Friday, 21 October 2016

Haiku diwali / prakash / dhuan


भाग जाता है
घर का तम सारा
जले एक दिया


दीप जलाओ 
फैलाओ खुशहाली 
मने दिवाली

धरती पूरी
बीच धुआं नहा ली
यही दिवाली?

बाहर ज्योति
मन भावना काली
कैसी दिवाली?

दिखावे में ही
फजीहत करा ली
कैसी दिवाली?

लड्डू खाकर 
गणेश पीते धुआं
यही दिवाली

देकर आना
निर्धन की भी थाली
मने दिवाली

ज्योति जले
मन होय उजाला
मने दिवाली

लक्ष्मी आएं
संग खुशियां लाएं
शुभ दिवाली

हर दीप को
मिले उसकी बाती
शुभ दिवाली 

हवा विषैली
मिठाई जहरीली
खाये दिवाली

वही कमाई
बढ़ती महगाई
फीकी दीवाली

दीप जलाओ
फैलाओ खुशहाली
मने दिवाली


यादें मनातीं
सीमा पे जवनों की
माँ की दिवाली

नन्हे से फूल
फूलझड़ी के बिन
फीकी दिवाली

भाग रहे हैं
दिवाली के दीवाने
लिए मिठाई

लक्ष्मी हरषें
धनतेरस पर 
धन बरसे 

धन बरसे
धनतेरस पर
मन हरषे

टाल रखा था
धनतेरस हेतु
बर्तन लाना

आये लेकर  
धनतेरस पर
पिया कटोरी

प्याली ही आये
धनतेरस पर
प्रथा निभायें 

पत्नी घर में
जवान सीमा पर
दिल दिवाली

स्वयं मिठाई
उन्हें खील बतासा
लक्ष्मी को झांसा

दीपों की माला 
पहन सजे घर  
दिवाली पर 

कुछ किरणे
घट भीतर भेजो
सूर्य देवता

मांगे बदले
ज्ञान और प्रकाश
सूर्य को अर्क

गोवर्धन में
नाली में बहे दूध
बच्चे तरसें

लक्ष्मी दें भर
सुख संपत्ति से
सबका घर

गाय की सेवा
बदले पाएं दूध
पुण्य का मेवा 

गाय की सेवा 
मिले दूध का दूध 
पुण्य का मेवा 

गोवर्धन में 
बच्चों की आँखों से हो 
नाली में  दूध 

गोबर-धन
उपले का ईंधन 
चूल्हे की शान   


दीपों की माला
पहन सजे घर
दिवाली पर

दूर भागता
जले ज्ञान का दीप
मन का तम

दीपक तले
रह जाता अँधेरा
बेशक जले

एक भी दीया
भगाने में सक्षम
गहरा तम


************

छोड़े जम के
दिवाली पे पटाखे  
विषैली हवा

- एस० डी० तिवारी

मनी दिवाली
दूषित कर डाली
हमारी हवा

दौड़ाते सब
गाड़ियां बेतहाशा
हवा में धुआं

हवा बेहोश
पीकर रोज रोज
नशे का धुआं

खेत में हुआं
छत ऊपर धुआं
गांव की शाम

घुटती साँस
हुआ मैला आकाश
हवा में धुआं

बाध्य हो रहे
मेरे शहर वाले
पीने को धुआं

शहरी हवा
खिला देती है शीघ्र
दमे की दवा

जोर का ब्रेक
टायर से निकला
हल्का सा धुआं

फुस्स हो गया
घटिया था पटाखा
छोड़ के धुआं

हवा में धुआं
बादलों तक गया
अम्लीय वर्षा

करता कोई
भरता हर कोई
वायु दूषित

नाक में दम
धुआं से किये हम
भागे मच्छर

शहर मेरा
पड़ा हुआ बीमार
धुएं ने घेरा 

करता साफ
धुंध हटा के मार्ग
सर्दी में सूर्य

रही जलती
परीक्षार्थी की बत्ती
सुबह तक


आकर चाँद
विरहन के मन
लगाता आग

जाने की राह  
मुश्किलों से बाहर    
मुश्किलों में ही 


*************
करके बंद 
भ्रष्टाचार को चोट 
वजनी नोट

नोट को छोडो 
जेब में रखो कार्ड 
हो जाओ स्मार्ट

जोड़े थे नोट 
पांच सौ व हजार 
हुए बेकार

हो गया नोट 
हजार पांच सौ का 
आज से खोटा

साथ में पाओ 
खरीद के चूरन 
असली नोट

नए करा लो 
पड़े पुराने नोट 
चार हजार 

निकाला तेल 
पंक्ति में खड़े होके 
नोट का खेल 

निष्प्राण नोट 
निष्प्रभाव गरीब  
रोया अमीर 

बदले नोट
बदलने के लिए
बैंकों में लोग
खड़े लंबी पंक्ति में
काम धाम को छोड़

नोट मिलेगा
उंगली पे लगा के
वोट की स्याही

लापता हुए
चौराहों से भिखारी
बैंकों में ड्यूटी

नेता निराश
चुनाव में बाधक
बेदम नोट  

होकर बंद
तिजोरी में नोटों का
निकला दम

घोंट के दम
रो रहे हो सनम
नोटों के तुम

वर्षों में जोड़ा
मिनटों में कागज
कैसी ये माया


कमाया बस
कागज के टुकड़े
बेचा ईमान

याद आ गए
किसान मजदूर
भूले थे नेता
हाथ लगा सुन्दर
नोट बंदी का मुद्दा

लेकर जाती
छोटी लापरवाही
अनेकों जान
रहोगे सुरक्षित
रह के सावधान

बाहर झांक
पैसे वालों के साथ
नोटों का नाच

अब वोट नहीं नोट मिलेगा :: नोट के बदले 


हुई हराम 
नोट वालों की नींद
खुशगरीब 

कोई गरीब 
नोट नहीं फेंकेगा 
खुशनशीब 

कम चलेंगे  
नोटबंदी कारण
पेड़ों पे आरे

हुआ बेजान 
नोटों में थी अटकी 
लाले की जान 

लाखों करोड़ 
नोट बंदी कार्य ने   
निकाले नोट 

नोट पे हुए 
विरोधी नेता एक 
नोट निर्पेक्ष

करते खुद 
देते नोट को दोष 
धन को काला 

**********



रूप सजाती
अपनी गुड़िया के
मेरी गुड़िया

चाह रखती
गुड़िया दिखने की
हर लड़की

सोया सागर
छेड़कर जगाता
चंचल वायु

बहला देती
रबर की गुड़िया
बच्चे का दिल

नन्ही सी होती
रबर की गुड़िया
दिल छू लेती

बहला देता
कागज का जहाज
बच्चे का दिल

राहों में कांटे
चलना तू गुड़िया
देख भाल के

देख कर के
दिल मनाता जश्न
बेटी को मग्न

कहने पर
बेटी खुश हो जाती
मेरी गुड़िया

नहीं जा पाते
अधिक दूर तक
झूठ के पैर

जगा देता है
सोये समुन्दर को
चंचल वायु  

लेता अटका
भारतीयों का दिल
आलू पराठा 



उमड़ी भीड़
अंतिम दर्शन को  
अम्मा का प्यार

जाता है बढ़
लगाकर स्टीकर
फल का दाम

जलाके बत्ती
जिस रंग की होती
बिकती सब्जी

निर्मल बाबा
चार समोसा खाया
कुछ ना पाया 



सुन के हंसे
राजनीति की हानि
नेता के मरे  

कड़क सर्दी
जलाकर अलाव
किया बचाव

पुरानी साड़ी
चढ़ गयी रजाई
ओढ़ती ताई

टंगी टांड़ पे
पेवंद लगी साड़ी
पर्दा बन के

जानेगा कैसे
जिसके न बेवाई
पीर परायी

हुआ सवेरा 
ऊगा नहीं सूरज 
धुंध ने घेरा 


होता है बड़ा
जीत लेता जो नेता
लोगों का दिल

झील का तट
खड़े बगुल संत
ध्यान में मग्न

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