Tuesday, 27 August 2013

Admiyata

क्यों  चले  हो  पशु  बनने को 
थोड़ी  मिट्टी  थोड़ा  कागज लेकर ?
पा न  सकोगे आदमियता  फिर से ,
प्राणों  की भी  आहुति  देकर !


जिंदगी दरिया की तरह बह जाती है
कचरा लेकर साथ बहाओगे
समुद्र में मिलाने से पहले सब का सब
मुहाने पर छोड़ जाओगे
पीछे मुड़ कर देखोगे जब जब
बहुत बहुत पछताओगे
कुछ भी देने को जाओगे तब
आदमीयता फिर नहीं पाओगे
सागर में मिलने में मुश्किल न होगी 
स्वच्छ जल बहाओगे  

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