Thursday, 21 November 2013

Loktantra ka sawan online hindi

लोक तंत्र का सावन

लौट सनम को मिलना ही था।
उनका प्यार उमड़ना ही था।

पहले का जल सूख चला अब
खाली हो गए ताल तलैया।
नयी बरसात की फिर है आस
मेघ करेगा ताता धैया।
सावन का महीना आ गया
घटा को तो घुमड़ना ही था।
उनका प्यार उमड़ना ही था।


बरसों से प्रतीक्षा में बैठी है
बेचारी भूखी है प्यासी है।
वादा किया, निभाया नहीं
इस लिए मन में उदासी है।
सावन बीत जाने के बाद
बहारों को बिछुड़ना ही था।
उनका प्यार उमड़ना ही था।

धीरे धीरे सब ले लिया उसने
कुछ ऐसे और कुछ वैसे।
अधिकार दिया तो बस देने का
पाने के तो खुद ही रखे।
छोटे से घरोंदे में रहना था
इसको तो यूँ सिकुड़ना ही था।
उनका प्यार उमड़ना ही था।

पंचतारा से उब चुके हैं
अब थोडा मनफेरवट कर लें।
सूखी रोटी में स्वाद पाती कैसे
उसको भी तो चख कर देखें।
उनके खाने से घी बच गया
इसकी भी रोटी चुपड़ना ही था।
उनका प्यार उमड़ना ही था।

सह चुकी लम्बा वियोग वह
पांच वर्षों बाद मिला संयोग।
वो आये तो आपबीती सुनाये
और मिटाये अपना क्षोभ।
पांच साल पश्चात् मिले हैं
आँखों से पानी उछलना ही था।
उनका प्यार उमड़ना ही था।

चारों और टर्र टर्र हो रही
लगता है बरसात शुरू हो गयी।
मौसम थोड़ा नम हो गया है
फुहारों कि झड़ी लग गयी।
बरसात में ज्यादा भीगी तो
जुकाम में फिर जकड़ना ही था।
उनका प्यार उमड़ना ही था।

- एस० डी० तिवारी 

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