यमाताराजभानसलगा
क्या हो गया है, आज ज़माने को
जलाता नहीं ये, अँधेरा भगाने को
कोई मंदिर ढूंढता, कोई मस्जिद
जलता दीया लिए, आग लगाने को
मैंने तो जब जब दीया जलाया
अँधेरा ही भागता नजर आया
मंदिर में जला या मस्जिद में
जलते दीये से, रौशनी ही पाया
तुम्हारे प्यार के फूल ज्यों झर गये।
घने अँधेरे भी जिंदगी के डर गये।
देखकर के दीये की लौ तुम्हारी
रस्तों को हम अपने रौशन कर गये।
पतझड़ के पीछे, मौसम सर्द छुपा होता है।
गर्भ में आये अंधड़ के, गर्द छुपा होता है।
पत्थर की सुन्दर, मोटी दीवारों के अंदर
नहीं जान सकते, कितना दर्द छुपा होता है।
इस तरह से क्यों खुदगर्ज बने हो।
इंसानियत के तुम मर्ज बने हो।
खुदा ने भेजा है दौलत बना के
फिर क्यों दुनिया का कर्ज बने हो।
देखा था अब तक तस्वीरों में आज वो चहरे रूबरू हुए
जो छवि और कल्पना थी मन में देखा तो हुबहु हुए
फलक से सितारे उतर चले आये हैं इस अंजुमन में
जगे भाग अपने भी कि मुलाकात के साथ गुफ्तगू हुए
फेस बुक भी कितनी बड़ी बीमारी है।
औरतों के लिए बन गयी लाचारी है।
जन्म दिन तक की चुगली कर देता
कहाँ उम्र छुपाते जिंदगी गुजारी है।
व्हाट्सअप पर सूक्तियों की भरमार है।
प्रवचन सुनने, कहीं न जाने की दरकार है।
मोबाइल के आगे, चैनल फीके पड़ रहे,
बाबा लोगों का भी बंद हो रहा व्यापार है।
उड़ चली बुलबुल, चमन से जनक की,
बागों से बहारें, लिये जा रही है।
खुदा! क्यों तेरा व्यवहार रुखा है।
कहीं पर बाढ़ तो कहीं सूखा है।क्या हो गया है, आज ज़माने को
जलाता नहीं ये, अँधेरा भगाने को
कोई मंदिर ढूंढता, कोई मस्जिद
जलता दीया लिए, आग लगाने को
मैंने तो जब जब दीया जलाया
अँधेरा ही भागता नजर आया
मंदिर में जला या मस्जिद में
जलते दीये से, रौशनी ही पाया
तुम्हारे प्यार के फूल ज्यों झर गये।
घने अँधेरे भी जिंदगी के डर गये।
देखकर के दीये की लौ तुम्हारी
रस्तों को हम अपने रौशन कर गये।
गर्भ में आये अंधड़ के, गर्द छुपा होता है।
पत्थर की सुन्दर, मोटी दीवारों के अंदर
नहीं जान सकते, कितना दर्द छुपा होता है।
इस तरह से क्यों खुदगर्ज बने हो।
इंसानियत के तुम मर्ज बने हो।
खुदा ने भेजा है दौलत बना के
फिर क्यों दुनिया का कर्ज बने हो।
देखा था अब तक तस्वीरों में आज वो चहरे रूबरू हुए
जो छवि और कल्पना थी मन में देखा तो हुबहु हुए
फलक से सितारे उतर चले आये हैं इस अंजुमन में
जगे भाग अपने भी कि मुलाकात के साथ गुफ्तगू हुए
फेस बुक भी कितनी बड़ी बीमारी है।
औरतों के लिए बन गयी लाचारी है।
जन्म दिन तक की चुगली कर देता
कहाँ उम्र छुपाते जिंदगी गुजारी है।
व्हाट्सअप पर सूक्तियों की भरमार है।
प्रवचन सुनने, कहीं न जाने की दरकार है।
मोबाइल के आगे, चैनल फीके पड़ रहे,
बाबा लोगों का भी बंद हो रहा व्यापार है।
जिंदगानी को सूनी कर गए वो।
देश को शीश चढ़ा कर गए वो।
लड़ लूंगी मैं तन्हाई से अकेली
वतन के लिये
लड़, तर
गये वो।
दुल्हन बन डोली चढ़े जा रही है।
घर बाबुल का,
सूना
किये जा रही है। दुल्हन बन डोली चढ़े जा रही है।
उड़ चली बुलबुल, चमन से जनक की,
बागों से बहारें, लिये जा रही है।
खुदा! क्यों तेरा व्यवहार रुखा है।
उगाता जो दूसरों के पेट के लिए
तेरे कारण वही किसान भूखा है।
ढेरों दीये जलने से, रात जगमगा जाती है।
पर तेल कम पड़ने से बुझने लग जाती है।
पर तेल कम पड़ने से बुझने लग जाती है।
मुहब्बत की राहों में चलना
जमा कर पांव
हवा के तेज होने से, बहार डगमगा जाती है।कौशिल्या आँखों में रातें बितायी। जब वन को ...
रोने लगे अयोध्या के वासी
सरयू नीर बहाई। जब वन को ...
अँखियन अश्रु लिये थे पंछी
कानन पड़े मुरझाई। जब वन को ...
व्यथित हो गिरे धरती पर
दशरथ को मूर्छा छाई। जब वन को ...
रोने लगा पाप कैकेयी का
मन ममता उपजाई। जब वन को ...
मन ही मन पछताई कैकेयी
हाय! काहे वन को पठाई। जब वन को ...
धरा, गगन, राहें सब रोतीं
शोक की बदरी छाई। जब वन को ...
चाहता हूँ जब मैं, नहीं मिलती है।
तेरी होय मर्जी, तभी मिलती है।
चाहता हूँ मैं तो, तुझे रोज रोज,
तू मुझे है कि कभी कभी मिलती है।
खो जाती है जाने, जहाँ में कहाँ तू,
ढूंढें से भी नहीं, कहीं मिलती है।
पर सी कभी हल्की, उड़ती हवा में,
कभी हिम सी भारी, जमी मिलती है।
दुनिया के नजारों में, रहती पड़ी तू ,
रूप के जाल में, उलझी मिलती है।
डोलती कभी तू, लिए समस्यायें,
चिंताओं के नीचे, दबी मिलती है।
क्यों ना रोजाना, मेरे घर आ के,
मेरी ऐ जिंदगी! मुझे मिलती है।
इस दिल को ना, सख्त किया होता।
कोई आकर, लूट लिया होता।
किस किस पर मूरख मरा होता,
कमजोर अगर, ये हिया होता!
जमाने हक, आ जाता जमाना,
नरम जो तनिक भी जिया होता।
ढूंढें से भी नहीं, कहीं मिलती है।
पर सी कभी हल्की, उड़ती हवा में,
कभी हिम सी भारी, जमी मिलती है।
दुनिया के नजारों में, रहती पड़ी तू ,
रूप के जाल में, उलझी मिलती है।
डोलती कभी तू, लिए समस्यायें,
चिंताओं के नीचे, दबी मिलती है।
क्यों ना रोजाना, मेरे घर आ के,
मेरी ऐ जिंदगी! मुझे मिलती है।
इस दिल को ना, सख्त किया होता।
कोई आकर, लूट लिया होता।
किस किस पर मूरख मरा होता,
कमजोर अगर, ये हिया होता!
जमाने हक, आ जाता जमाना,
नरम जो तनिक भी जिया होता।
भटकाते राह मेरी बेईमान,
जिंदगी किस तरह जीया होता!
दिल टूटा कैसे सिया होता!
घूमता दिल के टुकड़े लेकर,
तुझको लाकर, क्या दिया होता!
फौजी की होली
होली का त्यौहार है प्यारा
लिए हुए मस्ती, हुडदंड।
डटा हुआ फौजी सीमा पर
घर से दूर, मन दूजा रंग।
अपनी चिंता छोड़ जवान
झेलते हैं सीमा पर गोली।
हमारे लिए मुश्किलें सहते
वे हैं तो खेलते, हम होली।
डटे हुए चौकस सीमा पर
उनका रंग तो है गोली।
बंदूक की पिचकारी से छोड़ें
देश रक्षा ही उनकी होली।
होली का त्यौहार जब आता
फौजी को आये बचपन याद।
घर पर होते तो मस्ती करते
देश रक्षा, है पर बड़ा काज।
घर में बना चिप्स, गुजिया
खुश हो खाते घर के लोग।
पर्व पर बैठी माँ है उदास
पत्नी सहती, अकेले वियोग।
अफ़सोस नहीं दूर रहने का
माँ न सही, भारत माँ साथ है ।
दूर घर, मात, पिता तो क्या
संग में उनका आशीर्वाद है ।
सुबह ही कर ली फोन से बातें
सुन सुन कर ले लिया स्वाद।
क्या क्या पका रही घर में माँ
कभी खाया था, करके याद।
- एस० डी० तिवारी
भौजी की होली
अबहीं भौजी से देवर कर ही रहे चिकारी,
भौजी ने अपने हाथ, उठा लई पिचकारी।
देवर लगे ढूंढने ओट, इधर उधर बचने का
भौजी ने किये बिन देर, फौरन दे मारी।
बजाती चली आय रही, झाल, ढोल मजीरा।
झूम झूम के गाय रही, फगुआ और कबीरा।
आन पहुंची पास में, मंडली देवर मित्रों की
उड़ाय रही हवा में खूब, रंग, गुलाल, अबीरा।
पहुँच गयी मंडली जब, घर उनके उस पल।
देखी हुआ पड़ा, अपने दोस्त को बेकल।
बना था भीगी बिल्ली और रंगा सियार
यार की हालत थी, होली में बड़ी खलबल।
देख के भौजी को ढंग, सब के सब थे दंग।
बनी योजना, डालेंगे, उस पर भी हम रंग।
है होली का दिन, छोड़ेंगे ना उसको आज
मिल सबै हम यार दोस्त, भिगोयेंगे अंग।
चले जोश में वे, बाजी हो गयी उलटी।
भौजी ने धरा था रंग, भर के पूरी बलटी।
मित्र मंडली ज्यूँ ही, आई भौजी के पास
उठाई रंग की बलटी, दन से ऊपर पलटी।
मित्र मंडली की काम न आई कोई चतुराई।
चपल भौजी जुगत लगा के खुद को बचाई।
छत पे जाकर फिर वो, खूब रंग बरसाई
भीग-भाग के पलटन सारी, लौटी शरमाई।
दाल गली ना देवर की, रंग डाली तब साड़ी ,
भौजी ने थी सुखने को, रस्सी पे जो पसारी।
महँगी थी साड़ी वो, भौजी को आया गुस्सा
डर के मारे, मन को मारे, देवर ने कचारी।
देवर जी के होली पर, फिर आये खूब मजे।
लेकर के आई भौजी भर भर प्लेट सजे।
छानी भांग, खिलाई गुजिया और मालपुआ
खाये देवर जी, जी भर के, भौजी को भजे।
एस० डी० तिवारी
होली गीत
आई है होली मतवाली, खेलेंगे जी भर रंग।
करेंगे ना परहेज आज, चढ़ा लेंगे थोड़ी भंग।
जोगीरा स र र र - २
ले के रंग, गुलाल घर से, निकल पड़ी है टोली।
नाचत, गावत, ढोल बजावत, खेलन को होली।
जोगीरा स र र र - २
बाज रहा है ढोल मजीरा, गूंज रहा है फगुआ।
देख रंग, जोगी का मन, होली में रंगीन हुआ।
जोगीरा स र र र - २
जोगीरा स र र र - २
ऋतु हुआ जवान देख, बुढऊ पर जवानी छाई।
फागुन मास, होली आई, भर भर खुशियां लाई।
जोगीरा स र र र - २
सरसों फूली, अमवा बौराये, छाय रही उमंग।
झूम झूम के घूमें इत उत, गाय रहे मकरंद।
जोगीरा स र र र - २
एस० डी० तिवारी
बेच गया रे मुझे, कोई बेच गया रे
सपनों को मुझे, कोई बेच गया रे
बेच..
संजोये रखी थी मैं, अँखियों में
सम्भाले रखूं कभी तकियों में
उड़ के कौन से देश गया रे
बेच ...
करूँ मैं क्या अब, उन सपनों का
छुड़ा के रखा है संग अपनों का
लगा के मन में ठेस गया रे
बेच ..
ले गया कीमत वो नीदों की मेरी
किसी भी पल अब, कल न पड़े री
कौन सा फंदा फेंक गया रे
बेच ..
सपनों को खाऊँ मैं, सपने को पीऊं
सपनों को जागूं, मैं सपने को सोऊँ
मन में गहरा वेध गया रे
बेच ..
पूरे की बात करने वाले हैं कहीं कहीं
फांक की जगह जगह
जोड़ने की बात होती अब कहीं कहीं
बाँट की जगह जगह
हर कुत्ते को भौंकने की आजादी होती है
ज्यादा भौंकने वाले को बांध के रखा जाता है
पालना होता है अगर जहरीला सांप कोई
उसे भी एक ओर बिना दांत के रखा जाता है
दर तेरा तकते हैं, तेरे चहेते।
एक गजल
तुम्हारी एक एक मुलाकात याद है मुझे।
बीती हर छोटी से छोटी बात याद है मुझे।
एक फूल तुमने तोडा और एक ही मैंने
गली के पास वाला बाग याद है मुझे।
घूम कर देर से आये थे घर, हम दोनों
तुमको भी पड़ी थी डांट, याद है मुझे।
तुम्हारी किताब से निकली एक पंखुड़ी
मेरे दिये फूल की,वर्षों बाद, याद है मुझे।
मिले कई बार जन्म दिन पर पैकेट
तुम्हारे दिये हुए सौगात याद है मुझे।
आये थे जब तुम्हारे घर हम पहली बार
तुमने ही खोला था किवाड़, याद है मुझे।
चाय का प्याला तश्तरी में सजा के लाई
तुम्हारे कांप रहे थे हाथ, याद है मुझे।
फूलों की महक
बात इत्ती कि ..
कैसे कह दूँ कि हमारे वे हबीब न थे।
बात इत्ती कि पाने के तरकीब न थे।
मिलाते क्योंकर, वो ताल से ताल?
हम उनके अगर, बहुत करीब न थे।
अपने रस्ते, भटकाते खुद ही क्यों ?
बहकाने वाले, अगर रकीब न थे।
ख्वाईशें तो उनकी, कर देते ही पूरी ;
किसी तौर से, हम भी गरीब न थे।
अल्ला को तोहमत दे झाड़ लें पल्ला
क्योंकर भला, इतने खोटे नसीब न थे।
उनकी यादों में, गुजारें जिंदगी सारी,
जियें अकेले, इतने भी शरीफ न थे।
एस० डी० तिवारी
तुम्हारे लिए ही लाया, ये ले लो बंदगी।
माथे पे ढोकर लाया, ये ले लो बंदगी।
थक गया हूँ देखो चल के राह बड़ी दूर
सांसे रहीं हैं फूल, तनिक देखो बंदगी।
सजदे में झुक गया सिर, मुद्दत हो गयी
रख दी तुम्हारे सामने, न फेरो बंदगी।
सम्भाले रखा कबसे, दिल में बंद करके
अंजुमन में यूँ ही, ना बिखेरो बंदगी।
माना कि मिल जायेंगे, चलते सरेराह
करने वाले हम जैसे, तुम्हें, ढेरों बंदगी।
कम से कम बढ़ा दो, अपना बस कदम ही
ना चाहो तुम कि मेरी, सहेजो बंदगी।
उनके आते ही जाने क्यों, चाँद शर्माने लगा है।
सितारों का सहारा लिए, खुद को सजाने लगा है।
मद्धम सी लिए रौशनी, वो चाँद था बिखेरे हुए
आसमां अब और भी ज्यादा, जगमगाने लगा है।
मौसम का उनके ऊपर, बदले तो कोई फर्क नहीं
चाँद है कि रूप कई , बदलकर दर्शाने लगा है।
आदत में ही शामिल, है बदलना रूप उसकी
या कि फिर उनकी अदाओं से, घबराने लगा है?
होते नहीं हैं वो, पलकों से कभी ओझल अपनी
फलक में देखकर बादल, चाँद छुप जाने लगा है।
एस० डी० तिवारी
(चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, संवत २०७३)
पुनः संवत्सर नया आ गया है।
नया पंचांग लेकर छा गया है।
लगाने लग पड़ा शुरू से चक्कर,
वसुंधरा का अब चाँद नया है।
दिखेगा आसमान नये रूप में,
धरती पर नशा नया छा गया है।
हँसते बसंत का महकता पवन,
ग्रहों की चाल को बहका गया है।
अपनी मतवाली चाल से नक्षत्र,
दशा कल की, अभी दिखा गया है।
साल के पहले नौ दिन हैं अर्पित,
माँ दुर्गा के मन को भा गया है।
एस० डी० तिवारी
रहता नहीं कैद में इश्क
पिंजरे को तोड़ देता है।
चला जाता है दूर उड़ कर
सरहद हो तोड़ देता है।
लग जाता है जिसे भी ये
अम्बर को फोड़ देता है।
इश्क के देख दीवाने को
तूफ़ां भी मुंह मोड़ देता है।
हुए हों दिल कितने भी पत्थर
पिघला कर जोड़ देता है।
देखो नजाकत इसकी जरा
यूँ ही मुंह सिकोड़ लेता है।
उंगली
छोटी सी उंगली जब बेकाबू हो जाती है।
कभी घोडा तो कभी बटन दबा जाती है।
डरा देती है बड़े बड़ों की आँखों को भी
जब कोई उंगली उस ओर उठ जाती है।
एक उंगली दिखाते ही किसी की ओर
दूसरी तीन खुद की ओर तन जाती हैं।
भरी महफ़िल में भी चुपके से कह कर
किसी खास को इशारों से बुलाती है।
कर देती प्यार का इजहार भी अंगुली
सोने की अंगूठी पहन कर इतराती है।
थिरक उठता तबला उँगलियों के जादू से
वीणा की तार को भी ये झनकाती है।
किसी के चलने का सहारा बन जाती
मजा भर देती, किसी को छूकर आती है।
कितना बड़ा हो सकता है मोल इसका
एकलव्य की कटी एक उंगली बताती है।
गया होता तुम्हारा, मिल साथ अगर।
जिंदगी अपनी भी, गयी होती संवर।
याद ढोया सजाये, दिल में ही सदा
रह गयी उम्र भर, यह प्यासी नजर।
मिले हो बाद मुद्दत, रुक जाओ जरा
देख लूँ थोड़ी देर, तुमको मैं जिय भर।
हालात ऐसे हुये, तुम दूर मुझसे गए
थी गुजारिस बस इतनी, गये होते ठहर।
ग़ुम गये तुम कहीं, दे गये मुझको गम
वक्त काटा मैं तनहा, तुम लिए न खबर।
तुमने की होती इधर, इनायत की नजर
कर ली होती सकूँ से, मैंने जिंदगी बसर।
जायेगी ये आवाज, दुनिया से, गजब होयेगा।
तुमने गाया इतना, जब जाओगे, जग रोयेगा।
तुम तो होगे मगन, उस जहां में, बाबुल के घर
लिए तुम्हारी यहीं, ये आवाज, जग संजोएगा।
होगी न पैदा फिर से, एक कोई, आवाज नयी
नये गीत कभी, न फिर ऐसा, कोई पिरोयेगा।
रोओगे तुम भी, देख अपने, चाहने वालों को
मेघों के साथ गिरा, जहां को, आंसू भिगोएगा।
गुनगुनाओगे जब, वहां पर, कोई गीत तुम
हवाओं से सुन के, यहाँ, जहां मगन होयेगा।
हम तो रोएंगे ही, आवाज से, युदा हो कर एसडी
तुम्हारी याद में ये, रेडियो भी, बड़ा रोयेगा।
एस० डी० तिवारी
खुदा की मर्जी में ही, ख़ुशी मना लेते हैं ।
हैं गरीब कहाँ! करीब में ठौर पा लेते हैं।
बनी होंगी दीवारें उनकी संगमर्मर की
मिटटी की दिवार से आंधी ठहरा लेते हैं।
करते हैं धूप, बारिश से मुहब्बत बेहद
कभी रुसवाईयों के लिए छप्पर छा लेते हैं।
जलाते होंगे वो, हजारों चिराग महल में
एक दीये से हम, अँधेरे को भगा लेते हैं ।
सोने की थाली की, है हमें जरूरत नहीं
पत्तल पर रोटी खा, भूख मिटा लेते हैं ।
नहीं चाहिए मोटे, नरम बिछौने हमको
नींद के साथ, जमी पर, रात बिता लेते हैं।
करती होगी खिदमत, उनकी दौलत ढेरों
खुदा के नाम पर हम, जिंदगी लुटा देते हैं।
बिन तेरे ये साँस चलती रहे, रखते हैं, वो हौसला तो नहीं।
बिन तेरे बहारें आ न सकीं, तेरे बिन, गुल कोई खिला तो नहीं।
बिन तेरे बरसात होती ही नहीं, सूख जाते, फूल चमन के सब
देख कर वीरानियों को मगर, जीने का, सिलसिला तो नहीं।
तेरी मर्जी से हंस लेते हैं, वरना अश्क पीने को, मजबूर थे हम
आंसुओं में कटे, यूँ जिंदगी पूरी, था रोने का फैसला तो नहीं।
जहां जहां से तू, चली जाती है, वहां की जमीन हिल जाती है।
ढा दे कयामत दुनिया पे, कहीं तू वो, जलजला तो नहीं।
तेरे साथ कट जाएगी, क़यामत तक की राह, हँसते हँसते
तेरे साथ लगता है, साथ जहां, है बेशक काफिला तो नहीं।
होता अच्छा, गुजरता हसीं वक्त, तेरे पहलू में ही हरदम
मंजिलों तक हरेक, खूबसूरत, तेरा साथ मिला तो नहीं।
इश्कियों में मिलती रहीं, सिसकियाँ बेहिसाब।
भीगी आँखें खोती रहीं, झपकियां बेहिसाब।
बंद करके रखी थी जो, पढ़ने में आ ही गयी
अश्कों की स्याही से लिखी, दिल की किताब।
अंदाजा लगाना मुमकिन था, बांचने वाले को
उनके लिए रहा होगा, दिल कितना बेताब।
रातों को आते रहें, सज धज के तारों के साथ
सुबह ही धुल जाते रहे, उनके हसीन ख्वाब।
अँधेरा तो डराता रहा, कालिख लेकर अपनी
औ आते ही चुभने लगता, सुबह का आफताब।
जल है तो कल है
सूखा, सुखा रहा, सूखी धरातल है।
सूख रहा कंठ है, सूखा ही नल है।
सूखे ताल तलैया, सूख रहे कुएं हैं,
सूख रहे पेड़-पौधे, सूखती फसल है।
बारिश ना हो रही, प्यासी वसुंधरा
जल की कमी से जीव जंतु बेकल है।
जमीं से निकालना, मुश्किल हो रहा
नलकूप हो रहा, बेबस आजकल है।
बारिश उसके हाथ, संचय तुम्हारे है
व्यर्थ करो जल नहीं, जल है तो कल है।
नीचे चला गया, धरती का जल है।
समय के रहते, ध्यान नहीं देते हो
भगत सिंह होते हैं, जो शहीद होते हैं
मोहरे हैं, राजनीति के मुरीद होते हैं
देश की खातिर करें जान को कुर्बान
सच्चे वीरों के कभी कभी दीद होते हैं
कुछ भी बोल मीडिया में प्रसिद्द होते हैं।
कर रहे वो अपना उल्लू सिद्ध होते हैं।
सत्ता के सहारे, ढूंढने वाले ऐशगाहों को
वतन को नोचने वाले, वो गिद्ध होते हैंं।
प्यार पनप जाता है
जब सावन में घटा छाये तो, प्यार पनप जाता है।
सामने प्यारी सूरत आये तो, प्यार पनप जाता है।
बारिश में मचल उठता दिल, भीगने को जी भर
जब दो पंछी भीग जाएं तो, प्यार पनप जाता है।
जाते ही पतझड़ के, निकल आते हैं पल्लव नये
जब हरियाली छा जाये तो, प्यार पनप जाता है।
सरसों के खेतों में जब, बिछ जाती चादर पीली
दिखने लगे आम बौराये तो,`प्यार पनप जाता है।
फूलों के महकने से, मदहोश गुनगुनाते भौरे
चूसने फूलों का रस आयें तो, प्यार पनप जाता है।
बहारों में मिल जायँ, दो जवां दिल जब कहीं
अगर नजरें मिल जायें तो, प्यार पनप जाता है।
खुशबुओं के लिये लोग, फूलों को तोड़ लेते हैं।
मुरझा जाये तो उसे, मिटटी में छोड़ देते हैं।
होता है मुश्किल बड़ा, रिश्तों को निभा लेना
सम्भाल तो पाते नहीं, पर नाते जोड़ लेते हैं।
बनी बनाई राह पर, चलना है आसान बड़ा
बनानी पड़े खुद की राह, मुंह मोड़ लेते हैं।
भर जाने में रस को, लगता है मौसम पूरा
पल भर में दबाकर के, नीबू निचोड़ लेते हैं।
सम्हाल पाते नहीं, करते मुहब्बत की बातें
अनबन हो तो, प्यार की कलाई मरोड़ देते हैं।
मुहब्बत की राह पर चल पाते वे ही एसडी,
चट्टानें भी आ जाएँ तो, दम से फोड़ देते हैं।
मरोड़
तेरे बनाए बन्दों को कहते काफिर जो
ऐ खुदा! उनको कुछ अक्ल तो दे दे। माफ़ न करना
तेरी बनाई चीजों को मिटाते बेदर्दी से
उन बेरहमों को, कुछ अक्ल तो दे दे।
कहते जो खुद को, ठेकेदार-ए-खुदाई
ऐसे खुदगर्जों को, कुछ अक्ल तो दे दे।
करा देते हैं क़त्ल, खुद की चलाने को
रचते जो साजिशें, कुछ अक्ल तो दे दे।
पहचान के वास्ते वही शक्ल तो दे दे।
खुदा! उन जालिमों को कुछ अक्ल दे दे।
कायम रहे इंसानियत, थोड़ा दख्ल दे दे।
इंसान होकर के भी बने हुए हैं भेड़िये जो,
पहचान के वास्ते उन्हें, वही शक्ल दे दे।
एस० डी० तिवारी
साजिशकारों के लिए सजा भी माकूल होगी
होंगे जो गद्दार देश के उनके लिए शूल होगी
साजिशों के बल अपने को तू बालि समझता
सुन रे नापाक तेरी, यह सबसे बड़ी भूल होगी
मैं सबकी तनख्वाह दूनी कर दूँ
मोदी जे बस पैसा दे दें
सबको लाख का पेंशन दे दूँ
मोदी जी बस पैसा दे दें
मुफ्त में सबको फ्लैट दिला दूँ
मोदी जी बस पैसा दे दें
मैं सडकों पर सोना जड़वा दूँ
मोदी जी बस पैसा दे दें
मुफ्त में एसी बस चलवा दूँ
मोदी जी बस पैसा दे दें
पानी बिजली सब मुफ्त करा दूँ
मोदी जी बस पैसा दे दें
वाई फाई, लैपटॉप बंटवा दूँ
मोदी जी बस पैसा दे दें
वो आये थे लेकर खुशियां भी, गम भी।
कभी खिल गए होंठ, हुईं ऑंखें नम भी।
चला उनके प्यार का जादू कुछ ऐसा,
माँगा साथ का वादा अगले जनम भी।
बचपन में जो आंसू बहा वो कम नहीं।
जवानी में पसीना बहाने का गम नहीं।
धूप, ठण्ड और बरसात से गल जाएँ,
इतना नाजुक तो मेरा ये जनम नहीं।
दर्द का एहसास जिसे, हमदर्दी वही जताता है।
वो दर्द ही है, जो दवा ढूंढने को उकसाता है।
जो झेलता है, वही समझ पाता दूसरे का दर्द
वो दर्द ही है, जो ऊपर वाले की याद दिलाता है।
मांगी दवा हमने, उन्होंने मर्ज दे दिया।
तड़पाता रात दिन, वो मीठा दर्द दे दिया।
पहले थे भले चंगे, सुख चैन ले लिया
आँखों से हसीं सपनों वाली रैन ले लिया।
एस० डी० तिवारी
दर्द नहीं होता तो कोई हमदर्द क्योंकर होता।
दर्द नहीं होता तो कोई बूटियां क्योंकर बोता।
वो दर्द ही है जो जगा देता है जजबातों को
बिना दर्द कोई अपनों के लिए क्योंकर रोता।
किसी के बिछुड़ने से दर्द जाग जाता है।
किसी के छेड़ने से दर्द जाग जाता है।
रखा होता है हर शख्श ही दबाए कहीं
किसी के कुरेदने से दर्द जाग जाता है।
किसी के आगाज से दर्द भाग जाता है।
किसी की आवाज से दर्द भाग जाता है।
किसी का सहला देना कभी होता काफी
किसी के पूछपाछ से दर्द भाग जाता है।
हर कोई, कोई न कोई दर्द लिए होता है।
कोई कम तो कोई बड़ा गम लिए होता है.
हो जाता हिम्मत वाले को भी मुश्किल
सहना दर्द, जो अपनों का दिया होता है।
सीने में हुआ दर्द, डॉक्टर को बुलाया गया।
माथे पर था पसीना, पंखा भी डुलाया गया।
वह तो दर्द था किसी की बसी हुई यादों का
कुछ गोलियां और सुई देकर सुलाया गया।
बदकिस्मती तो देखो जरा, ऐसा भी होता है।
बिछाते हम बिस्तर और दर्द आकर सोता है।
उनके बिना रहने की डाली न आदत दिल ने।
बिस्तर में अकेले पड़ा कमबख्त बड़ा रोता है।
पटरी साफ करना हो तो
मुझसे मत कहना
अतिक्रमण रोकना हो तो
मुझसे मत कहना
यमाताराजभानसलगा
किस तरह से आ पाता तुझ तक,
किस तरह मेरा तू पिया होता!
टूट जाता यह कहीं पर अगर,किस तरह मेरा तू पिया होता!
दिल टूटा कैसे सिया होता!
घूमता दिल के टुकड़े लेकर,
तुझको लाकर, क्या दिया होता!
फौजी की होली
होली का त्यौहार है प्यारा
लिए हुए मस्ती, हुडदंड।
डटा हुआ फौजी सीमा पर
घर से दूर, मन दूजा रंग।
झेलते हैं सीमा पर गोली।
हमारे लिए मुश्किलें सहते
वे हैं तो खेलते, हम होली।
डटे हुए चौकस सीमा पर
उनका रंग तो है गोली।
बंदूक की पिचकारी से छोड़ें
देश रक्षा ही उनकी होली।
होली का त्यौहार जब आता
फौजी को आये बचपन याद।
घर पर होते तो मस्ती करते
देश रक्षा, है पर बड़ा काज।
खुश हो खाते घर के लोग।
पर्व पर बैठी माँ है उदास
पत्नी सहती, अकेले वियोग।
माँ न सही, भारत माँ साथ है ।
दूर घर, मात, पिता तो क्या
संग में उनका आशीर्वाद है ।
सुबह ही कर ली फोन से बातें
सुन सुन कर ले लिया स्वाद।
क्या क्या पका रही घर में माँ
कभी खाया था, करके याद।
- एस० डी० तिवारी
भौजी की होली
अबहीं भौजी से देवर कर ही रहे चिकारी,
भौजी ने अपने हाथ, उठा लई पिचकारी।
देवर लगे ढूंढने ओट, इधर उधर बचने का
भौजी ने किये बिन देर, फौरन दे मारी।
बजाती चली आय रही, झाल, ढोल मजीरा।
झूम झूम के गाय रही, फगुआ और कबीरा।
आन पहुंची पास में, मंडली देवर मित्रों की
उड़ाय रही हवा में खूब, रंग, गुलाल, अबीरा।
पहुँच गयी मंडली जब, घर उनके उस पल।
देखी हुआ पड़ा, अपने दोस्त को बेकल।
बना था भीगी बिल्ली और रंगा सियार
यार की हालत थी, होली में बड़ी खलबल।
देख के भौजी को ढंग, सब के सब थे दंग।
बनी योजना, डालेंगे, उस पर भी हम रंग।
है होली का दिन, छोड़ेंगे ना उसको आज
मिल सबै हम यार दोस्त, भिगोयेंगे अंग।
चले जोश में वे, बाजी हो गयी उलटी।
भौजी ने धरा था रंग, भर के पूरी बलटी।
मित्र मंडली ज्यूँ ही, आई भौजी के पास
उठाई रंग की बलटी, दन से ऊपर पलटी।
मित्र मंडली की काम न आई कोई चतुराई।
चपल भौजी जुगत लगा के खुद को बचाई।
छत पे जाकर फिर वो, खूब रंग बरसाई
भीग-भाग के पलटन सारी, लौटी शरमाई।
दाल गली ना देवर की, रंग डाली तब साड़ी ,
भौजी ने थी सुखने को, रस्सी पे जो पसारी।
महँगी थी साड़ी वो, भौजी को आया गुस्सा
डर के मारे, मन को मारे, देवर ने कचारी।
देवर जी के होली पर, फिर आये खूब मजे।
लेकर के आई भौजी भर भर प्लेट सजे।
छानी भांग, खिलाई गुजिया और मालपुआ
खाये देवर जी, जी भर के, भौजी को भजे।
एस० डी० तिवारी
होली गीत
आई है होली मतवाली, खेलेंगे जी भर रंग।
करेंगे ना परहेज आज, चढ़ा लेंगे थोड़ी भंग।
जोगीरा स र र र - २
ले के रंग, गुलाल घर से, निकल पड़ी है टोली।
नाचत, गावत, ढोल बजावत, खेलन को होली।
जोगीरा स र र र - २
बाज रहा है ढोल मजीरा, गूंज रहा है फगुआ।
देख रंग, जोगी का मन, होली में रंगीन हुआ।
जोगीरा स र र र - २
चोली भीगे, चुनरी भीगे, भीगे अंगिया सारी।
जीजा ने उठाई पिचकारी, साली पे दे मारी।जोगीरा स र र र - २
ऋतु हुआ जवान देख, बुढऊ पर जवानी छाई।
फागुन मास, होली आई, भर भर खुशियां लाई।
जोगीरा स र र र - २
सरसों फूली, अमवा बौराये, छाय रही उमंग।
झूम झूम के घूमें इत उत, गाय रहे मकरंद।
जोगीरा स र र र - २
एस० डी० तिवारी
बेच गया रे मुझे, कोई बेच गया रे
सपनों को मुझे, कोई बेच गया रे
बेच..
संजोये रखी थी मैं, अँखियों में
सम्भाले रखूं कभी तकियों में
उड़ के कौन से देश गया रे
बेच ...
करूँ मैं क्या अब, उन सपनों का
छुड़ा के रखा है संग अपनों का
लगा के मन में ठेस गया रे
बेच ..
ले गया कीमत वो नीदों की मेरी
किसी भी पल अब, कल न पड़े री
कौन सा फंदा फेंक गया रे
बेच ..
सपनों को खाऊँ मैं, सपने को पीऊं
सपनों को जागूं, मैं सपने को सोऊँ
मन में गहरा वेध गया रे
बेच ..
पूरे की बात करने वाले हैं कहीं कहीं
फांक की जगह जगह
जोड़ने की बात होती अब कहीं कहीं
बाँट की जगह जगह
हर कुत्ते को भौंकने की आजादी होती है
ज्यादा भौंकने वाले को बांध के रखा जाता है
पालना होता है अगर जहरीला सांप कोई
उसे भी एक ओर बिना दांत के रखा जाता है
दर तेरा तकते हैं, तेरे चहेते।
घर पता पूछते हैं, तेरे चहेते।
छुपा है कहाँ बादलों में समाये,
बुलाते जमीं पे हैं, तेरे चहेते।
गिरती जब बूंदें, तेरे बादलों से,
हाल पूछ लेते हैं, तेरे चहेते।
राहत मिल जाती बरस देने से ही,
घट की बुझाते हैं, तेरे चहेते।
पाँखें पा जाते, उड़े चले आते,
ख्वाईश जगाते हैं, तेरे चहेते।
जैसे कि चातक निहारे गगन को,
दर्शन के प्यासे हैं, तेरे चाहते।
घटा हो घनेरी किये बिन फिकर के,
छवि नयनन बसाते हैं, तेरे चहेते।
तरसते रहे हम, उनकी बाहों के लिए।
तड़पाये थे बहुत वो पनाहों के लिए।
रहता बेचैन कभी, था ये दिल अपना,
करने को दीदार, जिन निगाहों के लिए।
काटों पर चलने से न परहेज किये हम,
पूरी करने में हर उनकी चाहों के लिए।
बिछाए रखते थे फूलों को चुन चुन कर,
महकाने को उनकी, हसीं राहों के लिए।
लेते थे सांस भी हम, सहम कर हरदम,
रूकावट न बनें, उनकी आहों के लिए।
उस पर भी नापते वो दिल को अक्सर,
मेरे इश्क की गहराई की थाहों के लिए।
हुए हैं दूर हमसे, एक बड़े अरसे से,
छोड़कर अकेले किन गुनाहों के लिए।एक गजल
रिश्तों में कड़वाहट का जहर घुला।
सुलगता दिल, तन जलाने पर तुला।
निकले थे थामे, एक दूजे की बाँहों को
जगाये थे उल्फत के, जुनूनों को बुला।
गुजारे साथ हँसीं के सालों तक हम
कैसे सकते हैं, उन लमहों को भुला।
लेता नहीं फिर से, उठँघने का नाम
दरम्यां तकरार का किवाड़ खुला।
नफ़रत की बरसात हुई बेमौसम ही
उल्फत का हर जर्रा, पानी में धुला।
बहते आंसुओं से ओद फिजायें सारी
साथ साथ रोना गयी, हवा को रुला।
झुलस चुके, जलते दिल की गरमी से
फिर भी पलने में रहे शोलों को झुला।
एस० डी० तिवारी
ऐसे लोग भी
कुछ लोग जंगल में भी देते आग लगा
सेकने को रोटी अपनी।
खाक कर देते दूसरों का कलेजा जला
सेकते हैं रोटी अपनी।
कैसे भी पड़े सिक्कों को, लेते हैं चला
चाहे हों खोटी अपनी।
कर लेते हैं फिट, कैसे भी जुगत लगा
कहीं भी गोटी अपनी।
रख लेते पैर, दूसरों के सिर पर जमा
ऊँची हो चोटी अपनी।
देते नहीं खाने को, फेंक दें बेशक सड़ा
किसी को रोटी अपनी।
जबसे उनकी गली में आना जाना हुआ।
अपना भी हर अंदाज शायराना हुआ।
देख लेता है दिल उनकी हरकत कोई,
सुबह शाम उसी बात का दोहराना हुआ। उछल जाता है, पड़ जाती उनपर नजर,
उनका दीदार ही दिल का नजराना हुआ।
कभी लाने कभी कुछ दे आने की खातिर,
बार बार होकर आने का बहाना हुआ।
जलने वालों की तादाद भी कम नहीं थी,
बगैर बात के ही खफा ये जमाना हुआ।
राह में आये रोड़े, हटाते उनको रहे,
पाकर मंजिल रहेंगे दिल में ठाना हुआ।
चढ़ गया सिर पर ऐसा फ़तूर इश्क का,
एक दिन आखिर आशिक ये दीवाना हुआ।
नरम दिल वाला सबसे प्यार जताता है।
जैसे पानी हरेक धार में जुड़ जाता है।
कड़क रुई के रेशे, लचक भी रखते
तभी आसानी से सूता पुर जाता है।
ऐंठकर नोक बनाये बिन, डालो अगर
सुई के छेद में, धागा मुड़ जाता है।
मिले ओढने के लिये छोटा ओढ़ना
सोने वाला स्वतः ही टिकुर जाता है।
ना तोड़ने पे फल, पेड़ से गिर जाता है
जब कभी उसका, समय पूर जाता है।
कितना भी ऊँचा उड़ने वाला हो पंछी
घोसले में आये तो पंख बटुर जाता है।
मरे सांप से भी सुरक्षित तभी जानो
जब उसका मुंह ठीक से थुर जाता है।
टेसू फूले, कोयल कुहुकी, मन महकाती बयार डोली।
ढोल बजाते, गाते फगुआ, आई सहेलियों की टोली।
मन के रंग उतार कूंची से, दिया है दहलीज पर रख
उतरी निखरी इंद्रधनुष सी, सुन्दर सतरंगी रंगोली।
घर पर बने पकवान कई, छोड़ जाने को जी ना चाहे
खड़ी सहेलियां ले जाने को साथ, खेलन को री होली।
मीठे और गुजिया के संग, देवर भाभी के मीठे रिश्ते
होली के दिन साली जुट गयी, जीजा से करने ठिठोली।
मन गुलशन में रंग बिरंगे, मुस्काएं फूल उमंग भरे
खेलेंगी इस दिन, खूब सखी री, रंगों में डूब कर होली।
बीता साल पूरा एक, तो आया खुशियों का त्यौहार
खेलेगी ना फगुआ में रंग पिया से? तू कितनी भोली।
चारों ओर मस्ती छाई, धुन मधुर हवा के झोंके लाई
भीगेगा, जो आयेगा छैला, कढ ले घर से हमजोली।
सुलगता दिल, तन जलाने पर तुला।
निकले थे थामे, एक दूजे की बाँहों को
जगाये थे उल्फत के, जुनूनों को बुला।
गुजारे साथ हँसीं के सालों तक हम
कैसे सकते हैं, उन लमहों को भुला।
लेता नहीं फिर से, उठँघने का नाम
दरम्यां तकरार का किवाड़ खुला।
नफ़रत की बरसात हुई बेमौसम ही
उल्फत का हर जर्रा, पानी में धुला।
बहते आंसुओं से ओद फिजायें सारी
साथ साथ रोना गयी, हवा को रुला।
झुलस चुके, जलते दिल की गरमी से
फिर भी पलने में रहे शोलों को झुला।
एस० डी० तिवारी
ऐसे लोग भी
कुछ लोग जंगल में भी देते आग लगा
सेकने को रोटी अपनी।
खाक कर देते दूसरों का कलेजा जला
सेकते हैं रोटी अपनी।
कैसे भी पड़े सिक्कों को, लेते हैं चला
चाहे हों खोटी अपनी।
कर लेते हैं फिट, कैसे भी जुगत लगा
कहीं भी गोटी अपनी।
रख लेते पैर, दूसरों के सिर पर जमा
ऊँची हो चोटी अपनी।
देते नहीं खाने को, फेंक दें बेशक सड़ा
किसी को रोटी अपनी।
फिजां चली आती, चमन, महकने लग जाता है।
उल्फत की लगन में दिल, बहकने लग जाता है।
फूल बिखराते हैं, मुहब्बत की भीनी महक,
हर जवां दिल जोश लिए, मचलने लग जाता है।
बसंत आ जाता है, कोयल चुप ना रह पाती है,
पत्तों के झुरमुटों में, सुर निकलने लग जाता है।
आती जवानी की ऋतु, एक बार जिंदगी में,
जिगर में प्यार का धुंआ, उठने लग जाता है।
लिखता हवा में कोई, कहानियां मुहब्बत की,
आती जवानी की ऋतु, एक बार जिंदगी में,
जिगर में प्यार का धुंआ, उठने लग जाता है।
लिखता हवा में कोई, कहानियां मुहब्बत की,
डोलता पवन ही आकर, कहने लग जाता है।
यादें पुरानी आकर, टटोलतीं हैं भीतर तक,
मुद्दत से सोया दर्द, फिर जगने लग जाता है ।
होता एहसास उसे, लिये होता याद कोई,
सोते समय नश्तर कोई, चुभने लग जाता है ।
यादें पुरानी आकर, टटोलतीं हैं भीतर तक,
मुद्दत से सोया दर्द, फिर जगने लग जाता है ।
होता एहसास उसे, लिये होता याद कोई,
सोते समय नश्तर कोई, चुभने लग जाता है ।
खुदा ने बख्शा जिंदगी की दौलत, तुम क्यों ले रहे ?
जीने की हमारी शानो शौकत, तुम क्यों ले रहे ?
जानोगे तुम कैसे? बेले हैं हम भी, पापड़ कितने,
दिखाया वो बड़ी मुश्किल से रहमत, तुम क्यों ले रहे ?
भागम भाग की इस जिंदगी में, मिल पाती है कहाँ,
मिल गयी मीठी नींद की मोहलत, तुम क्यों ले रहे?
रहा,है हमेशा हमें तुम्हारे ईमान का वास्ता,
चुराने का हमारे दिल का तोहमत, तुम क्यों ले रहे?
चुराने का हमारे दिल का तोहमत, तुम क्यों ले रहे?
मिलती है आजादी,कहाँ अपनों से भी मिलने की
आने जाने के हिसाब का जहमत, तुम क्यों ले रहे ?
पड़े थे यूँ ही हम तो, दबे पिसे एक ज़माने से,
इस तरह सख्त होने का सोहरत, तुम क्यों ले रहे ?
दिल की बात खोलने का हौसला बड़ी देर से हुआ,
जज्बातों को छुपा दर्द का दहसत, तुम क्यों ले रहे ?
अपना भी हर अंदाज शायराना हुआ।
देख लेता है दिल उनकी हरकत कोई,
सुबह शाम उसी बात का दोहराना हुआ। उछल जाता है, पड़ जाती उनपर नजर,
उनका दीदार ही दिल का नजराना हुआ।
कभी लाने कभी कुछ दे आने की खातिर,
बार बार होकर आने का बहाना हुआ।
जलने वालों की तादाद भी कम नहीं थी,
बगैर बात के ही खफा ये जमाना हुआ।
राह में आये रोड़े, हटाते उनको रहे,
पाकर मंजिल रहेंगे दिल में ठाना हुआ।
चढ़ गया सिर पर ऐसा फ़तूर इश्क का,
एक दिन आखिर आशिक ये दीवाना हुआ।
नरम दिल वाला सबसे प्यार जताता है।
जैसे पानी हरेक धार में जुड़ जाता है।
कड़क रुई के रेशे, लचक भी रखते
तभी आसानी से सूता पुर जाता है।
ऐंठकर नोक बनाये बिन, डालो अगर
सुई के छेद में, धागा मुड़ जाता है।
मिले ओढने के लिये छोटा ओढ़ना
सोने वाला स्वतः ही टिकुर जाता है।
ना तोड़ने पे फल, पेड़ से गिर जाता है
जब कभी उसका, समय पूर जाता है।
कितना भी ऊँचा उड़ने वाला हो पंछी
घोसले में आये तो पंख बटुर जाता है।
मरे सांप से भी सुरक्षित तभी जानो
जब उसका मुंह ठीक से थुर जाता है।
टेसू फूले, कोयल कुहुकी, मन महकाती बयार डोली।
ढोल बजाते, गाते फगुआ, आई सहेलियों की टोली।
मन के रंग उतार कूंची से, दिया है दहलीज पर रख
उतरी निखरी इंद्रधनुष सी, सुन्दर सतरंगी रंगोली।
घर पर बने पकवान कई, छोड़ जाने को जी ना चाहे
खड़ी सहेलियां ले जाने को साथ, खेलन को री होली।
मीठे और गुजिया के संग, देवर भाभी के मीठे रिश्ते
होली के दिन साली जुट गयी, जीजा से करने ठिठोली।
मन गुलशन में रंग बिरंगे, मुस्काएं फूल उमंग भरे
खेलेंगी इस दिन, खूब सखी री, रंगों में डूब कर होली।
बीता साल पूरा एक, तो आया खुशियों का त्यौहार
खेलेगी ना फगुआ में रंग पिया से? तू कितनी भोली।
चारों ओर मस्ती छाई, धुन मधुर हवा के झोंके लाई
भीगेगा, जो आयेगा छैला, कढ ले घर से हमजोली।
एस० डी० तिवारी
तुम्हारी एक एक मुलाकात याद है मुझे।
बीती हर छोटी से छोटी बात याद है मुझे।
एक फूल तुमने तोडा और एक ही मैंने
गली के पास वाला बाग याद है मुझे।
घूम कर देर से आये थे घर, हम दोनों
तुमको भी पड़ी थी डांट, याद है मुझे।
तुम्हारी किताब से निकली एक पंखुड़ी
मेरे दिये फूल की,वर्षों बाद, याद है मुझे।
मिले कई बार जन्म दिन पर पैकेट
तुम्हारे दिये हुए सौगात याद है मुझे।
आये थे जब तुम्हारे घर हम पहली बार
तुमने ही खोला था किवाड़, याद है मुझे।
चाय का प्याला तश्तरी में सजा के लाई
तुम्हारे कांप रहे थे हाथ, याद है मुझे।
फूलों की महक
बन गयी है खुशबु, फूलों के जान की दुश्मन।
चुराकर हवा भी हो जाती, आन बान की दुश्मन।
फैलते ही सुगंध, मडराने लग जाते हैं भौंरे
उड़ जाते चूस कर रस, बने सम्मान के दुश्मन।
चिढातीं तितलियाँ भी, अपने रंगो को बिखेर
बिन बात हो जाती, उनकी शान की दुश्मन।
कभी होता है जी, सुनने को भौरों के गीत
लेने न देतीं मजा, तितलियाँ तान की दुश्मन।
चाहत तो होती, लुटा दे, बहारों को सब कुछ
पहले ही तोड़ लेता, कोई अरमान का दुश्मन।
निचोड़ कर शीशी में इतर बेचने के लिए
गंधी भी बन जाता है उनकी जान का दुश्मन।
माली भी मुआ खिलते ही, गड़ा लेता नजर
जवां होते ही ले जाता है, दुकान पे दुश्मन। बात इत्ती कि ..
कैसे कह दूँ कि हमारे वे हबीब न थे।
बात इत्ती कि पाने के तरकीब न थे।
मिलाते क्योंकर, वो ताल से ताल?
हम उनके अगर, बहुत करीब न थे।
हमारी अटपटी बातों से लगा होगा,
उनको कि हम उनके रफीक ना थे।
अपने रस्ते, भटकाते खुद ही क्यों ?
बहकाने वाले, अगर रकीब न थे।
ख्वाईशें तो उनकी, कर देते ही पूरी ;
किसी तौर से, हम भी गरीब न थे।
अल्ला को तोहमत दे झाड़ लें पल्ला
क्योंकर भला, इतने खोटे नसीब न थे।
उनकी यादों में, गुजारें जिंदगी सारी,
जियें अकेले, इतने भी शरीफ न थे।
एस० डी० तिवारी
तुम्हारे लिए ही लाया, ये ले लो बंदगी।
माथे पे ढोकर लाया, ये ले लो बंदगी।
थक गया हूँ देखो चल के राह बड़ी दूर
सांसे रहीं हैं फूल, तनिक देखो बंदगी।
सजदे में झुक गया सिर, मुद्दत हो गयी
रख दी तुम्हारे सामने, न फेरो बंदगी।
सम्भाले रखा कबसे, दिल में बंद करके
अंजुमन में यूँ ही, ना बिखेरो बंदगी।
माना कि मिल जायेंगे, चलते सरेराह
करने वाले हम जैसे, तुम्हें, ढेरों बंदगी।
कम से कम बढ़ा दो, अपना बस कदम ही
ना चाहो तुम कि मेरी, सहेजो बंदगी।
उनके आते ही जाने क्यों, चाँद शर्माने लगा है।
सितारों का सहारा लिए, खुद को सजाने लगा है।
मद्धम सी लिए रौशनी, वो चाँद था बिखेरे हुए
आसमां अब और भी ज्यादा, जगमगाने लगा है।
मौसम का उनके ऊपर, बदले तो कोई फर्क नहीं
चाँद है कि रूप कई , बदलकर दर्शाने लगा है।
आदत में ही शामिल, है बदलना रूप उसकी
या कि फिर उनकी अदाओं से, घबराने लगा है?
होते नहीं हैं वो, पलकों से कभी ओझल अपनी
फलक में देखकर बादल, चाँद छुप जाने लगा है।
चाँद बादलों में छुपे या कि आसमानों में कहीं
दिल उनके अंजुमन में, रहने को ललचाने लगा है।
जिसका जी चाहे, देखे चाँद को, अम्बर में ऊपर
हमें तो यहीं देखने में, चाँद मजा आने लगा है।
दिल उनके अंजुमन में, रहने को ललचाने लगा है।
जिसका जी चाहे, देखे चाँद को, अम्बर में ऊपर
हमें तो यहीं देखने में, चाँद मजा आने लगा है।
(चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, संवत २०७३)
पुनः संवत्सर नया आ गया है।
नया पंचांग लेकर छा गया है।
लगाने लग पड़ा शुरू से चक्कर,
वसुंधरा का अब चाँद नया है।
दिखेगा आसमान नये रूप में,
धरती पर नशा नया छा गया है।
हँसते बसंत का महकता पवन,
ग्रहों की चाल को बहका गया है।
अपनी मतवाली चाल से नक्षत्र,
दशा कल की, अभी दिखा गया है।
साल के पहले नौ दिन हैं अर्पित,
माँ दुर्गा के मन को भा गया है।
एस० डी० तिवारी
रहता नहीं कैद में इश्क
पिंजरे को तोड़ देता है।
चला जाता है दूर उड़ कर
सरहद हो तोड़ देता है।
लग जाता है जिसे भी ये
अम्बर को फोड़ देता है।
इश्क के देख दीवाने को
तूफ़ां भी मुंह मोड़ देता है।
हुए हों दिल कितने भी पत्थर
पिघला कर जोड़ देता है।
देखो नजाकत इसकी जरा
यूँ ही मुंह सिकोड़ लेता है।
उंगली
छोटी सी उंगली जब बेकाबू हो जाती है।
कभी घोडा तो कभी बटन दबा जाती है।
डरा देती है बड़े बड़ों की आँखों को भी
जब कोई उंगली उस ओर उठ जाती है।
एक उंगली दिखाते ही किसी की ओर
दूसरी तीन खुद की ओर तन जाती हैं।
भरी महफ़िल में भी चुपके से कह कर
किसी खास को इशारों से बुलाती है।
कर देती प्यार का इजहार भी अंगुली
सोने की अंगूठी पहन कर इतराती है।
थिरक उठता तबला उँगलियों के जादू से
वीणा की तार को भी ये झनकाती है।
किसी के चलने का सहारा बन जाती
मजा भर देती, किसी को छूकर आती है।
कितना बड़ा हो सकता है मोल इसका
एकलव्य की कटी एक उंगली बताती है।
गया होता तुम्हारा, मिल साथ अगर।
जिंदगी अपनी भी, गयी होती संवर।
याद ढोया सजाये, दिल में ही सदा
रह गयी उम्र भर, यह प्यासी नजर।
मिले हो बाद मुद्दत, रुक जाओ जरा
देख लूँ थोड़ी देर, तुमको मैं जिय भर।
हालात ऐसे हुये, तुम दूर मुझसे गए
थी गुजारिस बस इतनी, गये होते ठहर।
ग़ुम गये तुम कहीं, दे गये मुझको गम
वक्त काटा मैं तनहा, तुम लिए न खबर।
तुमने की होती इधर, इनायत की नजर
कर ली होती सकूँ से, मैंने जिंदगी बसर।
जायेगी ये आवाज, दुनिया से, गजब होयेगा।
तुमने गाया इतना, जब जाओगे, जग रोयेगा।
तुम तो होगे मगन, उस जहां में, बाबुल के घर
लिए तुम्हारी यहीं, ये आवाज, जग संजोएगा।
होगी न पैदा फिर से, एक कोई, आवाज नयी
नये गीत कभी, न फिर ऐसा, कोई पिरोयेगा।
रोओगे तुम भी, देख अपने, चाहने वालों को
मेघों के साथ गिरा, जहां को, आंसू भिगोएगा।
गुनगुनाओगे जब, वहां पर, कोई गीत तुम
हवाओं से सुन के, यहाँ, जहां मगन होयेगा।
हम तो रोएंगे ही, आवाज से, युदा हो कर एसडी
तुम्हारी याद में ये, रेडियो भी, बड़ा रोयेगा।
एस० डी० तिवारी
खुदा की मर्जी में ही, ख़ुशी मना लेते हैं ।
हैं गरीब कहाँ! करीब में ठौर पा लेते हैं।
बनी होंगी दीवारें उनकी संगमर्मर की
मिटटी की दिवार से आंधी ठहरा लेते हैं।
करते हैं धूप, बारिश से मुहब्बत बेहद
कभी रुसवाईयों के लिए छप्पर छा लेते हैं।
जलाते होंगे वो, हजारों चिराग महल में
एक दीये से हम, अँधेरे को भगा लेते हैं ।
सोने की थाली की, है हमें जरूरत नहीं
पत्तल पर रोटी खा, भूख मिटा लेते हैं ।
नहीं चाहिए मोटे, नरम बिछौने हमको
नींद के साथ, जमी पर, रात बिता लेते हैं।
करती होगी खिदमत, उनकी दौलत ढेरों
खुदा के नाम पर हम, जिंदगी लुटा देते हैं।
बिन तेरे ये साँस चलती रहे, रखते हैं, वो हौसला तो नहीं।
बिन तेरे बहारें आ न सकीं, तेरे बिन, गुल कोई खिला तो नहीं।
बिन तेरे बरसात होती ही नहीं, सूख जाते, फूल चमन के सब
देख कर वीरानियों को मगर, जीने का, सिलसिला तो नहीं।
तेरी मर्जी से हंस लेते हैं, वरना अश्क पीने को, मजबूर थे हम
आंसुओं में कटे, यूँ जिंदगी पूरी, था रोने का फैसला तो नहीं।
जहां जहां से तू, चली जाती है, वहां की जमीन हिल जाती है।
ढा दे कयामत दुनिया पे, कहीं तू वो, जलजला तो नहीं।
तेरे साथ कट जाएगी, क़यामत तक की राह, हँसते हँसते
तेरे साथ लगता है, साथ जहां, है बेशक काफिला तो नहीं।
होता अच्छा, गुजरता हसीं वक्त, तेरे पहलू में ही हरदम
मंजिलों तक हरेक, खूबसूरत, तेरा साथ मिला तो नहीं।
इश्कियों में मिलती रहीं, सिसकियाँ बेहिसाब।
भीगी आँखें खोती रहीं, झपकियां बेहिसाब।
बंद करके रखी थी जो, पढ़ने में आ ही गयी
अश्कों की स्याही से लिखी, दिल की किताब।
अंदाजा लगाना मुमकिन था, बांचने वाले को
उनके लिए रहा होगा, दिल कितना बेताब।
रातों को आते रहें, सज धज के तारों के साथ
सुबह ही धुल जाते रहे, उनके हसीन ख्वाब।
अँधेरा तो डराता रहा, कालिख लेकर अपनी
औ आते ही चुभने लगता, सुबह का आफताब।
जल है तो कल है
सूखा, सुखा रहा, सूखी धरातल है।
सूख रहा कंठ है, सूखा ही नल है।
सूखे ताल तलैया, सूख रहे कुएं हैं,
सूख रहे पेड़-पौधे, सूखती फसल है।
बारिश ना हो रही, प्यासी वसुंधरा
जल की कमी से जीव जंतु बेकल है।
जमीं से निकालना, मुश्किल हो रहा
नलकूप हो रहा, बेबस आजकल है।
बारिश उसके हाथ, संचय तुम्हारे है
व्यर्थ करो जल नहीं, जल है तो कल है।
नीचे चला गया, धरती का जल है।
समय के रहते, ध्यान नहीं देते हो
एस० डी० तिवारी
दलित का रेप, अल्पसंख्यक को पीटा,
पिछड़े की हत्या, आदिवासी को घसीटा;
अब भारतीयों पर अत्याचार बंद हो गये हैं,
या कि मुल्क से भारतीय ख़त्म हो गये हैं ?
एस० डी० तिवारी
देश में अब अगड़े, पिछड़े और आदिवासी रहते हैं,
तमिल, मलयाली, जम्मू कश्मीर के वासी रहते हैं,
दलित, अल्पसंख्यक और सवर्ण जाति के रहते,
कोई तो बता दो पता, कहाँ भारतवासी रहते हैं ?
एस० डी० तिवारी
पिछड़े की हत्या, आदिवासी को घसीटा;
अब भारतीयों पर अत्याचार बंद हो गये हैं,
या कि मुल्क से भारतीय ख़त्म हो गये हैं ?
एस० डी० तिवारी
देश में अब अगड़े, पिछड़े और आदिवासी रहते हैं,
तमिल, मलयाली, जम्मू कश्मीर के वासी रहते हैं,
दलित, अल्पसंख्यक और सवर्ण जाति के रहते,
कोई तो बता दो पता, कहाँ भारतवासी रहते हैं ?
एस० डी० तिवारी
भगत सिंह होते हैं, जो शहीद होते हैं
मोहरे हैं, राजनीति के मुरीद होते हैं
देश की खातिर करें जान को कुर्बान
सच्चे वीरों के कभी कभी दीद होते हैं
कुछ भी बोल मीडिया में प्रसिद्द होते हैं।
कर रहे वो अपना उल्लू सिद्ध होते हैं।
सत्ता के सहारे, ढूंढने वाले ऐशगाहों को
वतन को नोचने वाले, वो गिद्ध होते हैंं।
प्यार पनप जाता है
जब सावन में घटा छाये तो, प्यार पनप जाता है।
सामने प्यारी सूरत आये तो, प्यार पनप जाता है।
बारिश में मचल उठता दिल, भीगने को जी भर
जब दो पंछी भीग जाएं तो, प्यार पनप जाता है।
जाते ही पतझड़ के, निकल आते हैं पल्लव नये
जब हरियाली छा जाये तो, प्यार पनप जाता है।
सरसों के खेतों में जब, बिछ जाती चादर पीली
दिखने लगे आम बौराये तो,`प्यार पनप जाता है।
फूलों के महकने से, मदहोश गुनगुनाते भौरे
चूसने फूलों का रस आयें तो, प्यार पनप जाता है।
बहारों में मिल जायँ, दो जवां दिल जब कहीं
अगर नजरें मिल जायें तो, प्यार पनप जाता है।
एस० डी० तिवारी
खुशबुओं के लिये लोग, फूलों को तोड़ लेते हैं।
मुरझा जाये तो उसे, मिटटी में छोड़ देते हैं।
होता है मुश्किल बड़ा, रिश्तों को निभा लेना
सम्भाल तो पाते नहीं, पर नाते जोड़ लेते हैं।
बनी बनाई राह पर, चलना है आसान बड़ा
बनानी पड़े खुद की राह, मुंह मोड़ लेते हैं।
भर जाने में रस को, लगता है मौसम पूरा
पल भर में दबाकर के, नीबू निचोड़ लेते हैं।
सम्हाल पाते नहीं, करते मुहब्बत की बातें
अनबन हो तो, प्यार की कलाई मरोड़ देते हैं।
मुहब्बत की राह पर चल पाते वे ही एसडी,
चट्टानें भी आ जाएँ तो, दम से फोड़ देते हैं।
मरोड़
दुनिया नई एक, बसाने चला हूँ।
मुहब्बत की राह, बनाने चला हूँ।
चले संग मेरे, कदमों को मिला के;
मंजिलें नई अब, पाने चला हूँ।
महका दे कोई, आकर के बगिया
उल्फत के ही गुल खिलाने चला हूँ।
खिलना मुझे है, फूलों के संग में;
फिजाओं से हाथ, मिलाने चला हूँ।
दिल में जली है, प्रेम की लौ उजली;
रौशनी राह में बिखराने चला हूँ।
साथ हो कोई, नहीं राह मुश्किल;
सितारों को तोड़ के लाने चला हूँ ।
रुकना नहीं है, थकना नहीं है;
प्यार की दुनिया सजाने चला हूँ।
मिलने से उसके ग्यारह का बल;
प्रेमियों में दो ही, जुटाने चला हूँ ।
ऐ खुदा! उनको कुछ अक्ल तो दे दे। माफ़ न करना
तेरी बनाई चीजों को मिटाते बेदर्दी से
उन बेरहमों को, कुछ अक्ल तो दे दे।
कहते जो खुद को, ठेकेदार-ए-खुदाई
ऐसे खुदगर्जों को, कुछ अक्ल तो दे दे।
करा देते हैं क़त्ल, खुद की चलाने को
रचते जो साजिशें, कुछ अक्ल तो दे दे।
सीखा न करना मुहब्बत तेरे जीवों से
बने उन जालिमों को अक्ल तो दे दे।
इंसान होकर भी बने हुए हैं भेड़िये जोपहचान के वास्ते वही शक्ल तो दे दे।
खुदा! उन जालिमों को कुछ अक्ल दे दे।
कायम रहे इंसानियत, थोड़ा दख्ल दे दे।
इंसान होकर के भी बने हुए हैं भेड़िये जो,
पहचान के वास्ते उन्हें, वही शक्ल दे दे।
एस० डी० तिवारी
साजिशकारों के लिए सजा भी माकूल होगी
होंगे जो गद्दार देश के उनके लिए शूल होगी
साजिशों के बल अपने को तू बालि समझता
सुन रे नापाक तेरी, यह सबसे बड़ी भूल होगी
मैं सबकी तनख्वाह दूनी कर दूँ
मोदी जे बस पैसा दे दें
सबको लाख का पेंशन दे दूँ
मोदी जी बस पैसा दे दें
मुफ्त में सबको फ्लैट दिला दूँ
मोदी जी बस पैसा दे दें
मैं सडकों पर सोना जड़वा दूँ
मोदी जी बस पैसा दे दें
मुफ्त में एसी बस चलवा दूँ
मोदी जी बस पैसा दे दें
पानी बिजली सब मुफ्त करा दूँ
मोदी जी बस पैसा दे दें
वाई फाई, लैपटॉप बंटवा दूँ
मोदी जी बस पैसा दे दें
वो आये थे लेकर खुशियां भी, गम भी।
कभी खिल गए होंठ, हुईं ऑंखें नम भी।
चला उनके प्यार का जादू कुछ ऐसा,
माँगा साथ का वादा अगले जनम भी।
तकनिकी विकास पर बेशक फक्र करो।
पर होड़ में इंसानियत का ना क़त्ल करो।
हो पायेगी जिंदगी तुम्हारी हसीन तभी,
इंसानियत के वसूलों का हर क़द्र करो।
बचपन में जो आंसू बहा वो कम नहीं।
जवानी में पसीना बहाने का गम नहीं।
धूप, ठण्ड और बरसात से गल जाएँ,
इतना नाजुक तो मेरा ये जनम नहीं।
दर्द का एहसास जिसे, हमदर्दी वही जताता है।
वो दर्द ही है, जो दवा ढूंढने को उकसाता है।
जो झेलता है, वही समझ पाता दूसरे का दर्द
वो दर्द ही है, जो ऊपर वाले की याद दिलाता है।
मांगी दवा हमने, उन्होंने मर्ज दे दिया।
तड़पाता रात दिन, वो मीठा दर्द दे दिया।
पहले थे भले चंगे, सुख चैन ले लिया
आँखों से हसीं सपनों वाली रैन ले लिया।
एस० डी० तिवारी
दर्द नहीं होता तो कोई हमदर्द क्योंकर होता।
दर्द नहीं होता तो कोई बूटियां क्योंकर बोता।
वो दर्द ही है जो जगा देता है जजबातों को
बिना दर्द कोई अपनों के लिए क्योंकर रोता।
किसी के बिछुड़ने से दर्द जाग जाता है।
किसी के छेड़ने से दर्द जाग जाता है।
रखा होता है हर शख्श ही दबाए कहीं
किसी के कुरेदने से दर्द जाग जाता है।
किसी के आगाज से दर्द भाग जाता है।
किसी की आवाज से दर्द भाग जाता है।
किसी का सहला देना कभी होता काफी
किसी के पूछपाछ से दर्द भाग जाता है।
हर कोई, कोई न कोई दर्द लिए होता है।
कोई कम तो कोई बड़ा गम लिए होता है.
हो जाता हिम्मत वाले को भी मुश्किल
सहना दर्द, जो अपनों का दिया होता है।
सीने में हुआ दर्द, डॉक्टर को बुलाया गया।
माथे पर था पसीना, पंखा भी डुलाया गया।
वह तो दर्द था किसी की बसी हुई यादों का
कुछ गोलियां और सुई देकर सुलाया गया।
बदकिस्मती तो देखो जरा, ऐसा भी होता है।
बिछाते हम बिस्तर और दर्द आकर सोता है।
उनके बिना रहने की डाली न आदत दिल ने।
बिस्तर में अकेले पड़ा कमबख्त बड़ा रोता है।
मुझसे मत कहना
अतिक्रमण रोकना हो तो
मुझसे मत कहना
यमाताराजभानसलगा
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