है बहुत सुखकारी, श्री रामचंद्र का नाम।
जगती में भजकर भक्त, बहुत सुख पायो जी।।
हेतु मिटाने पाप, खुद धरती से भगवान।
धर मनुज रूप श्रीराम, अवध मेंं जायो जी।।
नृप दशरथ के वास, थी किलकारी की गूंज।
खिलखिलाकर वत्स राम, माँ को रिझायो जी।।
चकित माँ कौसल्या, विलोकीं दिव्य प्रभु राम।
पूजा में चढ़ा प्रसाद, शिशु लिए खायो जी।।
मिल गये उपवन मेंं, श्रीराम सिया के नेह।
विवाह तोड़कर शिव-धनु, सिय से रचायो जी।।
विश्व में सब संभव, कृपा से राम की होय।
राम नाम का जाप, आनंद बरसायो जी।।
राम नाम समाहित, अनमोल सुखों की खान।
देव, ऋषि, मुनि, संत सभी, राम गुण गायो जी।।
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अवध-वासी चाहे, हो जायें राजा राम,
रघुकुल में मंथरा ने, अगनी लगायो जी।
चल कुटिल कैकेयी, ली मांग भरत को राज,
राम को दिला वनवास, वन में पठायो जी।
कैकयी की करनी, डाली विपत्ति में घोर,
सीता राम लक्ष्मण को, बीहड़ घुमायो जी।
चला काल का चक्र, सह सके न पुत्र-बिछोह,
राम वियोग में दशरथ, प्राण गँवायो जी।
फंसी भुवन की नईया, राम लगाते पार,
उनको गंगा के पार, मलाह लगायो जी।
अहिल्या व सबरी का, प्रभु राम किये उद्धार,
वन में संग ऋषियों का, अति उन्हें भायो जी।
भरत गए मनाने, वापस ना आये राम,
सिंहासन ले आकर, पदुका सजायो जी।
सीता को हर लायो जी
हनुमान सुग्रीव से मिलायो जी
बालि
सुग्रीव को राज दिला मित्रतता निभायो जी
रावण को मर धरा से पाप मिटायो जी
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१२२ १२२ १२२
चले राम दोनों भईया
चले राम लखन जानकी, हो दुर्गम वन में।
लीला रची श्रीराम की हो, दुर्गम वन में।
आव भगत किये, ऋषि मुनि मिल सब,
जय बोले वो रघुनाथ की, हो दुर्गम वन में।
पड़े राम-पद, बढ़ी पावनता,
चित्रकूट, प्रयाग धाम की, हो दुर्गम वन में।
दैत्यों को भी मिली परम गति,
कर कमल से भगवान की, हो दुर्गम वन में।
सिय को हरने रावण आया,
लेकर सोच अपमान की, हो दुर्गम वन में।
राम घूमते पूछते सवसे,
पता सिया के ठिकान की, हो दुर्गम वन में।
रावण से लड़ पाया जटायु,
श्रेय रघुकुल के काम की, हो दुर्गम वन में।
१४,१२
साधु बने राम
को शीश, नवायो
हनुमान जी।
दरश पम्पासरोवर का,
करायो हनुमान जी।
देख कर पम्पासरोवर, मुग्ध
राम छवि मनहर।
नृप ऋष्यमूक के सुग्रीव, बतायो हनुमान जी।
आने का कारण
जाने, उनको पहचाने
तब,
राम को लाय सुग्रीव से, मिलायो हनुमान
जी।
राह में गिराया
जो माँ, सीता
ने आभूषण,
ले आकर सभी
राम को, दिखायो हनुमान
जी।
किष्किंधा में दुष्ट बालि, मारा गया राम
से,
सुग्रीव को प्रभुत्व वापिस,
दिलायो हनुमान जी।
स्वर्गलोकसिधारने
पर, बालि के
किष्किंधा में,
पुत्र अंगद को
ढांढस भी, बँधायो हनुमान जी।
परियोजना भारी लिए, सिया
माँ की खोज
में,
अपनी वानर सेना
को, डँटायो हनुमान
जी।
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लंका में कोलाहल अति, मचायो हनुमान
जी।
माँ सिया का पता जा के,
लगायो हनुमान जी।
पार कर के
जाना सिंधु, बड़ा
जटिल कार्य था,
लांघने का साहस उसे, दिखायो
हनुमान जी।
बाधाओं को
पार किये, लंका को पहुँच गए,
मार रक्षक लंकिनी
को, गिरायो हनुमान
जी।
अशोक वाटिका में
बहुत, सुन्दर फल
देखे जब,
चाव से अति खाये क्षुधा,
मिटायो हनुमान जी।
सीता माँ को
देखे जब, शीश
नवा नमन किये,
मुद्रिका उन्हें राम की,
थमायो हनुमान जी।
पकड़ कर लगाए राक्षस, आग कपि की पूंछ में,
लंका पूरी सोने की,
जलायो हनुमान जी।
सिया जी को
ढांढस दिए, आएंगे
राम शीघ्र,
क्षेम सीता का
राम को, बतायो
हनुमान जी।
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सीता को हर
के लाया, रावण
का काल।
सिर रखा राक्षसी माया,
रावण का काल।
पहुंचे जलधि पार, ले के वानरी सेना,
राम को लंका
बुलाया, रावण का
काल।
मैत्री सन्देश भेजे,
लंकेश को राम,
संधि प्रस्ताव ठुकराया, रावण
का काल।
दर्प में डूबा
था, माना नहीं किसी की,
भ्रात को घर
से भगाया, रावण
का काल।
मंदोदरी लाख मनायी, व्यर्थ मगर सब,
दसों मुखों को खुलवाया, रावण का काल।
नीति की बात
चुभती,
काँटों की भांति उसे,
पूरे कुल को
मरवाया, रावण का
काल।
किया था अमृत-पान, वर अमर
होने का,
नाभी का सुधा
सुखाया, रावण का काल।
हे राम जी तारे संसार, मेरा भी करो बेडा पार
अहिल्या को तारा भीलनी को तारा
जटायु का कियो उद्धार, मेरा भी करो बेडा पार
चौदह बरस गए बीत हो रामा, राम नहीं आये।
बुलाये अवध की प्रीत हो रामा, राम नहीं आये।
अमवा बौराये चौदह बेरी,
काहे को प्रभु, कर रहे देरी,
चले गए चौदह चईत हो रामा, राम नहीं आये।
अयोध्या में, भरत अकुलाये,
तकते राह, नयन को गड़ाये,
क्षण न होत व्यतीत हो रामा, राम नहीं आये।
आरती लिए खड़ीं महतारी,
जोहें अवध के, सब नर नारी,
गाने को मंगल गीत हो रामा, राम नहीं आये।
संदेशा लाये, आवन की,
आ रहे प्रभु, लखन जानकी,
कपि किये सबको हर्षित हो रामा, राम देखो आये।
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अवधपुरी में
तट सरयू, सुन्दर शाम, अवधपुरी में।है राम का पावन धाम, अवधपुरी में।भगवान राम लिए, जहाँ अवतार।पवित्र अति स्थल, सरयू की धार।अयोध्या का करना दर्शन मात्र ,
बन जाता सुखों का परम आधार।
लिखा कण कण पर राम, अवधपुरी में।
है राम का ...
आनंद का दाता, सबका विधाता।भर देता झोली, उसे जो ध्याता।सुखी हो जीवन, और निर्मल मन,कष्ट कितना भी, विकट, कट जाता।भजने से प्रभु का नाम, अवधपुरी में।
है राम का ...यहाँ पर बसता, संतों का जमघट।नाम है, एक ही, जन जन के घट।
धन्य कर लेते, जीवन को सफल,लगाये नित्य जो, राम नाम रट।कौड़ी लगे ना दाम, अवधपुरी में।
है राम का ...
एस. डी. तिवारी
अवध में जन्मे राम
दशरथ के सुत राम
कृपा निधान हैं राम
स्वयं भगवान हैं राम
सिया के वर राम
रघुवर राम
अंतर्यामी राम
जगत के स्वामी राम
अहिल्या को तारे राम
मारीच को मारे राम
पावन
रावण को मुक्ति दिए राम
अवध से लंका तक
राम का नाम है बस
पापों को हारें राम
भव पार उतारें राम
जो भजता श्रीराम
बन जाता हर काम
राम ही माता, पिता राम है।
राम ही भ्राता, सखा राम है।
राम ही द्रव्य, सर्वज्ञ राम है।
सुखों का धाम, मर्मज्ञ राम है।