दादा जी स्वर्गीय पं. यमुना चौबे को संगीत का अच्छा ग्यान था, उनका स्वर भी मृदुल था, के संयोजन में अक्सर बैठक में या दरवाजे पर शास्त्रीय व लोक संगीत/लोक कला का आयोजन होता रहता था। हमारे दरवाजे पर होने वाली रामलीला प्रसिद्ध थी। पिताजी की भी संगीत में रूचि रही इसलिए सांस्कृतिक-साहित्यिक आयोजन बदस्तूर चलते रहे।
हमारे एक चाचा पं़ गोरखनाथ चौबे ख्याति प्राप्त लेखक थे और इलाहाबाद में रहते थे। उन्होंने राजनीति विषय पर 90 से अधिक पुस्तकें लिखीं। वे लाल बहादुर शास्त्री जी के घनिष्ठ रहे। जब भी वे गाँव आते थे घर पर क्षेत्र के तमाम बुद्धिजीवी और रचनाकार एकत्रित होते थे। मैं उस समय बहुत छोटा था चर्चाएं समझ नहीं आती थी पर घर का माहौल बदल जाता था और हम बच्चों को शांत रहने की विशेष हिदायत मिल जाती थी। हाँ , एक बात मुझे आश्चर्यचकित करती थी। गोरख चाचा गाँव आने से पहले चिट्ठी के माध्यम से या किसी व्यक्ति के माध्यम से गाँव आने की अग्रिम सूचना भेजते थे। उनके गाँव आने की सूचना मिलते ही गाँव में सभी घरों की लिपाई शुरू हो जाती थी। दीवारें चिकनी मिट्टी से ओर ज़मीनें गोबर से। वे आने पर गाँव में घर-घर घूमने जाते थे। सफेद दमकता खादी का कुर्ता और धोती ,गोरा शरीर व मुख पर तेज। मुझे धुँधला सा अब भी याद। बाद में लोगों के मुँह से सुना कि राहुल जी (राहुल सांकृत्यायन) और श्री लक्षमी नारायण मिश्र कई बार उनके साथ आते थे।
हमारे एक दूसरे चाचा स्वर्गीय श्री रामबृक्ष चौबे स्वतंत्रता सेनानी थे। सन् 1942 में इनकी अगुवाई में अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने के लिए मधुबन थाने का घेराव हुआ था। अंग्रेजी पुलिस द्वारा गोली बारी की गई जिसमें 150 लोग शहीद हुए जिसके लिए उन्हें 20 वर्ष की कालेपानी की सजा सुनाई गई। आजादी के बाद वे राजनीति में भी सक्रिय रहे। वे सोसलिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। क्षेत्र में उनका बड़ा मान-सम्मान था । वे लोकप्रिय थे। देश - विदेश पर राजनीतिक चर्चा बैठक के वराण्डे में होती ही रहती थी।क्षेत्र के राजनीतिक हलके के लोग आते रहते थे। हाँ! श्री रामसुन्दर पाण्डेय जी उनके मित्र थे। चंद्रशेखर जी, कल्पनाथ राय जी को मै पहचानता था। उन्हें तजरीह दी जाती थी। दोनों ही युवा और जुझारू नेता थे। मुझे अभी भी उनके शब्द याद हैं कि वे कैसे हमें सोते से उठाते थे। समझ और साहस के साथ-साथ वे विषम परिस्थितियों में भी सहज रहते थे। उनके व्यक्तित्व ने मुझे प्रभावित किया है।
मेरे नाना स्वर्गीय डॉ. केदार नाथ मिश्र भी स्वतंत्रता सेनानी थे। ब्रिटिश हुकूमत के विरोध में कई बार जेल गए और नजरबंद रहे। आजादी के बाद लोहिया के साथ आ गए वे उनके घनिष्ठ रहे। 15 वर्षों तक ब्लाक प्रमुख रहे। क्षेत्र में लोगों के बीच अच्छी पकड़ थी। बचपन में मैं ननिहाल, फुलेस जो आज़मगढ़ के पश्चिम में स्थित है, गर्मियों के अवकाश में जाया करता था। नाना जी से मिलने के लिए और अपनी समस्याओं के समाधान के लिए वहाँ 5 बजे सुबह से ही भीड़ जुट जाती थी। लोगों की समस्याओं को सुनना और समझना मुझे अच्छा लगता था। बाद में नाना जी कुछ समस्याओं को मुझसे डिस्कस करते थे।
संभवतः उपरोक्त तमाम परिस्थितियों और पारिवारिक परिवेश ने ही मुझे संस्कृति, समाज और साहित्य की ओर आकर्षित किया है।
दिल्ली आना और बसना -
मेरे सबसे छोटे चाचा, श्री विद्याभूषण चौबे दिल्ली में इतिहास के अध्यापक थे। जब चाची जी को लाए तो साथ ही मुझे भी शिक्षा के लिए दिल्ली ले आए। उनकी साहित्य में गहरी रुचि थी। बनारस में शिक्षा के दौरान उनके लेख समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते थे। यहाँ दिल्ली में भी नियमित रूप से कवि गोष्ठियाँ, साहित्यिक चर्चाएँ होती रहती थी तथा संगीत के आयाेजन होते रहते थे। मेरी इन सब में अत्यधिक रूचि रहती थी। दिल्ली में मेरी इन्टरमीडिएट तक की शिक्षा हुई। बी. ए. , एम. एम. एच. कॉलेज गाज़ियाबाद से तथा एम.ए. की शिक्षा मेरठ विश्वविद्यालय से हुई।
वैसे तो कविताएँ मैं कॉलेज (1979) से ही लिखने लग गया था परंतु इसके प्रति सजग नहीं था । छिट- पुट तौर पर लिखता था। कुछ दिन सहेजता था फिर भूल जाता था।
वर्ष 1983 मेरे लिए विशेष रहा क्योंकि जून में कुमुद ने मेरी जिंदगी को सँवारने की ज़िम्मेदारी ले ली और अगस्त में मुझे जॉब मिली। 1984 में कुमुद दिल्ली आ गईं मेरे साथ और हम चाचा जी के ही साथ उनके मकान की छत पर एक 9×5 फुट का कमरा बनवाकर हम रहने लगे। कुमुद ने एम. ए. (इतिहास) और बी. एड. कर विद्यालय में नौकरी करली। 1989 में अपने मकान में शिफ्ट हो गया और दिल्ली में स्थाई रूप से बस गया।
1985 में मैं निशांत नाट्य मंच, सम्मशुल इस्लाम संचालित करते थे, से जुड़ गया। लगभग 8 वर्ष तक जुड़ा रहा और नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से दिल्ली और दिल्ली से बाहर देश की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं एवं विसंगतियों से जुड़े अनेक नुक्कड़ नाटकों में सहभागी रहा। इस दौरान साम्यवाद को समझने-जानने का अवसर मिला। साम्यवादी साहित्य के साथ ही भारतीय साहित्य काे खूब पढ़ा। ऐसा मैं कह सकता हूँ कि मेरी राजनीतिक, सामाजिक और साहित्यिक सोच यहीं परिपक्व हुई। साथ ही मैने गांधर्व महाविद्यालय, कमला नगर, दिल्ली से संगीत (सितार) की शिक्षा गुरू बाबूलाल जी से ली।
प्रतिभाओं के धनी श्री विनयशील चतुर्वेदी
दिल्ली के हिंदी साहित्य के क्षेत्र में श्री विनयशील चतुर्वेदी का एक जाना माना नाम है। दिल्ली के एक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में अध्यापन के साथ, वे साहित्य के लिए भी निरंतर समर्पित रहे हैं और साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने अद्वितीय रचनात्मक योगदान दिया है, जिसके लिए उन्हें कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया गया है। विगत दो वर्षों में उन्हें सतत, उनके सराहनीय कार्यों के लिए 'साहित्य गौरव सम्मान 2016 (सत्यम प्रकाशन, राजस्थान)' और 'साहित्य सेवा सम्मान 2017 (नवांकुर साहित्य सभा, दिल्ली)' से सम्मानित किया गया।
एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में जन्मे श्री विनयशील चतुर्वेदी और मेरे जीवन में कई समानताएं हैं। हम दोनों का जन्म उत्तर प्रदेश के ही गांव में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा गांव में ग्रहण करने के पश्चात् उच्च शिक्षा और जीविकोपार्जन के लिए दिल्ली आगमन हुआ। दोनों ही अपने अपने जीवन के निर्धारित लक्ष्य से हटकर आगे के सोपान चढ़े। जहाँ मेरी बचपन की अभिलाषा शिक्षक और कवि बनने की थी, परन्तु परिस्थितियों और जीविकोपार्जन की प्रमुखता के कारण प्रबंधक बनना पड़ा। शिक्षक तो नहीं बन पाया किन्तु अपने कवि को नहीं मरने दिया। वहीँ श्री विनयशील चतुर्वेदी का अभिनेता बनने का स्वप्न आरम्भ में तो साकार नहीं हो पाया और वे शिक्षक बन गए। परन्तु उन्होंने भी अपने अभिनेता को मरने नहीं दिया और किसी न किसी रूप में अब तक जीवित रखा है। यही कारण है कि साहित्यकार होने के साथ कई नाटकों में अभिनय के अतिरिक्त उन्होंने कुछ लघु फ़िल्में भी बनायीं हैं। अभिनय के अतिरिक्त वे साहित्य और संगीत साधना में भी पारंगत हैं। साहित्य और संगीत उन्हें अपने परिवार से विरासत में मिली। उनकी माँ, श्रीमती निर्मला चौबे शिक्षिका थीं, चतुर्वेदी जी उन्हीं के विद्यालय में उनसे पाँचवीं कक्षा तक पढ़े। यही कारण है कि वे सदैव अनुशासित और संस्कारी रहे। क्योंकि इनका परिवार साहित्यिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र था। इनके दादा जी यमुना चौबे को संगीत का अच्छा ज्ञान था, उनका स्वर भी मृदुल था। उनके तत्वधान में घर पर ही अक्सर शास्त्रीय व लोक संगीत/लोक कला का आयोजन होता रहता था। हमारे दरवाजे पर होने वाली रामलीला प्रसिद्ध थी। पिताजी चंद्र भूषण चतुर्वेदी जी को भी संगीत में रूचि रही, इसलिए इनके दादा के बाद भी सांस्कृतिक-साहित्यिक आयोजन दादा जी के निधन के पश्चात् भी चलता रहा। उनके ग्रामीण और पारिवारिक परिवेश ने ही विनयशील जी को संस्कृति, समाज और साहित्य की ओर आकर्षित किया।
उनका जन्म गांव में, एक किसान परिवार में होने और पले बड़े होने के कारण, वहां के रमणीय वातावरण और स्मृतियां उन्हें सदैव आमंत्रित करती रहती हैं। उ. प्र. के मऊ जिला में उनके गांव, कमल सागर की जिस पावन भूमि से जुड़ी चतुर्वेदी जी की जड़ है, दिल्ली जैसे महानगर में रह कर भी उसे छोड़ नहीं पाते और कुछ कुछ समय के अंतराल पर अपने गांव का भ्रमण कर वो स्मृतियाँ वापस बटोर लाते हैं।
बाग, तड़ाग, खेत, खलिहानों में।
गांव के सिंदूरी साँझ विहानों में।
बचपन के पल भूले न विनय जी,
गुल्ली डंडा, फूलों की मुस्कानों में।
चतुर्वेदी जी स्वयं एक कवि व लेखक होने के साथ, एक कर्मठ सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। साहित्य की सेवा हेतु कई संस्थाओं का सञ्चालन करते हैं और उनके अतिरिक्त कई सामाजिक संस्थाओं में सक्रीय भागीदार हैं।जहाँ वे सोच (सोशल अॉर्गनाईजेशन फॉर केयर एंड हारमनी) के अध्यक्ष हैं, गैस्टा, (गवर्नमेंट एडेड स्कूल टीचर्स एसोसिएशन) के पदाघिकारी भी हैं और साथ ही जानी मानी पत्रकारिता की संस्था ट्रू मीडिया के सदस्य।
साहित्यिक के क्षेत्र में अपनी व्यक्तिगत योगदान - जैसे कि अपनी कविताओं के साथ उन्होंने सम्राट अशोक के जीवन पर आधारित नृत्य-नाटिका का लेखन व संगीत का समायोजन भी किया और डॉ. प्रवीण शुक्ल (सुविख्यात हास्य-व्यंग्य कवि व संचालक) पर आधारित लेखों के संकलन का संपादन भी किया के अतिरिक्त उनकी रचनात्मक योगदान भी कितना महत्वपूर्ण है, इस बात से पता चलता है कि देश के कई जाने माने साहित्यकार उनकी संस्थाओं के माध्यम से सम्मानित हो चुके हैं। सुप्रसिद्ध कवि एवं गीतकार श्री किसन सरोज, प्रख्यात गीतकार व ग़ज़लकार डॉ. कुँअर बैचन एवं सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कवि व श्रेष्ठ मंच संचालक डॉ. प्रवीण शुक्ल को संवेदना सम्मान से सम्मानित करने का गौरव श्री विनयशील चतुर्वेदी को प्राप्त है। इन्होंने श्री बृज शुक्ल घायल (हिन्दी साहित्य सेवी) को भी जीवन पर्यन्त हिन्दी सेवी सम्मान से सम्मानित किया है तथा नवोदित रचनाकारों को काव्य संगोष्ठियों के माध्यम से मंच प्रदान किया। इन्हें विश्व हिन्दी सम्मेलन में फिजी के रचनाकारों का अभिनन्दन व भोज कराने का भी गौरव प्राप्त है।
इनके सामाजिक और सांस्कृतिक योगदान की झलक, निशांत नाट्य मंच से जुड़कर देश के विभिन्न हिस्सों में नुक्कड़ नाटकों के मंचन में भागीदारी के द्वारा हिंदू-मुस्लिम एकता व भाईचारे के लिए, मज़दूरों के बीच शराब बंदी के लिए, ख़ालिस्तान अातंकवाद के विरुद्ध, लोगों के बीच एकता व अखण्डता के लिए किये गए कार्य से मिलती है।
साहित्यिक उपलब्धियों का श्रेय, वे अपने सबसे छोटे चाचा, श्री विद्याभूषण चौबे और अपनी पत्नी कुमुद को देते हैं। इन्हें दिल्ली लाने वाले इनके चाचा ही थे। उनकी साहित्य में गहरी रुचि थी। दिल्ली में वे नियमित रूप से कवि गोष्ठियाँ, साहित्यिक चर्चाएँ तथा संगीत के आयाेजन करवाते रहते। वे निशांत नाट्य मंच, सम्मशुल इस्लाम संचालित करते थे, से लगभग 8 वर्ष तक जुड़े रहे और नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से दिल्ली और दिल्ली से बाहर देश की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं एवं विसंगतियों से जुड़े अनेक नुक्कड़ नाटकों में सहभागी रहे।
इनकी कुछ अन्य उपलब्धियां निम्न हैं :
वैद्यराज आरोग्य फाउंडेशन, दिल्ली द्वारा आयोजित आरोग्य उत्सवों में भागीदारी के द्वारा भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के प्रचार-पसार का कार्य।
हास्य योग केन्द्र,दिल्ली में रचनात्मक भागीदारी। योग से संबंधित अनेक कार्यक्रमों व शिविरों का दिल्ली और दिल्ली से बाहर आयोजन।
पूर्वाभ्यास नाट्य, मुंबई द्वारा सामाजिक विसंगतियों पर आधारित नाटको सुगंधी (मंटो), रक्त बीज (शंकर शेष), मोजेल (मंटो) के आयोजन में सहयोग तथा विद्यालय के छात्रों के साथ अभिनय और साहित्यिक कार्यशालाओं का आयोजन।
सामाजिक कुरीतियों और आवश्यकताओं पर आधारित लघु फिल्मों " सी राइट एंड लेफ्ट बीफोर क्रॉस दि रोड" (सड़क दुर्घटनाओं पर जागरूकता के लिए), "मैडम"(स्त्री सुरक्षा और सजगता के लिए), "मेरा बेटा" (वृद्ध आश्रमों में बुजुर्गों की दीनता पर) का निर्माण।
बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ की परिकल्पना पर आधारित हिन्दी फीचर फिल्म बावली का निर्माण। महिला सशक्तीकरण पर आधारित टी. वी. सीरियल (दूरदर्शन में लंबित) का निर्माण।
मुझे दृढ विश्वास है कि उनकी साहित्य साधना व कला के प्रति समर्पण अबाध्य रूप से चिरंतन चलता रहेगा और उनके कार्य कलापों से शिक्षार्थियों के साथ, सम्पूर्ण समाज को समुचित लाभ मिलेगा।
एस. डी. तिवारी, एडवोकेट
कवि एवं लेखक
रचयिता -
अंग्रेजी : द सिंगिंग ब्रीज, बर्ड्स ऑफ चांटिंग वर्ड्स डॉ- महेश दिवाकर का परिचय
योग्यता - पी. एच. डी., डी. लिट् (हिंदी), पी. जी. डिप्लोमा इन जर्नलिज्म
सम्प्रति - पूर्व हिंदी प्राध्यापक, गुलाब सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिजनौर
जे. जे.टी. यूनिवर्सिटी राजस्थान
प्राध्यापक (हिंदी) हिन्दू कॉलेज, मुरादाबाद
प्रकाशित कृतियां -
अनेक मूल रचनाओं की और सम्पादित पुस्तकें
८ समीक्षा ग्रन्थ, २ साक्षात्कार संग्रह ३ गीत संग्रह ९ मुक्तक गीति संग्रह
७ खंड काव्य १४ यात्रा वृत्त व संस्मरण
१७ सम्पादित कवी संकलन
विश्वविद्यालय में समाहित ३ सम्पादित काव्य संकलन
२०१८ में प्रकाशित दिवाकर दोहावली, ८५० पृष्ठों का दोहा संग्रह, लोक धारा -१
सम्मान ५० से अधिक सम्मान
२०१६ से २०१९ भारत सर्कार के केंद्रीय हिंदी सलाहकार समिट के सदस्य
डॉ. दिवाकर के मार्गदर्शन में ४० से भी अधिक छात्रों का शोध कार्य
लगभग सौ राष्ट्रिय और अंतराष्ट्रीय साहित्य संगोष्ठियों में प्रतिनिधित्व
२०. कविता की सबसे बड़ी वेब साइट आल पोएट्री पर ४७ स्वर्ण, ६८ रजत, ८४ कांस्य पदक के अतिरिक्त ३५७ रचनाओं पर सम्माननीय उल्लेख
प्रकाशित पुस्तकें : हिंदी - हाइकु शास्त्र, कविता तो बोलेगी, क्या सखि साजन, चाँद के गांव, दुनिया गिर गयी, नन्हीं, बोलते मोती, दिल्ली के झरोंखे, गुनगुनाती हवा, मुहब्बत के मोती, तेरे नाम के मोती, मोतियन की लड़ी, पांच दाने मोती, गीत गुंजन, प्यार का पिंजरा, हाइकु रामायण, आशिक अली की होली, बसे विदेश, विदेश की चटनी, इनकी उनकी, राम का वकील, त्रिपदी रामायण, जी लो बचपन, दिल प्रेम समुन्दर, भगवती माई, सखि कह मुकरी, श्रीदुर्गा कथा, दिल में दिल्ली, हिन्दू धर्म - दर्शन व मंथन
अंग्रेजी
- द सिंगिंग ब्रीज, बर्ड्स ऑफ़ चांटिंग वर्ड्स, मेलोडीज ऑफ़ साइलेंट हार्ट, द फ्रेंच वे पोएट्री
कोई न और
जग का रखवाला
कृष्ण गोपाला
श्री एस. डी. तिवारी, काव्य का पर्याय
साहित्य की दुनिया में श्री सत्यदेव तिवारी का नाम संभवतः कम ही लोग जानते होंगे, परन्तु वे दो दर्जन से भी अधिक काव्य पुस्तकों के रचनाकार हैं। आकर्षक व्यक्तित्व और चहुंमुखी प्रतिभा के धनी श्री एस. डी. तिवारी का जन्म सन 1955 में गाजीपुर (उ. प्र.) जनपद के एक गांव में, एक किसान परिवार में हुआ। गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ते, गुल्ली डंडा और कबड्डी खेलते, वे बड़े हो गए। बचपन गांव में व्यतीत होने के कारण, उनकी प्रकृति से निकटता बनी रही और प्रकृति के संग यह लगाव अंत तक कम नहीं हुआ। बचपन में बारिश देखना, बारिश में भीगना, भरे ताल तलैया, मेढकों की टर्र टर्र उनके मन को आनंद से भर देते। भोर के अँधेरे में ही जाकर, अपने बाग से टपके हुए पके आम बिन कर लाना और अपनी पसंद के आम अलग रख लेना, उनके बचपन का अति सुन्दर पहलू होता। आंधी आने पर जहां लोग घर में छुप कर बैठते, वे गांव के अन्य बच्चों के साथ आम बिनने के लिए बाग़ में धावा बोलते। यूँ तो उनके जीवन का अधिकांश भाग दिल्ली जैसे महानगर में बीता परन्तु ग्रामीण पृष्ठभूमि की छाप उनके हृदय में गहराई तक अंकित है। बचपन से ही वे अत्यंत कर्तव्यनिष्ठ, मेधावी, सचेत और दयालु प्रकृति के रहे हैं। प्रतिभाशाली छात्र होने के कारण, अपनी उम्र के बच्चों की टोली में उनका सतत सम्मान रहता। बाल्यकाल में भी वे उदंडता से परे रहकर, अनुशासन और शालीनता का ही परिचय देते। छोटे बड़े सबका सम्मान करना उन्हें अपने पारिवारिक संस्कार के रूप में मिला।
गांव में निवास करने के कारण, बचपन में उन्हें पढ़ाई के अतिरिक्त घर के कई काम भी करने पड़ते। घर पर बंधे पशुओं की देख रेख से लेकर, उन्हें खेतों में फसल को चिड़ियों द्वारा क्षति से बचाने के लिए भी हाथ बटाना पड़ता। गुलेल और ढेलवास बनाकर, जहाँ खेत से चिड़िया उड़ाते, वहीँ निशानेबाजी का अभ्यास भी करते। गांव के पोखरा में जाकर किलोल करना, खेत से मटर की फली तोड़ कर खाना और गन्ना तोड़कर चूसना, उनके बालपन के अभिन्न अंग थे। सम्भवतः प्रकृति के साक्षात् दर्शन ने ही उन्हें कवि बनने को प्रेरित किया।
गांव में निवास करने के कारण, बचपन में उन्हें पढ़ाई के अतिरिक्त घर के कई काम भी करने पड़ते। घर पर बंधे पशुओं की देख रेख से लेकर, उन्हें खेतों में फसल को चिड़ियों द्वारा क्षति से बचाने के लिए भी हाथ बटाना पड़ता। गुलेल और ढेलवास बनाकर, जहाँ खेत से चिड़िया उड़ाते, वहीँ निशानेबाजी का अभ्यास भी करते। गांव के पोखरा में जाकर किलोल करना, खेत से मटर की फली तोड़ कर खाना और गन्ना तोड़कर चूसना, उनके बालपन के अभिन्न अंग थे। सम्भवतः प्रकृति के साक्षात् दर्शन ने ही उन्हें कवि बनने को प्रेरित किया।
उनके माता-पिता श्रीमती दुर्गावती और श्री वंश नारायण तिवारी, उत्तम आजीविका की खोज में दिल्ली आ गए थे। श्री एस. डी. तिवारी एक मेधावी छात्र थे, इसलिए उनके पिताजी ने सोचा कि गांव में उनकी ठीक से पढ़ाई नहीं हो पायेगी, इस कारण वे उन्हें पूर्व माध्यमिक शिक्षा के उपरांत उच्च शिक्षा हेतु दिल्ली ले आये। आरंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के गांव में ग्रहण करने के कारण, दिल्ली के विद्यालय प्रवेश देने में आनाकानी कर रहे थे, इसका मुख्य कारण था, उत्तर प्रदेश में अंग्रेजी की पढ़ाई की न्यूनता। किसी तरह से एक विद्यालय, परीक्षा लेकर उन्हें प्रवेश देने को तत्पर हुआ।
प्रारम्भिक शिक्षा की अवस्था में ही उनके हृदय में कवि का जन्म हो चुका था। तत्कालीन पाठ्य पुस्तकों की कवितायेँ उन्हें अत्यंत प्रिय थीं। उस समय तुलसीदास, सूरदास, मीरा, रसखान, कबीर, रहीम के तिरिक्त, रामधारी सिंह दिनकर, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, मैथलीशरण गुप्त, महादेवी आदि महाकवियों की कवितायेँ पाठ्यपुस्तकों में होने के कारण उन्हें पढ़ने का अवसर मिला और ये सभी उनके प्रिय कवियों में से हैं । इनमें से किसी एक जैसा बनने की ललक उनके मन में तभी घर कर गयी थी। अपने छात्र जीवन में भी वे गहरी सोच और चिंतन में डूबे रहते थे। परिस्थितियों वश, उन्होंने रोजगार परक शिक्षा की आवश्यकता का अनुभव किया, इस कारण आगे की शिक्षा में वाणिज्य विषय को चुना। परिणाम स्वरुप उनके अंदर का कवि उनकी शिक्षा तथा कार्यकाल की अवधि में सुप्तावस्था में ही रहा। अभी शिक्षा पूरी भी नहीं हुई थी कि मां बाप ने वैवाहिक सूत्र में बांध दिया। विवाह के पश्चात् उनकी पत्नी सुनैना ने, शिक्षा ही नहीं, अपितु जीवन के हर यज्ञ में उन्हें भरपूर सहयोग दिया। अपनी पढ़ाई चालू रखते हुए, उन्होंने वाणिज्य में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त किया और इसके अतिरिक्त विधि में स्नातक और कार्मिक प्रबंध में स्नातकोत्तर डिप्लोमा भी प्राप्त किया।
शिक्षा पूरी होते ही, उन्हें एक सार्वजानिक संस्थान में सेवा करने का अवसर मिल गया। केंद्रीय सरकार के सार्वजनिक उपक्रम में, वे प्रबंधकीय पद पर तीस वर्षों तक विभिन्न विभागों में कार्यरत रहे। अपने कुशल एवं निष्ठा पूर्ण कार्य के कारण, वे पूरे ही कार्यकाल में वरिष्ठ और अधीनस्थ दोनों ही अधिकारियों व कर्मचारियों के प्रिय रहे, और उनका कार्य प्रशंसनीय रहा। इन्हें आरम्भ से ही सरल और सीधा सादा जीवन पसंद रहा, इस कारण स्वयं भी वे सरल स्वाभाव के ही हैं। अपने सेवा काल में, वे साहित्य के क्षेत्र में कोई विशेष योगदान नहीं दे पाए, बस छुटपुट काव्य रचनायें करते रहे। इस अवधि में उन्होंने श्री दुर्गा सप्तशती का हिंदी काव्य रूपांतरण किया, परन्तु किसी कारण वश वह प्रकाशित नहीं हो पायी। सेवा निवृत्ति के पश्चात् उनकी लेखनी ने गति पकड़ी और काव्य उनके जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया।
उन्हें प्रकृति से बहुत प्रेम है और साथ ही देशाटन का। पर्वत की वादियों और समुद्र की लहरों के साथ उन्हें हरे भरे उद्यानों में रंग बिरंगे खिले फूल देखना भी बहुत भाता है। वे देश के लगभग सभी प्रमुख स्थलों की यात्रा के अतिरिक्त, कई विदेश यात्रायें भी कर चुके हैं। एक बार उन्हें ऑस्ट्रेलिया जाने का अवसर मिला, वहां उन्होंने अंग्रेजी में कुछ कवितायेँ लिखीं जो कि वहां की पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। यह उनके अंग्रेजी में कविता लिखने का प्रेरणा स्रोत बन गयी। तत्पश्चात, अंग्रेजी की अनेकों कवितायेँ लिखीं और कविताओं की वेबपृष्ठों पर प्रकाशित होती रहीं। उन्होंने उन वेबपृष्ठों पर अंग्रेजी की कई प्रतियोगिताओं के लिए भी बहुत सी कवितायेँ लिखीं और उनमें से कई कविताओं ने प्रथम या द्वितीय स्थान प्राप्त किया। इस बात ने उन्हें और लिखने के लिए, उत्साह से भर दिया। उनकी हिंदी काव्य यात्रा सेवानिवृत्ति के पश्चात् गतिमान हो गयी और कुछ ही वर्षों में इनकी लेखनी ने विभिन्न विधाओं की रचनाओं का भरमार लगा दिया। उन्होंने एक दर्जन से अधिक देशों की साहित्यिक यात्राएं भी की हैं।
अंग्रेजी की कविता लिखने और काव्य वेबपृष्ठों पर प्रकाशित होने के क्रम में इनका हाइकु विधा से साक्षात्कार हुआ और अंग्रेजी भाषा में अन्य विधाओं के साथ हाइकु भी खूब लिखे। अंग्रेजी से हाइकु सीखने के पश्चात् हिंदी में भी हाइकु लिखना प्रारम्भ किया और हाइकु लिखने की सम्पूर्ण विधि बताते हुए अपनी पुस्तक 'हाइकु शास्त्र' की रचना की। इनकी काव्य विधाओं में हाइकु, मुक्तक, दोहे, कुंडलियां, कह-मुकरी, गजल, चौपाई, तिपाई, छंदमुक्त काव्य इत्यादि सम्मिलित हैं। उनकी अब तक प्रकाशित पुस्तकें हैं :
हिंदी : १. दुनिया गिर गयी (मुक्तक संग्रह),
२. दिल्ली के झरोंखे,
३. चाँद के गांव (काव्य संग्रह)
४. कविता तो बोलेगी (काव्य संग्रह),
५. गीत गुंजन (काव्य संग्रह),
६. क्या सखि साजन (कह मुकरी संग्रह)
९. नन्हीं (हाइकु संग्रह),
१०. बोलते मोती (हाइकु संग्रह),
११. मोतियन की लड़ी (हाइकु संग्रह),
१२. मुहब्बत के मोती,
२. दिल्ली के झरोंखे,
३. चाँद के गांव (काव्य संग्रह)
४. कविता तो बोलेगी (काव्य संग्रह),
५. गीत गुंजन (काव्य संग्रह),
६. क्या सखि साजन (कह मुकरी संग्रह)
७. प्यार का पिंजरा (मुक्तक संग्रह)
८. हाइकु शास्त्र,९. नन्हीं (हाइकु संग्रह),
१०. बोलते मोती (हाइकु संग्रह),
११. मोतियन की लड़ी (हाइकु संग्रह),
१२. मुहब्बत के मोती,
१३. तेरे नाम के मोती,
१४. पांच दाने मोती,
१५. हाइकु रामायण,
१६. गुनगुनाती हवा (गीतिका,गजल),
१७. आशिक अली की होली,
१८. बसे विदेश,
१४. पांच दाने मोती,
१५. हाइकु रामायण,
१६. गुनगुनाती हवा (गीतिका,गजल),
१७. आशिक अली की होली,
१८. बसे विदेश,
१९. विदेश की चटनी,
२०. इनकी उनकी
२०. इनकी उनकी
२१ राम का वकील
२२. जी लो बचपन
२३. त्रिपदी रामायण
२४ दिल प्रेम समुन्दर
२५ सखि कह मुकरी
२६ भगवती माई
२७ हिन्दू धर्म - दर्शन मंथन
अंग्रेजी : १. द सिंगिंग ब्रीज (काव्य संग्रह)
२. बर्ड्स ऑफ़ चांटिंग वर्ड्स (काव्य संग्रह)
२. बर्ड्स ऑफ़ चांटिंग वर्ड्स (काव्य संग्रह)
इनके भाषा की शैली में, आम बोलचाल की खड़ी हिंदी है। अंग्रेजी भाषा की भी उनकी दो काव्य रचनाएँ प्रकाशित हैं। तिवारी जी साहित्यिक अलंकरणों के लिए बहुत अधिक उत्सुक नहीं रहते यद्यपि उनके कार्य को कई संगठनों ने सराहा और अलंकृत किया है। विभिन्न संस्थाओं द्वारा उन्हें निम्न सम्मानों से सम्मानित किया गया है :
१. अधूरा मुक्तक फेसबुक साहित्यिक मंच द्वारा 'साहित्य रत्न' सम्मान
२. छंद मुक्त विधा में स्वर्णकार तेजमन स्मृति सम्मान
३. ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड
९. इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल द्वारा सम्मानित
१०. पुस्तक 'राम का वकील' को 'महर्षि बाल्मीकि' सम्मान
११. अखिल भारतीय हिंदी साहित्य समागम, पलामू द्वारा सारस्वत सम्मान
१२. आई. सी. एम्. डी. आर. द्वारा सम्मानित
१३. अंतराष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा ऑस्ट्रिया में सम्मानित
१४. ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा 'साहित्य जगत के शिला लेख' सम्मान
१५. मुक्तक लोक द्वारा 'मुक्तक-लोक गीत रत्न' सम्मान
१६. ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा शब्द सारथी सम्मान
३. ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड
४. बीस पुस्तकों के एक साथ लोकार्पण पर साहित्य प्रेमी मंडल द्वारा सम्मान
५. अंतराष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा 'साहित्य भूषण' सम्मान६. इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में सर्वाधिक पुस्तकों के एक साथ विमोचन के कीर्तिमान हेतु नाम अंकित व प्रमाणपत्र
७. अंतराष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा 'साहित्य भूषण' सम्मान
८. राज रचना कला एवं साहित्य समिति, रायपुर द्वारा पर्यावरण संरक्षण सम्मान७. अंतराष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा 'साहित्य भूषण' सम्मान
९. इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल द्वारा सम्मानित
१०. पुस्तक 'राम का वकील' को 'महर्षि बाल्मीकि' सम्मान
११. अखिल भारतीय हिंदी साहित्य समागम, पलामू द्वारा सारस्वत सम्मान
१२. आई. सी. एम्. डी. आर. द्वारा सम्मानित
१३. अंतराष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा ऑस्ट्रिया में सम्मानित
१४. ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा 'साहित्य जगत के शिला लेख' सम्मान
१५. मुक्तक लोक द्वारा 'मुक्तक-लोक गीत रत्न' सम्मान
१६. ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा शब्द सारथी सम्मान
१७, पुस्तक 'जी लो बचपन' को शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान २०२२
१८. कविता की सबसे बड़ी वेब साइट आल पोएट्री पर ५० स्वर्ण, ७५ रजत, ९० कांस्य
पदक के अतिरिक्त ३७८ रचनाओं पर सम्माननीय उल्लेख
१८. कविता की सबसे बड़ी वेब साइट आल पोएट्री पर ५० स्वर्ण, ७५ रजत, ९० कांस्य
पदक के अतिरिक्त ३७८ रचनाओं पर सम्माननीय उल्लेख
यह तो उनकी साहित्यिक यात्रा का आरम्भ भर है, अंतिम पड़ाव की खोज में यह यात्रा कहाँ तक ले जाती है, समय ही तय करेगा। किन्तु यह बात अति विस्वास के साथ कहा जा सकता है कि तिवारी जी की साहित्यिक यात्रा के साथ अलंकरण भी चलते रहेंगे और यह साहित्यकार अपनी रचनाओं के द्वारा, हिंदी साहित्य में अपना एक विशेष स्थान बना कर रहेगा। यह बात उन्हीं की एक कविता से परिलक्षित होती है -
कविता
की चिंगारी
को, मशाल बनाकर मानूंगा।
शब्दों
को गूँथ माला, कमाल बनाकर मानूंगा।
दिखलायेगी राह प्रीति की, ऐसी जयोति
जलाऊंगा।
तम, उर के निकाल दिलों
में, प्रकाश
मैं भर जाऊंगा।
चल पड़े जो शांति, अहिंसा
और विकास
के पथ पर,
युव-शक्ति को प्रेम का, भूचाल बनाकर
मानूंगा।
सूरज के उगते ही और कमलदल खिलते
ही।
दिन भर के आये नए विचार, शाम के ढलते ही।
लेखनी से शब्दों
में ढाल, साहित्य के सागर में,
सुन्दर मनहर नाव विशाल, बनाकर मानूंगा।
राजनीति
के दलदल,
और कुशासन
के घर में।
वही बोलूंगा, जो कुछ देखूंगा,
झांक कर निडर मैं।
गाड़े हुए लोक विरुद्ध,
उन सब कार्य
कलापों को,
खोद डाले जड़ से जो, कुदाल बनाकर
मानूंगा।
शब्दों
को जोड़ तोड़ कर, और कुछ मीठे रस भर।
वेदना संवेदना
की गहराई की तह तक जाकर।
जीवन के हर पहलू और प्रत्येक हृदय को छूकर,
कविता
को जीवन का सुर ताल बनाकर
मानूंगा।
भूत, वर्तमान को टटोलते,
भविष्य में झांककर।
डूब सोच की गहराई
में, भावों को निकालकर।
अंतरिक्ष के उस पार, झांकने
की खिड़की
खोल,
दिव्यदृष्टि दूरबीन विकराल बनाकर
मानूंगा।
एस. डी. तिवारी
परिचय
नाम
: एस. डी. तिवारी
पूरा नाम : सत्य देव तिवारी
आत्मज : श्री वंश नारायण तिवारी एवं श्रीमती दुर्गावती
पूरा नाम : सत्य देव तिवारी
आत्मज : श्री वंश नारायण तिवारी एवं श्रीमती दुर्गावती
पत्नी : सुनैना तिवारी
जन्म तिथि : २० दिसम्बर, १९५५
जन्म तिथि : २० दिसम्बर, १९५५
जन्म स्थान : जनपद गाज़ीपुर, उ. प्र.
शिक्षा
: एम० काम०, एलएल० बी०, कार्मिक प्रबंध में डिप्लोमा
काव्य विधाएँ : हाइकु, गीत, गीतिका, गजल, मुक्तक, दोहा, कुंडलियां, कह मुकरी, तांका, छंद मुक्त काव्य एवं कहानियां
सम्प्रति : दिल्ली में वकालत एवं स्वतंत्र लेखन
मोबाइल :
7982202009, 9868924139
ईमेल
: sdtiwari1@gmail.com
सम्मान : सम्मान : १. अधूरा मुक्तक फेसबुक साहित्यिक मंच द्वारा 'साहित्य रत्न' सम्मान
२. छंद मुक्त विधा में स्वर्णकार तेजमन स्मृति सम्मान
३. ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड
९ . इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल द्वारा सम्मानित
१०. पुस्तक 'राम का वकील' को 'महर्षि बाल्मीकि' सम्मान
११. अखिल भारतीय हिंदी साहित्य समागम, पलामू द्वारा सारस्वत सम्मान
१२. आई. सी. एम्. डी. आर. द्वारा सम्मानित
१३. अंतराष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा ऑस्ट्रिया में सम्मानित
१४. ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा 'साहित्य जगत के शिला लेख' सम्मान
१५. मुक्तक लोक द्वारा 'मुक्तक-लोक गीत रत्न' सम्मान
१६. ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा शब्द सारथी सम्मान
३. ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड
४. बीस पुस्तकों के एक साथ लोकार्पण पर साहित्य प्रेमी मंडल द्वारा सम्मान
५. अंतराष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा 'साहित्य भूषण' सम्मान
६. इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में सर्वाधिक पुस्तकों के एक साथ विमोचन के कीर्तिमान हेतु नाम अंकित व प्रमाणपत्र
७ . अंतराष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा 'साहित्य भूषण' सम्मान
८. राज रचना कला एवं साहित्य समिति, रायपुर द्वारा पर्यावरण संरक्षण सम्मान७ . अंतराष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा 'साहित्य भूषण' सम्मान
९ . इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल द्वारा सम्मानित
१०. पुस्तक 'राम का वकील' को 'महर्षि बाल्मीकि' सम्मान
११. अखिल भारतीय हिंदी साहित्य समागम, पलामू द्वारा सारस्वत सम्मान
१२. आई. सी. एम्. डी. आर. द्वारा सम्मानित
१३. अंतराष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा ऑस्ट्रिया में सम्मानित
१४. ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा 'साहित्य जगत के शिला लेख' सम्मान
१५. मुक्तक लोक द्वारा 'मुक्तक-लोक गीत रत्न' सम्मान
१६. ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा शब्द सारथी सम्मान
१७, पुस्तक 'जी लो बचपन' को शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान २०२२
१८. कविता की सबसे बड़ी वेब साइट आल पोएट्री पर ५० स्वर्ण, ७५ रजत, ९० कांस्य
पदक के अतिरिक्त ३७८ रचनाओं पर सम्माननीय उल्लेख
१८. कविता की सबसे बड़ी वेब साइट आल पोएट्री पर ५० स्वर्ण, ७५ रजत, ९० कांस्य
पदक के अतिरिक्त ३७८ रचनाओं पर सम्माननीय उल्लेख
प्रकाशन - साँझा संग्रह :
शताब्दी के सौ हाइकुकार (हाइकु संग्रह), चंद कदम (कहानी संग्रह), अधूरा मुक्तक संग्रह,
अधूरी गजल संग्रह, छीनो न बचपन (काव्य संग्रह), शब्द सारथी, गीत हो गए सिंदूरी, वृक्ष वसुंधरा आदि
शताब्दी के सौ हाइकुकार (हाइकु संग्रह), चंद कदम (कहानी संग्रह), अधूरा मुक्तक संग्रह,
अधूरी गजल संग्रह, छीनो न बचपन (काव्य संग्रह), शब्द सारथी, गीत हो गए सिंदूरी, वृक्ष वसुंधरा आदि
प्रकाशित पुस्तकें :
हिंदी : १. दुनिया गिर गयी (मुक्तक संग्रह),
२. दिल्ली के झरोंखे,
३. चाँद के गांव (काव्य संग्रह)
४. कविता तो बोलेगी (काव्य संग्रह),
५. गीत गुंजन (काव्य संग्रह),
६. क्या सखि साजन (कह मुकरी संग्रह)
९. नन्हीं (हाइकु संग्रह),
१०. बोलते मोती (हाइकु संग्रह),
११. मोतियन की लड़ी (हाइकु संग्रह),
१२. मुहब्बत के मोती,
हिंदी : १. दुनिया गिर गयी (मुक्तक संग्रह),
२. दिल्ली के झरोंखे,
३. चाँद के गांव (काव्य संग्रह)
४. कविता तो बोलेगी (काव्य संग्रह),
५. गीत गुंजन (काव्य संग्रह),
६. क्या सखि साजन (कह मुकरी संग्रह)
७. प्यार का पिंजरा (मुक्तक संग्रह)
८. हाइकु शास्त्र,९. नन्हीं (हाइकु संग्रह),
१०. बोलते मोती (हाइकु संग्रह),
११. मोतियन की लड़ी (हाइकु संग्रह),
१२. मुहब्बत के मोती,
१३. तेरे नाम के मोती,
१४. पांच दाने मोती,
१५. हाइकु रामायण,
१६. गुनगुनाती हवा (गीतिका,गजल),
१७. आशिक अली की होली,
१८. बसे विदेश,
१४. पांच दाने मोती,
१५. हाइकु रामायण,
१६. गुनगुनाती हवा (गीतिका,गजल),
१७. आशिक अली की होली,
१८. बसे विदेश,
१९. विदेश की चटनी,
२०. इनकी उनकी
२०. इनकी उनकी
२१ राम का वकील
२२. जी लो बचपन
२३. त्रिपदी रामायण
२४ दिल प्रेम समुन्दर
२५ सखि कह मुकरी
२६ भगवती माई
२७ हिन्दू धर्म - दर्शन मंथन
अंग्रेजी : १. द सिंगिंग ब्रीज (काव्य संग्रह)
२. बर्ड्स ऑफ़ चांटिंग वर्ड्स (काव्य संग्रह)
२. बर्ड्स ऑफ़ चांटिंग वर्ड्स (काव्य संग्रह)
विनयशील चतुर्वेदी
जन्म तिथि- 04 अक्टूबर 1961
ग्राम+पोस्ट- कमलसागर, ज़िला- मऊ
उत्तर प्रदेश, भारत।
माँ- श्रीमती निर्मला चौबे (सेवानिवृत्त प्रधानाचार्या)।
पिता- श्री चंद्रभूषण चौबे (सेवानिवृत्त असिस्टेण्ट डेवलपमेंट अॉफीसर,सहकारिता, उत्तर प्रदेश)।
पत्नी- श्रीमती कुमुद लता चतुर्वेदी (प्रवक्ता इतिहास)।
पुत्रियाँ- शिल्पी (इंजीनियर, आस्टर्ेलिया) और सृष्टि (नौकरी)
बहन- श्रीमती वीणा पाण्डेय
भाई- विवेक शील चतुर्वेदी
व्यवसाय- शिक्षण
योग्यता- स्नातकोत्तर (हिन्दी), योग व संगीत (सितार)।
पद- अध्यक्ष(सोच ' सोशल अॉर्गनाईजेशन फॉर केयर एंड हारमनी), ट्रेजरार (गैस्टा, गवर्नमेंट एडेड स्कूल टीचर्स एसोसिएशन), सदस्य(ट्रू मीडिया)।
वर्तमान पता- सी-485/बी, गली सं.- 24, भजनपुरा, दिल्ली- 110053
साहित्यिक योगदान - 80 से अधिक कविताओं की रचना। सम्राट अशोक के जीवन पर आधारित नृत्य-नाटिका का लेखन व संगीत समायोजन। डॉ. प्रवीण शुक्ल (सुविख्यात हास्य-व्यंग्य कवि व संचालक) पर आधारित लेखों का संकलन ".........." का उप संपादन।
रचनात्मक योगदान- सोच के माध्यम से सुप्रसिद्ध कवि- गीतकार श्री किसन सरोज, प्रख्यात गीतकार - ग़ज़लकार डॉ. कुँअर बैचन एवं सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कवि व श्रेष्ठ मंच संचालक डॉ. प्रवीण शुक्ल का संवेदना सम्मान से सम्मान। श्री बृज शुक्ल घायल (हिन्दी साहित्य सेवी) को जीवन पर्यन्त हिन्दी सेवी सम्मान से सम्मानित किया। नवोदित रचनाकारों को काव्य संगोष्ठियों के माध्यम से मंच प्रदान किया। विश्व हिन्दी सम्मेलन में फिजी के रचनाकारों का अभिनन्दन व भोज। ट्रू मीडिया में सक्रिय भागीदारी।
सामाजिक- सांस्कृतिक योगदान - निशांत नाट्य मंच से जुड़कर देश के विभिन्न हिस्सों में नुक्कड़ नाटकों के मंचन में भागीदारी के द्वारा हिंदू-मुस्लिम एकता व भाईचारे के लिए , मज़दूरों के बीच शराब बंदी के लिए, ख़ालिस्तान अातंकवाद के विरुद्ध, लोगों के बीच एकता व अखण्डता के लिए कार्य।
वैद्यराज आरोग्य फाउंडेशन, दिल्ली द्वारा आयोजित आरोग्य उत्सवों में भागीदारी के द्वारा भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के प्रचार-पसार का कार्य।
हास्य योग केन्द्र,दिल्ली में रचनात्मक भागीदारी। योग से संबंधित अनेक कार्यक्रमों व शिविरों का दिल्ली और दिल्ली से बाहर आयोजन।
पूर्वाभ्यास नाट्य, मुंबई द्वारा सामाजिक विसंगतियों पर आधारित नाटको सुगंधी (मंटो), रक्त बीज (शंकर शेष), मोजेल (मंटो) के आयोजन में सहयोग तथा विद्यालय के छात्रोंक के साथ अभिनय और साहित्यिक कार्यशालाओं का आयोजन।
सामाजिक कुरीतियों और आवश्यकताओं पर आधारित लघु फिल्मों " सी राइट एंड लेफ्ट बीफोर कर्ास दि रोड" (सड़क दुर्घटनाओं पर जागरूकता के लिए), "मैडम"(स्त्री सुरक्षा और सजगता के लिए), "मेरा बेटा" (वृद्ध आश्रमों में बुजुर्गों की दीनता पर) का निर्माण।
बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ की परिकल्पना पर आधारित हिन्दी फीचर फिल्म बावली का निर्माण। महिला सशक्तीकरण पर आधारित टी. वी. सीरियल (दूरदर्शन में लंबित) का निर्माण।
सम्मान-
साहित्य गौरव सम्मान 2016 (सत्यम प्रकाशन, राजस्थान)
साहित्य सेवा सम्मान 2017 (नवांकुर साहित्य सभा, दिल्ली)
पृष्ठभूमि और घटनाएँ-
बचपन।
मेरा जन्म 04 अक्टूबर 1961 गाँव कमलसागर तत्कालीन जिला आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश (वर्तमान जिला मऊ) में हुआ। पिताजी (श्री चंद्रभूषण चौबे) की नौकरी लग गई थी अतः मेरा शैशव काल सुखमय रहा, यद्यपि पिताजी पर संयुक्त परिवार जिसमें हमारा परिवार सबसे बड़ा था , पिता जी, बाबा, दादी, तीनों चाचा, बूआ आदि का भार था। मैं ज्येष्ठ पुत्र था अत: तत्कालीन समय में मेरी सुख- सुविधा का विशेष ध्यान रखा गया।
मेरी प्रारंभिक शिक्षा कमलसागर में ही हुई। माँ (श्रीमती निर्मला चौबे) ने ही पाँचवीं कक्षा तक मुझे पढ़ाया । वे वहाँ शिक्षिका थी। माँ के मै बहुत करीब रहा और मेरी मूल प्रवृत्ति उन्हीं सें मिली। 5 जी बाहर नौकरी करते थे। वे अपनी पीढ़ी में घर के बड़े थे। उनका और उनकी राय का सब लोग सम्मान करते थे। शनिवार को ही घर लौटते थे। हम उनसे रिजर्व रहते थे और काम की ही बात करते थे।
हमारा घर पाँच पीढ़ियों का एक संयुक्त कुलीन ब्राह्मण परिवार जो मुख्य रूप से कृषि और नौकरी पर आश्रित था , तत्कालीन समय में एक तरह से साहित्यिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र था। मेरे दादा जी स्वर्गीय पं. यमुना चौबे को संगीत का अच्छा ग्यान था, उनका स्वर भी मृदुल था, के संयोजन में अक्सर बैठक में या दरवाजे पर शास्त्रीय व लोक संगीत/लोक कला का आयोजन होता रहता था। हमारे दरवाजे पर होने वाली रामलीला प्रसिद्ध थी। पिताजी की भी संगीत में रूचि रही इसलिए सांस्कृतिक-साहित्यिक आयोजन बदस्तूर चलते रहे।
हमारे एक चाचा पं़ गोरखनाथ चौबे ख्याति प्राप्त लेखक थे और इलाहाबाद में रहते थे। उन्होंने राजनीति विषय पर 90 से अधिक पुस्तकें लिखीं। वे लाल बहादुर शास्त्री जी के घनिष्ठ रहे। जब भी वे गाँव आते थे घर पर क्षेत्र के तमाम बुद्धिजीवी और रचनाकार एकत्रित होते थे। मैं उस समय बहुत छोटा था चर्चाएं समझ नहीं आती थी पर घर का माहौल बदल जाता था और हम बच्चों को शांत रहने की विशेष हिदायत मिल जाती थी। हाँ , एक बात मुझे आश्चर्यचकित करती थी। गोरख चाचा गाँव आने से पहले चिट्ठी के माध्यम से या किसी व्यक्ति के माध्यम से गाँव आने की अग्रिम सूचना भेजते थे। उनके गाँव आने की सूचना मिलते ही गाँव में सभी घरों की लिपाई शुरू हो जाती थी। दीवारें चिकनी मिट्टी से ओर ज़मीनें गोबर से। वे आने पर गाँव में घर-घर घूमने जाते थे। सफेद दमकता खादी का कुर्ता और धोती ,गोरा शरीर व मुख पर तेज। मुझे धुँधला सा अब भी याद। बाद में लोगों के मुँह से सुना कि राहुल जी (राहुल सांकृत्यायन) और श्री लक्षमी नारायण मिश्र कई बार उनके साथ आते थे।
हमारे एक दूसरे चाचा स्वर्गीय श्री रामबृक्ष चौबे स्वतंत्रता सेनानी थे। सन् 1942 में इनकी अगुवाई में अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने के लिए मधुबन थाने का घेराव हुआ था। अंग्रेजी पुलिस द्वारा गोली बारी की गई जिसमें 150 लोग शहीद हुए जिसके लिए उन्हें 20 वर्ष की कालेपानी की सजा सुनाई गई। आजादी के बाद वे राजनीति में भी सक्रिय रहे। वे सोसलिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। क्षेत्र में उनका बड़ा मान-सम्मान था । वे लोकप्रिय थे। देश - विदेश पर राजनीतिक चर्चा बैठक के वराण्डे में होती ही रहती थी।क्षेत्र के राजनीतिक हलके के लोग आते रहते थे। हाँ! श्री रामसुन्दर पाण्डेय जी उनके मित्र थे। चंद्रशेखर जी, कल्पनाथ राय जी को मै पहचानता था। उन्हें तजरीह दी जाती थी। दोनों ही युवा और जुझारू नेता थे। मुझे अभी भी उनके शब्द याद हैं कि वे कैसे हमें सोते से उठाते थे। समझ और साहस के साथ-साथ वे विषम परिस्थितियों में भी सहज रहते थे। उनके व्यक्तित्व ने मुझे प्रभावित किया है।
मेरे नाना स्वर्गीय डॉ. केदार नाथ मिश्र भी स्वतंत्रता सेनानी थे। ब्रिटिश हुकूमत के विरोध में कई बार जेल गए और नजरबंद रहे। आजादी के बाद लोहिया के साथ आ गए वे उनके घनिष्ठ रहे। 15 वर्षों तक ब्लाक प्रमुख रहे। क्षेत्र में लोगों के बीच अच्छी पकड़ थी। बचपन में मैं ननिहाल, फुलेस जो आज़मगढ़ के पश्चिम में स्थित है, गर्मियों के अवकाश में जाया करता था। नाना जी से मिलने के लिए और अपनी समस्याओं के समाधान के लिए वहाँ 5 बजे सुबह से ही भीड़ जुट जाती थी। लोगों की समस्याओं को सुनना और समझना मुझे अच्छा लगता था। बाद में नाना जी कुछ समस्याओं को मुझसे डिस्कस करते थे।
संभवतः उपरोक्त तमाम परिस्थितियों और पारिवारिक परिवेश ने ही मुझे संस्कृति, समाज और साहित्य की ओर आकर्षित किया है।
दिल्ली आना और बसना -
मेरे सबसे छोटे चाचा, श्री विद्याभूषण चौबे दिल्ली में इतिहास के अध्यापक थे। जब चाची जी को लाए तो साथ ही मुझे भी शिक्षा के लिए दिल्ली ले आए। उनकी साहित्य में गहरी रुचि थी। बनारस में शिक्षा के दौरान उनके लेख समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते थे। यहाँ दिल्ली में भी नियमित रूप से कवि गोष्ठियाँ, साहित्यिक चर्चाएँ होती रहती थी तथा संगीत के आयाेजन होते रहते थे। मेरी इन सब में अत्यधिक रूचि रहती थी। दिल्ली में मेरी इन्टरमीडिएट तक की शिक्षा हुई। बी. ए. , एम. एम. एच. कॉलेज गाज़ियाबाद से तथा एम.ए. की शिक्षा मेरठ विश्वविद्यालय से हुई।
वैसे तो कविताएँ मैं कॉलेज (1979) से ही लिखने लग गया था परंतु इसके प्रति सजग नहीं था । छिट- पुट तौर पर लिखता था। कुछ दिन सहेजता था फिर भूल जाता था।
वर्ष 1983 मेरे लिए विशेष रहा क्योंकि जून में कुमुद ने मेरी जिंदगी को सँवारने की ज़िम्मेदारी ले ली और अगस्त में मुझे जॉब मिली। 1984 में कुमुद दिल्ली आ गईं मेरे साथ और हम चाचा जी के ही साथ उनके मकान की छत पर एक 9×5 फुट का कमरा बनवाकर हम रहने लगे। कुमुद ने एम. ए. (इतिहास) और बी. एड. कर विद्यालय में नौकरी करली। 1989 में अपने मकान में शिफ्ट हो गया और दिल्ली में स्थाई रूप से बस गया।
1985 में मैं निशांत नाट्य मंच, सम्मशुल इस्लाम संचालित करते थे, से जुड़ गया। लगभग 8 वर्ष तक जुड़ा रहा और नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से दिल्ली और दिल्ली से बाहर देश की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं एवं विसंगतियों से जुड़े अनेक नुक्कड़ नाटकों में सहभागी रहा। इस दौरान साम्यवाद को समझने-जानने का अवसर मिला। साम्यवादी साहित्य के साथ ही भारतीय साहित्य काे खूब पढ़ा। ऐसा मैं कह सकता हूँ कि मेरी राजनीतिक, सामाजिक और साहित्यिक सोच यहीं परिपक्व हुई। साथ ही मैने गांधर्व महाविद्यालय, कमला नगर, दिल्ली से संगीत (सितार) की शिक्षा गुरू बाबूलाल जी से ली।
प्रतिभाओं के धनी श्री विनयशील चतुर्वेदी
दिल्ली के हिंदी साहित्य के क्षेत्र में श्री विनयशील चतुर्वेदी का एक जाना माना नाम है। दिल्ली के एक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में अध्यापन के साथ, वे साहित्य के लिए भी निरंतर समर्पित रहे हैं और साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने अद्वितीय रचनात्मक योगदान दिया है, जिसके लिए उन्हें कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया गया है। विगत दो वर्षों में उन्हें सतत, उनके सराहनीय कार्यों के लिए 'साहित्य गौरव सम्मान 2016 (सत्यम प्रकाशन, राजस्थान)' और 'साहित्य सेवा सम्मान 2017 (नवांकुर साहित्य सभा, दिल्ली)' से सम्मानित किया गया।
एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में जन्मे श्री विनयशील चतुर्वेदी और मेरे जीवन में कई समानताएं हैं। हम दोनों का जन्म उत्तर प्रदेश के ही गांव में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा गांव में ग्रहण करने के पश्चात् उच्च शिक्षा और जीविकोपार्जन के लिए दिल्ली आगमन हुआ। दोनों ही अपने अपने जीवन के निर्धारित लक्ष्य से हटकर आगे के सोपान चढ़े। जहाँ मेरी बचपन की अभिलाषा शिक्षक और कवि बनने की थी, परन्तु परिस्थितियों और जीविकोपार्जन की प्रमुखता के कारण प्रबंधक बनना पड़ा। शिक्षक तो नहीं बन पाया किन्तु अपने कवि को नहीं मरने दिया। वहीँ श्री विनयशील चतुर्वेदी का अभिनेता बनने का स्वप्न आरम्भ में तो साकार नहीं हो पाया और वे शिक्षक बन गए। परन्तु उन्होंने भी अपने अभिनेता को मरने नहीं दिया और किसी न किसी रूप में अब तक जीवित रखा है। यही कारण है कि साहित्यकार होने के साथ कई नाटकों में अभिनय के अतिरिक्त उन्होंने कुछ लघु फ़िल्में भी बनायीं हैं। अभिनय के अतिरिक्त वे साहित्य और संगीत साधना में भी पारंगत हैं। साहित्य और संगीत उन्हें अपने परिवार से विरासत में मिली। उनकी माँ, श्रीमती निर्मला चौबे शिक्षिका थीं, चतुर्वेदी जी उन्हीं के विद्यालय में उनसे पाँचवीं कक्षा तक पढ़े। यही कारण है कि वे सदैव अनुशासित और संस्कारी रहे। क्योंकि इनका परिवार साहित्यिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र था। इनके दादा जी यमुना चौबे को संगीत का अच्छा ज्ञान था, उनका स्वर भी मृदुल था। उनके तत्वधान में घर पर ही अक्सर शास्त्रीय व लोक संगीत/लोक कला का आयोजन होता रहता था। हमारे दरवाजे पर होने वाली रामलीला प्रसिद्ध थी। पिताजी चंद्र भूषण चतुर्वेदी जी को भी संगीत में रूचि रही, इसलिए इनके दादा के बाद भी सांस्कृतिक-साहित्यिक आयोजन दादा जी के निधन के पश्चात् भी चलता रहा। उनके ग्रामीण और पारिवारिक परिवेश ने ही विनयशील जी को संस्कृति, समाज और साहित्य की ओर आकर्षित किया।
उनका जन्म गांव में, एक किसान परिवार में होने और पले बड़े होने के कारण, वहां के रमणीय वातावरण और स्मृतियां उन्हें सदैव आमंत्रित करती रहती हैं। उ. प्र. के मऊ जिला में उनके गांव, कमल सागर की जिस पावन भूमि से जुड़ी चतुर्वेदी जी की जड़ है, दिल्ली जैसे महानगर में रह कर भी उसे छोड़ नहीं पाते और कुछ कुछ समय के अंतराल पर अपने गांव का भ्रमण कर वो स्मृतियाँ वापस बटोर लाते हैं।
बाग, तड़ाग, खेत, खलिहानों में।
गांव के सिंदूरी साँझ विहानों में।
बचपन के पल भूले न विनय जी,
गुल्ली डंडा, फूलों की मुस्कानों में।
साहित्यिक के क्षेत्र में अपनी व्यक्तिगत योगदान - जैसे कि अपनी कविताओं के साथ उन्होंने सम्राट अशोक के जीवन पर आधारित नृत्य-नाटिका का लेखन व संगीत का समायोजन भी किया और डॉ. प्रवीण शुक्ल (सुविख्यात हास्य-व्यंग्य कवि व संचालक) पर आधारित लेखों के संकलन का संपादन भी किया के अतिरिक्त उनकी रचनात्मक योगदान भी कितना महत्वपूर्ण है, इस बात से पता चलता है कि देश के कई जाने माने साहित्यकार उनकी संस्थाओं के माध्यम से सम्मानित हो चुके हैं। सुप्रसिद्ध कवि एवं गीतकार श्री किसन सरोज, प्रख्यात गीतकार व ग़ज़लकार डॉ. कुँअर बैचन एवं सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कवि व श्रेष्ठ मंच संचालक डॉ. प्रवीण शुक्ल को संवेदना सम्मान से सम्मानित करने का गौरव श्री विनयशील चतुर्वेदी को प्राप्त है। इन्होंने श्री बृज शुक्ल घायल (हिन्दी साहित्य सेवी) को भी जीवन पर्यन्त हिन्दी सेवी सम्मान से सम्मानित किया है तथा नवोदित रचनाकारों को काव्य संगोष्ठियों के माध्यम से मंच प्रदान किया। इन्हें विश्व हिन्दी सम्मेलन में फिजी के रचनाकारों का अभिनन्दन व भोज कराने का भी गौरव प्राप्त है।
इनके सामाजिक और सांस्कृतिक योगदान की झलक, निशांत नाट्य मंच से जुड़कर देश के विभिन्न हिस्सों में नुक्कड़ नाटकों के मंचन में भागीदारी के द्वारा हिंदू-मुस्लिम एकता व भाईचारे के लिए, मज़दूरों के बीच शराब बंदी के लिए, ख़ालिस्तान अातंकवाद के विरुद्ध, लोगों के बीच एकता व अखण्डता के लिए किये गए कार्य से मिलती है।
साहित्यिक उपलब्धियों का श्रेय, वे अपने सबसे छोटे चाचा, श्री विद्याभूषण चौबे और अपनी पत्नी कुमुद को देते हैं। इन्हें दिल्ली लाने वाले इनके चाचा ही थे। उनकी साहित्य में गहरी रुचि थी। दिल्ली में वे नियमित रूप से कवि गोष्ठियाँ, साहित्यिक चर्चाएँ तथा संगीत के आयाेजन करवाते रहते। वे निशांत नाट्य मंच, सम्मशुल इस्लाम संचालित करते थे, से लगभग 8 वर्ष तक जुड़े रहे और नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से दिल्ली और दिल्ली से बाहर देश की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं एवं विसंगतियों से जुड़े अनेक नुक्कड़ नाटकों में सहभागी रहे।
इनकी कुछ अन्य उपलब्धियां निम्न हैं :
वैद्यराज आरोग्य फाउंडेशन, दिल्ली द्वारा आयोजित आरोग्य उत्सवों में भागीदारी के द्वारा भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के प्रचार-पसार का कार्य।
हास्य योग केन्द्र,दिल्ली में रचनात्मक भागीदारी। योग से संबंधित अनेक कार्यक्रमों व शिविरों का दिल्ली और दिल्ली से बाहर आयोजन।
पूर्वाभ्यास नाट्य, मुंबई द्वारा सामाजिक विसंगतियों पर आधारित नाटको सुगंधी (मंटो), रक्त बीज (शंकर शेष), मोजेल (मंटो) के आयोजन में सहयोग तथा विद्यालय के छात्रों के साथ अभिनय और साहित्यिक कार्यशालाओं का आयोजन।
सामाजिक कुरीतियों और आवश्यकताओं पर आधारित लघु फिल्मों " सी राइट एंड लेफ्ट बीफोर क्रॉस दि रोड" (सड़क दुर्घटनाओं पर जागरूकता के लिए), "मैडम"(स्त्री सुरक्षा और सजगता के लिए), "मेरा बेटा" (वृद्ध आश्रमों में बुजुर्गों की दीनता पर) का निर्माण।
बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ की परिकल्पना पर आधारित हिन्दी फीचर फिल्म बावली का निर्माण। महिला सशक्तीकरण पर आधारित टी. वी. सीरियल (दूरदर्शन में लंबित) का निर्माण।
मुझे दृढ विश्वास है कि उनकी साहित्य साधना व कला के प्रति समर्पण अबाध्य रूप से चिरंतन चलता रहेगा और उनके कार्य कलापों से शिक्षार्थियों के साथ, सम्पूर्ण समाज को समुचित लाभ मिलेगा।
एस. डी. तिवारी, एडवोकेट
कवि एवं लेखक
रचयिता -
हिंदी : हाइकु शास्त्र, नन्हीं, बोलते मोती, मोतियन की लड़ी, दिल्ली के झरोंखे, मुहब्बत के मोती, तेरे नाम के मोती, पांच दाने मोती, गुनगुनाती हवा, दुनिया गिर गयी, गीत गुंजन, चाँद के गांव, कविता तो बोलेगी, क्या सखि साजन, प्यार का पिंजरा, हाइकु रामायण, श्री दुर्गा कथा, आशिक अली की होली, बसे विदेश, विदेश की चटनी, इनकी उनकी
अंग्रेजी : द सिंगिंग ब्रीज, बर्ड्स ऑफ चांटिंग वर्ड्स
योग्यता - पी. एच. डी., डी. लिट् (हिंदी), पी. जी. डिप्लोमा इन जर्नलिज्म
सम्प्रति - पूर्व हिंदी प्राध्यापक, गुलाब सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिजनौर
जे. जे.टी. यूनिवर्सिटी राजस्थान
प्राध्यापक (हिंदी) हिन्दू कॉलेज, मुरादाबाद
प्रकाशित कृतियां -
अनेक मूल रचनाओं की और सम्पादित पुस्तकें
७ खंड काव्य १४ यात्रा वृत्त व संस्मरण
१७ सम्पादित कवी संकलन
विश्वविद्यालय में समाहित ३ सम्पादित काव्य संकलन
२०१८ में प्रकाशित दिवाकर दोहावली, ८५० पृष्ठों का दोहा संग्रह, लोक धारा -१
सम्मान ५० से अधिक सम्मान
२०१६ से २०१९ भारत सर्कार के केंद्रीय हिंदी सलाहकार समिट के सदस्य
डॉ. दिवाकर के मार्गदर्शन में ४० से भी अधिक छात्रों का शोध कार्य
लगभग सौ राष्ट्रिय और अंतराष्ट्रीय साहित्य संगोष्ठियों में प्रतिनिधित्व
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