Thursday, 31 October 2013

Ankahi

वह  आई  और   साथ  ख़ुशी  के  झोंके भी  लायी
मगर  बदहवास  जुबान  खुल  तक  न  पायी
एक  सपने  कि  तरह  चली  गयी,  हम  देखते  रहे
आँख  खुली  तो  नाराज़  नसीब  ही  सामने   आई .

दिल  में  अरमान  थे,  कह  देता  वह  अनसुनी  दास्तान
सालों  से  मन  में  लिए, जिसे  सलाहता  सँवारता  रहा
अनकही  वो  बातें  उपले  की  तरह  सुलगती  रहीं
बुझाने  को  पानी  कहाँ  से  लाता  बस  आहें  भरता  रहा.

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