जंगल का गीत
गीत गाया जंगल ने
तुम हमारे बनो, हम तुम्हारे बनें।
एक दूजे के चलो, हम सहारे बनें।
जीने दोगे अगर, फल देंगे तुम्हें।
छाया भी साथ, शीतल देंगे तुम्हें।
आज की चांदी में, छीन लेते हो कल,
रहेंगे बचे, स्वर्णिम पल देंगे तुम्हें।
अन्य जीवों के मिल रखवाले बनें।
एक दूजे के चलो ...
उनका, हेतु अपने, घर उजाड़ो नहीं।
वन से बाहर, बन केहर, दहाड़ो नहीं।
जीव जाकर रहेंगे, घर तुम्हारे कहो ?
जंगलों को चुरा, रुतबा झाड़ो नहीं।
आपस की हम रक्षा के सितारे बनें।
एक दूजे के चलो ...
धरा हमारी भी माँ है, सजाते हम्हीं।
हम वन हैं, हवा शुद्ध, बनाते हम्हीं।
बरस पाते तभी हैं, वो तुम्हारे लिए,
बादलों की भी प्यास बुझाते हम्हीं।
बिन हमारे न हो बच्चे, बेचारे बनें।
एक दूजे के चलो ...
गीत गाया जंगल ने
तुम हमारे बनो, हम तुम्हारे बनें।
एक दूजे के चलो, हम सहारे बनें।
जीने दोगे अगर, फल देंगे तुम्हें।
छाया भी साथ, शीतल देंगे तुम्हें।
आज की चांदी में, छीन लेते हो कल,
रहेंगे बचे, स्वर्णिम पल देंगे तुम्हें।
अन्य जीवों के मिल रखवाले बनें।
एक दूजे के चलो ...
उनका, हेतु अपने, घर उजाड़ो नहीं।
वन से बाहर, बन केहर, दहाड़ो नहीं।
जीव जाकर रहेंगे, घर तुम्हारे कहो ?
जंगलों को चुरा, रुतबा झाड़ो नहीं।
आपस की हम रक्षा के सितारे बनें।
एक दूजे के चलो ...
धरा हमारी भी माँ है, सजाते हम्हीं।
हम वन हैं, हवा शुद्ध, बनाते हम्हीं।
बरस पाते तभी हैं, वो तुम्हारे लिए,
बादलों की भी प्यास बुझाते हम्हीं।
बिन हमारे न हो बच्चे, बेचारे बनें।
एक दूजे के चलो ...
- एस० डी० तिवारी
वृक्ष के बिना
चलती, हमारी इन सांसों का प्रणेता है पेड़ ।
जीते जी फल-फूल, मरे लकड़ी देता है पेड़ ।
पड़े तो ठाँव, खड़े रह देता प्राणियों को छाँव
पशु-पक्षियों की जीवन नैया, खेता है पेड़ ।
नहीं होता, जिंदगी कैसे पलती, वृक्ष के बिना ।
नहीं रहेंगीं साँसे अपनी चलती, वृक्ष के बिना ।
छिन जाएगी पर्यावरण की सम्पदा तुम्हारी,
होगी नग्न, बेश्रृंगार सी धरती, वृक्ष के बिना ।
अनेकों जीवों के हैं अनुपम घर, ये जंगल ।
मानव उजाड़ने को आमादा, पर, ये जंगल ।
देखा नहीं जाता उससे, उनका मंगल होते,
किये जा रहा भू बंजर, उजाड़कर, ये जंगल !
नित दूषित कर रहा पर्यावरण, वन दोहन।
छीन रहा है, धरा का आभूषण, वन दोहन।
पशु, पक्षी होंगे बेघर, जल जोहेगा जलधर,
कर देगा जमीन बालू के कण, वन दोहन।
(C) एस० डी० तिवारी
जीते जी फल-फूल, मरे लकड़ी देता है पेड़ ।
पड़े तो ठाँव, खड़े रह देता प्राणियों को छाँव
पशु-पक्षियों की जीवन नैया, खेता है पेड़ ।
नहीं होता, जिंदगी कैसे पलती, वृक्ष के बिना ।
नहीं रहेंगीं साँसे अपनी चलती, वृक्ष के बिना ।
छिन जाएगी पर्यावरण की सम्पदा तुम्हारी,
होगी नग्न, बेश्रृंगार सी धरती, वृक्ष के बिना ।
अनेकों जीवों के हैं अनुपम घर, ये जंगल ।
मानव उजाड़ने को आमादा, पर, ये जंगल ।
देखा नहीं जाता उससे, उनका मंगल होते,
किये जा रहा भू बंजर, उजाड़कर, ये जंगल !
नित दूषित कर रहा पर्यावरण, वन दोहन।
छीन रहा है, धरा का आभूषण, वन दोहन।
पशु, पक्षी होंगे बेघर, जल जोहेगा जलधर,
कर देगा जमीन बालू के कण, वन दोहन।