उड़ उड़ जाय मन का पंछी।
रहे अकुलाय मन का पंछी।
देख चमक मृगतृष्णा सा
इत उत धाय, मन का पंछी।
ढोल दूर का लगे सुहावन
रहता भरमाय मन का पंछी।
लोभ का मारा फिरे बेचारा
संतुष्टि न पाय मन का पंछी।
सोचे बिन करता मनमानी
पीछे पछताय मन का पंछी।
आडम्बर के सामानों से ही
ले हर्ष समाय मन का पंछी।
धन्य, जो लेता बना मन मंदिर।
हरि, उसके होता बसा मन मंदिर।
दूर हो जाता मन का सब अँधेरा
श्रद्धा का दीप जला मन मंदिर।
सपनों के लेकर पंख बिंदास हो गया।
पाले अनेक इच्छाओं का दास हो गया।
नाजुक पंख पर किया भरोसा इतना
टूटा कोई सपना, मन उदास हो गया।
अच्छे बुरे का संग्राम, मन देख लेता है।
चोरी से भी किया काम, मन देख लेता है।
आँखों से नहीं, सुंदरता को मन से देखना
प्रकृति का भेजा पैगाम /किया प्रणाम, मन देख लेता है।
मन अच्छा सा लगता है
जब सच्चा सा लगता है
विशाल हो जाता माँ सा
हरेक बच्चा सा लगता है
मन में जब विकार होता है
संजोये बुरे विचार होता है
बुरी चीजों से होने पे प्यार
मन अक्सर बीमार होता है
मन में प्रभु का बसेरा होता है
मनभावन उसका सवेरा होता है
परम सुख की अनुभूति सदा
खुशियों का घर में डेरा होता है
नफरतों से, बिखर जाता है मन
सत्कार दे के, निखर जाता है मन
सबसे प्यारे मिलना तुम प्यार से
प्यार भर के, संवर जाता है मन
कभी रंग में डूब जाता है
कभी गंध में डूब जाता है
मन का अजब पागलपन
कभी गंद में डूब जाता है
मन की बातों का प्रतिकार न करना
विकार भर के मन बीमार न करना
मन तो चंचल है बड़ा, कहे से उसके
वसूलों को अपने न्यौछार न करना
दुनियां की बातों से मन ऊब जाता है
दुनियादारी का आलम चुभ जाता है
चला जाता हूँ दूर पर्वतों के बीच कहीं
हरी उन वादियों में मन डूब जाता है
क्या पता, मन को कब क्या भा जाये।
मूर्ख न जाने, किस बात पर आ जाय।
रोकता मगर, बदल डगर, इधर उधर,
लुढ़क किधर, थाली के बैगन सा जाय।
कैसे कहूं ये मन है मेरा।
इसमें करता भ्रम है बसेरा।
औरों की देख करता आस।
चाहता है वैभव विलास।
लोभ के मारे पाप ने घेरा।
कैसे कहूं ये मन है मेरा।
करने से कतराए सुकाम।
लगाना चाहूँ जब लगाम।
उलटी दिशा मुंह है फेरा,
कैसे कहूं ये मन है मेरा।
कितना सब गुब्बार भरा है।
पीड़ा से भी नहीं डरा है।
तेरा मेरा की रट टेरा।
कैसे कहूं ये मन है मेरा।
सच्चा मन
मन मैला
मन की बात
मन हो शांत
तभी उग पाएंगे
प्रेम के फूल
मन से किया
देता सुपरिणाम
कोई भी काम
उड़ता मन
लेकर हरदम
सपने पंख
गाने लगता
खुश होता है जब
पक्षी सा दिल
मिलता मन
वैवाहिक जीवन
होता सफल
देखता खिला
खिल उठता मन
बाग़ में फूल
उदास मन
कर देता है धुआं
यह जीवन
बतातीं साफ़
चेहरे के रेखाएं
मन की बात
मन की अग्नि
डाल के होती शांत
प्यार का पानी
ज्ञान लगाम
नियंत्रित रखती
मन का घोड़ा
सदा प्रसन्न
जिसका लग जाये
हरि में मन
ज्ञान साबुन
धोकर निकालता
मन का मैल
देख हो जाता
सागर गिरि वन
मन प्रसन्न
होता है साथ
खेलने लग जाता
बच्चों के मन
चाहता मन
दुनिया की दौलत
मेरी कदम
मन का पाप
देख के ललचाया
धन पराया
जिसका होता
वह ज्यादा सुन्दर
मन सुन्दर
तन से ज्यादा
मन की मजबूती
होती जरूरी
शीघ्र खो जाता
आडम्बर पाकर
मन चंचल
थोड़ा सा प्यार
पाकर के बुझती
मन की प्यास
कर डालता
चरित्र को चौपट
बेकाबू मन
तन से ज्यादा
होना मन सशक्त
है आवश्यक
देखते हम
मन के अनुसार
यह संसार
करूँ तो जग
ना करूँ मन दुखी
मन कि कही
अनेकों प्रश्न
ढूंढता है उत्तर
शांति में मन
ख़ुशी व गम
होते खुद के हाथ
चाभी है मन
होने से मन
दिखता है सम्पूर्ण
जग सुन्दर
मेरी हो राह
दुनिया की दौलत
मन की चाह
शक्ति की थाह
अजमाती रहती
मन की चाह
रखना बाबू
बहक नहीं जाय
मन पे काबू
प्रेरणा स्रोत
जजबा जगाने का
मन की चाह
आत्मा पे भारी
क्या क्या खेल दिखाता
मन मदारी
रूप के आगे
बन जाता भिखारी
मन मदारी
चाहता सारी
दुनिया की वैभव
मन मदारी
नचा कर के
बनाता व्यभिचारी
मन मदारी
नहीं सोचता
किसी की क्या लाचारी
मन मदारी
भरे उड़ारी
सातवें आसमान
मन मदारी
जीत की राह
लेकर जाने वाली
मन की चाह
जितनी बड़ी
होती मन की चाह
कठिन राह
काठ सा तन
अकड़ ना रे मन
आत्मा की सुन
प्रेरणा स्रोत
बुराई का हो जाता
मन का लोभ
मन में होता
न कि जरूरत में
लोभ का घर
बढ़ा देता है
मन का अंधकार
मन की व्यथा
मन को भाया
पर्व का वास्तविक आनंद तभी मिलता