Saturday, 2 November 2013

Jan gan Adhinayak





जन गण के अधिनायक जय हे 
भारत के भाग्य विधाता। 
जन गण हित की सोच नहीं है 
धन को मन ललचाता। 

अधिष्ठाता बन बैठे सबके 
जंगल, पर्वत, सरिता का जल।
आश्रय देते निज जान को बस 
तिरष्कृति साधारण जन निर्धन। 
जो भी सर्वजन संसाधन हैं 
निज लोगों को दे डाला।  जन  ...


जिस जन गण ने मत दे भेजा 
ताकि बन सको विधाता। 
उसी से कोसों दूर हो जाते 
सिंहासन का मोह सताता। 
घोटाला और गड़बड़झाला में 
हिल मिल जाते भाई साला। जन  .... 

लगे पुत्र स्थापित करने में 
विस्मृत हो जाता मतदाता। 
भारत माँ के कोटि लाल के 
ऋणी आप, वो हैं ऋणदाता। 
ऋण से उऋण हुए बिन मरता 
अधम वह नर है कहलाता।  

जन गण के अधिनायक जय हे 
भारत के भाग्य विधाता। 

एस० डी० तिवारी 

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