Monday, 31 October 2016

Parking ki jang

पार्किंग की जंग

सामान खरीदने कार से निकले
एक सजी धजी बाजार में जा घुसे।
पटरी पर दुकानदारों का कब्ज़ा था
कहीं उनकी कार तो कहीं छज्जा था।
बीच बीच में रेड़ी-खोमचे वाले थे
रास्ता ढूंढते पैदल चलने वाले  थे।
समोसे वाले की मेज भी वहीँ थी
कार खड़ी करने की कहीं जगह नहीं थी।
एक जगह दिखी कुछ खाली सी
पता चला वहां खड़ी होती है टैक्सी।
लगा, आगे खाली जगह है, बढे
वहां पहले ही कुछ रिक्शे थे खड़े।
जगह ढूंढते एक पार्किंग तक पहुंचे
खचाखच भरी देख मन में हिचके।
पार्किंग वाला पास आया और बोला
अपनी पर्ची की किताब खोला।
सर जी, यहीं सड़क पर छोड़ जाओ
और गाड़ी की चाभी हमें दे जाओ।
गाड़ियों का ठसमठस अंदर है
चार के बाद आपका नम्बर है।
आपकी किस्मत जग जाएगी
जगह होते ही गाड़ी लग जाएगी।
यह कहते हुए पर्ची थमा दिया
और मेरी कार पर हक़ जमा लिया।
तीस रुपये दो, दो घंटे में आ जाना
नहीं तो सत्तर रूपया होगा चुकाना।
मरता अब क्या न करता,
सामान खरीदना आवश्यक था।
पैसे दिया, छोड़ा  कार और चाभी
बाजार में सवा दो घंटे लगा दी।
लौटा तो गाड़ी अंदर खड़ी थी
उसके पीछे दूसरी गाड़ी अड़ी थी।
पार्किंग वाला कार की बोनट पर बैठ
मस्ती में पी रहा था सिगरेट।
देखते ही वह बोनट से उतरा
'सर, जरा हाथ लगाना' झट बोला।   
आपकी कार निकलने की जगह बनाना है
पीछे वाली गाड़ी को हटाना है।
 देखा तो गाड़ी पे खरोच था
देख कर मन में बड़ा रोष था।
पार्किंग वाले को तुरंत बुलाया
उसे दिखाया, खरी खोटी सुनाया।
वह बोला, साहब पहले से होगा
एकदम नयी कार है, मैंने बोला।
अभी दस दिन पहले ही ली है
वह बोला, सर जी ये दिल्ली है।
इतना तो यहाँ चलता है
थोड़ा मोड़ा तो  होता रहता है।
कोई निकाला होगा अपनी गाड़ी
ड्राइविंग में होगा अभी अनाड़ी।
ऐसी बातें दिल पर नहीं लेना
वरना टेंशन में पड़ेगा जीना।
यह कार है, ठीक हो जाएगी
नहीं तो बीबी थोड़े है, दूसरी आ जाएगी।

 एस० डी० तिवारी


Thursday, 27 October 2016

Pataliputra haiku

मंच नमन
यहाँ के नभ स्थल
तंत्र नमन

तुझे प्रणाम
तेरी गोद में हम
पाटलिपुत्र

कभी था नाम
है आज जो पटना
पाटलिपुत्र

कला संस्कृति
अश्वघोष की कृति
पाटलिपुत्र

मौर्यों के रहा
सम्राटों का निवास
पाटलिपुत्र

चाणक्य रचे
अर्थशास्त्र रह के
पाटलिपुत्र

आर्यभट्ट की
अंकशास्त्र का साक्षी
पाटलिपुत्र

धन्य धरती
जन्मे गुरु गोबिंद
पाटलिपुत्र

ठहर जाती
कुछ क्षण जान्हवी
पाटलिपुत्र


Friday, 21 October 2016

Haiku diwali / prakash / dhuan


भाग जाता है
घर का तम सारा
जले एक दिया


दीप जलाओ 
फैलाओ खुशहाली 
मने दिवाली

धरती पूरी
बीच धुआं नहा ली
यही दिवाली?

बाहर ज्योति
मन भावना काली
कैसी दिवाली?

दिखावे में ही
फजीहत करा ली
कैसी दिवाली?

लड्डू खाकर 
गणेश पीते धुआं
यही दिवाली

देकर आना
निर्धन की भी थाली
मने दिवाली

ज्योति जले
मन होय उजाला
मने दिवाली

लक्ष्मी आएं
संग खुशियां लाएं
शुभ दिवाली

हर दीप को
मिले उसकी बाती
शुभ दिवाली 

हवा विषैली
मिठाई जहरीली
खाये दिवाली

वही कमाई
बढ़ती महगाई
फीकी दीवाली

दीप जलाओ
फैलाओ खुशहाली
मने दिवाली


यादें मनातीं
सीमा पे जवनों की
माँ की दिवाली

नन्हे से फूल
फूलझड़ी के बिन
फीकी दिवाली

भाग रहे हैं
दिवाली के दीवाने
लिए मिठाई

लक्ष्मी हरषें
धनतेरस पर 
धन बरसे 

धन बरसे
धनतेरस पर
मन हरषे

टाल रखा था
धनतेरस हेतु
बर्तन लाना

आये लेकर  
धनतेरस पर
पिया कटोरी

प्याली ही आये
धनतेरस पर
प्रथा निभायें 

पत्नी घर में
जवान सीमा पर
दिल दिवाली

स्वयं मिठाई
उन्हें खील बतासा
लक्ष्मी को झांसा

दीपों की माला 
पहन सजे घर  
दिवाली पर 

कुछ किरणे
घट भीतर भेजो
सूर्य देवता

मांगे बदले
ज्ञान और प्रकाश
सूर्य को अर्क

गोवर्धन में
नाली में बहे दूध
बच्चे तरसें

लक्ष्मी दें भर
सुख संपत्ति से
सबका घर

गाय की सेवा
बदले पाएं दूध
पुण्य का मेवा 

गाय की सेवा 
मिले दूध का दूध 
पुण्य का मेवा 

गोवर्धन में 
बच्चों की आँखों से हो 
नाली में  दूध 

गोबर-धन
उपले का ईंधन 
चूल्हे की शान   


दीपों की माला
पहन सजे घर
दिवाली पर

दूर भागता
जले ज्ञान का दीप
मन का तम

दीपक तले
रह जाता अँधेरा
बेशक जले

एक भी दीया
भगाने में सक्षम
गहरा तम


************

छोड़े जम के
दिवाली पे पटाखे  
विषैली हवा

- एस० डी० तिवारी

मनी दिवाली
दूषित कर डाली
हमारी हवा

दौड़ाते सब
गाड़ियां बेतहाशा
हवा में धुआं

हवा बेहोश
पीकर रोज रोज
नशे का धुआं

खेत में हुआं
छत ऊपर धुआं
गांव की शाम

घुटती साँस
हुआ मैला आकाश
हवा में धुआं

बाध्य हो रहे
मेरे शहर वाले
पीने को धुआं

शहरी हवा
खिला देती है शीघ्र
दमे की दवा

जोर का ब्रेक
टायर से निकला
हल्का सा धुआं

फुस्स हो गया
घटिया था पटाखा
छोड़ के धुआं

हवा में धुआं
बादलों तक गया
अम्लीय वर्षा

करता कोई
भरता हर कोई
वायु दूषित

नाक में दम
धुआं से किये हम
भागे मच्छर

शहर मेरा
पड़ा हुआ बीमार
धुएं ने घेरा 

करता साफ
धुंध हटा के मार्ग
सर्दी में सूर्य

रही जलती
परीक्षार्थी की बत्ती
सुबह तक


आकर चाँद
विरहन के मन
लगाता आग

जाने की राह  
मुश्किलों से बाहर    
मुश्किलों में ही 


*************
करके बंद 
भ्रष्टाचार को चोट 
वजनी नोट

नोट को छोडो 
जेब में रखो कार्ड 
हो जाओ स्मार्ट

जोड़े थे नोट 
पांच सौ व हजार 
हुए बेकार

हो गया नोट 
हजार पांच सौ का 
आज से खोटा

साथ में पाओ 
खरीद के चूरन 
असली नोट

नए करा लो 
पड़े पुराने नोट 
चार हजार 

निकाला तेल 
पंक्ति में खड़े होके 
नोट का खेल 

निष्प्राण नोट 
निष्प्रभाव गरीब  
रोया अमीर 

बदले नोट
बदलने के लिए
बैंकों में लोग
खड़े लंबी पंक्ति में
काम धाम को छोड़

नोट मिलेगा
उंगली पे लगा के
वोट की स्याही

लापता हुए
चौराहों से भिखारी
बैंकों में ड्यूटी

नेता निराश
चुनाव में बाधक
बेदम नोट  

होकर बंद
तिजोरी में नोटों का
निकला दम

घोंट के दम
रो रहे हो सनम
नोटों के तुम

वर्षों में जोड़ा
मिनटों में कागज
कैसी ये माया


कमाया बस
कागज के टुकड़े
बेचा ईमान

याद आ गए
किसान मजदूर
भूले थे नेता
हाथ लगा सुन्दर
नोट बंदी का मुद्दा

लेकर जाती
छोटी लापरवाही
अनेकों जान
रहोगे सुरक्षित
रह के सावधान

बाहर झांक
पैसे वालों के साथ
नोटों का नाच

अब वोट नहीं नोट मिलेगा :: नोट के बदले 


हुई हराम 
नोट वालों की नींद
खुशगरीब 

कोई गरीब 
नोट नहीं फेंकेगा 
खुशनशीब 

कम चलेंगे  
नोटबंदी कारण
पेड़ों पे आरे

हुआ बेजान 
नोटों में थी अटकी 
लाले की जान 

लाखों करोड़ 
नोट बंदी कार्य ने   
निकाले नोट 

नोट पे हुए 
विरोधी नेता एक 
नोट निर्पेक्ष

करते खुद 
देते नोट को दोष 
धन को काला 

**********



रूप सजाती
अपनी गुड़िया के
मेरी गुड़िया

चाह रखती
गुड़िया दिखने की
हर लड़की

सोया सागर
छेड़कर जगाता
चंचल वायु

बहला देती
रबर की गुड़िया
बच्चे का दिल

नन्ही सी होती
रबर की गुड़िया
दिल छू लेती

बहला देता
कागज का जहाज
बच्चे का दिल

राहों में कांटे
चलना तू गुड़िया
देख भाल के

देख कर के
दिल मनाता जश्न
बेटी को मग्न

कहने पर
बेटी खुश हो जाती
मेरी गुड़िया

नहीं जा पाते
अधिक दूर तक
झूठ के पैर

जगा देता है
सोये समुन्दर को
चंचल वायु  

लेता अटका
भारतीयों का दिल
आलू पराठा 



उमड़ी भीड़
अंतिम दर्शन को  
अम्मा का प्यार

जाता है बढ़
लगाकर स्टीकर
फल का दाम

जलाके बत्ती
जिस रंग की होती
बिकती सब्जी

निर्मल बाबा
चार समोसा खाया
कुछ ना पाया 



सुन के हंसे
राजनीति की हानि
नेता के मरे  

कड़क सर्दी
जलाकर अलाव
किया बचाव

पुरानी साड़ी
चढ़ गयी रजाई
ओढ़ती ताई

टंगी टांड़ पे
पेवंद लगी साड़ी
पर्दा बन के

जानेगा कैसे
जिसके न बेवाई
पीर परायी

हुआ सवेरा 
ऊगा नहीं सूरज 
धुंध ने घेरा 


होता है बड़ा
जीत लेता जो नेता
लोगों का दिल

झील का तट
खड़े बगुल संत
ध्यान में मग्न

Saturday, 15 October 2016

Gungunati hawa


बैठी होती है यादों में पलकें भिगोये, 
जा के सम्मा बुझाती गुनगुनाती हवा। 
खेतों में आये खलिहानों से गेहूं को, 
डंठल से बिलगाती गुनगुनाती हवा।
धीरे से हिला कर, दरवाजे का पल्ला, 
चरमरा कर डराती, गुनगुनाती हवा।
पीपे में कभी कभी ट्यूबों में भरकर,
पानी में तैराती, गुनगुनाती हवा।
राज की बात आकर कानों के पास, 
धीरे से फुसफुसाती, गुनगुनाती हवा।
झूमती घूमकर मस्तियों में ये जब, 
तब बवंडर उठाती, गुनगुनाती हवा।
खम्भे पर टंगे दिक्शूचक को उड़ा,
दिशा को दर्शाती, गुनगुनाती हवा।


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चले झूम बलखाती] गुनगुनाती हवा। 
छूकर दिल को जुड़ाती] गुनगुनाती हवा। 
सोये होते हैं झील समुन्दर नदी
उर्मियों को जगाती गुनगुनाती हवा। 
डोल पाते हैं आजाद अम्बर में वो 
बादलों को घुमाती गुनगुनाती हवा।  
खेले लपटों से जैसे बच्चों का खेल 
धधकाती बुझाती गुनगुनाती हवा। 
बांसों के झुरमुटों में ये जाती है घुस 
पहुँच बांसुरी बजाती गुनगुनाती हवा।
पड़े होते हैं पत्ते, जब खो कर के होश;

जा हिलाती डुलाती, गुनगुनाती हवा
खिले होते हैं फूल अति सुन्दर मगर 
खुशबुओं को फैलाती गुनगुनाती हवा। 



गाते हैं खग, मधुर, बागों में गीत 
कानों तक ले आती गुनगुनाती हवा।
फैलाकर के  पंख, जब उड़ते विहंग,
थाम कर के झुलाती, गुनगुनाती हवा।
चलती जब होकर, फसल के ये ऊपर,
बल खाती इठलाती, गुनगुनाती हवा।  
द्वारे है आती बारात बेटी की जब 
शहनाई बजाती, गुनगुनातीं हवा।
निकल जाती है घर से कहीं सुंदरी 
चुनर उसकी उड़ाती गुनगुनाती हवा। 
निखार, पाता है हुस्न, थोड़ा सा और
जब जुल्फें उड़ाती, गुनगुनाती हवा। 
ऋतु लेकर के जब, चला आता बसंत, 
राग दिल की सुनाती, गुनगुनाती हवा।


मद्धम हो जाती है, चूल्हे की आग,
फूंक कर के जलाती, गुनगुनातीं हवा।
पसारती कहीं पांव, कचरे की बदबू,
दूर उड़ाकर ले जाती, गुनगुनाती हवा।
ले के आती है गर्मी, बेचैनी कभी,
आ के बेनी डुलाती, गुनगुनाती हवा।
दौड़ाते हैं हम, जब गाड़ी सड़क पर
रस्ते से हट जाती, गुनगुनाती हवा।
गाड़ी के पहिये में लेकर के बोझ
भागती सरसराती गुनगुनाती हवा।  
नन्हें बालक के आगे फिरकी नचाती  
मन को बहलाती गुनगुनाती हवा।
खड़े होते हैं बच्चे ले चरखी व डोर  
पतंग ऊँचा ले जाती गुनगुनाती हवा।



टांग देते ध्वजा को, हैं ऊँचा जरूर  
वह झंडा लहराती, गुनगुनाती हवा।
माँ खिलाने से पहले, ले हाथों में फूंके,  
गर्म कौर को जुड़ाती, गुनगुनाती हवा।
डाल देते हैं जब, धूप में भीगे वस्त्र 
साथ मिल के सुखाती, गुनगुनाती हवा।  
जोहता डाल कर के वो मांझी है पाल,
नाव आकर चलाती, गुनगुनाती हवा।
केले का पत्ता, अंग तक लेता फाड़,  
जब मस्ती में डुलाती, गुनगुनाती हवा।
होने लगता कहीं, प्राणवायु का संकट, 
भर सिलिंडर में जाती, गुनगुनाती हवा।  
होता है कभी बिगड़ जाता मिजाज 
आंधियां लिये आती गुनगुनाती हवा।

बवंडर

एस० डी० तिवारी  

खम्भे पर टंगे बड़े पंखे को डुला  
बिजलियाँ नित बनाती गुनगुनाती हवा। 
पक जाती है दाल प्रेशर कुकर में जब 
बजा सीटी बताती गुनगुनाती हवा। 
चलाकर के पम्प सोख लेती मशीन    
उठा कूड़ा हटाती गुनगुनाती हवा।  
समुन्दर में मछली जिंदगी के लिए  
जल में ही पा जाती गुनगुनाती हवा। 
बहलाने को मन प्यारे बच्चों का वो 
गुब्बारा फुलाती गुनगुनाती हवा। 
गड़बड़ हो जाता हाजमा जब किसी का   
पेट में गुड़गुड़ाती गुनगुनाती हवा। 
लिख देता है एक एक गिन कर के वो 
सांसों को चलाती गुनगुनाती हवा। 


बैठी होती है यादों में पलकें भिगोये, 
जा के समां बुझाती गुनगुनाती हवा।
खेतों से आये, खलिहानों में गेहूं को,  
डंठल से बिलगाती गुनगुनाती हवा। 
धीरे से हिलाकर, दरवाजे का पल्ला 
चरमराकर डराती गुनगुनाती हवा। 
पीपे में कभी, भरकर ट्यूब में कभी, 
पानी में तैराती, गुनगुनाती हवा। 
राज की बात, आकर कानों के पास,
धीरे फुसफुसाती गुनगुनाती हवा।  
झूमती घूमकर, मस्तियों में जब ये 
बवंडर तब उठाती गुनगुनाती हवा। 
खम्भे पर टंगे दिक्शूचक को उड़ा, 
दिशा को दर्शाती, गुनगुनाती हवा।