Tuesday, 28 May 2019

Pyar boond 2


नीले गगन के तले,
इक स्वर्ग बस जायेगा;
यदि प्यार ही' प्यार पले।

सच में ही न्यारी है;
प्यार से देखा मैंने,
दुनिया अति प्यारी है।

बस प्यार ही' मिलता है,
प्यार के बदले सबको;
द्वेष नहीं पलता है।

सभी कुछ समाया है,
प्यार का सागर अथाह;
प्रभु की बड़ी' माया है।

हो जाता जग सारा,
यदि प्यार से रहते सब,
हे प्रभु! कितना प्यारा।

ढोना कठिन है भार,
सिर पे लिए घृणा का; 
तभी मैं करता प्यार।  

चांदी ना सोना यार;
मिलता ना धन से ये,  
प्यार का मोल है प्यार। 

मनुष्य तू न लड़ा कर;
हृदय दिया है प्रभु ने,
दुर्ग प्रेम का' खड़ा कर।

तट तोड़ के' बहता है,
प्यार उमड़ जाता जब,
बांधे न बंधता है।

झोंके सा बहता है;
रोके न रुकता प्यार,
प्रमाद में रहता है।

बांट लो प्यार जितना,
और ज्यादा बढ़ जाता;
मानवता का गहना।

चीज हजारों हजार,
पड़ी हैं इस दुनिया में,
करते' जिन्हें हम प्यार।  

छोड़ो न मूलाधार;
कविता बोली कवि से,
करते मुझे यदि प्यार।

प्यार स्वयं से करता,
संवार लेता तन मन,
अच्छा व्यक्ति वो' बनता।

आपस में है लड़ता;
जग में अवतरित प्राणी,
प्रेम से क्यों न रहता?

हर जन में होता है;
प्रेम करने का लक्षण,
हर क्षण संजोता है।

मदिरा से भी बढ़कर;
सब दुःख भुला देगा,
देखो' प्रेम रस पीकर।

करते जो सच्चा प्यार;
हिचकते नहीं करने से,
अपनों के लिए त्याग।

जाति न धर्म देखता,
होता है प्यार अँधा,
केवल मर्म देखता।

किया स्वार्थ में प्यार,
दिखावा व छलावा बस,
घातक जैसे कटार।

रहस्य का प्यार घड़ा;
ढूंढने पर ही मिलता,
जीवन का मन्त्र पड़ा।

प्यार तो समर्पण है;
प्रेमी करता प्रिय को,
अपना सब अर्पण है।

प्यार एक चाहत है;
उद्वेलित हर दिल को,
देता बड़ी राहत है।

जीने की ताकत है;   
प्यार है ऐसी नीमत,  
मरने का साहस है। 
  
खुशियों का साधन है,
प्यार साथ का बल है,
सफलता' का आंगन है।

प्यार से जुड़ जाता है;
जन जन का मन मिलकर,
गहरा बड़ा नाता है।

हृदय इक ऐसा घड़ा;
रहते जहाँ एक जगह,
संग संग प्यार, घृणा।

होता' न नर मादा का,
प्रेम तो है आकर्षण,
अन्तःमन का नाता।

हो जाय लगाव अगर,
जीव, क्रिया या वस्तु से;
जाता है प्यार पनप।

नसों में' न रहता प्यार;
आत्मा से जुड़ा होता,
हृदय में बसता प्यार।  

जिंदगी' बहुत जरूरी,
प्यार निभाने के लिए;
रखना' मौत से दूरी।

दिल प्यार में बेकाबू,
प्यार का हो जाना तो
बस पल भर का जादू।

राज बड़ा गहरा है,
नफ़रत पर नहीं कोई,
प्यार पर पहरा है।

सर्दी' या मौसम गर्म,
प्यार तो रहता सदा,
कभी भी न होता कम।

है प्यार में ही' उमंग,
जीवन है रंग भरा,
सभी अपनों का संग।

है अपना कर लेती;
प्यार की ऐसी बोली,
सब आपा हर लेती।

रुधिर यूँ  ना बहाओ;
इस प्यार की दुनिया में,
प्रेम से ही निभाओ।

पाये प्यार को तोल,
कोई ना ऐसी तुला;
न धन, दे' प्यार का मोल।

धधकता' अनल है प्यार,
उसे बुझाने के लिए,
जल शीतल है प्यार।

प्यार में' शर्त न होती,
शर्तों वाले प्यार में,
समाहित रति न होती।

ईर्ष्या, घृणा की आग,
जलाकर कर देती है,
प्रगाढ़ प्रीति भी राख।

कोई मिल जायेगा; 
इतनी बड़ी दुनिया में,
प्यार जो निभाएगा। 

रुकता है प्यार नहीं; 
जिओ प्यार को पल पल,  
भाग ना जाये कहीं।  



न ठहरता गंदे' स्थल;
मन की रखना सफाई, 
जाये ना प्यार निकल।  

जो सबसे प्यार करे, 
मानव में कहाँ है दम; 
वह तो बस ईश्वर है। 

ऐसा बल रखता' प्यार;  
बोझ घृणा का भारी,   
सिर से देता उतार। 

गजब शक्ति होती है,
चरम पर होता प्यार,
मन में' भक्ति होती है।

रमा लो प्यार में मन;
जहाँ ना प्रेम बसेरा,
पशु के समान जीवन।

अनुभूति आत्मा से,
करने पर प्रेम साधन,
मिला दे' परमात्मा से। 

देखने प्यारा भुवन,
दिया है प्रभु ने हमको,
अति प्यारे दो दो' नयन।

रसायन की एक क्रिया,
काम के संग समाप्त,
वासना से' प्यार किया।

वासना का ले लक्ष्य,
प्रेम जताने से कहीं,
उचित है रखना पथ्य।

वासना छुपी होती,
जवानी की प्रीति में;
वृद्ध की सच्ची होती।

यौवन से नहीं' नाता,
पति व पत्नी का प्रेम,
बुढ़ापे' में बढ़ जाता।

नर व मादा का मेल,


ना ही प्रेम मुहब्बत,
बस वासना का खेल।

चुम्बकीय आकर्षण,
नर मादा एक दूजे को
समझते प्रेम दर्पण।


५५
**********

प्रकृति

जब लगा बरसने घन,
बून्द बून्द बूंदों में,
खोया रहा मेरा मन।

दीवाना, बन पागल;
प्यार में हवाओं के,
डोलता' रहता बादल।

तकती रहती धरती,
प्यास लिए बादल को;
मुंह फेरता' बेदर्दी।

बारिश का भर पानी;
चल देती है सरिता,
पी के पास दिवानी।

प्यार उमड़ जाता है,
बेसुमार नदी का जब;
तीर बिछुड़ जाता है।

चिड़ी ने' कहा चिड़े से;
बच्चों का मिला दाना,
बीता दिन अच्छे से।

नाच नाच कर मोर,
रिझाया मोरनी को;
फेंकी प्रेम की डोर।

पतझड़ आते पत्ती;
सोच निकालेगा पेड़,
घर से, रोने लगती।

ताकता रहा चकोर,
भर रात चाँद की राह ;
तकते हो गयी भोर।

गगन चूमते गिरवर;
हो न किसे भला प्यार!
पड़े नजर जब छवि पर।

रात को' चाँद से प्यार;
जाने क्यों पड़ा रहता,
पीछे सूर्य बेकार।   

बाग़ में कोयल कूकी;
सुनने आयी बहार,
मधुमास पूरा रुकी।

घेर के मेघ आये;
अंक में करने विश्राम,
पर्वत ऊपर छाये।

गरम हो जाता मरू,
गर्मी के मौसम में;
मारुति का खेल शुरू।

चाहती' जवां हो धुंध,
सूरज को रख लेना;
अपने कक्ष में मूंद।

रात को रात की रानी,
चांदनी में नहाकर,
लगती बड़ी सुहानी।

हवा जो' पछुआ आयी;
ग्रीष्म में प्यार जताने,
देह को ही जलाई।

दुखी बहुत था किसान;
प्यास के मारे देख,
फसल को देते जान।

धार पे धार बरसा;
सावन के महीने में,
पर पपीहरा तरसा।

पंछी का इक जोड़ा,
करने बैठा है प्यार,
फेंको न उन पे' रोड़ा।

धरती से हो के' दूर,
आंसू बहाता सूरज,
जाड़े में गम में' चूर।

ऋतु वर्षा में चल दी;
वादा रहा सागर से,
जल लिए मिलने नदी।

पर्वतों से है प्यार;
चूमने चले आते,
मेघ सातों ही वार।

पिया मिलन का जोश;
चट्टानें भी न पातीं,
राह सरिता की रोक।

सारा पानी बटोर;
बरसात में मस्त नदी,
चल दी सिंधु की ओर।

देखते ही जल प्रपात,
ज्यादा और बढ़ जाती,
प्यासे दृगों की प्यास।

कल कल करता झरना;
गिरता है जब नीचे,
मोहित अति ये नयना।

प्रेम से मिलने जाती,
सागर से अपने नदी,
दिल में जा के समाती।

होता न प्यार का' अंश;
तो कैसे चला पाती,
चींटी भी' अपना वंश।  

ऐसा ना किया करो;
बिना बात के बादलों!
तुम तो न रूठा करो।

सुन के मधुर संगीत,
लहरों का भोला मन,
कहीं पे' खोया प्रतीत।

नदी बनी महबूबी,
पहुंची जलधि के पास;
हिय में सीधे डूबी।

रहता है बड़ी दूर;
सागर पिया से मिलने,
सरि चली प्रेम में' चूर।

यौवन को छलकाते,
सिंधु पिया से मिलने;
चली सरि गुनगुनाते।

उमंगों से वो भरी,
सरि सावन में मचलती,
पिया से मिलने चली।

चूम समुन्दर का मुख,
प्यार की मारी नदी,
सुख पाती हिय में घुस।

देख के बहती नदी,
बहाने लग जाता है,
प्रेम की दिल भी नदी।

नदी का रत्नाकर से,
प्रेम है ऐसा अटूट;
लुटाती' दिल जाकर के।

घुमड़ के आये मेघ,
मुहब्बत का सावन में,
ले के' आये सन्देश।

प्यार से' रहते पंछी;
पंखों में घुसा के चोंच,
दिल की कहते पंछी।

आती' सुबह गौरैया;
मेरे अंगना से प्यार,
चुगने' दाना चिरैया।

बदन को अपने रगड़,
शेर शेरनी भी वन में,
बिताते प्रेम के क्षण।

सूरज ने हैं छोड़े,
ढूंढने राजकुमारी;
सात रंग के घोड़े।

निकल पड़े हैं सारे,
रजनी को सजाने,
चमकते हुए सितारे।

चाँद हरामजादा,
आकर विरहन के मन,
नित आग लगा जाता।

कभी वो उपर वाला,
बेदाग सूरज को भी,
दिखला देता काला।

देकर भोर ही' दस्तक,
प्रभात खोलता रोज,
वसुंधरा का घूंघट।

ऊषा के आते ही,
बेशर्म निशा अपनी,
घूंघटा हटा देती।

चला रवि अपने शहर,
कमल दल में रहा फंसा,
प्रेम का मारा भ्रमर।

खेता रहा था चाँद;
रमणीय प्यार की नाव,
घटा में पूरी रात।

चाँद को घेरे' बादल,
दर्शन के अभिलाषी,
प्रेमी हो रहे' पागल।

बरसात की उस रात,
झिंगुरन को बुलाया,
झिंगुर दे के' आवाज। 

दिखाती रहती धरा,
घूम घूम दिवाकर को,
रोज ही अपनी अदा।

झुक जाता है अम्बर,
चूमने हेतु धरनी को,
जा के दूर छितिज पर।

माँ से बढ़कर धरती,
जग के सभी जीवों को,
अपनी गोदी धरती।

1०५

खून चूसती फिर भी,
आकाशबेल को पेड़,
उठाये' रखता सिर ही।

पशु, पक्षियों को' प्यारा,
होता उनका जंगल,
जिंदगी का सहारा।

अपना मुख लटकाई,
सूरज के जाते ही,
सूरजमुखी' मुर्झायी।

रहती दिन भर तकती,
मगर वो भाग जाता,
सूर्य को सूरजमुखी।

होते ही नव विहान,
गुड़हल के मुखड़े पर,
लौट आती मुस्कान।

काला चाहे सफेद,
गुलाब कभी ना रखता,
मगर सुगंध में भेद।

देख के बादल कारे,
प्यार में मोर सारे,
लगाने लगते' नारे।

होते प्रातः बेला,
लगा देतीं हैं चिड़ियाँ,
आंगन प्रेम का' मेला।

हवाएं और किरण भी,
फूलों को सब चूमते,
तितली और भ्रमर भी।

नाच दिखा के' मोरनी,
बन जाती सावन में,
मोर की' चित्तचोरनी।

काली है पर प्यारी,
लगती कोयल रानी;
मधुर है क्योंकि वाणी।

गौरैया नहीं' करना,
भूलकर भी तुम कभी,
सूना मेरा' अंगना।

रहती है चिपकाये,
नन्हें वानर की माँ,
अपने वक्ष लगाये। 

रस के लोभ का' मारा,
कमल दल में हो जाता,
कैद भ्रमर बेचारा।

देश छोड़ कर जाते,
जाड़ा से बचने पंछी;
लौट बसंत में आते।

भाग गयी कहीं आज,
छोड़ के उसकी धूप;
प्रभाकर पड़ा उदास।

लगाये रखी थी टक,
चकोर के साथ वह भी,
कल चाँद का सुबह तक।

धरती को अति भाया,
सावन का मिलना संग;
निखरी उसकी काया।

चुग के लाती चिड़िया,
बच्चों के मुंह में दाना,
डाल खिलाती चिड़िया।

तार पर बिजली के,
करता सुख दुख की बात,
खग का जोड़ा बैठे।

नाग के हत्यारे को,
ढूंढ रही थी नागिन,
चीर के अंधियारे को।

सुग्गा पिंजरे में बंद;
रोती रही दिन रात,
सुग्गी फाड़ के कंठ।

पेड़ बेकार काट कर,
गिलहरी व खगों से क्यों?
छीनते प्यार का घर।

घास भी' कितनी प्यारी;
बस सींच भर देता हूँ,
शोभा घर कि बढ़ाती।

जाड़े में तन्हाई,
रात भी सह ना पाई
आंसू ओस बहाई।

वाह री जलती आग,
जो तुझसे प्यार करता,
उसी को करती खाक।

दिवानों का क्या दोष,
मदिरा से किया प्यार,
वो ही उड़ाई होश।

इक पेड़ का कट जाना;
प्यार भरा चिड़ियों का,
उजड़ जाता ठिकाना।

खेलते हुए' पानी में,
बड़ी प्यारी लगती हैं;
मछलियां रवानी में।

दिखाते हैं सितारे,
अम्बर में अति सुन्दर
दिन ढलने पे' नज़ारे।

झूमती मस्ती में सुन,
दीवानी हुई नागिन,
बजे जब बीन की धुन।

बारिश के पानी में,
मेढकों का जीवन तो
मौजों की' रवानी में।

जीवन मीन का' पानी;
मगर भी होते, मगर
जी लेती जिंदगानी।

लिपटी रहती है' बेल,
वृक्ष से पाने को प्यार;
रहता पर अकड़ा पेड़।

तोड़ देती' लिपटे दम;
पेड़ से बेल का प्यार,
कभी भी होता न कम।

जिस पेड़ पे' चढ़ जाती;
आकाशबेल डायन,
उसी' का रक्त सुखाती।


१३६
*****************


कैद में सताते रहे,
तनहा कर तोता को,
खुद प्यार जताते' रहे।

पालतु पशु भी करते,
अपने स्वामी से प्यार,
उनके दिल में रहते।

असीम प्रेम जताता;
अपने स्वामी को देख,
श्वान दुम को हिलाता।

पशु पक्षी का घर वन,
वन से क्यों न प्रेम करें!
है माँ मही का वसन।

प्यार से थपथपाता,
घुड़सवार उसकी पीठ;
घोड़ा दौड़ लगाता।

सहलाने से हाथी,
प्यार से उसका माथा;
महावत का साथी।

हमको देता जीवन;
जंगल को कुल्हाड़ी,
दिखलाता निष्ठुर जन।

प्रकृति से प्रेम में मन,
जिस किसी का ना होता,
न वो प्रेम योग्य जन।

पशु पक्षी के कई' गुण,
गले से लगाकर ही,
मनुष्य हुआ है निपुण।

जानवर से कर प्यार,
दुनिया लगती सुन्दर,
अन्तः पशु को निकाल।

बहुरंगी, बहुगुणी,
जीवन में रस भरते,
पशु, पक्षी के हम ऋणी।

पशु, पक्षी और पौधे,
प्रकृति व हमारे बीच,
प्रेम का सेतु होते।

जब होते थे' अकेले,
जाकर सागर तट पर,
लहरों से' बहुत खेले।

डॉल्फिन की' उछल कूद,
मन में हर्ष भर देती,
जलधि में जाती डूब।

सार्क से डर लगता,
समुन्दर में घुसने में,
देखे दिल ना भरता।

अति प्यारे' तस्वीरों में;
और भी सुन्दर लगते,
पशु अपने' जजीरों में।

हमसे अच्छा कुत्ता,
न तो रूठता है कभी,
ना ही करता गुस्सा।

पढ़ लेते' इरादों को,
लिए प्यार की चाहत,
पशुओं की आँखों को।

झुण्ड में' उड़ते पंछी,
सुन्दर गगन बनाते;
प्रीति जगाते मन की। 

फूलों की वो डाली,
अपनी ओर आकृष्ट,
मन सहज ही' कर डाली।

रखकर ही है पाया,
पर्यावरण से प्यार;
निरोग अपनी काया। 


*******************

वस्तु, स्थल, अन्य

नन्हीं सी' होती जीभ,
लगा देती आग बड़ी,
भस्म कर देती प्रीति।

बैठ नाक पर जाती,
कान पकड़ ऐनक मेरी,
फिर भी मुझको भाती।

गिर कर के टूटी थी,
कीमती थी वो प्याली,
हाथों से छूटी थी।

घर मेरा प्यारा है,
रहता है इसमें प्यार,
जग में बड़ा न्यारा है।

बने' पकवान का स्वाद,
और अधिक बढ़ जाता;
माँ का लगा हो हाथ।

है ये गजब संसार;
काले से रखता पथ्य,
गोरे रंग से प्यार।

किसी को नीला' पसंद,
किसी को भाये बसंती,
किसी को पीला रंग।

गुलाब खिले की सुगंध,
और कुमुदनी का रंग,
दोनों ही मुझे पसंद।

आते हैं बहुत याद,
मेरे गांव के पेड़,
हुए थे' बड़े जो साथ।

लहलहाता हुआ देख,
झूम उठता है किसान,
प्यार से सींचा खेत।

अलग अलग परिधान,
पहन कर के मनुष्य,
जमाता अपनी शान।

दिल की लगी हुई' आग,
दिल से ही बुझती है,
प्रेम जब जाता जाग।

फूलों का बना हार,
दिलों को देता जोड़,
बाँट कर जग में प्यार।

हर उम्र से' प्यार किया,
बचपन, जवानी और
बुढ़ापा' बिंदास जिया।

पाने गए रोजगार;
परदेश से खींच लाता,
मातृभूमि का प्यार।

प्यार पाने की आस,
लिए मंद बुद्धि बालक,
ताके मुंह बारम्बार।

प्रसव की पीड़ा गहरी,
नवजात के रोते ही,
ममत्व की खुशलहरी।

माँ की गायी लोरी,
धीरे धीरे ले गयी,
नींद में कहीं डुबोई।

लिखी है' कविता हजार,
तभी तो करता हूँ मैं,
मेरी कलम से प्यार।

निर्बल से पूछो क्षेम,
अवसर आने पर वह,
बदले में देगा प्रेम।

चिर निद्रा में सोया,
हरेक उसका अपना,
विदा करने' में रोया।

वाहह! सुन्दर अतीव,
कैमरे में लें लें थोड़ा,
गृह हेतु दृश्य सजीव।

लहर देख लहराया,
फंस प्यार के भंवर में,
दिल बाद में, घबराया।



बड़े दिनों बाद मिले,
कितना बड़ा लगाव था,
यूँ ही' न आंसू निकले।

एक ने यदि दगा दिया,
इतनी बड़ी है दुनिया,
दिल अन्यत्र लगा' लिया।

करके प्रशंसा' लूटा,
छुपाया मुंह तो जाना,
कितना बड़ा था' झूठा।

रूठने मनाने में,
प्यार की घड़ी न बीते,
दिल को समझाने में।



&********



कलाकार को' कला से,
कवि को कविता से प्यार,
भक्त को' राम लला से।

उपयोग तो कभी मोल,
वस्तु वास्ते देती है,
प्यार मन में घोल।

प्यार अपनी कृति से,
अपने आप हो जाता;
और सदा की' वृत्ति से।

किसी को ठण्ड सताती;
गर्मी से तंग अनेक,
जीव को सर्दी भाती।

वो लहरों के रेले,
होते सिंधु के तीरे,
होते न हम अकेले।

अपना' तो कहता रहा,
पर थी बेबसी उसकी,
अपना तक नहीं सका।


जीभ को खींच लेती,
हलवाई की दुकान,
दही छनती जलेबी।

सागर जैसा अथाह;
लगा पाना है मुश्किल,
गहरे प्यार की थाह।

कैसे मनुष्य के कर्म!
प्यार को बांध देते,
सीमा, जाति और धर्म।

पहाड़ों ने बुलाया,
छटा में खो गया मन,
वापस साथ न आया।

जिधर भी जाती दृष्टि;
देख रमणीय पर्वत,
टिकी रह जाती दृष्टि।

हिमाच्छादित पर्वत,
स्वर्ग सा स्वच्छ सुचि स्थल,
लगता मन को मोहक। 

पर्वतों से प्यार हुआ;
जाकर मिलने का मन,
मेरा सौ बार हुआ।

सरवर व निर्झर जड़े,
प्रेमियों को बुलाते,
ऊँचे महीधर खड़े।

जा बात कर लेता हूँ;
गिरि संग गरजेश से,
मुलाकात कर लेता हूँ।

लहरों से करती' खेल,
थाम लेती कुछ पल को
किसी के मन को व्हेल।

भर कर ज्ञान आनंद,
पाठकों के प्यार की,
पुस्तक हो जाती अंग।

पढ़ रही थी किताब,
भिगो दी आंसुओं से,
अचानक उनकी याद।

प्यार का ऐसा जादू,
चोट तो रहती छिपी,
दिखते केवल आंसू।



परिवार

चांदी ना ही सोना,
जीत लेता शिशु का मन,
बस नन्हां सा खिलौना।

थमाती है' घरवाली,
उसका प्यार ही तो है,
रोज चाय की प्याली।

हमने' हैं नाते धरे,
सास, चाचा, बुआ ताकि
जीवन में प्यार भरे।



खिड़कियों दीवारों से,
प्यार है घर से अपने,
गली और चौबारों से।

दीवार के दृश्यों से,
प्यार है बहुत मुझको
कुटुंब के सदस्यों से।

होता अति प्यारा घर;
रसोई का खजाना है,
सुख धरा बिछौने पर।

२०३


कोकिला की कूक से,
मगन नृत्य में, मुझको
प्यार मोर की मूक से।

यशोदा का दुलारा,
सुख दुःख में साथ देकर,
गौओं का भी प्यारा।

सम्पदा दबी अकूत,
बसा वहीं खँडहर में
रखवाली करता भूत।

जीवन सार सिखाया,
धर्म से हमको प्यार;
मानव, योग्य बनाया। 

जुड़ते ही उनसे तार,
बिजली गिरी गजब की;
बचा मुश्किल से यार।

प्यार छलक जाता है;
दर्शाने आँखों से,
अश्रु ढलक जाता है।

बुढ़ापा चढ़ आया है;
मिले प्यार थोड़ा और,
बाल को रंगाया है।

रहती अनजानी है;
कब किस पर हो लट्टू,
दिल की ये कहानी है।

चुभती है ये रजाई;
गया जाड़े में देकर,
बेदर्दी तन्हाई।

एक फूल तोड़ा था;
कद्र प्यार की क्या जाने
माली तो निगोड़ा था।

होता' मैं कभी उदास;
गम दूर कर लेता हूँ,
बच्चों से करके प्यार।

हिचकी मुझे आती है;
समझ जाता हूँ फ़ौरन
याद उसे सताती है।

चेहरा है कि दिल है,
समझ नहीं पाते हम,
जो प्यार के काबिल है।

दो वक्त की रोटी है;
प्रेमी, फरेबी सबको,
याद जिसकी होती है।  

हम तो जिए जायेंगे;
प्यार किया है तुमसे,
प्यार को निभाएंगे।



तुममें मैं, मुझमें तुम,
नजर ना आते दोनों,
प्यार के परदे में गुम। 

उनकी गली में जाना,
किया ही था शुरू अभी,
बदनाम किया जमाना।

पहले लाया सौगात,
वरष थोड़े ही बीते,
आ गया ले के बरात।

तन में आग लगी थी,
छुआ जब पहली बार,
जीते जी ही जली थी।

जीवन की पंखुड़ी है,
ले प्यार सुरभि अनोखी,
पथ महकाती खड़ी है।

रातों को खो जाता;
दर्द प्यार का थपकी से,
शिशु जैसा सो जाता।


तस्वीर मंगवाए थे;
प्रियवर की रख कर,
दर्द ही बढ़ाये थे।

उनकी हुई विदाई थी;
भोली इन आँखों को,
आयी बड़ी रुलाई थी।

ऋतु बदली कई बार,
किसी मौसम में तुमसे
मैं बदला नहीं प्यार।

२२९

कहते' लोग पागलपन;
प्यार को समझा था सच,
क्योंकि बहका था मन।

चलता गर्मी का दौर;
मांगने लगता है दिल,
तब शीतल पेय और।

दिल पत्थर हो चाहे;
प्यार का पाकर लेप,
वो भी पिघल जाये।

रूप व अदा का मारा,
विवेक से शून्य हुआ;
तड़पता दिल बेचारा।

किसी ने तोड़ डाला,
जनाब का दिल नाजुक;
पहुँच गए मधुशाला।

लग गयी' मदिरा की लत,
हारे प्यार का खेल,
बाकी अभी है दुर्गति।

छाँव ना, ना घूप है,
ये जो प्यार उमड़ा है,
बस तेरा ही रूप है।

जैसे उसने बोला-
फ़ोन पर 'आई लव यू'
बैटरी ने दम तोड़ा।

विलोक कर घेरे घन;
प्रेमियों का सावन में,
मुदित हो जाता मन।

जब लड़ते हम दोनों,
एक दूजे के सिर पर,
दोष मढ़ते हम दोनों।

कभी बिन बात लड़े हम;
एक छतरी के नीचे,
दोनों आज खड़े हम।

तूने भी समझाया,
रहा नहीं दिल तेरा;
मैंने भी समझाया।

घर से थी वह निकली;
मिलने को तो मुझीसे,
रस्ते  में लिफ्ट मिली।

खिसकाते रहे' खटिया,
रात भर छप्पर तले,
फूलमती और बुधिया। 

होती है मन की चाह;
ठंडक के मौसम में,
इक प्याली कड़क चाय।

जाड़ा जब आता है;
तन और मन दोनों को,
धूप सेकना भाता है।

प्रेम में पागल पी गयी,
मीरा विष का प्याला;
जीवन अमर जी गयी।

हरि प्रेम प्रह्लाद का,
बना दिया अधिकारी;
प्रभु के आह्लाद का।

दमयंती ने तप से,
छीन लिए थे प्राण;
पति नल का यम से।

सहज ही सह ली कष्ट,
राम प्रेम में सीता;
दारुण वन के विकट।

उर्मिला चौदह वर्ष,
समय बिता ली अकेले;
वियोग में भी सहर्ष।

अपना सारा जीवन;
कर दिया था राधा ने,
मनमोहन को अर्पण।

पति-प्राण लेने आये,
यम दूतों को बैरंग,
सावित्री ने लौटाए।



****

आते थे अस्पताल
तुम रोजाना एक बार
अब पूछते ना हाल

भटक रहे थे
जीने का सहारा मिला

बना जो मेरा कातिल
नहीं था कोई खंजर
उनके गालों का तिल

करते रहे खतायें 
हमारा क्या था दोष 
ऐसी तेरी अदाएं 

हमसे तुम दूर रहे
अंदाजा तो था इतना 
जरूर मजबूर रहे

बड़ी मुसीबत झेले 
चले थे सिर पर लेकर   
हम प्यार के झमेले

थोड़ा लड़ झगड़ कर
शेर भी प्यार दिखाता
अपना देह रगड़ कर 

है वो तुम्हारा प्यार
दिलाएगा पशुओं को
उन्हें उनका अधिकार

जाते ही पास भैंस
घुस जाती पोखरे में
नीर में करने ऐश

चलती मंद बयार से
मुझको बहुत है प्यार
बहती सरि की धार से

खुले नीले गगन से
चाँद सितारों से प्यार
करता हूँ मैं पवन से 

खिले पुष्प की महक से
प्यार मुझे है अतिशः
विहंगों की चहक से 


होगा प्यार तुम्हे महबूब से 
बच्चों को तो प्यार
\अपने खिलौनों से 

बजते तबले की धुन 
घुंघरू बँधे  दो पांव 
थिरकने लगते सुन

बुढ़ापा 
चश्मे 
दवा की पुड़िया 


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