Friday, 9 December 2016
Thursday, 1 December 2016
Haiku Dec 26 shadi
बुझे न पिया
कुछ ऐसा करना
प्रेम का दीया
शुरू हो जाती
तीन टांग की दौड़
शादी के बाद
जाम हो जाती
दोनों की एक टांग
शादी के बाद
चलतीं साथ
दो आत्माएं मिल के
शादी के बाद
दिव्य हो जाती
पहली काली रात
शादी के बाद
पति पत्नी के
सुख दुःख एक
शादी के बाद
होती जिंदगी
एक दूजे के लिए
शादी के बाद
दो दिल मिल के
ग्यारह से लगते
शादी के बाद
दिया व बाती
रौशनी भर जाती
शादी के बाद
मोती व धागा
मिल के होते माला
शादी के बाद
नव दम्पति
दो दिलों का मिलन
शादी के बाद
होता है प्यार
खटपट में भी
शादी के बाद
बंधा खूंटे से
घूम रहा था साँड़
शादी के बाद
पत्तों से लदा
धनी पेड़ का दर्द
फूल न फल
इत्ता डुबोया
कोई ना जो उबारे
उत्तो प्रदेश
निर्मल बाबा
चार समोसा खाया
कुछ ना पाया /पेट में गैस
बढ़ता जब
लेते हैं अवतार
राम व कृष्ण
धरा पे अत्याचार
रावण या कंस का
सहसा हुई
भारी बर्फ़बारी में
फंसी बेचारी
मित्रों, आईये लिखते हैं कुछ हाइकु इस चित्र पर
बर्फ से ढके
हिमपात के बाद
घाटी के रस्ते
चलना संभल के
पहिये फिसलते
एस० डी० तिवारी
थमने लगी
होते ही बर्फ़बारी
घाटी की गति
ठण्ड का कोप
पड़ गया पहाड़
बर्फ को ओढ़
बर्फ ज्यों पड़ी
बेचारे पहाड़ों की
थमी जिंदगी
हरी वादियां
हिमपात के बाद
श्वेत मैदान
सपने जैसा
बर्फ़बारी देखना
तमिल वासी
किधर जाएँ
भारी बर्फ़बारी में
ओझल राहें
गिरते जब
जम जातीं निगाहें
बर्फ के फाहे
बांधती पग
बरफ की परत
चींटी की चाल
चींटी सी होती
बर्फ़बारी के बाद
गाड़ी की चाल
उड़ते वक
हिमगिरि पे लगे
गिरती बर्फ
खुली जो आँखें
खिड़की के बाहर
हिम की पांखें
सर्दी में पक्षी
हिमालय को छोड़
दक्षिण ओर
हरी वादियां
हिमपात के बाद
क्षीर सागर
श्वेत चादर
ओढ़ के हिमालय
क्षीर सागर
सपना जानें
बर्फ़बारी देखना
केरल वासी
पहन लेता
नित प्रातः हिमाद्रि
स्वर्ण मुकुट
ढकी फिजायें
कोहरे में हो गयीं
ओझल राहें
छाया कोहरा
आसमान से गिरा
सफ़ेद पर्दा
धूप न पकी
सूरज की रोशनी
धुंध में ढकी
बरस पड़ा
कोहरे का कहर
शीत लहर
लपेट लिया
कोहरे का कहर
कांपा शहर
रवि न धूप
कोहरे का कहर
दोनों पहर
गाड़ी की चाल
कोहरे का कहर
गयी ठहर
था दिन भर
कोहरे का पहरा
रवि के घर
टपका नीचे
बनकर कोहरा
मेघ का स्वेद
धूप न पकी
सूरज की रोशनी
धुंध में ढकी
बीच धार में
उन्हें बचाने चले
हम भी डूबे
हो गयी शाम
अब तो पड़ गया
तुझसे काम
डाल सूरज
बदल रहा वस्त्र
धुंध का पर्दा
गया देकर
दो हजार का नोट
सन सोलह
लक्ष्मी जी आईं
मुझे दिसंबर में
दादा बनायीं
राष्ट्र प्रमुख
अमेरिका के ट्रम्प
हारी हिलेरी
राष्ट्र ने छोड़
बनाई पहचान
मंगल यान
झेले त्रासदी
सोलह में ध्वंस की
सीरिया तुर्की
लेकर आये
संग नया साल
नई ऊंचाई
अँधेरा कक्ष
कोने में चमकतीं
बिल्ली की ऑंखें
धारण करे
काम क्रोध व लोभ
मन बीमार
ध्यान व ज्ञान
करने के हैं तंत्र
काबू में मन
मन पे काबू
सुन्दर जीवन का
उत्तम जादू
दाम ना कौड़ी
मन खाने को दौड़े
गर्म फुलौड़ी
पाप की काई
मन पे तो ले जाता
गहरी खाईं
छाने ना पाय
मन पर विकार
करो उपाय
हो गयी शाम
अब तो पड़ गया
तुझसे काम
डाल सूरज
बदल रहा वस्त्र
धुंध का पर्दा
हो रहा विदा
जय श्रीराम कह
सन सोलह
सुप्रभातम
सबको मुबारक
नवल वर्ष
हर सुबह
ले के आना खुशियां
सन सत्रह
मंगलमय
रहे पूरा समय
सन सत्रह
नूतन वर्ष
हो कदमों के नीचे
नया उत्कर्ष
लेकर आये
संग नया साल
नई ऊंचाई
हासिल किया
अब तक की उम्र
खर्च के साँस
तोड़ने बढ़े
हाथ पड़ा हटाना
रोटी की भाप
जलने लगा
भगौने में से दूध
निकल भागा
रुकते नहीं
पहाड़ पर पानी
चढ़ी जवानी
पालती तुम्हें
जननी जन्म भूमि
चाहती प्रेम
सुस्वागतम
विदा गत वर्ष का
नव वर्ष का
काम क्रोध व लोभ
मन बीमार
ध्यान व ज्ञान
करने के हैं तंत्र
काबू में मन
मन पे काबू
सुन्दर जीवन का
उत्तम जादू
दाम ना कौड़ी
मन खाने को दौड़े
गर्म फुलौड़ी
पाप की काई
मन पे तो ले जाता
गहरी खाईं
छाने ना पाय
मन पर विकार
करो उपाय
हो गयी शाम
अब तो पड़ गया
तुझसे काम
डाल सूरज
बदल रहा वस्त्र
धुंध का पर्दा
हो रहा विदा
जय श्रीराम कह
सन सोलह
सुप्रभातम
सबको मुबारक
नवल वर्ष
हर सुबह
ले के आना खुशियां
सन सत्रह
मंगलमय
रहे पूरा समय
सन सत्रह
नूतन वर्ष
हो कदमों के नीचे
नया उत्कर्ष
लेकर आये
संग नया साल
नई ऊंचाई
हासिल किया
अब तक की उम्र
खर्च के साँस
तोड़ने बढ़े
हाथ पड़ा हटाना
रोटी की भाप
जलने लगा
भगौने में से दूध
निकल भागा
रुकते नहीं
पहाड़ पर पानी
चढ़ी जवानी
पालती तुम्हें
जननी जन्म भूमि
चाहती प्रेम
सुस्वागतम
विदा गत वर्ष का
नव वर्ष का
आलू पराठा
किसको नहीं भाता
प्रातः का नाश्ता
आलू का दम
बने जो आलू-दम
मुंह में पानी
घेर लेता है
आलू टिक्की का दोना
पार्टी का कोना
खड़ी हो जाती
गोलगप्पे के पास
आलू की टिक्की
बिक्री के ट्रिक्स
फूल हुआ पैकेट
थोड़ी सी चिप्स
है पटा पड़ा
मुम्बई का बाजार
बटाटा बड़ा
रहे अधूरी
बगैर आलू पूरी
भोज भंडारा
हत्यारे पर भी
सुगंध बरसाता
चन्दन वृक्ष
कवि की पत्नी
कविता को कहती
सौत अपनी
फूलों को चूमीं
सुबह ही आकर
सूर्य की रश्मि
होकर मौन
सब कहता दिल
सुनेगा कौन
ढेर सी बातें
कह देती हैं ऑंखें
भाषा न शब्द
अनेकों बातें
कहने में सक्षम
आँखों के रंग
प्रभु ने बांटा
ज्यों गुलाब में कांटा
सुख व दुःख
कवि को वाह
स्त्री के मन को भाये
प्रेम की राह
राजा या रंक
हुस्न का ऐसा रंग
झुकते सभी
खिलती कली
मंडराने ऊपर
आ जाते अलि
खिलते जब
मंडराने लगते
फूलों पे भौंरे
गोभी का फूल
रंग न गंध भाये
क्षुधा मिटाये
विवाह मंच
पहने वरमाला
दूल्हा दुल्हन
बैठे शातिर
बना के चक्रव्यूह
भेदना टेढ़ा
गलती कर
नेता मढ़ते दोष
किसी के और
हवा भी देना
मंजिल की राह में
लगी हो आग
खाली हो जाता
रोजाना एक दिन
उम्र का घड़ा
है सीधी सादी
जिंदगी को करते
जटिल हम्हीं
प्रभु ने दिया
हमें श्रेष्ठ ये भेंट
हंसी व प्रेम
मनुष्य ऐसा
जिसे प्रभु ने बख्शा
हंसी व प्रेम
बहता जाये
समय सरिता में
जीवन पानी
भाग्य से पाये
जीवन अनमोल
व्यर्थ न जाये
नेता मढ़ते दोष
किसी के और
हवा भी देना
मंजिल की राह में
लगी हो आग
खाली हो जाता
रोजाना एक दिन
उम्र का घड़ा
है सीधी सादी
जिंदगी को करते
जटिल हम्हीं
प्रभु ने दिया
हमें श्रेष्ठ ये भेंट
हंसी व प्रेम
मनुष्य ऐसा
जिसे प्रभु ने बख्शा
हंसी व प्रेम
बहता जाये
समय सरिता में
जीवन पानी
भाग्य से पाये
जीवन अनमोल
व्यर्थ न जाये
Monday, 28 November 2016
Mango
served with curd
potato stuffed paratha
delighted heart
the golden pots
filled with sweet juices
hanged on trees
I love to take
some of them directly
to my lips
eat the pulp
after sucking whole juice
through a hole
rather than
drinking through a straw
without mango
world of pickles
potato stuffed paratha
delighted heart
the golden pots
filled with sweet juices
hanged on trees
some of them directly
to my lips
eat the pulp
after sucking whole juice
through a hole
rather than
drinking through a straw
from the bottle
especially one
that is called king of fruits
the Indian mangowithout mango
world of pickles
Sunday, 6 November 2016
Ramayan ki naari
बिछुड़ सजन से अपन, घबराने लगी
उर्मिला मन ही मन, अकुलाने लगी।
वन गमन को लखन, जब घर से चले
संग जाने को उनके, मनाने लगी।
साथ जाना सजन के, मना हो गया
सफल तप हो, स्वयं को तपाने लगी।
बीत चौदह बरस, जाँयगे किस तरह
सोचती रात ऑंखें, जगाने लगी।
देखती आसमां, अंगना में खड़ी
चांदनी में अकेले, नहाने लगी।
आस मन में लिये, फिर उगेगा रवी
घोर तम में लिये, दिल जलाने लगी।
दिन बिताती बिरह में, तपस्विनी बनी
लखन सकुशल रहें, नित मनाने लगी।
उर्मिला का मिलन, गजल
कष्ट चौदह बरस की भुलाने लगी।
नैन राहों, पिया के बिछाने लगी।
उरमिला, उर्मिला का, सदा यूं रहा
देख आँखे, लखन को जुड़ाने लगीं।
खो दिया जिंदगी की सुनहरी घडी
फल मधुर हर एक पल का पाने लगी।
बीत कैसे गया रह अकेले समय
याद करके व्यथा सब बताने लगी।
सींच डाली चमन, प्यार में शुष्क मन
कुम्हलाये गुलों को खिलाने लगी।
बुझ चुके सब दिवे हृद के जल गये
रोशनी से दिवाली मनाने लगी।
की कड़ी तपस्या जनकदुलारी।
काँटों से भरी थी जिंदगी सारी।
पली वो ज्यों फूलों की कली,
मगर कष्ट, वन के सह ली,
सिय को विरहन करके ले गया,
अशोक वाटिका में था वास ,
साजन बसे समुन्दर पार,
अकेली बैठी विरह की मारी।
जोह में बीते बरस अनेक,
पहुंचे राम लखन समेत,
सीता को लाये रावण संहार,
पायी सीता अपना परिवार,
पल पल झेली विपदा भारी।
मंथरा ने लगाई आग,
जलाई दशरथ का घर।
कैकेयी की मति फेर,
जलाई दशरथ का घर।
याद दिलाई उसको वह,
कहे थे देने को दशरथ,
मांग ली सुत को राज,
राम को मांगी वनवास,
कैकेयी, उनसे दो वर।
जलाई दशरथ का घर।
आगे पीछे सोच न पायी,
बनी स्वार्थ में पापिन,
डंस ली मांग के वर वो,
पति के प्राण की सापिन,
कैकेयी बातों में आकर।
जलाई दशरथ का घर।
मंथरा की वो सिखाई,
कैकेयी बातों में आयी,
छेद कर दी उसी थाल में,
जिसमे दासी ने खाई,
कैकेयी के कानों को भर।
मंदोदरी
रावण की भार्या मंदोदरी,
सीता की रक्षा मन में विचारी।
शूर वीर पुत्रों की मान थी वो।
ऐश्वर्य, वैभव कदमों तले
लंका की महारानी बानी वो ।
हेमा - मयदानव की पुत्री,
काल वश वो कुछ न समझा ।
बेबस पड़ी लंका की गली
सबरी के घर राम पधारे,
हुई दीवानी ख़ुशी के मारे,
क्या क्या है घर में रखा, ढूंढे एक एक बर्तन।
करने को वो आवभगत, करती नाना जतन।
कूंचा ले घर अंगना बुहारे।
सबरी के घर ...
क्या खिलाऊँ, अपने राम को कैसे रिझाऊं।
भाता क्या है मेरे राम को, समझ न पाऊं।
बैठ राम का रूप निहारे।
सबरी के घर ...
चुन चुन कर ले आयी, वह बगिया से बेर।
चख चख कर परोस दी, करी नहीं अबेर।
प्रेम भक्ति से राम हर्षाये।
सबरी के घर ...
अनसुईया की सुनो कथा।
दक्ष प्रजापति की थी कन्या
अनसुईया की सुनो कथा।
अनसुईया के प्रताप को
और उसके सतीत्व का तेज,
आकाश मार्ग से जाते भी
अनुभव करते थे सब देव।
हुआ सीता राम का आगत,
अनसुईया ने किया स्वागत।
अत्रि आश्रम में साध्वी थी वो
सीता को दिया धर्म उपदेश।
गए विष्णु, महेश व ब्रह्मा
अनसुइया की लेने परीक्षा।
निर्वस्त्र होकर देने पर ही
ग्रहण करेंगे हम भिक्षा।
पूरी सृष्टि के जो हैं पालक
अनसुईया ने बनाया बालक
अपनी गोद में लिया उठा।
सूर्पणखा
खुद की करनी, बनी नकटी।
कभी राम, कभी लखन
बारी बारी से तंग करती
रिझाने चली प्रभु राम को
बन के सुंदरी वह कपटी।
विवाह से मना किया तो
लक्ष्मण ओर वह लपकी
बोले लखन जाओ उधर
आना नहीं इधर अबकी।
धर रूप राक्षसी सूर्पणखा
झट सीता पर तब झपटी
लखन ने काट दिया नाक
रोती गयी बन के नकटी।
एस० डी० तिवारी
उर्मिला मन ही मन, अकुलाने लगी।
वन गमन को लखन, जब घर से चले
संग जाने को उनके, मनाने लगी।
साथ जाना सजन के, मना हो गया
सफल तप हो, स्वयं को तपाने लगी।
बीत चौदह बरस, जाँयगे किस तरह
सोचती रात ऑंखें, जगाने लगी।
देखती आसमां, अंगना में खड़ी
चांदनी में अकेले, नहाने लगी।
आस मन में लिये, फिर उगेगा रवी
घोर तम में लिये, दिल जलाने लगी।
दिन बिताती बिरह में, तपस्विनी बनी
लखन सकुशल रहें, नित मनाने लगी।
उर्मिला का मिलन, गजल
कष्ट चौदह बरस की भुलाने लगी।
उर्मिला उरमिला खिलखिलाने लगी ।
हो चली ख़त्म, चौदह वरष की विरह
उरमिला, उर्मिला का, सदा यूं रहा
देख आँखे, लखन को जुड़ाने लगीं।
खो दिया जिंदगी की सुनहरी घडी
फल मधुर हर एक पल का पाने लगी।
बीत कैसे गया रह अकेले समय
याद करके व्यथा सब बताने लगी।
सींच डाली चमन, प्यार में शुष्क मन
कुम्हलाये गुलों को खिलाने लगी।
बुझ चुके सब दिवे हृद के जल गये
रोशनी से दिवाली मनाने लगी।
एस० डी० तिवारी
जब वन को चले रघुराई,
कौशिल्या आँखों में रातें बितायी। जब वन को ...
रोने लगे अयोध्या के वासी
सरयू नीर बहाई। जब वन को ...
अँखियन अश्रु लिये थे पंछी
कानन पड़े मुरझाई। जब वन को ...
व्यथित हो गिरे धरती पर
दशरथ को मूर्छा छाई। जब वन को ...
रोने लगा पाप कैकेयी का
मन ममता उपजाई। जब वन को ...
मन ही मन पछताई कैकेयी
हाय! काहे वन को पठाई। जब वन को ...
धरा, गगन, राहें सब रोतीं
शोक की बदरी छाई। जब वन को ...
कौशिल्या आँखों में रातें बितायी। जब वन को ...
रोने लगे अयोध्या के वासी
सरयू नीर बहाई। जब वन को ...
अँखियन अश्रु लिये थे पंछी
कानन पड़े मुरझाई। जब वन को ...
व्यथित हो गिरे धरती पर
दशरथ को मूर्छा छाई। जब वन को ...
रोने लगा पाप कैकेयी का
मन ममता उपजाई। जब वन को ...
मन ही मन पछताई कैकेयी
हाय! काहे वन को पठाई। जब वन को ...
धरा, गगन, राहें सब रोतीं
शोक की बदरी छाई। जब वन को ...
दशरथ जी के अंगना
कौशिल्या मगन हुई
सभी सुखों के धाम
उसके गोदी में खेलें राम
राम लिए अवतारी
बनी वो भाग्यवान महतारी
माँओं में रतन हुई। कौशिल्या ..
सुबह से लेकर शाम
वो रटती रहती राम राम
राम की भजन हुई। कौशिल्या ..
करे जग जिसे प्रणाम
छूकर चरण वही श्रीराम
मातु की नमन हुई। कौशिल्या ...
कैकेयी
कैकय देश से आयी नारि।
दशरथ के घर ठानी रार।
रानी तीनों में सबसे प्रिय।
दशरथ के बसती थी हिय।
सुंदरता की वह अभिमानी,
चाही थी मन की मनवानी।
मन मंथरा की सीख को धारि। कैकय ...
काल का चला ऐसा कुचक्र।
दशरथ से मांग ली दो वर।
सुत को अपने मांगी राज,
राम को चौदह वर्ष वनवास।
रूठी कोपभवन में विचारि। कैकय ...
अहिल्या शिला से हो गयी नारी
बड़ी है प्रभु की लीला न्यारी
ऋषि गौतम के शाप से बनकर
पड़ी रही वो वर्षों तक पत्थर
आकर राम ने उसको तारी
अहिल्या ...
पा रही थी, किये की सजा वह
शिला रूप में, धूप बारिश सह
बन गए राम उसके उपकारी
अहिल्या ...
जैसे ही छुई वह, चरण राम की
चमक गयी राह, परम धाम की
राम भजी और, परलोक सुधारी
अहिल्या ...
कौशिल्या मगन हुई
सभी सुखों के धाम
उसके गोदी में खेलें राम
पुलकित बदन हुई। कौशिल्या ..
बनी वो भाग्यवान महतारी
माँओं में रतन हुई। कौशिल्या ..
सुबह से लेकर शाम
वो रटती रहती राम राम
राम की भजन हुई। कौशिल्या ..
करे जग जिसे प्रणाम
छूकर चरण वही श्रीराम
मातु की नमन हुई। कौशिल्या ...
कैकेयी
कैकय देश से आयी नारि।
दशरथ के घर ठानी रार।
रानी तीनों में सबसे प्रिय।
दशरथ के बसती थी हिय।
सुंदरता की वह अभिमानी,
चाही थी मन की मनवानी।
मन मंथरा की सीख को धारि। कैकय ...
काल का चला ऐसा कुचक्र।
दशरथ से मांग ली दो वर।
सुत को अपने मांगी राज,
राम को चौदह वर्ष वनवास।
रूठी कोपभवन में विचारि। कैकय ...
करनी पड़ गयी, उसकी भारी।
स्वार्थ में गयी, स्वयं ही मारी।
दशरथ के पुत्र हुए अनाथ।
अपने धोई वह पति से हाथ।
मूर्ख की सीख दी गर्त में डारि। कैकय ... अहिल्या शिला से हो गयी नारी
बड़ी है प्रभु की लीला न्यारी
पड़ी रही वो वर्षों तक पत्थर
आकर राम ने उसको तारी
अहिल्या ...
पा रही थी, किये की सजा वह
शिला रूप में, धूप बारिश सह
बन गए राम उसके उपकारी
अहिल्या ...
जैसे ही छुई वह, चरण राम की
चमक गयी राह, परम धाम की
राम भजी और, परलोक सुधारी
अहिल्या ...
उर्मिला कौशिल्या अहिल्या सबरी सीता कैकेयी मंथरा मंदोदरी तारा अनसुइया
तारा
तारा ने पुकारा राम को, किष्किंधा में।
मारा क्यों मेरे नाथ को , किष्किंधा में।
भांप ली थी तारा, उसके काल को,
समझाई, न माना, पति बालि को,
पाया मोक्ष हाथ राम के, किष्किंधा में।
रो के पागल, सती होने की ठानी,
सब समझाए, बन जाओ महरानी,
पति मानी बालि के भ्रात को, किष्किंधा में।
देखी हुए लक्ष्मण को, क्रोधित जब,
कर दी उन्हें वो शांत, समझाकर,
सुग्रीव सेना खड़ी प्रस्थान को, किष्किंधा में।
वृहस्पति पुत्री, बड़ी ज्ञानी थी तारा,
अमर इस कारन, जग जाने सारा,
तारा
तारा ने पुकारा राम को, किष्किंधा में।
मारा क्यों मेरे नाथ को , किष्किंधा में।
भांप ली थी तारा, उसके काल को,
समझाई, न माना, पति बालि को,
पाया मोक्ष हाथ राम के, किष्किंधा में।
रो के पागल, सती होने की ठानी,
सब समझाए, बन जाओ महरानी,
पति मानी बालि के भ्रात को, किष्किंधा में।
देखी हुए लक्ष्मण को, क्रोधित जब,
कर दी उन्हें वो शांत, समझाकर,
सुग्रीव सेना खड़ी प्रस्थान को, किष्किंधा में।
वृहस्पति पुत्री, बड़ी ज्ञानी थी तारा,
अमर इस कारन, जग जाने सारा,
युवराज बनाई अंगद को, किष्किंधा में।
तारा ने पुकारा राम को, किष्किंधा में
की कड़ी तपस्या जनकदुलारी।
काँटों से भरी थी जिंदगी सारी।
पली वो ज्यों फूलों की कली,
मगर कष्ट, वन के सह ली,
घर से दूर रह कर सीता,
भूख प्यास सह कर सीता,
दैत्य रावण हर कर ले गया,
सदैव पतिव्रता धर्म को धारी।
की कड़ी तपस्या जनकदुलारी।
सिय को विरहन करके ले गया,
अशोक वाटिका में था वास ,
साजन बसे समुन्दर पार,
अकेली बैठी विरह की मारी।
की कड़ी तपस्या जनकदुलारी।
पहुंचे राम लखन समेत,
सीता को लाये रावण संहार,
पायी सीता अपना परिवार,
पल पल झेली विपदा भारी।
की कड़ी तपस्या जनकदुलारी।
जिसके करते राम थे रक्षा,
देनी पड़ गयी अग्नि परीक्षा,
की कड़ी तपस्या जनकदुलारी।
जिसके करते राम थे रक्षा,
देनी पड़ गयी अग्नि परीक्षा,
फिर से गईं वन में सीता,
हर संकट को उन्होंने जीता,
लव कुश की बनी महतारी। की कड़ी तपस्या जनकदुलारी।
मंथरा ने लगाई आग,
जलाई दशरथ का घर।
कैकेयी की मति फेर,
जलाई दशरथ का घर।
याद दिलाई उसको वह,
कहे थे देने को दशरथ,
मांग ली सुत को राज,
राम को मांगी वनवास,
कैकेयी, उनसे दो वर।
जलाई दशरथ का घर।
बनी स्वार्थ में पापिन,
डंस ली मांग के वर वो,
पति के प्राण की सापिन,
कैकेयी बातों में आकर।
जलाई दशरथ का घर।
कैकेयी बातों में आयी,
छेद कर दी उसी थाल में,
जिसमे दासी ने खाई,
कैकेयी के कानों को भर।
जलाई दशरथ का घर।
मंदोदरी
रावण की भार्या मंदोदरी,
लंका में भी धर्म पर चली।
मुझ जैसी वो भी एक नारी।
हर कर लाये, वो पड़ी लाचारी।
मेघनाद, अक्षय, अतिकाय
लौटाकर टालो, संकट भारी।
रावण पर उसकी, पर न चली।
रावण की भार्या मंदोदरी।
शूर वीर पुत्रों की मान थी वो।
ऐश्वर्य, वैभव कदमों तले
लंका की महारानी बानी वो ।
हेमा - मयदानव की पुत्री,
रावण की भार्या मंदोदरी।
काल के मुंह में खड़ी प्रजा।
सीता को लौटा, कर लो रक्षा।
रावण को बारम्बार समझाई काल वश वो कुछ न समझा ।
बेबस पड़ी लंका की गली
रावण की भार्या मंदोदरी।
सबरी के घर राम पधारे,
हुई दीवानी ख़ुशी के मारे,
क्या क्या है घर में रखा, ढूंढे एक एक बर्तन।
करने को वो आवभगत, करती नाना जतन।
कूंचा ले घर अंगना बुहारे।
सबरी के घर ...
क्या खिलाऊँ, अपने राम को कैसे रिझाऊं।
भाता क्या है मेरे राम को, समझ न पाऊं।
बैठ राम का रूप निहारे।
सबरी के घर ...
चुन चुन कर ले आयी, वह बगिया से बेर।
चख चख कर परोस दी, करी नहीं अबेर।
प्रेम भक्ति से राम हर्षाये।
सबरी के घर ...
अनसुईया की सुनो कथा।
दक्ष प्रजापति की थी कन्या
अनसुईया की सुनो कथा।
अनसुईया के प्रताप को
और उसके सतीत्व का तेज,
आकाश मार्ग से जाते भी
अनुभव करते थे सब देव।
अत्रि मुनि के आश्रम में
अपनी तपस्या में वो रमे,
धर्म मार्ग पर चली सदा। अनसुईया की .. हुआ सीता राम का आगत,
अनसुईया ने किया स्वागत।
अत्रि आश्रम में साध्वी थी वो
सीता को दिया धर्म उपदेश।
धैर्य, धर्म, मित्र, स्त्री चार
संकट कल में परखे जात
समझना सबसे धर्म बड़ा। अनसुईया की ... गए विष्णु, महेश व ब्रह्मा
अनसुइया की लेने परीक्षा।
निर्वस्त्र होकर देने पर ही
ग्रहण करेंगे हम भिक्षा।
पूरी सृष्टि के जो हैं पालक
अनसुईया ने बनाया बालक
अपनी गोद में लिया उठा।
अनसुईया की सुनो कथा।
सूर्पणखा
खुद की करनी, बनी नकटी।
कभी राम, कभी लखन
बारी बारी से तंग करती
रिझाने चली प्रभु राम को
बन के सुंदरी वह कपटी।
खुद की करनी, बनी नकटी।
लक्ष्मण ओर वह लपकी
बोले लखन जाओ उधर
आना नहीं इधर अबकी।
खुद की करनी, बनी नकटी।
झट सीता पर तब झपटी
लखन ने काट दिया नाक
रोती गयी बन के नकटी।
खुद की करनी, बनी नकटी
एस० डी० तिवारी
Monday, 31 October 2016
Parking ki jang
पार्किंग की जंग
सामान खरीदने कार से निकले
एक सजी धजी बाजार में जा घुसे।
पटरी पर दुकानदारों का कब्ज़ा था
कहीं उनकी कार तो कहीं छज्जा था।
बीच बीच में रेड़ी-खोमचे वाले थे
रास्ता ढूंढते पैदल चलने वाले थे।
समोसे वाले की मेज भी वहीँ थी
कार खड़ी करने की कहीं जगह नहीं थी।
एक जगह दिखी कुछ खाली सी
पता चला वहां खड़ी होती है टैक्सी।
लगा, आगे खाली जगह है, बढे
वहां पहले ही कुछ रिक्शे थे खड़े।
जगह ढूंढते एक पार्किंग तक पहुंचे
खचाखच भरी देख मन में हिचके।
पार्किंग वाला पास आया और बोला
अपनी पर्ची की किताब खोला।
सर जी, यहीं सड़क पर छोड़ जाओ
और गाड़ी की चाभी हमें दे जाओ।
गाड़ियों का ठसमठस अंदर है
चार के बाद आपका नम्बर है।
आपकी किस्मत जग जाएगी
जगह होते ही गाड़ी लग जाएगी।
यह कहते हुए पर्ची थमा दिया
और मेरी कार पर हक़ जमा लिया।
तीस रुपये दो, दो घंटे में आ जाना
नहीं तो सत्तर रूपया होगा चुकाना।
मरता अब क्या न करता,
सामान खरीदना आवश्यक था।
पैसे दिया, छोड़ा कार और चाभी
बाजार में सवा दो घंटे लगा दी।
लौटा तो गाड़ी अंदर खड़ी थी
पीछे वाली गाड़ी को हटाना है।
देखा तो गाड़ी पे खरोच था
देख कर मन में बड़ा रोष था।
पार्किंग वाले को तुरंत बुलाया
उसे दिखाया, खरी खोटी सुनाया।
अभी दस दिन पहले ही ली है
वह बोला, सर जी ये दिल्ली है।
इतना तो यहाँ चलता है
थोड़ा मोड़ा तो होता रहता है।
कोई निकाला होगा अपनी गाड़ी
ड्राइविंग में होगा अभी अनाड़ी।
ऐसी बातें दिल पर नहीं लेना
वरना टेंशन में पड़ेगा जीना।
यह कार है, ठीक हो जाएगी
नहीं तो बीबी थोड़े है, दूसरी आ जाएगी।
एस० डी० तिवारी
सामान खरीदने कार से निकले
एक सजी धजी बाजार में जा घुसे।
पटरी पर दुकानदारों का कब्ज़ा था
कहीं उनकी कार तो कहीं छज्जा था।
बीच बीच में रेड़ी-खोमचे वाले थे
रास्ता ढूंढते पैदल चलने वाले थे।
समोसे वाले की मेज भी वहीँ थी
कार खड़ी करने की कहीं जगह नहीं थी।
एक जगह दिखी कुछ खाली सी
पता चला वहां खड़ी होती है टैक्सी।
लगा, आगे खाली जगह है, बढे
वहां पहले ही कुछ रिक्शे थे खड़े।
जगह ढूंढते एक पार्किंग तक पहुंचे
खचाखच भरी देख मन में हिचके।
पार्किंग वाला पास आया और बोला
अपनी पर्ची की किताब खोला।
सर जी, यहीं सड़क पर छोड़ जाओ
और गाड़ी की चाभी हमें दे जाओ।
गाड़ियों का ठसमठस अंदर है
चार के बाद आपका नम्बर है।
आपकी किस्मत जग जाएगी
जगह होते ही गाड़ी लग जाएगी।
यह कहते हुए पर्ची थमा दिया
और मेरी कार पर हक़ जमा लिया।
तीस रुपये दो, दो घंटे में आ जाना
नहीं तो सत्तर रूपया होगा चुकाना।
मरता अब क्या न करता,
सामान खरीदना आवश्यक था।
पैसे दिया, छोड़ा कार और चाभी
बाजार में सवा दो घंटे लगा दी।
उसके पीछे दूसरी गाड़ी अड़ी थी।
पार्किंग वाला कार की बोनट पर बैठ
मस्ती में पी रहा था सिगरेट।
देखते ही वह बोनट से उतरा
'सर, जरा हाथ लगाना' झट बोला।
आपकी कार निकलने की जगह बनाना हैपार्किंग वाला कार की बोनट पर बैठ
मस्ती में पी रहा था सिगरेट।
देखते ही वह बोनट से उतरा
'सर, जरा हाथ लगाना' झट बोला।
पीछे वाली गाड़ी को हटाना है।
देखा तो गाड़ी पे खरोच था
देख कर मन में बड़ा रोष था।
पार्किंग वाले को तुरंत बुलाया
उसे दिखाया, खरी खोटी सुनाया।
वह बोला, साहब पहले से होगा
एकदम नयी कार है, मैंने बोला।अभी दस दिन पहले ही ली है
वह बोला, सर जी ये दिल्ली है।
इतना तो यहाँ चलता है
थोड़ा मोड़ा तो होता रहता है।
कोई निकाला होगा अपनी गाड़ी
ड्राइविंग में होगा अभी अनाड़ी।
ऐसी बातें दिल पर नहीं लेना
वरना टेंशन में पड़ेगा जीना।
यह कार है, ठीक हो जाएगी
नहीं तो बीबी थोड़े है, दूसरी आ जाएगी।
एस० डी० तिवारी
Thursday, 27 October 2016
Pataliputra haiku
मंच नमन
यहाँ के नभ स्थल
तंत्र नमन
तुझे प्रणाम
तेरी गोद में हम
पाटलिपुत्र
कभी था नाम
है आज जो पटना
पाटलिपुत्र
कला संस्कृति
अश्वघोष की कृति
पाटलिपुत्र
मौर्यों के रहा
सम्राटों का निवास
पाटलिपुत्र
चाणक्य रचे
अर्थशास्त्र रह के
पाटलिपुत्र
आर्यभट्ट की
अंकशास्त्र का साक्षी
पाटलिपुत्र
धन्य धरती
जन्मे गुरु गोबिंद
पाटलिपुत्र
ठहर जाती
कुछ क्षण जान्हवी
पाटलिपुत्र
यहाँ के नभ स्थल
तंत्र नमन
तुझे प्रणाम
तेरी गोद में हम
पाटलिपुत्र
है आज जो पटना
पाटलिपुत्र
कला संस्कृति
अश्वघोष की कृति
पाटलिपुत्र
मौर्यों के रहा
सम्राटों का निवास
पाटलिपुत्र
चाणक्य रचे
अर्थशास्त्र रह के
पाटलिपुत्र
आर्यभट्ट की
अंकशास्त्र का साक्षी
पाटलिपुत्र
धन्य धरती
जन्मे गुरु गोबिंद
पाटलिपुत्र
ठहर जाती
कुछ क्षण जान्हवी
पाटलिपुत्र
Friday, 21 October 2016
Haiku diwali / prakash / dhuan
भाग जाता है
घर का तम सारा
जले एक दिया
घर का तम सारा
जले एक दिया
दीप जलाओ
फैलाओ खुशहाली
मने दिवाली
धरती पूरी
बीच धुआं नहा ली
यही दिवाली?
बाहर ज्योति
मन भावना काली
कैसी दिवाली?
दिखावे में ही
फजीहत करा ली
कैसी दिवाली?
लड्डू खाकर
गणेश पीते धुआं
यही दिवाली
देकर आना
निर्धन की भी थाली
मने दिवाली
ज्योति जले
मन होय उजाला
मने दिवाली
लक्ष्मी आएं
संग खुशियां लाएं
शुभ दिवाली
हर दीप को
मिले उसकी बाती
शुभ दिवाली
हवा विषैली
मिठाई जहरीली
खाये दिवाली
वही कमाई
बढ़ती महगाई
फीकी दीवाली
दीप जलाओ
फैलाओ खुशहाली
मने दिवाली
यादें मनातीं
सीमा पे जवनों की
माँ की दिवाली
नन्हे से फूल
फूलझड़ी के बिन
फीकी दिवाली
भाग रहे हैं
दिवाली के दीवाने
लिए मिठाई
धनतेरस पर
धन बरसे
धन बरसे
धनतेरस पर
मन हरषे
टाल रखा था
धनतेरस हेतु
बर्तन लाना
आये लेकर
धनतेरस पर
पिया कटोरी
प्याली ही आये
धनतेरस पर
प्रथा निभायें
पत्नी घर में
जवान सीमा पर
दिल दिवाली
स्वयं मिठाई
उन्हें खील बतासा
लक्ष्मी को झांसा
दीपों की माला
पहन सजे घर
दिवाली पर
कुछ किरणे
घट भीतर भेजो
सूर्य देवता
मांगे बदले
ज्ञान और प्रकाश
सूर्य को अर्क
गोवर्धन में
नाली में बहे दूध
बच्चे तरसें
लक्ष्मी दें भर
सुख व संपत्ति से
सबका घर
सुख व संपत्ति से
सबका घर
गाय की सेवा
बदले पाएं दूध
पुण्य का मेवा
गाय की सेवा
मिले दूध का दूध
पुण्य का मेवा
गोवर्धन में
बच्चों की आँखों से हो
नाली में दूध
गोबर-धन
उपले का ईंधन
चूल्हे की शान
दीपों की माला
पहन सजे घर
दिवाली पर
दूर भागता
जले ज्ञान का दीप
मन का तम
दीपक तले
रह जाता अँधेरा
बेशक जले
एक भी दीया
भगाने में सक्षम
गहरा तम
************
छोड़े जम के
दिवाली पे पटाखे
विषैली हवा
- एस० डी० तिवारी
मनी दिवाली
दूषित कर डाली
हमारी हवा
दौड़ाते सब
गाड़ियां बेतहाशा
हवा में धुआं
हवा बेहोश
पीकर रोज रोज
नशे का धुआं
खेत में हुआं
छत ऊपर धुआं
गांव की शाम
घुटती साँस
हुआ मैला आकाश
हवा में धुआं
बाध्य हो रहे
मेरे शहर वाले
पीने को धुआं
शहरी हवा
खिला देती है शीघ्र
दमे की दवा
जोर का ब्रेक
टायर से निकला
हल्का सा धुआं
फुस्स हो गया
घटिया था पटाखा
छोड़ के धुआं
हवा में धुआं
बादलों तक गया
अम्लीय वर्षा
करता कोई
भरता हर कोई
वायु दूषित
नाक में दम
धुआं से किये हम
भागे मच्छर
शहर मेरा
पड़ा हुआ बीमार
धुएं ने घेरा
करता साफ
धुंध हटा के मार्ग
सर्दी में सूर्य
रही जलती
परीक्षार्थी की बत्ती
सुबह तक
आकर चाँद
विरहन के मन
लगाता आग
*************
करके बंद
भ्रष्टाचार को चोट
वजनी नोट
नोट को छोडो
जेब में रखो कार्ड
हो जाओ स्मार्ट
जोड़े थे नोट
पांच सौ व हजार
हुए बेकार
हो गया नोट
हजार पांच सौ का
आज से खोटा
साथ में पाओ
खरीद के चूरन
असली नोट
नए करा लो
पड़े पुराने नोट
चार हजार
निकाला तेल
पंक्ति में खड़े होके
नोट का खेल
निष्प्राण नोट
निष्प्रभाव गरीब
रोया अमीर
बदले नोट
बदलने के लिए
बैंकों में लोग
खड़े लंबी पंक्ति में
काम धाम को छोड़
नोट मिलेगा
उंगली पे लगा के
वोट की स्याही
लापता हुए
चौराहों से भिखारी
बैंकों में ड्यूटी
नेता निराश
चुनाव में बाधक
बेदम नोट
होकर बंद
तिजोरी में नोटों का
निकला दम
घोंट के दम
रो रहे हो सनम
नोटों के तुम
वर्षों में जोड़ा
मिनटों में कागज
कैसी ये माया
कमाया बस
कागज के टुकड़े
बेचा ईमान
याद आ गए
किसान मजदूर
भूले थे नेता
हाथ लगा सुन्दर
नोट बंदी का मुद्दा
लेकर जाती
छोटी लापरवाही
अनेकों जान
रहोगे सुरक्षित
रह के सावधान
बाहर झांक
पैसे वालों के साथ
नोटों का नाच
अब वोट नहीं नोट मिलेगा :: नोट के बदले
उमड़ी भीड़
अंतिम दर्शन को
अम्मा का प्यार
जाता है बढ़
लगाकर स्टीकर
फल का दाम
जलाके बत्ती
जिस रंग की होती
बिकती सब्जी
निर्मल बाबा
चार समोसा खाया
कुछ ना पाया
सुन के हंसे
राजनीति की हानि
नेता के मरे
कड़क सर्दी
जलाकर अलाव
किया बचाव
पुरानी साड़ी
चढ़ गयी रजाई
ओढ़ती ताई
टंगी टांड़ पे
पेवंद लगी साड़ी
पर्दा बन के
जानेगा कैसे
जिसके न बेवाई
पीर परायी
होता है बड़ा
जीत लेता जो नेता
लोगों का दिल
झील का तट
खड़े बगुल संत
ध्यान में मग्न
गाय की सेवा
मिले दूध का दूध
पुण्य का मेवा
गोवर्धन में
बच्चों की आँखों से हो
नाली में दूध
गोबर-धन
उपले का ईंधन
चूल्हे की शान
दीपों की माला
पहन सजे घर
दिवाली पर
दूर भागता
जले ज्ञान का दीप
मन का तम
दीपक तले
रह जाता अँधेरा
बेशक जले
एक भी दीया
भगाने में सक्षम
गहरा तम
************
छोड़े जम के
दिवाली पे पटाखे
विषैली हवा
- एस० डी० तिवारी
मनी दिवाली
दूषित कर डाली
हमारी हवा
दौड़ाते सब
गाड़ियां बेतहाशा
हवा में धुआं
हवा बेहोश
पीकर रोज रोज
नशे का धुआं
खेत में हुआं
छत ऊपर धुआं
गांव की शाम
घुटती साँस
हुआ मैला आकाश
हवा में धुआं
बाध्य हो रहे
मेरे शहर वाले
पीने को धुआं
शहरी हवा
खिला देती है शीघ्र
दमे की दवा
जोर का ब्रेक
टायर से निकला
हल्का सा धुआं
फुस्स हो गया
घटिया था पटाखा
छोड़ के धुआं
हवा में धुआं
बादलों तक गया
अम्लीय वर्षा
करता कोई
भरता हर कोई
वायु दूषित
नाक में दम
धुआं से किये हम
भागे मच्छर
शहर मेरा
पड़ा हुआ बीमार
धुएं ने घेरा
करता साफ
धुंध हटा के मार्ग
सर्दी में सूर्य
रही जलती
परीक्षार्थी की बत्ती
सुबह तक
आकर चाँद
विरहन के मन
लगाता आग
जाने की राह
मुश्किलों से बाहर
मुश्किलों में ही
*************
करके बंद
भ्रष्टाचार को चोट
वजनी नोट
नोट को छोडो
जेब में रखो कार्ड
हो जाओ स्मार्ट
जोड़े थे नोट
पांच सौ व हजार
हुए बेकार
हो गया नोट
हजार पांच सौ का
आज से खोटा
साथ में पाओ
खरीद के चूरन
असली नोट
नए करा लो
पड़े पुराने नोट
चार हजार
निकाला तेल
पंक्ति में खड़े होके
नोट का खेल
निष्प्राण नोट
निष्प्रभाव गरीब
रोया अमीर
बदले नोट
बदलने के लिए
बैंकों में लोग
खड़े लंबी पंक्ति में
काम धाम को छोड़
नोट मिलेगा
उंगली पे लगा के
वोट की स्याही
लापता हुए
चौराहों से भिखारी
बैंकों में ड्यूटी
नेता निराश
चुनाव में बाधक
बेदम नोट
होकर बंद
तिजोरी में नोटों का
निकला दम
घोंट के दम
रो रहे हो सनम
नोटों के तुम
वर्षों में जोड़ा
मिनटों में कागज
कैसी ये माया
कमाया बस
कागज के टुकड़े
बेचा ईमान
याद आ गए
किसान मजदूर
भूले थे नेता
हाथ लगा सुन्दर
नोट बंदी का मुद्दा
लेकर जाती
छोटी लापरवाही
अनेकों जान
रहोगे सुरक्षित
रह के सावधान
बाहर झांक
पैसे वालों के साथ
नोटों का नाच
अब वोट नहीं नोट मिलेगा :: नोट के बदले
हुई हराम
नोट वालों की नींद
खुशगरीब
कोई गरीब
नोट नहीं फेंकेगा
खुशनशीब
कम चलेंगे
नोटबंदी कारण
पेड़ों पे आरे
हुआ बेजान
नोटों में थी अटकी
लाले की जान
लाखों करोड़
नोट बंदी कार्य ने
निकाले नोट
नोट पे हुए
विरोधी नेता एक
नोट निर्पेक्ष
करते खुद
देते नोट को दोष
धन को काला
**********
रूप सजाती
अपनी गुड़िया के
मेरी गुड़िया
चाह रखती
गुड़िया दिखने की
हर लड़की
सोया सागर
छेड़कर जगाता
चंचल वायु
बहला देती
रबर की गुड़िया
बच्चे का दिल
नन्ही सी होती
रबर की गुड़िया
दिल छू लेती
बहला देता
कागज का जहाज
बच्चे का दिल
राहों में कांटे
चलना तू गुड़िया
देख भाल के
देख कर के
दिल मनाता जश्न
बेटी को मग्न
कहने पर
बेटी खुश हो जाती
मेरी गुड़िया
नहीं जा पाते
अधिक दूर तक
झूठ के पैर
जगा देता है
सोये समुन्दर को
चंचल वायु
रूप सजाती
अपनी गुड़िया के
मेरी गुड़िया
चाह रखती
गुड़िया दिखने की
हर लड़की
सोया सागर
छेड़कर जगाता
चंचल वायु
बहला देती
रबर की गुड़िया
बच्चे का दिल
नन्ही सी होती
रबर की गुड़िया
दिल छू लेती
बहला देता
कागज का जहाज
बच्चे का दिल
राहों में कांटे
चलना तू गुड़िया
देख भाल के
देख कर के
दिल मनाता जश्न
बेटी को मग्न
कहने पर
बेटी खुश हो जाती
मेरी गुड़िया
नहीं जा पाते
अधिक दूर तक
झूठ के पैर
जगा देता है
सोये समुन्दर को
चंचल वायु
लेता अटका
भारतीयों का दिल
आलू पराठा
भारतीयों का दिल
आलू पराठा
उमड़ी भीड़
अंतिम दर्शन को
अम्मा का प्यार
जाता है बढ़
लगाकर स्टीकर
फल का दाम
जलाके बत्ती
जिस रंग की होती
बिकती सब्जी
निर्मल बाबा
चार समोसा खाया
कुछ ना पाया
सुन के हंसे
राजनीति की हानि
नेता के मरे
कड़क सर्दी
जलाकर अलाव
किया बचाव
पुरानी साड़ी
चढ़ गयी रजाई
ओढ़ती ताई
टंगी टांड़ पे
पेवंद लगी साड़ी
पर्दा बन के
जानेगा कैसे
जिसके न बेवाई
पीर परायी
हुआ सवेरा
ऊगा नहीं सूरज
धुंध ने घेरा
होता है बड़ा
जीत लेता जो नेता
लोगों का दिल
झील का तट
खड़े बगुल संत
ध्यान में मग्न
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