Friday, 28 August 2020

Kah mukari new 1


मुझको वो फुर्र से उड़ाता।  
उड़ने से पहले नाच नचाता।  
जाती उड़ने करके साज। 
क्या सखि साजननहिं सखि जहाज  


मुझे उठाये है वो चलता। 
मुझको ढोना उसे न खलता। 
इतना बोझ उसी का बूता। 
क्या सखि साजननहिं सखि जूता।

सुरक्षा का वो करता वादा,
संग मेरे सब्जी भी काटा,
करती भरोसा उस पे  पूरा।
क्या सखि साजन? नहिं सखि छूरा।  


लगे तो भीतर तक दे चीर,

कलेजे में करती भारी पीर,

दूर हो उसकी विष घोली।

क्या सखि साजन? नहिं सखि बोली।


 

शुद्ध हवा खाने को ताजा,

कोयल, मेढ बजाते बाजा,

देता शीतल तरुवर की छाँव।

क्या सखि साजन? नहिं सखि गांव।

 

पौष्टिक बहुत, उसे समझाती,

फिर भी बिटिया मुंह बिचकाती,

बहला फुसलाकर देती घूंट।

क्या सखि साजन? नहिं सखि दूध।


आती छीन ले जाती साँसें,

भय से ना खुल पातीं आँखें,

सभी के मन में उसका खौफ।

क्या सखि सौतन? नहिं सखि मौत।  


रखे तो भरपूर पौष्टिकता

निर्धन की थाल, पर न दिखता;

महंगाई में है लाचारी।

क्या सखि साजन ? नहिं तरकारी।


जब भी कोई संकट आये,

मदद हेतु वो हाथ बढ़ाये,

चाहे परिस्थिति हो विपरीत

क्या सखि साजन? नहिं सखि मित्र।

  

लगा रहता है हरदम जाम,

भीड़ भाड़ का सदा ही झाम,

चारों दिशा से जुटते लोग।

क्या सखि साजन? नहिं सखि चौक।


पहले का तो अनेकों पड़ा,

मगर नए की जिद्द पे अड़ा,

खाने हेतु हो रहा मनौना।

क्या सखि साजननहिं सखि खिलौना।


छोड़, दौड़ रही बेतहाशा -

जूते, चप्पल, बचने की आशा।

भीड़ पर पुलिस रही थी भांज।

क्या सखि साजन? नहिं लाठीचार्ज।

 

देखा चलते गजब बाजार,

मुर्दे जहां बस खरीददार,

आया जो लिया जरूर सामान।

क्या सखि साजन? ना सखि श्मशान।   


बच्चों के मन खूब है भाता,

बिन दाँत का वृद्ध भी खाता,

बीज का ना रखता झमेला।

क्या सखि साजन? नहिं सखि केला।


उसके तो हैं निराले ढंग, 
घर में घुसते हो जाय  बंद, 

मेरे लिये कर देता आड़। 

क्या सखि साजननहिं सखि किवाड़


करता रहता सदैव ननाद।

जुटते लोग भर के उन्माद।

मन को भाता उसका गिरना।

क्या सखि साजननहिं सखि झरना।


संवेदना के रखता पीड़ 
नयनों में भर देता नीर 
 धड़क रुधिर रखता गतिमय।

क्या सखि साजननहिं सखि हृदय। 

लगाय रखता टकी रात भर।   

सिर को उठाये वह चाँद पर। 
प्यार का खेला खेलता घातक। 
क्या सखि साजननहिं सखि चातक। 

उसी से संभव है संचार। 

उसके बिन नहीं शब्द विचार।  
ग्रन्थ रच देता जुड़ जुड़कर।  

क्या सखि साजननहिं सखि अक्षर। 

अक्षर स्वर उसके आधार। 
बिन उसके ये मूक संसार। 
बोल के होय या लिख प्रकट 
क्या सखि साजननहिं सखि शब्द

ठंड और गर्मी से बचाता
लोगों मेंं वो शान दिखाता।
रहता पर धोने का लफड़ा ।
क्या सखि साजननहिं सखि कपड़ा


ज्वाला ये ना कभी उठाती। 

धीरे धीरे है सुलगाती। 

जले आदमी घुट के जिन्दा। 

क्या सखि सौतन? नहिं सखि चिंता।   

 

भिगो कर के करता बेचैन।  

बिना बरसात दिवस या रैन।   

बहे झरने सा जेठ महीना। 

क्या सखि साजन? नहिं सखि पसीना।    


  ***

गोल बदन पर लम्बा चलकर   

उसका काम लगाना चक्कर 

गाड़ी उसी पे चलती भईया 

क्या सखि साजन? नहिं सखि पहिया।    


बड़े प्यार से मुझको ढोता 
सारा बोझ उसी पर होता 
घुमा के लाता सारा गांव 

क्या सखि साजन? नहिं सखि पांव।    


साईकिल पर देखा बजते 

मंदिर में भी अक्सर सजते

पुजारी  दादा  

क्या सखि साजन? नहिं सखि घंटी।    


पांव पकड़ के नाच नचाता 
ढोल मृदंग से ताल मिलाता 

दर्शक देखते टुकुर टुकुर

क्या सखि साजन? नहिं सखि नूपुर।    

  

जोड़ा है शब्दों का पहाड़

घंटी  

गोली पहाड़ टानिक दुकान परेड 

अंगूर
 पथिक गीत भ्राता नाविक आंधी आकाश  वृक्ष 
छंद तूफान ज्योति उंगली कीचड़ परछाईं बन्दूक संदूक सद्भाव 
झरना मीठा जंगल समीप मुरली प्यास पानी मिटटी विश्वास विज्ञानं 
मार्ग भयभीत भाषा बूढ़ा स्वार्थ ताला  चाभी झूठा बचपन लिप्सा शीशा 
आशीष भाग्य बूटी जड़ी मटकी घड़ा झूला डोरी दिशा पतझड़ उपवन 
मादक अकेला भंवर कुंठा धड़कन गीता मेढक सूरज मंथन मंदिर आशीष 
कुटीर अमृत क्षुधा विदेश पैदल खटिया शिकारी कैंची पनघट खंडित 
कागा वाणी जाल दोहा पहाड़ उदास चटनी भगौना तवा घाव पाती किवाड़ 
बेरी बेटा प्रहरी सीमा कंगाल सरगम इतिहास आहट तारा टेलीफोन 
पृष्ठ उत्कृष्ट ) दिवस सन्देश 
shringar अलता दीपक पागल विश्वास गहरा पहरा श्रद्धा माध्यम 
सरोवर कूड़ा प्रश्न प्रतीक्षा वाणी दिनांक जूता भोजन सिक्का नमक 
घुँघरू बोरी बालक प्रतिष्ठा ईमान खिलौना पल्लव धनुष अभ्यास 
योग खिचड़ी कोम्पुटर  तुलसी डमरू फुलवारी भाषा शासन संताप 
पवित्र आरती राग खद्योत बाहें ज्ञान सन्यासी थाल छाला भुजंग 
आशीष अंगूर तितली बगुला गिद्ध दुकान खिड़की गुंडा दबंग साथी 
हाथी गठिया मोतिया छाया कांटा आंधी दर्पण कर्तव्य 

Sunday, 2 August 2020

Ram dohe


है बहुत सुखकारी, श्री रामचंद्र का नाम।
जगती में भजकर भक्त,  बहुत सुख पायो जी।।

हेतु मिटाने पाप, खुद धरती से भगवान। 
धर मनुज रूप श्रीराम, अवध मेंं जायो जी।।

नृप दशरथ के वास, थी किलकारी की गूंज। 
खिलखिलाकर वत्स राम, माँ को रिझायो जी।।

चकित माँ कौसल्या, विलोकीं दिव्य प्रभु राम।
पूजा में चढ़ा प्रसाद, शिशु लिए खायो जी।।

मिल गये उपवन मेंं, श्रीराम सिया के नेह।
विवाह तोड़कर शिव-धनु, सिय से रचायो जी।।

विश्व में सब संभव, कृपा से राम की होय। 
राम नाम का जाप, आनंद बरसायो जी।।

राम नाम समाहित, अनमोल सुखों की खान।
देव, ऋषि, मुनि, संत सभी, राम गुण गायो जी।।

***

अवध-वासी चाहे, हो जायें राजा राम,
रघुकुल में मंथरा ने, अगनी लगायो जी। 

चल कुटिल कैकेयी, ली मांग भरत को राज,
राम को दिला वनवास, वन में पठायो जी। 

कैकयी की करनी, डाली विपत्ति में घोर,
सीता राम लक्ष्मण को, बीहड़ घुमायो जी। 

चला काल का चक्र, सह सके न पुत्र-बिछोह,
राम वियोग में दशरथ, प्राण गँवायो जी। 

फंसी भुवन की नईया, राम लगाते पार,
उनको गंगा के पार, मलाह लगायो जी। 

अहिल्या व सबरी का, प्रभु राम किये उद्धार,
वन में संग ऋषियों का, अति उन्हें भायो जी। 

भरत गए मनाने, वापस ना आये राम,
सिंहासन ले आकर, पदुका सजायो जी। 

सीता को हर लायो जी 

हनुमान सुग्रीव से मिलायो जी 

बालि 
सुग्रीव को राज दिला मित्रतता निभायो जी 

रावण को मर धरा से पाप मिटायो जी 





****
१२२ १२२ १२२ 
चले राम दोनों भईया 
 
चले राम लखन जानकी, हो दुर्गम वन में।   
लीला रची श्रीराम की हो, दुर्गम वन में।  

आव भगत किये, ऋषि मुनि मिल सब, 
जय बोले वो रघुनाथ की, हो दुर्गम वन में। 

पड़े राम-पद, बढ़ी पावनता,
चित्रकूट, प्रयाग धाम की, हो दुर्गम वन में। 

दैत्यों को भी मिली परम गति,
कर कमल से भगवान की, हो दुर्गम वन में। 

सिय को हरने रावण आया,
लेकर सोच अपमान की, हो दुर्गम वन में। 

राम घूमते पूछते सवसे,
पता सिया के ठिकान की, हो दुर्गम वन में। 

रावण से लड़ पाया जटायु, 
श्रेय रघुकुल के काम की, हो दुर्गम वन में। 


१४,१२ 

साधु बने राम को शीश, नवायो हनुमान जी। 

दरश पम्पासरोवर का, करायो हनुमान जी। 

 

देख कर पम्पासरोवर, मुग्ध राम छवि मनहर।  

नृप ऋष्यमूक के सुग्रीव, बतायो हनुमान जी। 

 

आने का कारण जाने, उनको पहचाने तब,

राम को लाय सुग्रीव से, मिलायो हनुमान जी। 

 

राह में गिराया जो माँ, सीता ने आभूषण,  

ले आकर सभी राम कोदिखायो हनुमान जी।  

 

किष्किंधा में दुष्ट बालिमारा गया राम से,  

सुग्रीव को प्रभुत्व वापिस, दिलायो हनुमान जी। 

 

स्वर्गलोकसिधारने पर, बालि के किष्किंधा में,   

पुत्र अंगद को ढांढस भी, बँधायो हनुमान जी।   

 

परियोजना भारी लिए, सिया माँ की खोज में,

अपनी वानर सेना को, डँटायो हनुमान जी। 

 

*****


लंका में कोलाहल अतिमचायो हनुमान जी।  

माँ सिया का पता जा के, लगायो हनुमान जी। 

पार कर के जाना सिंधु, बड़ा जटिल कार्य था

लांघने का साहस उसे, दिखायो हनुमान जी।    

बाधाओं को पार किये, लंका को पहुँच गए,   

मार रक्षक लंकिनी को, गिरायो हनुमान जी।  

अशोक वाटिका में बहुत, सुन्दर फल देखे जब

चाव से अति खाये क्षुधा, मिटायो हनुमान जी। 

सीता माँ को देखे जब, शीश नवा नमन किये

मुद्रिका उन्हें राम की, थमायो हनुमान जी। 

पकड़ कर लगाए राक्षसआग कपि की पूंछ में,  

लंका पूरी सोने की, जलायो हनुमान जी। 

सिया जी को ढांढस दिए, आएंगे राम शीघ्र,   

क्षेम सीता का राम को, बतायो हनुमान जी।   

 

****

 

सीता को हर के लाया, रावण का काल। 

सिर रखा राक्षसी माया, रावण का काल।  

पहुंचे जलधि पार, ले के वानरी सेना,  

राम को लंका बुलाया, रावण का काल। 

मैत्री सन्देश भेजे, लंकेश को राम,   

संधि प्रस्ताव ठुकराया, रावण का काल। 

दर्प में डूबा था, माना नहीं किसी की

भ्रात को घर से भगाया, रावण का काल।   

मंदोदरी लाख मनायी, व्यर्थ मगर सब

दसों मुखों को खुलवाया, रावण का काल।  

नीति की बात चुभती,  काँटों की भांति उसे,    

पूरे कुल को मरवाया, रावण का काल।   

किया था अमृत-पान, वर अमर होने का,   

नाभी का सुधा सुखाया, रावण  का काल। 



हे राम जी तारे संसार, मेरा भी करो बेडा पार
अहिल्या को तारा भीलनी को तारा
जटायु का कियो उद्धार, मेरा भी करो बेडा पार



चौदह बरस गए बीत हो रामा, राम नहीं आये। 
बुलाये अवध की प्रीत हो रामा, राम नहीं आये। 

अमवा बौराये चौदह बेरी,
काहे को प्रभु, कर रहे देरी,
चले गए चौदह चईत हो रामा, राम नहीं आये। 

अयोध्या में, भरत अकुलाये,
तकते राह, नयन को गड़ाये,
क्षण न होत व्यतीत हो रामा, राम नहीं आये। 

आरती लिए खड़ीं महतारी,
जोहें अवध के, सब नर नारी,
गाने को मंगल गीत हो रामा, राम नहीं आये। 

संदेशा लाये, आवन की,
आ रहे प्रभु, लखन जानकी,
कपि किये सबको हर्षित हो रामा, राम देखो आये। 



***
अवधपुरी में
तट सरयू, सुन्दर शाम, अवधपुरी में।
है राम का पावन धाम, अवधपुरी में।

भगवान राम लिए, जहाँ अवतार।
पवित्र अति स्थल, सरयू की धार।
अयोध्या का करना दर्शन मात्र ,
बन जाता सुखों का परम आधार।
लिखा कण कण पर राम, अवधपुरी में। 
है राम का  ...

आनंद का दाता, सबका विधाता।
भर देता झोली, उसे जो ध्याता।
सुखी हो जीवन, और निर्मल मन,
कष्ट कितना भी, विकट, कट जाता।
भजने से प्रभु का नाम, अवधपुरी में। 
है राम का  ...

यहाँ पर बसता, संतों का जमघट।
नाम है, एक ही, जन जन के घट।
धन्य कर लेते, जीवन को सफल,
लगाये नित्य जो, राम नाम रट।
कौड़ी लगे ना दाम, अवधपुरी में। 
है राम का  ...

एस. डी. तिवारी 

अवध  में जन्मे राम 
दशरथ के सुत राम 
कृपा निधान हैं राम 
स्वयं भगवान हैं राम 

सिया के वर राम 
रघुवर राम 

अंतर्यामी राम 
जगत के स्वामी राम 
अहिल्या को तारे राम 
मारीच को मारे राम 
पावन 
रावण को मुक्ति दिए राम 

अवध से लंका तक 
राम का नाम है बस 

पापों को हारें राम 
भव पार उतारें राम 
जो भजता श्रीराम 
बन जाता हर काम 

राम ही माता, पिता राम है। 
राम ही भ्राता, सखा राम है।  
राम  ही द्रव्य, सर्वज्ञ राम है। 
सुखों का धाम, मर्मज्ञ राम है।