,
(1) 2122 112 112 112 ( 22)
(2) 2122 2122 2122 212
(3) 1222 1222 1222 1222
(4) 122 122 122 122
(5) 121 22 121 22 121 22 121 22
(6) 221 2122 221 2122
(7) 221 1221 1221 122
(8) 221 2121 1221 212
(9) 11212 11212 11212 11212
(10) 2212 2212 2212 2212
(11) 1212 1212 1212 1212
(12) 212 1212 1212 1212
(13) 1212 1122 1212 22
(14) 122 122 122
(15) 122 122 122 12
(16) 212 212 212 2
(17) 212 212 212 212
(18) 1212 212 122 1212 212 22
(19) 2212 1212
(20) 2122 2122
(21) 2122 1122 22\
(22) 2122 2122 212
(23) 2122 1122 1122 22
(24) 1121 2122 1121 2122
(25) 1222 1222 122
(26) 1222 1222 122
(27) 212 1222 212 1222
(28 2122 1212 22
मेरी जेब पे नजर रखो, कोई बात नहीं। मंजूर हमें
पल पल की तुम खबर रखो, कोई बात नहीं।
चाहा मैं तुम्हारे लिए, खुशियों का आलम,
मेरे लिए गम मगर रखो, कोई बात नहीं।
लिए हो इरादा तुम, बस दुखाने का दिल,
घाव पर हाथ अगर रखो, कोई बात नहीं।
हममें है कूबत बड़ी, दर्द ढोने की भारी,
बोझ कितना भी जबर रखो, कोई बात नहीं।
चल के राहों में तुम्हारी, हैं पांव लहूलुहान,
कांटे बिछा के डगर रखो, कोई बात नहीं।
लगता है कि रह गया है, अभी भी कुछ बाकी,
तबाही के लिए कहर रखो, कोई बात नहीं।
कदमों में तुम्हारे ही, मर मिटने को तैयार,
पीने के लिए जहर रखो, कोई बात नहीं।
यादों में करता यूँ तो, रात भर जगराता है।
जाने से उनके यहाँ, दिल क्यों घबराता है?
जाने ना छोड़ेंगे कि पकड़ कर मरोड़ेंगे,
सोच-सोच बावरा ये, डर से थर्राता है।
उनकी अदाओं की जब, छा जाता है बादल,
दूर तक चारों ओर, जलवा बिखराता है।
उनके आन बान की तो, है बात ही कुछ और,
हर जगह उनका ही पर उन्हीं का, पताका फहराता है।
जाने अनजाने घर पर, बुला तो लेते हैं वो ,
उनका कुत्ता देख कर, हमको पर गुर्राता है।
चला आ रहा है खेता, बड़ी सिद्दत से ये दिल,
जहाज इश्क का कभी, डूबता, उतराता है।
आज फिर देर से आया, झूठे कहीं के।
तू दिल में क्या छुपाया, झूठे कहीं के।
होंठ के दाग नहीं तो कमीज पर क्या है?
लाल निशान ये लगाया, झूठे कहीं के।
पीने को जिधर जाते, आ रहा है रस्ते,
पान यूँ ही नहीं चबाया, झूठे कहीं के।
रहती पगार जस की तस, महीने की अब भी
घंटे कहता और लगाया, झूठे कहीं के।
कितना हो जाता पेट, खास जब पकाया
टिफीन दूना भरवाया, झूठे कहीं के।
तेरे बटुए में खाली, सुबह थे सात हजार,
पेट्रोल कितना भरवाया, झूठे कहीं के?
किये हुए फोन की सूची से, एक है गायब,
ये नंबर किसका मिटाया, झूठे कहीं के।
थोड़ा आ जाता है जोश, पीने के बाद।
दिल हो जाता है खरगोश, पीने के बाद।
खो देते होंगे लोग मदिरालय जाकर,
हमको आता ही है होश, पीने के बाद।
होती परवाह कहाँ, भर जाने पर जाम,
हो जाये खाली भी कोष, पीने के बाद।
आने लगता है मजा, थोड़ा थोड़ा सा जब,
लगते दिखाने क्यों रोष? पीने के बाद।
रखते तो यूँ हमेशा, मुंह को बंद कर के,
कहो रहें कैसे खामोश, पीने के बाद।
भाग जाता गम, लौ से अँधेरे की तरह,
रखे होता जो दिल पोष, पीने के बाद।
बहक जाएँ अगर, सम्हालना न बेशक,
मगर तुम देना नहीं दोष, पीने के बाद।
चंद यारों का साथ हो, पीने का मजा और।
जब रात की शुरुआत हो, पीने का मजा और।
सूरज ढल चुका हो, पसर रहा अँधेरा हो,
सितारों की बारात हो, पीने का मजा और।
खाने का सामान हो, मुंह चलता रहे साथ,
नाश्ता और सलाद हो, पीने का मजा और।
क्या कुछ चल रहा है, अपने दोस्तों के साथ,
चर्चा में हालात हो, पीने का मजा और।
फुर्सत की घड़ी हो, कह्कसों की फूलझड़ी हो,
झंझटों से निजात हो, पीने का मजा और।
हल्का हल्का सा शुरूर, 'देव' आये तो जरूर,
नशा अपनी अवकात हो, पीने का मजा और।
ढलक जाय जो जाम में, शीशे को हो गरूर,
बढ़िया भरी शराब हो, पीने का मजा और।
गैरों से आये खत को,
गौर किये ताड़ा उसने।
चिट्ठी को लिखी हमारी, पाते ही
फाड़ा उसने।
खत लिखने
की जुर्रत, हुई तो कैसे
उसकी,
सुनाकर के सरेआम, चौक पे चिंघाड़ा उसने।
चबा कर के खा जायेगी, लगा कि कच्चा ही वो,
समझ लिया था हमको जैसे, हों कोई छुहाड़ा उसने।
घूम घूम कहती फिरती, है एक अजनबी हमको,
मुहब्बत का सिखाया था, कहूं तो पहाड़ा उसने।
मिल गया था साथ उसको, अब तो किसी और ही का,
उसके ही सामने हमको, बुरी तरह से झाड़ा उसने।
जब तक तो चाहा उसने, जी भर के सवारी किया,
देने तक का सोचा नहीं, टट्टू का भाड़ा उसने।
जीने के भी लायक ना, छोड़ी बेवफा हमको,
जीते जी ही नीचे तक, जमीन में गाड़ा उसने।
उधर को रुखसार थे, वो पीने से पहले।
पीने के बीमार थे, वो पीने से पहले।
आँखों के सामने, उठा जाम कर लेते
देखते पेग की धार थे, वो पीने से पहले।
आते देखे जनाब, अब्बा को उसी दर से,
बड़े ही शर्मसार थे, वो पीने से पहले।
जाते ही मना किया, शाकी ने इस बार,
दो माह के उधार थे, पीने से पहले।
किया बखेड़ा तो, आ गए मुस्तण्डे दो
महफ़िल में तार तार थे, वो पीने से पहले।
किस्मत के धनी थे, बात बन ही गयी
पा गए पुराने यार थे, वो पीने से पहले।
उड़ने लग पड़े थे, थोड़ा पीने के बाद
अपने पर ही भार थे, वो पीने से पहले।
बहकी बहकी सी, कर रहे बातें अब तो
ज्ञान के भंडार थे, वो पीने से पहले।
मैंने भी दिया है अर्जी, मेरी सरकार सुनो।
न चलाओ अपनी मर्जी, मेरी सरकार सुनो।
दिल की बात कही दिल से, सुन लो तो एक बार,
न समझना इसको फर्जी, मेरी सरकार सुनो।
ऐसी भी नहीं खता थी, रख लो लगाके दिल से,
क्यों हो रूठे इस कदर जी, मेरी सरकार सुनो।
चक्कर में तुम खुद के ही, मोड़ रहे मुंह ऐसे,
भारी न पड़े खुदगर्जी, मेरी सरकार सुनो।
अपनी याद करो कसमें, खाये साथ चलने की,
अब जाते हो क्यों मुकर जी, मेरी सरकार सुनो।
निरर्थक ही आजकल क्यों? बातों से तुम मेरी,
हो रखने लगे एलर्जी, मेरी सरकार सुनो।
तुम दूर चले भी जाओ, न करेंगे हम शिकायत,
देते रहना बस खबर जी, मेरी सरकार सुनो।
अपने दीवानों पर, मुहब्बत लुटाती है।
दिल्ली! इस माफिक क्यों, दर्द सहे जाती
है!
आगोश में जादू तेरी, कैद हुए हैं लाखों,
चाहत जो रखते तेरी, बाखूब निभाती है।
दौड़ रही होती नित, चैन न लेती है तू,
दिन चाहे रैना हो, कभी न सुस्ताती है।
जोश भर निकल जाती, घर से तू तड़के ही,
जाम, कभी
बत्तियों पर, थमी नजर आती है।
थार के मरुस्थल कभी, गिरिराज हिमालय से,
अपनों की खातिर तू, मौसम चुरा लाती है।
मुहब्बत अकूत रखे, तू तेरी जमीन से,
छूने अम्बर तू लेकर, उमंग बढ़ जाती है।
रंगमहल,
मधुशाला, तुझपे रंगीनियां भी,
दीवानों को
जन्नत, मानो कि दिखाती है।
आते ना बाज कई, करने से मलिन तुझे,
कानों पे न रेंगे जूँ, कितना समझाती है।
मर्यादा से तेरी, करते खिलवाड़ कई,
बेशर्मियाँ भी उनकी, चुप ही सह जाती
है।
चक्कर बेहिसाब काटे, उनकी हम गली के।
वो थे कि रहे फिसलते, जैसे कि मछली के।
हटना पड़ता पीछे, डराते जब दिखाकर,
ताकत, उसी गली के भाई बाहु-बली के।
एक बार बन आयी, जान पर ही अपनी,
बुला के जनाब लाये, गुंडे शामली के।
कहे तो बुरा न माने, उजड्ड जंगली भी,
सिखाते रहे हमको, पग पग पे सलीके।
एक बार तो कुदरत ने, बात ही बना दी,
गिरने पर तरह चिपके, एक छिपकली के।
लगता गए हैं भूल, वो दिन जब हमने,
खिलाये छील कर के, दाने मूंगफली के।
चले थे वो फंसाने, खुद फंसे चंगुल में,
अब हिसाब ले रहे हैं, किये धांधली के।
पकड़ी है जब से हाथ, चाय की प्याली।
आ रही निभाती साथ, चाय की प्याली।
चाहने लगता है मन, मिल जाए फ़ौरन,
हर दिन होते ही प्रात, चाय की प्याली।
जगा देती है दिल में, थोड़ी ताजगी,
सुस्ती को देकर मात, चाय की प्याली।
हमेशा निभाती साथ, बनकर हमसफ़र,
देती सफर में स्वाद, चाय की प्याली।
पिलाकर कई बार, संग में दोनों को,
बना दी हमारी बात, चाय की प्याली।
जब थमाने को बढ़ाये, हाथ तो छलकी,
हमको वो पहली बार, चाय की प्याली।
देती है एकाध बार, रोज प्याली भर,
जिंदगी की सौगात, चाय की प्याली।
जोड़ी बनी हमारी बेजोड़, शादी के बाद।
समझे जिंदगी का क्या निचोड़, शादी के बाद।
फिरते थे कभी आजाद, एक पंछी की तरह,
एक पिंजरे में दिया सिकोड़, शादी के बाद।
चलते थे कभी पहले, पकड़ कर के वो हाथ
होती अब तीन टांग की दौड़, शादी के बाद।
कहाँ और किस तरह से, काट रहे हम वक्त,
लेता अब हिसाब कोई और, शादी के बाद।
बुलाते थे पहले खुद ही, मिलने को हमेशा,
लेते अब कहने पर मुंह मोड़, शादी के बाद।
भाती है खूबसूरती, फिर भी तो इस दिल को,
देना पड़ा निहारना छोड़, शादी के बाद।
फुलवारी भी मेरी, अब तो मनाती है ख़ुशी,
फूल न ले जाना होता तोड़, शादी के बाद।
चल जाता था पहले तो, मूंगफली से काम
अब खिलाते हैं मेवे फोड़, शादी के बाद।
फोन की घंटी, पूरी की पूरी जाती रही।
जबाब देने से, मगर वो कतराती रही।
हमारा नंबर तक उससे डॉयल ना हुआ
औरों के नंबर पर उंगली घुमाती रही।
आये और गए फोनों का पता न चले,
एक एक करके फोन से मिटाती रही।
बीच में कोई फोन एक ऐसा भी आया,
बातें जानम को रात भर रुलाती रही।
उधर लाइन कटी, जोड़ने इधर खिसकी,
नंबर बदलने की युगत लगाती रही।
खुद को हमारा खास जताने के लिए,
कहानियां कई तरह की सुनाती रही।
चालाकियां फिर भी उसकी कम न हुईं,
अपना काम वो प्रीपेड से चलाती रही।
वास्ता प्यार का देता रहा, इश्क के दौर का चक्कर था।
निसदिन कई बार काटता रहा, मेरे ठौर का चक्कर था।
वक्त के साथ हवा में उड़ गया, इश्क का जज्बा सारा,
फिर आँख मिलाने से बचता रहा, किसी और का चक्कर था।
गुल की पंखुड़ी कहूं कि तुझे शबनम कहूं!
कि मुहब्बत की बारिश का झम झम कहूं!
तू ना होती, बैठ गया होता दिल कबका,
दिल को धड़काने
का, क्यों ना, दमखम कहूं।
मीठी तू इतनी, मीठी हो गयी जुबान,
जी चाहता रसगुल्ला या चमचम कहूं।
दिल में रहती समायी, हरदम इस तरह,
जान कहूं तुझको कि जानूं, हमदम कहूं।
मिल गयी दिल के धार की गहराई में,
गंगा-जमुना का होगा, सच संगम कहूं।
जिंदगी लगी गाने, तराने इश्क के,
उल्फत का साज कहूँ कि सरगम कहूं।
जुड़ गए हैं तार के, कुछ इस तरह से,
करता इश्क तुझी से, दिल, हरदम कहूं।
डाला ऐसा जादू, रंगरेजन ने।
दिल किया बेकाबू, रंगरेजन ने।
सीधा सादा हुआ करता था ये,
बनाया छैला बाबू, रंगरेजन ने।
रेगिस्तान सा सूखा था दिल बंजर,
हरा कर दिया टापू, रंगरेजन ने।
खड़ी थी गाडी दिल की, तेल बिना
किया उसे है चालू, रंगरेजन ने।
मिलाकर रूप में नशा इश्क का,
पिला दिया है दारू, रंगरेजन ने।
हुआ जबसे उसका, कब्ज़ा दिल पर,
कर्फ्यू किया है लागू, रंगरेजन ने।
कभी रंगीन हो गया, अगर ये दिल,
झटक दिया है बाजू, रंगरेजन ने।
देखा मैंने चलता हुआ, गजब का बाजार यहाँ।
होता थोड़ी लकड़ी और कपड़े का व्यापार यहाँ।
आती है भीड़ आँखें खोले, जागते बन्दों की,
होता है केवल मगर, मुर्दा ही खरीददार यहाँ।
एक सी लपटों में, लिवास का रंग एक सबका,
आया चाहे कितना बड़ा, कोई रसूकदार यहाँ।
आने वाला होता, नजदीकी कितना भी बेशक,
छोड़ जाता साथ, घंटे-दो घंटे में रिश्तेदार यहाँ।
ढूंढा जाता लगाने को, आग उसी के तन में,
होता है जो सबसे सगा, उसका नातेदार यहाँ।
छोड़ आया है वो, सारे हिसाब किताब पीछे,
चला रहा था कितना भी, बड़ा कारोबार, यहाँ।
ना तो भाड़ा चुकाया, न लकड़ी घी का दाम दिया,
औरों पर छोड़े जा रहा, खर्च का सब भार, यहाँ।
दिखे चेहरे अनेक, हुस्न की गली में।
लिए आँखों को सेक, हुस्न की गली में।
डाले रहे कटिया, मन लगा के दिन रात,
मछली फंसी न एक, हुस्न की गली में।
पहचानना मुश्किल, थोपड़े मुखौटों में,
दिल देते कैसे फेंक, हुस्न की गली में।
बटुए पर नजर डाले, सारे ही हुस्न वाले,
कोई तो मिलता नेक, हुस्न की गली में।
आये बड़े सिकंदर, कहते कि हम धुरंधर,
खा, चोट गया हरेक, हुस्न की गली में।
बुनते रहे सपने, शादी की सालगिरा का
काटेंगे कभी तो केक, हुस्न की गली में।
कोई तो फुसफुसाती, सोते हुए हमसे,
लगा तकिये की टेक, हुस्न की गली में।
था तुम्हारे प्यार के काबिल, क्यों तोड़ा तुमने?
बड़ा सम्हाल के रखा था दिल, क्यों तोडा तुमने?
अकेले ही नहीं थे हम, प्यार के इस खेल में
इसमें थे तुम भी तो शामिल, क्यों तोड़ा तुमने?
अच्छी भली बह रही थी, पानी सी जिंदगी
सैलाब सा बिखरा ये साहिल, क्यों तोड़ा तुमने?
खेकर के ले आये थे, नाव बड़ी दूर तलक
छूने वाली थी जब मंजिल, क्यों तोड़ा तुमने?
रखा था मैंने वो आईने का टुकड़ा छोटा,
मुखड़ा दिखलाने के काबिल, क्यों तोड़ा तुमने?
गुलाबों की टहनियों पर, भीनी खुशबु बिखराती,
कली अभी ना पायी थी खिल, क्यों तोड़ा तुमने?
खड़ा किये थे एक सपनों का सुनहरा महल,
झेल कर के हम बड़ी मुश्किल, क्यों तोड़ा तुमने?
जब मेरी सगाई का दिन आया।
बगिया के भौरों का दिल दुखाया।
डाली से टूट कर, हार बने फूल,
रोज वाले अलि को बहुत रुलाया।
देख रहे लोग खुश हो के नजारा,
मैं तो आगे की सोच घबराया।
आकर देखा रकीब भी जलवा,
ऊपर से जी भर दावत उड़ाया।
शक्ल सूरत तो वही की वही रही,
पोशाक बेशक नया पहनाया।
अंगूठी ने कर दी अनूठी हरकत
उंगली में जाते नग उखड़ आया।
बारात में भी हंगामा ही बरपा
किसी की जेब का हुआ सफाया।
जैसे ही, घर से मेरी, बारात चली।
पास बड़ी, लगने लगी, जानम की गली।
होने सच, जा रहा एक, सपना बड़ा,
सोच कर, उठने लगी, मन बेकली।
देखी भाली, डर था मगर, मन में इधर,
होगी तीखी मिर्ची की मिश्री की डली।
बीतेंगे, तकरार में कि प्यार में दिन,
थी सोचकर, आगे की मन में खलबली।
इशारों पर, किसी के अब, नाचना होगा,
या कि मन के, मुताबिक मनेगी रंगरली।
पहुँच गयी, दरवाजे पर बारात उनके,
सोचते, विचारते, ज्यूँ ही शाम ढली।
किसी ने कहा, कल्लो तो कोई सांवली,
मेरे लिए, काले वो गुलाब की कली।
मेरे घर रोज आता, पंछी का जोड़ा
मुंडेर पर बैठ जाता, पंछी का जोड़ा
कभी चोंच लड़ा, कभी बदन रगड़
प्यार सिखलाता, पंछी का जोड़ा
सुबह कहीं उड़ जाता, काम पर अपने
रात यहीं संग बिताता पंछी का जोड़ा
दूर कहीं जाकर दाना चुग लाता
बच्चों को खिलाता पंछी का जोड़ा
कभी लगता हो गयी तकरार उनमें
जब पंख फड़फड़ाता पंछी का जोड़ा
देख दिल को तसल्ली मिल जाती
चोंच से चोंच मिलाता पंछी का जोड़ा
प्यार दोनों का देखते ही बनता जब
एक दूजे की पीठ खुजाता पंछी का जोड़ा
दिल है कि बंजारा सा फिरता है।
आवारापन या कि फकीरता है।
एक डाल पे इसका टिकना कठिन,
दिखाता नहीं थोड़ी धीरता है।
उछलता रहता उछृंखल होकर,
धरता नहीं तनिक गंभीरता है।
पार न पाए, टकराये हुस्न से,
समझता है, इसी में वीरता है।
कभी इस दर, कभी उस दर फिरता,
जाकर फिर गड्ढे में गिरता है।
कहता हूँ कि तू एक घर बसा ले,
पर ये है कि रखता नहीं स्थिरता है।
कम्बख्त को अक्ल तब आती है,
आफत में जाकर कहीं घिरता है।
पसीना बहुत बहाया तुमने।
फिर कहीं चमन उगाया तुमने।
राह के कांटे चुन चुन कर के
डगर को साफ बनाया तुमने।
लग के दिन रात सींचा संवारा,
मनोरम फूल खिलाया तुमने।
तितलियों को देख जिंदगी की,
रंगीनियों को जड़ाया तुमने।
आते रहे भौंरे भी रुलाने,
थमा कर फूल हंसाया तुमने।
जब जब चमन मुरझाते देखा,
तप कर बहार बुलाया तुमने।
हँसता रहा चमन ये पल पल,
बहुत ही प्यार लुटाया तुमने।
दिन रात याद सताने लगी, तुम्हारे जाने के बाद।
तन्हाई दिल दुखाने लगी, तुम्हारे जाने के बाद।
थोड़ा सा तब न कर पाए, करते अब इतना बर्दाश्त,
करनी खुद की पछताने लगी, तुम्हारे जाने के बाद।
खानी ही पड़ती है अब, सेंकी हुई खुद की रोटी,
उँगलियों को जलाने लगी, तुम्हारे जाने के बाद।
टेढ़ी मेढ़ी भी अच्छी लगती, खुद की पोई रोटी,
गोल होने से कतराने लगी, तुम्हारे जाने के बाद।
ना अब चाय को पूछता, न 'उठो जी' कहता कोई
देर तक नींद आने लगी, तुम्हारे जाने के बाद।
झाड़ू लगे भी हो जाते हैं, घर में महीनों अपने,
धूल आईना सजाने लगी, तुम्हारे जाने के बाद।
हो गई इतनी बद्तमीज, बिना धुले ही ये कमीज,
कई दिन तन पर छाने लगी, तुम्हारे जाने के बाद।
देखो मधुमास छाने लगा, तुम्हारे जाने के बाद।
दिन तनहा हमें भाने लगा, तुम्हारे जाने के बाद।
पतझड़ आया तो जरूर था, रहा मगर थोड़े ही दिन,
फिर मौसम रंग लाने लगा, तुम्हारे जाने के बाद।
जागे भाग बिल्ली के, कि टूट गया है छींका यूँ,
कोई सांकल बजाने लगा, तुम्हारे जाने के बाद।
दूर ही रहना तुम्हारा, लगता अब दिल को भला,
कोई पास मंडराने लगा, तुम्हारे जाने के बाद।
खुलने लगा है दरवाजा दिल का खुद बा खुद,
भीतर कोई समाने लगा, तुम्हारे जाने के बाद।
मनाते तो मनाते कैसे, इस हाल में आकर तुम्हें,
वो हम पर हक जमाने लगा, तुम्हारे जाने के बाद।
घेर बादल ज्यूँ आ गया, वो दिमाग पर छा गया,
साथ हमारा निभाने लगा, तुम्हारे जाने के बाद।
करा दो हमारा भी व्याह जी, वकील साहब।
होगी तुम्हारी वाह वाह जी, वकील साहब।
दहेज बिन शादी होगी, अपनी आजादी होगी,
कानून के तुम तो बादशाह जी, वकील साहब।
प्यार की दुश्मन बड़ी, दुनिया ये बनकर खड़ी,
रोककर के हमारी राह जी, वकील साहब।
प्यार पर लगा ताला, पुलिस ने पहरा डाला,
दीवार को देना तुम ढाह जी, वकील साहब।
जो मांगोगे मिल जायेगा, काम बस हो जाने दो,
फीस की न करना परवाह जी, वकील साहब।
कागज बनवा लो जी, दस्तखत करवा लो जी,
आपस में रखते हम चाह जी, वकील साहब।
बतला दो जज साहब को, रखें हैं दिल में हम,
प्यार की बड़ी गहरी थाह जी, वकील साहब।
दिला दो हमको भी तलाक जी, वकील साहब।
तुम्हारी जम जाएगी धाक जी, वकील साहब।
जी केस बनाना तगड़ा कि न बचे कोई लफड़ा,
समझना ना बात को मजाक जी, वकील साहब।
बना लिए हैं दोनों ने, अपने अपने यार,
हो गया रिश्ता अब बेबाक जी, वकील साहब।
एक सौ पचीस लगा दो, हिंसा, दहेज लगा दो,
दिला दो बीस पचीस लाख जी, वकील साहब।
रोज वो चढ़ा के आता, घर में फसाद फैलाता,
सिखला दो शांति का पाठ जी, वकील साहब।
चुराया था दिल वो, चोरी का इल्जाम लगा दो,
दे दूंगी मैं फीस ठीक ठाक जी, वकील साहब।
तूला था लेने पर वो, जान निर्मोही जालिम,
कह देना कोर्ट में साफ जी, वकील साहब।
दलील कुछ ऐसी देना, शर्त सब मनवा लेना,
रखना ऊँची अपनी नाक जी, वकील साहब।
लेकर आये जो बहार, ये वही होंठ हैं न!
कहते तुमसे बहुत प्यार, ये वही होंठ हैं न!
होठलाली लगाकर, जो मेरा दिल चुराकर,
दिखाए मुझे चमत्कार, ये वही होंठ हैं न!
कभी अकेले में सभी की, आँखों से बचाकर,
चूम लेते थे बार बार, ये वही होंठ हैं न!
इन प्यार की राहों में, मेरी नादानियों पर,
मुस्कराते थे पुचकार, ये वही होंठ हैं न!
कुछ सही देखने पर, बाँध देते बढ़ा चढ़ा कर,
जो तारीफियों के तार, ये वही होंठ हैं न!
'मेरी ही गलती थी', कहते थे पास आकर,
'इसको देना तुम बिसार', ये वही होंठ हैं न!
छोटी हर बातों पर, बखेड़ा कुछ खड़ा कर,
करने लगे हैं तकरार, ये वही होंठ हैं न!
कोई न कोई बहाना, ढूंढ करते रोजाना,
अब आरोपों के बौछार, ये वही होंठ हैं न!
छोड़ जो शब्दों के तीर, देते छाती को चीर,
बहाते आंसुओं की धार, ये वही होंठ हैं न!
कह रहे जो अब 'जाकर, रहो कहीं बसाकर,
तुम अपना अलग संसार', ये वही होंठ हैं न!
किये हमको इस तरह से, खड़ा यहाँ लाकर के,
जो न्यायालय के द्वार, ये वही होंठ हैं न!
बोली थी बहार, मैं फिर आउंगी।
करना इंतज़ार, मैं फिर आउंगी।
मधु भरा कटोरा, तुम्हें दूंगी पिला,
लेकर मदिर बयार, मैं फिर आउंगी।
सवरूंगी सजूंगी और मैं करूंगी,
फूलों का श्रृंगार, मैं फिर आउंगी।
हो ही जाएगा, पतझड़ का पहाड़,
इक न इक दिन पार, मैं फिर आउंगी।
ले रवि की हंसी, कलियों की मुस्कान,
कोयल की मल्हार, मैं फिर आउंगी।
तेरे दिल में भरने प्रेम सुधा-रस,
नाचने तेरे द्वार, मैं फिर आउंगी।
करना बस इतना, तुम मुरझाना मत
प्रणय का ले उपहार, मैं फिर आउंगी।
मुहब्बत के शायर देखे, नफरतों को बोते हुए।
इंसानियत को धर्म के, बस नाम पर खोते हुए।
आग लगा देते हैं पहले, वो धर्म के ही नाम पर,
जल जाने के बाद दिखते, घड़ियाल सा रोते हुए।
अपनी तो ले जाने को, धार में सबसे आगे.
औरों की खेती नाव को, देखा उन्ह डुबोते हुए।
रहते हैं बेताब खुद वो, फूलों के हार के लिए,
देखा उन्हें औरों के लिए, काँटों को पिरोते हुए।
अपने बस मतलब के लिए, साथ ही चट्टे बट्टे,
बह रहे दरिया में दिखते, हाथों को धोते हुए।
होना जो नहीं चाहिए, इंसानों की बस्ती में,
दिखा देते हैंआँखों को, वही सब वे होते हुए।
अपने को दिखाते जैसे, धर्म के ठेकेदार हैं वे,
धर्म की ही चादर ताने, देखे उन्ह सोते हुए।
हूँ अभी नन्ही कली पर, एक बड़ी अरमान हूँ
खिलखिलाते हर अधर, मैं आपकी मुस्कान हूँ।
घर चहकता है मुझी से और हँसता आंगना
मातु
की मैं लाडली हूँ, तात का अभिमान हूँ।
धरा की मैं छवि बढाती, सुन्दर मुझी से जगत
सुंदर, सुगन्धित चमन में पुहुप सुरभि समान हूँ।
सौंदर्य की हूँ चित्रकारी, गुलिस्तां दिल में लिये
प्रेम का गहरा समुन्दर, मन मुग्धक जहान हूँ।
उस रचयिता की रचित, हूँ सृजन अद्भुत मैं एक
सृजन बढ़ाते बढ़ चलूँ, उसी का वरदान हूँ।
पुष्प सी कोमल बहुत हूँ, खड्ग की मैं धार हूँ
एक पहेली मैं बड़ी हूँ और अति आसान हूँ।
प्रेरणा बन हूँ खड़ी, सफल व्यक्तियों के बगल
बहुत सी उनकी मुश्किलों का, एक समाधान हूँ।
कारक रही प्रजनन की और जग संचलन की
प्रत्येक युग में उपस्थित, नव सृष्टि की विहान हूँ।
वकीलों का ज़माने में अजी बस हाल वो देखा कि
वकालत छोड़ दी मैंने
वकालत करने वालों का अजी अंजाम वो देखा कि
चाहत छोड़ दी मैंने
छुड़ा के हाथ कचहरी से चले आये हम दुनिया में
उतार कर कोट काला पहन लिया वही जंजीर पैरों में
कतराने लगा मुवक्किल, देने से सही पैसे कि
जमानत छोड़ दी मैंने
न हीरा है न मोती है न चांदी है न सोना है
नहीं कीमत सभी को मिलती, कुछ लोगों का खिलौना है
मेरी दीवानगी देखो
ये दौलत छोड़ दी मैंने
खफा क्यों हो तुम्हीं ने तो भुला देना सिखाया है
हमारे हाल पर नहीं कोई कभी भी तरस खाया है
सदस्यों की समिति में कोई सुनता नहीं कि
शिकायत छोड़ दी मैंने
जीवन के संग संग चली, पेट की आग।
सभी कुछ जला कर ही जली, पेट की आग।
कहाँ कहाँ न घुमाई, राहों में भटकायी,
नाच नचायी नगरी, गली, पेट की आग।
क्या क्या न करवाई, खिलाई बुरी कमाई,
जमीर को जलाने पे तुली, पेट की आग।
अपने चक्कर में रही, उलटी धार में बही,
सम्बन्धों में जहर घोली, पेट की आग।
क्या क्या खेल दिखाई, समय असमय रुलाई,
बुद्धि विवेक वश में कर ली, पेट की आग।
किसी को सतायी, किसी का दिल दुखायी,
पापों की झोली भर ली, पेट की आग।
नीचे जमीं पे गिरायी, जीते नरक दिखाई,
शर्म और लाज को धो ली, पेट की आग।
२१२
तू दर्द से बड़ा कराही है, अब मुस्कुरा दे ग़ज़ल।
बहुत रोई और रुलाई है, अब मुस्कुरा दे गजल।
इश्क की इस दुनिया में तेरे, नुहब्बत तो बहुत कम,
हिस्से ज्यादा विरह आयी है, अब मुस्कुरा दे गजल।
जीते हैं दिवाने भी यूँ तो, हसीन सपने लेकर,
ज्यादा दर्द ही तू गायी है, अब मुस्कुरा दे गजल।
जब भी कभी अकेले हुए हैं, आयी तू याद बड़ी,
साथ तन्हाई में निभायी है, अब मुस्कुरा दे गजल।
घावों के घरौदों में रही, गमों की कहानी कही,
जाम भुलाने को पिलाई है, अब मुस्कुरा दे गजल।
तूने दर्द को उभारा खूब, लहू भी रिसाया है,
ऊपर मरहम भी लगायी है, अब मुस्कुरा दे गजल।
तू दिलों को फंसाने के लिए, उल्फत के काँटों में,
खूबसूरती को सराही है, अब मुस्कुरा दे गजल।
मुहब्बत में क्या हुआ है 'देव', हश्र दीवानगी का,
हमें देती रही गवाही है, अब मुस्कुरा दे गजल।
जैसे कान्हा ने अपनी, गोपिकाओं की खातिर
मदभरी बांसुरी बजायी है, मुस्कुरा दे गजल।
हुस्न पाने के लिए जनाब लुटाने लगे पैसे
मिल गयी मुहब्बत तो बचाने लगे पैसे
परिवार के साथ साथ जरूरतें बढ़ गयीं
पूरा करने के लिए और कमाने लगे पैसे
डबल रोटी
उड़ाने लगे पैसे
थमाने
दिखाने
प्यासे का ताव दिखाते क्यों
मेरी गली में आते हो क्यों
जताते हो क्यों
भरमाते
अब जिंदगी है कागज के टुकड़े पर।
चलती है कलम लमहों के दुखड़े पर।
सिमट सी गयी है अपने में आकर,
शब्द उकेरती किसी जाले मकड़े पर।
था समय, निहारने जब कभी ये दिल,
ठहरा करता किसी सुन्दर मुखड़े पर।
भटकता भ्रमित भ्रमर की भांति भव में,
नाचता किसी सुंदरी के नखड़े पर।
खोजती अब कहानियां इनकी उनकी,
बनाती है छंद समाज के लफड़े पर।
दर्द में ख़ुशी, ख़ुशी में दर्द ढूंढती,
घुमाती नजर दूर पास के पचड़े पर।
चलने लग जाती आप ही कलम देखकर,
किसी के प्यार किसी के झगड़े पर।
छिनने लगा इश्क का साया, बुढ़ापा आया।
चाँद देख के, चाँद घबराया, बुढ़ापा आया।
कायम देखते हैं अब भी मन की तरुणाई।
तन को थोड़ा आसक्त पाया, बुढ़ापा आया।
भाती अब भी खूबसूरती पर धुंधली दिखती,
आखों पर धुएं का जाला छाया, बुढ़ापा आया।
नहीं मानती ये जीभ अभी भी लपलपाती,
पर घी, नमक, चीनी ने डराया, बुढ़ापा आया।
दांत बेवफा हुए सोचा खा लेंगे मेवा, मलाई,
कम्बख्तों ने नसें जमाया, बुढ़ापा आया।
रुधिर सुचारु बहाने के लिए आयुर्वेद ने,
नीम का भरवा करेला खिलाया, बुढ़ापा आया।
हो गए रंगीनियों से दूर रहने को मजबूर,
बाल देख जमाना हंसी उड़ाया, बुढ़ापा आया।
खुद तो देर तक सोते मगर सुबह सैर के लिए,
बच्चों ने हाथ में छड़ी थमाया, बुढ़ापा आया।
दिल ही तो है, कभी कभी धड़कने लगता
पर इश्क में भी भजन ही गाया, बुढ़ापा आया।
चाहते हैं अपने भी कि जल्दी बेबाक हो जाए,
अब तक जो कुछ कमाया, बुढ़ापा आया।
छिनने लगा इश्क का साया, बुढ़ापा आया।
चाँद देखकर, चाँद घबराया, बुढ़ापा आया।
जुर्रत की जाने की, इश्क की गली जब भी,
हसीनों ने बड़ा जुल्म ढाया, बुढ़ापा आया।
दिल की धड़कनें तेज, सुना जब भी जमाना,
बुड्ढा कह कर हंसी उड़ाया, बुढ़ापा आया।
इस दिल में तो बसी थी, मूरत कोई और ही,
इश्क में भी भजन ही गाया, बुढ़ापा आया।
न तो दिल देखता, ना जज्बातों को कोई,
दिल के साथ घुटना सताया, बुढ़ापा आया।
बताओ भला बुढ़ौती में जियें तो जियें कैसे?
अपनों ने भी कहा पराया, बुढ़ापा आया।
सताते रहे जो अब तक, अचानक बुड्ढे की,
दौलत से प्यार हो आया, बुढ़ापा आया।
CHAY KI CHUSKI
CHHUTTI KA DIN
SAFED BAAL
HUSN KA MELA
खींचे ले जाती रोजाना, पीने की लत।
पीने वाले को मयखाना, पीने की लत।
कभी ख़ुशी, कभी गम में, पीने का कोई,
ढूंढ ही लेती है बहाना, पीने की लत।
बहके बहके से रहते, शेर कहते जनाब,
बनायी मिजाज शायराना, पीने की लत।
उनकी यादों का आना, और फिर सताना,
चाहे लगा कर के भुलाना, पीने की लत।
यूँ शुरू में लगा था जैसे, मिली कोई नीमत,
कर देगी जिंदगी सुहाना, पीने की लत।
लड़खड़ा जाते कदम अब, कभी भी, कहीं भी,
छीन ली होश का ठिकाना, पीने की लत।
बिगाड़ी है सेहत का हाल, बना दी कंगाल,
कर दी मुश्किल संभाल पाना, पीने की लत।
आज तो बड़े खास लग रहे हो।
दिल के आस पास लग रहे हो।
माथे, सूरज सा बिंदी लगाए,
चमक रहा आकाश लग रहे हो।
सीधा सादा सा रहते थे पहले,
सज धज कर बिंदास लग रहे हो।
खिल रहे हो कुछ इस प्रकार से कि,
फूल लदे अमलतास, लग रहे हो।
तुम्हारे आने से मौसम बदला
यहाँ लाये मधुमास लग रहे हो।
जिसे सहज समझना हो मुश्किल,
जासूसी उपन्यास लग रहे हो।
कहीं तो क़यामत लाओगे ही,
आज तुम अनायास लग रहे हो।
मोबाइल फ़ोन स्टाइल स्माइल डोमिसाइल जुवेनाइल
माल में
वो जब आते हैं याद, हम करते चाँद की बात
खिलते ही जिम्मा निभाने लगा, चमेली का फूल।
मेरी फुलवारी महकाने लगा, चमेली का फूल।
चले आते मंडराते हुए, रस के दीवाने इसके,
गली के भौंरों को लुभाने लगा, चमेली का फूल।
उनकी भी नजर हो जाती है कभी कभी इस ओर,
इस तरह का रंग जमाने लगा, चमेली का फूल।
लगाए हाथ वो लेकर, कभी नाक, कभी गालों पर,
अपनी किस्मत पे इतराने लगा, चमेली का फूल।
चला जाता है उमंग भरे, सूत के धागे में गुँथ,
उनके जूड़े को सजाने लगा, चमेली का फूल।
जाता मिलने किसी से, कुछ एक हाथों में लिए,
जवां बेटे के काम आने लगा, चमेली का फूल।
अपने अर्क को देकर, संवारता गंधी का घर,
खुशबू भरा इत्र बन छाने लगा, चमेली का फूल।
खुशबू बगीचे की बढ़ाई, जब कली मुस्करायी।
आफत बहार ही ले आयी, जब कली मुस्करायी।
महक को चुराने के खातिर, चुपके मचलती हुई,
हवा भी झूमती चली आयी, जब कली मुस्करायी।
फिर रहे थे कहीं बहके से, वो आवारा बनकर,
टोली भौंरों की मंडराई, जब कली मुस्करायी।
कोई रूप-रंग पर मोहा, तो सुगंध पर कोई,
बरबस कितनों को ललचायी, जब कली मुस्करायी।
सींच संवार बड़ा किया जो, अब तक, उस माली ने,
तज दे बगिया जुगत लगायी, जब कली मुस्करायी।
कोई हार बनाने खातिर, कोई चढ़ाने कहीं,
दुनिया फौरन आँख गड़ाई, जब कली मुस्करायी।
कई तो पड़ गए चक्कर में, 'देव' भेजें बाजार,
करने को उसी से कमाई, जब कली मुस्करायी।
होगा वही जो होना, दिल रोता क्यों है?
नैना काहे डुबोना, दिल रोता क्यों है?
होता ना हाथ अपने, प्यार का खिलौना,
खेल पाना या खोना, दिल रोता क्यों है?
वश का नहीं है सबके, जग में झेल पाना,
प्यार का जादू टोना, दिल रोता क्यों है?
प्यार में लिए सदा ही, रहता मीठा दर्द,
हृदय का कोना कोना, दिल रोता क्यों है?
सबको ही मुहब्बत की, राहों में पड़ता,
यादों का बोझ ढोना, दिल रोता क्यों है?
प्यार में रोना धोना, सुनै नहीं कोई,
बेकार पलकें भिगोना, दिल रोता क्यों है?
फूल से ज्यादा कांटे, प्यार की डगर में,
सपने सोच संजोना, दिल रोता क्यों है?
ख़ुशी की तस्वीर गढ़े जा रही है।
दुल्हन बन डोली चढ़े जा रही है।
नयन में बुने हैं, नये ख्वाब उसके,
गमों का पिटारा, दिये जा रही है।
चली है बसाने, सजन का महल अब,
पिता का घर खाली, किये जा रही है।
जगमगा उठेगा, पिया का सजा घर ,
तिमिर मातु उर में, भरे जा रही है।
करती थी रुन झुन, चहकती हमेशा,
सुखोचैन माँ का लिये जा रही है।
उड़े थी कभी, वह कली सी हवा में ,
जहां का वजन सिर, धरे जा रही है।
सखी औ सहेली भरीं अश्क नयनन,
जुदाई गरल वह पिये जा रही है।
पा गए होते साथ, हम तुम्हारा अगर।
चैन के साथ होती, जिंदगी ये बसर।
दिल में ढोते सजाके, यादों को तेरी,
रह गयी उम्र भर यूँ, इधर प्यासी नजर।
रुक भी जाओ जरा, बाद मुद्दत मिले,
देख लें थोड़ी देर, हम तुमको जी भर।
हुये ऐसे हालात, तुम दूर हो गए,
थी गुजारिस ये दिल की, गये होते ठहर।
ग़ुम गये तुम कहीं, दे गये हमको गम,
वक्त काटे थे तनहा, तुम लिए ना खबर।
चलते दुनिया की हम, बड़ी बारात ले,
बस इनायत की नजर, अगर होती इधर।
सपने भी होते कई, अपने भी होते,
जिंदगी 'देव' अपनी, गयी होती संवर।
इश्क में चोट हरेक को खाना ही है
इश्क की मार में अश्क बहाना ही है
सताकर मेरे भी आंसू बहते हो
अपने आंसू को लहू बता के रुलाते हो
हार में जा खुश होता कुछ पल के लिए
फूल जानता है कचरे में जाना ही है
खिलता है चमन बस थोड़े वक्त को
बहार जाने पर उसको मुरझाना ही है
मिलती ख़ुशी पाकर ज़माने से प्यार
छीन के दर्द देता, वो जमाना ही है
रोते दिखता है हर आदमी ही यहाँ
इस दुनिया का किस्सा पुराना ही है
उम्र का तो है अपना तकाजा सुनो
हर जवां को इश्क में फिसल जाना ही है
चाहे मंदिर में जाये या हार में
सम्हालना भला यहाँ आता किसे
जो लूट गया इश्क में वो दीवाना ही है
इश्क की दुनियां में बड़े सितमगर हुए।
जुल्म ढाने वाले सोच से बढ़कर हुए।
डराया बहुत उनको शायरों ने मगर,
इश्क करने वाले कभी न कमकर हुए।
वक्त और ज़माने के बदलने के साथ
दीवानों के नाम भी बदलकर हुए।
इश्क की राह में खाये ठोकरें भी वे,
ठोस और पक्का, ठोक बजकर हुए।
लड़खड़ाये यहाँ उन्हीं के पाँव केवल,
खड़ा जो सहारा लिए, संभलकर हुए।
दीवानों की दीवानगी पर हँसे लोग,
कहकहे भी ज़माने में जमकर हुए।
दीवानगी का मोल कम कहाँ 'देवा',
जिन्दा दीवाने कई तो मरकर हुए।
रख सके काबू में नहीं, जिगर को तुम।
दे रहे दोष औरों की, नजर को तुम।
कैसे छुपोगे दुनिया की नजरों से;
उजाले निकला करोगे, नगर को तुम।
अंजाम से इश्क के, क्यों हो बेखबर;
ठहरा पाओगे कैसे, लहर को तुम।
खबर भी ना होगी, लुट जाओगे जब;
कोसते रह जाओगे, उमर को तुम।
है ये ऐसी सड़क, राह-सूचक नहीं;
पहचान कैसे सकोगे, डगर को तुम।
चढ़ कर रहेगा, जवानी का नशा है;
समाप्त कैसे करोगे, असर को तुम।
गा जायेंगे दीवाने गजल इस जगह,
रह जाओगे ढूंढते, बहर को तुम।
चल दोगे मिला कर के कदमों को जब;
कर पाओगे इश्क के, सफर को तुम।
भौरे मंडराने लगे खिलते ही कली
जैसे ही जवानी ढली
आना जाना कम हुआ इस गली
बदनामी का डर सताने लगा
कहीं भी, कैसे भी रहते, शादी से पहले।
जिससे चाहे मन की कहते, शादी से पहले।
खाने पहनने की ना होती कोई चिंता,
अपने खयालों में बहते, शादी से पहले।
कहाँ थे, कैसे थे? कोई न पूछने वाला,
उलटी सीधी ना सहते, शादी से पहले।
घूमने की आजादी, थी वो भी शहजादी,
कोई होता ना जोहते, शादी से पहले।
अपने कामों की चिंता, कम ही थे करते,
दही दोस्तों की मथते, शादी से पहले।
नहीं होती लगाम किसी और के हाथों में,
दिल को खोल कर के हँसते, शादी से पहले।
आएगी कोई राजकुमारी घर अपने
सलोने से सपने गढ़ते, शादी से पहले।
कहता है बादल बरसो तो ऐसे बरसो
कहती है कोयल बोलो तो ऐसे बोलो
मिठास से श्रोता की कानों में रस घोलो
कहता है पर्वत डोलो या न डोलो
सिर पर है जो भार, सारा ही हंसकर ढो लो
कहती है नदिया बहो तो ऐसे बह लो
राह में मल जो आये हंस कर सबको धो लो
कहता है सूरज चमको तो ऐसे चमको
किसी भी कोने में हो मिटा दो सारे तम को
कहती है रात सोओ तो ऐसे सो लो
सुनहरे दिनों के सपने संजोलो
औरों की नींद की खुद भी साथी हो लो
बो लो खोलो तोलो
पिरोलो चुभोळो
अच्छा होता
चिंताओं भरी सोच, अपनों का दिया।
सिर पे दुखों का बोझ. अपनों का दिया।
खा लिए ज़माने की चोट तब जाकर,
ठोकर का हुआ बोध, अपनों का दिया।
कितनी सुन्दर दिखती थी ये दुनिया
दृग पे जाले का दोष, अपनों का दिया।
बढ़ने से रोकने को खड़ा किये जो
राह के सब अवरोध, अपनों का दिया।
गलतफहमियां और असमंजस सारे
तोड़े सबका भरोस, अपनों का दिया।
बदनामी के ऊपजे काँटों से जिन
दामन में लगे खोंच, अपनों का दिया।
बीती उन बातों की यादों की सुई
बार बार रही कोंच, अपनों का दिया।
चाय की तलब
सुस्ती आलस भगाएंगे, चाय पी के।
काम पर हाथ लगाएंगे, चाय पी के।
जल्दी से बना लो, गरम दो प्याली,
टहलने बाहर जायेंगे, चाय पी के।
हमारे घर आना, बैठेंगे साथ हम,
इस पर चर्चा चलाएंगे, चाय पी के।
आने लगी नींद, पाठ अभी बाकी है,
और आगे पढ़ पाएंगे, चाय पी के।
आकर के पड़ोसी, बैठे हैं घर में,
थोड़ी देर में जायेंगे, चाय पी के।
देर तक चलेगा, ये गाना बजाना,
रात में रंगत जमायेंगे, चाय पी के।
छींक आ रही है, जुकाम का असर है,
दवाई ले के खाएंगे, चाय पी के।
पीने का चाय तो, मिले बस बहाना,
खाली समय बिताएंगे, चाय पी के।
एस. डी. तिवारी
गिड़गिड़ाते फिरते थे पाने को साथ
अब दिखाते हो मूंछो पर ताव
जागते रहे बीती रात, बड़ी देर तक।
प्यार की रही चलती बात, बड़ी देर तक।
लम्बे वक्त तलक, घर से वो बाहर रहे,
हो न सकी अपनी मुलाकात, बड़ी देर तक।
लेकर आये थे वो प्यार से साथ अपने,
देखते रहे हम सौगात, बड़ी देर तक।
छाई रही उँहाई, इधर तो आँखों में,
बिछाते रहे वो बिसात, बड़ी देर तक।
लगाते रहे तरह तरह के युगत उधर,
मिल नहीं पायी फिर निजात, बड़ी देर तक।
छेड़ दिए थे जो अपने शादी की बात,
थी नहीं हो रही समाप्त, बड़ी देर तक।
मन भायी बड़ी 'देवा' मिलन की घड़ी,
खेले दोनों के जज्बात, बड़ी देर तक।
चोर को नज़रों से बचाएगी, चालाक रात।
टेढ़े कारनामे छुपायेगी, चालाक रात।
तू बादल छुपा लेती, तू काजल छुपा लेती,
तड़प दिल की कैसे दबाएगी, चालाक रात।
अँधेरा फैलाएगी, सपनों को चुराएगी,
चाहतों को कैसे बुझाएगी, चालाक रात!
माना कि मूंद देगी, तू जहाँ भर की ऑंखें,
रे दर्द को कैसे सुलायेगी, चालाक रात!
दिन भर के उभरे मनमुटावों को मिटाकर,
बात तो कुछ मन की बनाएगी, चालाक रात।
सजाया और संवारा, दिन में देखा था रूप,
सांवरी को गोरी बतायेगी, चालाक रात!
हरकतों पर हाथ की, देगी डाल काला पर्दा,
सांसों को कैसे ढक पायेगी, चालाक रात!
कर ले तू चालाकी, सारी रात चाहे कुछ भी,
कैसे भोर में भरमायेगी, चालाक रात!
महफ़िलें सजायेगी, तू रंग भी जमायेगी,
कैसे विरहन को समझाएगी, चालाक रात!
कर लो आज दिल की बात, कल हम हों या न हों।
फिर ये मौका लगे ना हाथ, कल हम हों या ना हों।
उठा ज्यूँ प्यार का उफान, लहर ले आयी सुनामी।
खड़ा वो ही किये तूफान, लहर ले आयी सुनामी।
उपर उठा के पटका यूँ, खाये चोट गहरे हम,
एक की जमीं आसमान, लहर ले आयी सुनामी।
मुहूरत भर ही किया था, प्यार का अभी तो हमने।
करा दी बंद वो दुकान, लहर ले आयी सुनामी।
एक अरसे से पाले थे, इश्क हम बड़े शौक से।
बहा सब ले गयी अरमान, लहर ले आयी सुनामी।
हँसते फूलों के संग थे, हम भी रंगीन चमन में।
ले गयी सारी मुस्कान, लहर ले आयी सुनामी।
करके छोड़ेगी बर्बाद, बहा ले जायेगी सब कुछ।
लिए हुए थी जैसे ठान, लहर ले आयी सुनामी।
छोड़ के गयी 'देव' तट पर, हमारे मन के जज्बात,
डुबो सकी न उसका नाम, लहर ले आयी सुनामी।
हलकी फुलकी जिंदगी
मापनी : 2122 , 2122 , 212
*******************************
वो चाय वाला
जिंदगी भर चाय पर जीता रहा।
जख्म गैरों के सदा सीता रहा ।
और कोई भी नशा छू ना सका
चाय मगर कई दफा पीता रहा।
चाय बेच कर वह करता था बसर
तंग हाल रखे, मगर खुश जीता रहा।
देह से कुछ अल्प बल सा ही रहा
किन्तु दिल से बहुत संजीदा रहा।
जो खुदा की हो रजा, होगा वही
बांचता नित, ज्ञान की गीता रहा।
पूछ लेता हाल, जो मिलता उसे
गलत पर, तेवर बड़ा तीखा रहा।
लोग चाहे साथ उसके कुछ करे
मगर वह था कि सबका मीता रहा।
लड़ती है फिर भी मेरा हम साया है । "
" पेप्सी देकर उसने मुझे पटाया है। "
खाते थे साथ लिफाफे में मूंगफली
कक्षा से फूट, समोसा भी खाया है।
पढने लिखने में थी, बस वो बाबाजी
मैडम को हमने, नकल तक कराया है ।
विद्यालय लाते खाने की सामग्री
देवी जी ने छीन झपट कर खाया है।
लेकर आती घर से पकवान बनाकर
अवसर पाकर मैंने भी माल उड़ाया है।
घर से, बेघर से, घूमे माल, सिनेमा
फिर घर पर आकर फटकी तक खाया है।
जब जब छोड़कर पर्स, वो घर पर आती
उसको सौ सौ के, दो नोट थमाया है।
यूँ तो लौटा देती थी अगले ही दिन
सौ रुपये मगर, अभी तलक बकाया है।
सोचा था मन में पहले, उसने तो बस
मेरे बटुये पर ही नजर गड़ाया है।
पर वो ना होती रह जाते हम तनहा
उसने ही, जीवन का रंग जमाया है।
अब कदम कदम पर है वह साथ हमारे
जीवन गाड़ी पटरी पर दौड़ाया है।
मापनी : " 2122 , 2122 , 212"
सांवला सूरत सजन का भा गया।
देखकर मूंछें / मन में नशा सा छा गया।
तेज करते ऐंठ, मूंछों की नोक।
देखा तो, दर्पण भी शरमा गया।
समझे ना होगा, हम प्यार दिल में
भारी मूंछों से दिल भरमा गया।
जरूर होगा रहा दिल पत्थर का,
पड़ी जब मुझ पर नजर नरमा गया।
मिलना गजब हुआ नजरों से नजरें,
सलोना प्यार का शिशु जनमा गया।
उनकी छाँव में नहा लिया जी भर,
सांसों से उनके, तन गरमा गया।
मिल गयी जिंदगी को जिंदगी फिर, उन्हीं में जीवन मेरा समा गया।
दिल की सुन दिल का कुछ काम कर चले।
दिल को किसी और के नाम कर चले।
मिल गया था चलते, कोई डगर में,
किसी अजनबी के, पैगाम पर चले ।
न रजा को पूछे, न फिजां ही जाने,
अनजान किसी हम, मोकाम पर चले।
हो गए उनकी शमा का परवाना,
बहकने लगा दिल, तो थाम कर चले।
मुस्कराये वो जब, बदल गया मौसम,
आ गयीं बहारें, गुलफाम झर चले।
बिछ गए राह में, बनकर वो बिछौना,
आहिस्ता, गुलों उन तमाम पर चले।
हो गयीं मुलाकातें 'देव' कुछ बातें,
उनकी यादों के ले जाम भर चले।
मापनी : " 212 1222 212 1222 "
काफिया : " आयत ''
रदीफ़ : " है "
चाँद से नहीं मुझे, खुद से ही शिकायत है।
ज़िन्दगी में हासिल, उसकी ही इनायत है।
आसमाँ पे रहने को, चन्दा मेरा मजबूर,
उसको भी मुहब्बत, चकवे से निहायत है।
वक्त बेवक्त हम, देखते हैं राह उसकी,
वक्त की पाबन्दी, में उसको न रियायत है।
चाहता बस मैं ही, मैं रहूं पास उसके,
साथ सितारों की पर, होती पंचायत है।
यूँ ही न हो जाता, वो आँखों से ओझल,
रखने में उसे दूर, सूरज की हिमायत है।
किया तो जरूर है, जलवों से मालामाल,
सच कहें तो शिकवा, गिला भी बहुतायत है।
सूरत तक न बचती, जाने की पास उसके,
चमक छोड़ यहाँ खुद, बसता वो विलायत है।
महुआ (पूरबी गीत )
कैसे हम काटब दईया, अकेले ई रैन हो।
मधु पियाय के महुआ, करेला बेचैन हो।
ऋतुराज आयी गइलें, पिया अबे नाहीं अइलें,
चुये लागल हे सखिया! महुआ के फूल।
एहि चइते मधुमास में, रही गईलिन आस में,
छुए लागल हे सखिया, महुआ के फूल।
चंपा गुलाब फूलल, रे वन में पलाश फूलल,
फूले लागल हे सखिया, महुआ के फूल।
उजर उजर रतिया में, फइलल अजोरिया में,
महके लागल हे सखिया, महुआ के फूल।
पियावेला अकेले 'देवा' रसवा ले आयी हवा,
चढ़े लागल हे सखिया, महुआ के फूल।
एस. डी. तिवारी
आयिल चइते मधुमास हो रामा, पास नाहीं पियवा।
परदेशे सजना क वास हो रामा, पास नाहीं पियवा।
कुहुक कोयलिया, जगावे सारी रतिया
छेड़े दिन पवन बदमास हो रामा, पास नाहीं पियवा।
टप टप चुएला, करेजवा के छुवेला
महुआ बढ़ावे नित आस हो रामा, पास नाहीं पियवा।
मनवा जगावेला, महुआ बहकावेला
दहके जब वन में पलाश हो रामा, पास नाहीं पियवा।
बिनि 'देव' धई लेबों, पी के नजराना देबों,
भावेला रस के मिठास हो रामा, पास नाहीं पियवा।
झूमर
चइते महीना हो, टप टप पसीना, कि चुये लागल।
मुश्किल भईल जीना कि चुये लागल।
बीतल फगुआ हो, फूलल महुआ कि चुये लागल।
बीने चललीं गुजरिया, कि चुये लागल।
गेहुआं की डलिया, पाकल बा बलिया, कि चुये लागल।
दाना खोदे ली चिरई कि चुये लागल।
अमवा बउराइल, टिकोरा भर आयिल, कि चुये लागल।
झोर देहलस पवनिया के चुये लागल।
महुआ धराईल हो, डाढ़ा फुकाइल, कि चुये लागल।
ठोप ठोप हँड़िया में चुये लागल।
मंद मंद बहेले बयार हो रामा, चइत के महिनवा।
अमवा बौराई गइलन, पिया घर नाहीं अइलन
छह रे महीना कह के बलमा परदेश गइलन
बीत गईल पूरा साल हो रामा, चइत के महिनवा।
अमवा की डलिया, कुहुके कोयलिया
सोनवा के रंग भईल, गेहुआँ क बलिया
अमवा गईल बौराय हो रामा, चइत के महिनवा।
महुआ चुये लागल, गोरिया बीने लागल
धीरे धीरे दिनवा गर्मी देखावे लागल
सुग्गा लगलन मड़राये हो रामा, चइत के महिनवा।
बनवा में दहके ला पलाश हो रामा, चइत के महिनवा
ब्रह्मा जी रचालन ब्रह्माण्ड हो रामा, चइत के महिनवा
बिनि बिनि महुआ, कोठिली में धरायी
होइ गईले साफ आकाश हो रामा,
चइते में भईल गवनवा हो, महुआ चुये लागल।
बीत गईल माह फगुनवा हो, महुआ चुये लागल।
महुआ की रस में, अइसन नशा बा,
सूंघ सूंघ मन में, प्यार जगल बा,
छेड़ छाड़ करे सजनवा हो, महुआ चुये लागल।
कटा गईल बा, गेहूं क बाली,
काम से हो गईल, पियवा खाली,
बउरा गईल ओकर मनवा हो, महुआ चुये लागल।
आपा में कइसे, करबू तू मन के,
चंगुल से मुश्किल, बचल सजन के,
घड़ी घड़ी बोलावे बेईमनवा हो, महुआ चुये लागल।
खेवे आवे न प्रेम क नईया हो, मन खेवइया कइसन।
करे डगमग बीच में भईया हो, मन खेवइया कइसन।
प्रेम क छोड़ के परमानन्द,
ईत उत भटके बन मकरंद,
बस बटोरे खातिर रुपैया हो,मन खेवइया कइसन।
कहें 'देव' बस चामक चुमक में,
रहे मोहाय ठामक ठुमक में,
पूरा ना पड़े कमइया हो, मन खेवइया कइसन।
चाहत वासना की बस पीछे,
डोलत नित नित आंख के मींचे
पार तू लगइहा कन्हैया हो, मन खेवइया कइसन।
कहिया
दहिया
सुरहिया
बेवफा निकला
जिसे हमदर्द समझा था वो बेवफा निकला।
जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ के सफा निकला।
मंजिल तो उसकी और ही पहले से तय थी,
जुट गया उन कामों में जिनमें नफा निकला।
बोल के गया संवार देगा जिंदगी एक दिन,
वादा का हर पलटा कोरा सफा निकला।
करके निगाहें मेरी ओर वो मीठी बोल गया,
फिर निगाहें फेर बगल से कई दफा निकला।
मैंने तो अपना जान, दे दिया मत उसको,
वो बात भी न करता जैसे खफा निकला।
मेरे संग बहुतों ने किया भरोसा उस पर,
मतलबी नेता वह, करता जफ़ा निकला।
अपने रहने लगा महलों के अंदर जाकर,
हमें गेट पर ही रोकता हर दफा निकला।
अत्यंत सहज है, बहुत सरल हैसदियों पुरानी, सबसे विरल है।Very simple, very
easy, and centuries old, Hindi language is the rarest.
Written in the Devnagari
script, Hindi is Hindu’s God’s own language.
It is full of
sweetness like honey, the history of ages resides in it.
Completely pure,
conscience and amazing example of explicit.
Stories of Rama and
Krishna here, ancient, mythological stories here.
Hindi literature
is the most unique, a living picture of Hindu’s culture.
Doha, Chaupai,
Ghazal, Geet, here various ornamental poem genres.
Indians are
connected by heart to this best language of the universe.
देवनागरी में लिखी हिंदी, देवताओं की भाषा अपनी।
हिन्दुस्तानियों की मातृभाषा, हिंदी से है धन्य धरनी।
स्वच्छ, शुद्ध अंतःकरण है, इसमें भरा मधु की मिठास है। अद्भुत उदाहरण स्पष्टता का, युग युग का बसा इतिहास है।
हिन्दू-संस्कृति का सजीव चित्र, राम कृष्ण की गाथाएं इसमें।
हिंदी साहित्य सबसे विचित्र, प्राचीन, पौराणिक कथाएं इसमें।दोहा, चौपाई, गजल, गीत, अलंकारों से सज्जित विविध छंद।
सूर, कबीर, तुलसी की कलम है, हिंदी लता, रफ़ी की कंठ।
राग, लय, सुर, स्वर की मधुरता, झंकृत करते हृदय के तार। मातृ भाषा हिंदी से अपनी, हिन्दवासियों को अतिशः प्यार I
Freely and nicely,
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सबसे सुन्दर, सबसे अच्छी मातृभाषा।
विचार दर्शाती स्पष्ट व सच्ची मातृभाषा।
विषयों की सरल अभिव्यक्ति और ग्रहण,
मन के आनंद की बत्ती मातृ भाषा।