Thursday, 31 October 2013
Zafar
Ankahi
मगर बदहवास जुबान खुल तक न पायी
एक सपने कि तरह चली गयी, हम देखते रहे
आँख खुली तो नाराज़ नसीब ही सामने आई .
दिल में अरमान थे, कह देता वह अनसुनी दास्तान
सालों से मन में लिए, जिसे सलाहता सँवारता रहा
अनकही वो बातें उपले की तरह सुलगती रहीं
बुझाने को पानी कहाँ से लाता बस आहें भरता रहा.
Saturday, 26 October 2013
Beti
Kisane majboor kiya
जिन्हें देखना था, प्रकृति की अनुपम छटा,
जिन्हें देखना था, बहारों में घुमड़ती घटा,
छायी प्रदूषित वायु, देख रही हैं आंखें।
जिन्हें देखना था, खेतों में लहलहाती फसल,
जिन्हें देखना था, मनोहर, न्यारे, झील, पर्वत
पटती झील, वन का कटाव देख रही आंखें।
जिन्हें देखना था, गाँधी का सपना सच होते,
जिन्हें देखना था, भारत को सोने का खग होते,
देश का होते अपकार, देख रहीं आँखें।
जिन्हें देखना था, मासूम खिलखिलाते होठ
जिन्हें देखना था, गोदी में चढ़ जाते दौड़,
पीठ पर बस्ते का भार, देख रहीं आंखें।
जिन्हें देखना था, भारत माता का ममत्व,
जिन्हें देखना था, सेवा भाव से भरा नेतृत्व,
लुटते उनके हाथ, देख रहीं आंखें।
जिन्हें देखना था, हिंदुस्तान का उत्थान होते,
जिन्हें देखना था, युवाओं को उल्लास बोते,
युवा फसल को हताश, देख रहीं आँखें।
जिन्हें देखना था, भारत की ईमानदार छवि,
जिन्हें देखना था, समता की किरणों का रवि,
काला बाजार, अत्याचार, देख रहीं आँखें।
Thursday, 24 October 2013
Ansooaon se
Tuesday, 22 October 2013
Pyaj
आलू सब्जियों का राजा है तो
प्याज भी रानी से कम नहीं।
अगर रसोई में प्याज नहीं तो
भोजन में भी कोई दम नहीं।
जब भी हम भोजन करते
रानी को याद अवश्य करते हैं ।
आलू, राजमा, भिन्डी सभी
रानी प्याज पर ही दम भरते हैं ।
वह सताती है, रूलाती है
और आंसू भी निकालती है।
मगर भोजन में बने बिगड़े
तो प्याज ही संभालती है।
रानी होकर भी गरूर नहीं
सबसे हिल मिल जाती है।
गरीबों के पास भी जाती है
बैठती है, मुंह लग जाती है।
राजनीति की नब्ज को तो
यह भली तरह से जानती है।
सरकारों को भी हिला देती है
जब कभी मन में ठानती है।
जाने क्यों आम आदमी से
कुछ समय से दूर हो गयी है।
उसका अपहरण हो गया है
या उन सबसे रूठ गयी है।
रूठी होती तो मान भी जाती
हमें अपहरण का शक होता है।
प्याज रानी को वापस लाओ
उसका दीवाना बेहद रोता है।
- एस० डी० तिवारी
Amir Gareeb ki ladai
Sunday, 20 October 2013
Guli bhar ki yatra 1
गली भर की यात्रा - 1
मेरे एक रिश्तेदार,
रहते थे यमुनापार।
विदेश घूम आये थे,
मिलने के लिये मुझे बुलाये थे।
बुला रहे इतने प्यार से,
सोचा चलें, मिल आयें रिश्तेदार से।
बताने लगे अपनी यात्रा का वृतान्त,
देर तक सुनता रहा, नहीं हो रहा था अन्त।
तब मैने भी उन्हें टोका,
बीच में ही उनको रोका।
मुंह खोला और बोला -
यहां तक की यात्रा का विवरण
मेरी भी सुनिये श्रीमन!
उनका घर गली में था,
कार ले जाना भली न था।
सोचा बस से ही निकल लें
आवश्यकता हुई तो कुछ पैदल चल लें।
बस से उतरा फुटपाथ पर बढ़ा,
आगे निगम का था साइन बोर्ड गड़ा।
एक ही व्यक्ति की जगह थी,
बोर्ड के बगल से निकलने की।
सामने से एक महिला आ रही थी
उसको देखकर मैं रूका,
उसको स्लो मोशन मे देखा तो
बोर्ड के नीचे से निकलने को झुका,
सिर बोर्ड मे ठुका।
फुटपाथ पर आगे चला -
दुकानें दस फुट अन्दर थीं
दस फुट आगे निकला शेड;
सामान पटरी पर लगा था,
क्योंकि चल रही थी सेल।
थोड़ी बहुत जगह बची थी
वहीं ग्राहक खड़े थे,
पटरी के नीचे गाड़ियां खड़ी थीं
किनारे सड़क के।
दायें बायें होते आगे चला,
कई बार सड़क के बीच तक बढ़ा।
बगल से जो गाड़ी निकल रही थी,
लगभग मुझे रगड़ रही थी,
बचने के लिये बगल हुआ
किसी गरम चीज ने छुआ।
किस्मत थी कि बच गया
वह था टिक्कीवाले का तवा।
पेट्र्रोल की गाड़ियों के बीच
टिक्की की रेड़ी लगा रखी थी।
तवा गरम करने के लिये
उसने स्टोव जला रखी थी।
वही स्टोव अपने प्रांगण में जलाते
तो फायर वाले चले आते,
अग्निशमन यंत्र कहां है?
पूछते और दो चार कह जाते।
कुछ दो या चालान कटवा लो
अगली बार आने से पहले
अग्निशमन यन्त्र लगवा लो।
तभी दिखा तकदीर बताने वाला तोता;
अपना भी भविष्य पूछ लूं, सोचा।
अब तक दो बार तो बच चुका
क्या पता आगे क्या होगा!
बीस रूपये दिये, तोता ने कार्ड निकाला
लिखा था 'योग सुखद यात्रा का'।
पटरी पर ही चल रहा था पंजाबी ढाबा।
थोड़ा आगे चटाई पर बैठे,
वह बोल रहा था 'कुछ दे दे बाबा'।
पटरी कहीं खाली नहीं दिख रही थी;
कहीं पेन, कंघी तो कहीं चाट बिक रही थी।
पटरी पर ही बिक रहा था
फलों का जूस भी;
एक ओर एक गाड़ी रोके
ट्रफिकवाला ले रहा था घूस भी।
आगे फल वाला, फूलवाला
पानी वाला, विर्यानी वाला,
ठेलावाला, केलावाला,
छल्लीवाला, झल्लीवाला,
अखबार वाला, सब्जी वाला,
चाभी वाला, चाय काफी वाला,
मोजे, रूमाल वाला,
साड़ी के फाल वाला,
सस्ती ड्रेस वाला,
झटपट प्रेस वाला,
जड़ी बूटी वाला,
दिवार की खूँटी वाला,
आलू की टिक्की वाला,
चोखा लिट्टी वाला,
भुट्टेवाली का फायर,
पंचरवाले का टायर,
बदलने वाला फटे नोट,
निकालने वाला कान का खोट,
इटालियन सैलून, शरबती बहार,
घर का बना मुरब्बा अंचार,
कंट्री शू मेकर, बनारसी पान,
खम्भे पर टंगे फिल्मों के खान,
मर्दानगी वापस लाने की दुकान,
सांडे का तेल, मदारी का खेल,
क्या नहीं था फुटपाथ पर!
पैर रखने का स्थान नहीं था पर।
बचते बचाते चल रहा था,
मानो की कत्थक कर रहा था।
फुटपाथ की यात्रा समाप्त हुई।
अब मुडना था उस गली मे,
जिसमें रिश्तेदार का घर था,
नुक्कड़ पर खड़ा ट्रक था।
जिसमें रोड़ी बजरी भरी थी,
सड़क तक छिटकी पड़ी थी।
वह चलती फिरती दुकान थी,
गली में मुड़ने की यही निशान थी।
गली में फुटपाथ तो होता नहीं,
दोनों किनारों पर नालियां थीं।
दरवाजों के चौकठ पर पुलिया थीं
कुछ सीढ़ीनुमा, कुछ ढलवा थीं।
नाली की हाल में सफाई हुई थी,
कचरे की ढेरी लगायी हुई थी।
मलवा अभी उठा भी न था,
ठीक से सूखा भी न था।
पैर जा पड़ा उसी में,
गली वाले डूबे हंसी में।
पास के हैंडपम्प पर धोया,
अपना पैंट भी भिगोया।
आगे बढ़ा, बौछार सी आयी।
मैंने गर्दन घुमाई।
लगा संभवतः बच्चों ने मारी
पानी की भरी पिचकारी।
देखा तो कल्लू हलवायी का नौकर,
दुकान का फर्श धोकर,
पाइप पकड़े एक हाथ,
झाड़ू से रहा था पानी निकाल।
तभी एक गेंद आई,
पैरों से टकराई,
पीछे से आवाज आई-
'अंकल फेकना'।
देखा तो चली गई थी नाली में
आगे बढ़ा, बोलकर, सारी मैं।
पंख फड़फड़ाने की आवाज आई।
पक्षी जान मैने नजर इधर उधर दौड़ाई।
देखा तो बिजली के तार में अटकी,
जोरों से हिल रही थी पतंग कटी।
मानो बोल रही थी: गली के बच्चों, आओ।
इससे पहले सिर पटक दम तोड़ दूं, ले जाओ।
मेरे उपर जल की कुछ बूंदें पड़ीं,
ना तो कहीं बादल न बरसात की झड़ी।
बाल्कनी से एक महिला निहार रही थी,
अपनी साड़ी कचार कर पसार रही थी।
साड़ी को उन्होंने जोर से झटक दिया था,
और कुछ बूंदें मुझ पर भी पटक दिया था।
चला जा रहा था
एक जगह थोड़ी खाली पड़ी थी,
वहां पर एक गाय खड़ी थी।
कचरे के ढेर मे कुत्ता मुह मार रहा था,
कचरे को इधर उधर टार रहा था।
मैने अपनी नाक दबाया,
और गति को थोड़ी बढ़ाया।
जैसे तैसे उनके घर के समीप पंहुचा,
तभी पैर में लगी ठोकर।
भाई साहब ने बनवा रखा था
घर के पास निजी स्पीड ब्रेकर।
उन्होंने बाल्कनी से मुझे देख लिया,
उपर आने का सिग्नल फेंक दिया।
सीढ़ियां भी कुछ संकरी थीं,
दीवारों पर जाल और मकड़ी थी।
बचते बचाते मैं उपर पंहुचा,
उन्होंने हाथ पकड़ा और अन्दर खींचा।
समाप्त होने तक चाय पानी,
मैने कह डाला पूरी कहानी।
यात्रा का सुने जब वे पूरा प्रसंग,
रिश्तेदार भी रह गये दंग।
वाह! इतनी छोटी यात्रा में
इतने सारे रंग!
वाह! भाई वाह! इस्ट हो या वेस्ट
इंडिया इज द बेस्ट!