Thursday, 28 January 2016

Jindagi bahata pani

समझ न पाया कोई कहानी।
जिंदगी है बहता पानी।

समय सरिता में बहती जाती
रोड़ों की ठोकर सहती जाती,
घावों की अपने लिए निशानी।  जिंदगी ...

मासूम की पल पल की कल कल,
मचाती रहती मन में हल चल,
है ये बेढब कभी सुहानी।  जिंदगी ...

कभी पहाड़ों से लड़ जाती,
कभी कंकड़ों से अड़ जाती,
करती जैसे खेल बचकानी।  जिंदगी ...

धाराएं मग में जुडती जातीं,
अंधे मोड़ों पर मुड़ती जातीं,
चलती रहती मगर सुजानी।  जिंदगी ...

कभी अपनी गति पर इतराती,
कभी लगता स्थिर हो जाती,
हो जाती कभी तूफानी।  जिंदगी ...

कौन सी धुन में कल कल करती,
किस सागर में जाकर मिलती,
दुनिया है अब तक अंजानी।  जिंदगी ..


Tuesday, 26 January 2016

Haiku Feb16 upar wala



हो गये सेठ
दिखाते लड़ रहे 
गरीबों हेतु  

बोलती ऑंखें 
कुछ कहतीं ऑंखें 
सुन सको तो 

होली के रंग 
लगे पिया के हाथ  
तो बने बात  

चलाया कैंची 
गांठ कट जाएगी 
दो टूक रस्सी 

पानी हो जाता 
गर्म लोहे पे भस्म 
सीप में मोती   

प्रातः की बेला
चहकती चिड़ियाँ
लगाईं मेला


मांगो न भीख 
राह बनाओ खुद 
नदी की सीख 


ढूंढें हीरे में
सुंदरता की खान
आचरण में

मैं रहूँ मौन
फिर भी सुन लेता
ऊपर वाला

भाग्य का ताला
चाहे तो खुल जाय
ऊपर वाला

प्रातः की रश्मि
देता तभी मिलती
ऊपर वाला

हवा व पानी
देता अन्न का दाना
ऊपर वाला

रहती साँस
जब तक चाहता
ऊपर वाला


सृष्टि की गाड़ी
चला सकता वही
ऊपर वाला

***********

देकर ज्ञान
करें हमें विद्वान
माँ सरस्वती

अज्ञान तम
हर ले एकदम
माँ सरस्वती

वीणावादिनी
तू पथ प्रकाशिनि
दे ज्ञान रश्मि


मानव देह
आग  को समर्पित
बिना साँस के


होता निर्विघ्न
होती है जिस पर
गणेश कृपा

जोड़ती भाषा
अभिव्यक्ति के संग
देश के जन


बगिया खिली
भौरों को मस्ती मिली
आया बसंत

हुआ समाप्त
कोहरे का पहरा
आया बसंत


********************

सरसों फूली
गये आम बौराय
फागुन मास

मन रंगीन
खिले फूल रंगीले
फागुन मास

बहका मन
चहका चितवन
फागुन मास

पिया के बिन
नीक न लागे रंग
फागुन मास

मन बौराय
पिया पिया बुलाय
फागुन मास

ओ रे पवन
'आयो' ले जा सन्देश
फागुन मास


ऋतु बसंत
प्रिय प्रियतम के
रह के संग

माली के मन
खिल रहा बसंत
फागुन मास

****************

ऋतू का राजा
धरती पर छाजा
मुस्करा उठी

उठी उमंग
प्रेमियों के दिल में
छाया बसंत


फूलों का मिला
भौरों को निमंत्रण
आया बसंत

दुल्हन धरा
इतराती ओढ़ के
बसंती चुन्नी

पृथ्वी के सिर
सतरंगी चुनरी
बसंत ऋतू

करे प्रगाढ़
भाई दीदी का प्यार
राखी की गांठ

****************

होता सबका
बचपन का तीर्थ
नानी का घर

माँ ने ममता
कहाँ से लाई जाना
नानी के घर

बच्चों को भाता
बिताना अवकाश
नानी के घर

पुण्य का काम
होता है बहुत
लगाना पेड़

प्यास बुझाता
जलधर का भी
जल दे पेड़

अपने हाथ
अपने को न सूझें
धुंध ने घेरा

*****************

देता पहरा
जगा रहा सिपाही
सुबह तक

नव दम्पति
चूड़ियाँ की खनक
सुबह तक

खेत सींचते
रहा वह भीगते
सुबह तक

छुप के चले
सजनी से मिलने
रात्रि पहर

बितायी रात
देखते हुए चाँद
सुबह तक


***********
चलते हैं जो -
होती दुनिया पीछे
प्रेम की राह

चलो ले संग
जिनकी दशा तंग
प्रेम की राह

त्याग का भाव
है लिए चला जाता
प्रेम की राह

खुशियों भरी
होती है हरदम
प्रेम की राह

निर्मल मन
हो जाता जो चलते
प्रेम की राह

*************


धन अभाव
रखे जो बड़ी चाह
कष्ट में मन

मोक्ष तो चाहे
मरने से डरता
पागल मन

चली उछल
पर्वतों से निकल
बहती नदी

************
कहता गांव
सुख दुःख की बातें
पेड़ की छाँव

पेड़ से बेल
लिपट होती खड़ी
पेड़ की छाँव

पौधे जो छोटे
पेड़ नहीं हो पाते
पेड़ की छाँव

आये अतिथि
बैठाये ले जाकर
पेड़ की छाँव

बंधे खूंटे से
गाय भैंस बकरी
पेड़ की छाँव

कुत्ता भी बैठा
आ खटिया के नीचे
पेड़ की छाँव

रहते संग
पशु पक्षी संतुष्टि
ग्राम्य जीवन

********


तास के पत्ते
ले बैठे खलिहार
नीम की छाँव

पुंछ डुलाती
भैंस मक्खी उड़ाती
नीम की छाँव

गर्मी में कुत्ता
ढूंढ लेता राहत
नीम की छाँव

आये अतिथि
बिछ जाती खटिया
नीम की छाँव

कहते बैठ
अपने सुख दुःख
नीम की छाँव

*******************

दोनों में प्यार
उमड़ जाता देख
एक दूजे को

बहुत प्यार
कभी करते थे वे
एक दूजे को

नहीं भूलते
जन्म दिन पे भेंट
एक दूजे को

समझे नहीं
गलत फहमी में
एक दूजे को

व्यंग के बाण
आहत कर देते
एक दूजे को

देख के अब
मोड़ लेते हैं मुंह
एक दूजे को

**************
छुट्टी समाप्त
विद्यालय रौनक
फिर से लौटी

रात की रानी
चांदनी में नहा के
हुई सुहानी 

बिटिया आई
चलती रहीं बातें
सुबह तक

कोई भी दर्द
जाता वहीं ठहर
रात्रि पहर

हँसते फूल
गाते खग मृदुल
गांव की भोर

उड़ानें रद्द
खोया हवाई अड्डा
धुंध ने घेरा 


खोल किताब 
पढ़ रहे जनाब 
आँखों में झपकी 

दिखाते बाल
तेल के प्रचार में 
जैसे कि डाल

ले ली कितनी 
सासें नापती घडी  
हाथ में बंधी 

नापती घडी
बची सांसें कितनी 
हाथ में बंधी

बीमार पड़ी
सड़क ने की छुट्टी
गली की ड्यूटी

होता है अच्छा
कितना भी घुमा लो
सीधा ही रास्ता

सोया पड़ा था
पाया फिजां का खत
आया बसंत

सूर्य झांकता
पर्वतों के पीछे से
हुआ विहान

जगा सूरज
नींद पूरी कर के
आँखों में चौंध      

पार्क का बेंच
उस पर कहानी
हम दोनों की

दिखाने लगा -
ठण्ड के छुट्टी जाते
सूरज ऑंखें

शब्दों के बीज
बोया कागज पर
उगी कविता

जब से हुआ
हम दोनों का सिला
शकुन मिला

तुम जो गये
सपने हुए चूर
हमसे दूर 


होती जिसपे
होते काम निर्विघ्न
शिव की कृपा

कहे कुंआरी
जय शिव शंकर
सुन्दर वर

प्रेम से बोले
जो जय बम भोले
पूर्ण कामना


खोलते शिव
जब तीसरी आँख
सर्वत्र नाश

जटा में गंगा
बदन पे भभूति
भोले भंडारी

हो गया स्वाहा
स्वयं ही भष्मासुर
शिव की माया


शिव विवाह
उम्मीद में बाराती
छनेगी भांग

भरें भंडार
शिव भक्त जनों का
भोले भंडारी

हो कोई साथ
कट जाती है राह
चलने वाला

गुड क गुण
जीभ पर मिठास
बढ़ाता खून


चलती कश्ती
बह अपनी मस्ती
लगाती पार

लगाती पार
मोड़ के पतवार
कश्ती की दिशा

चाहता खेना
बन के मन माझी
जीवन कश्ती



मन ले ख़ुशी
सज धज के चली
पिया की गली

देख के जीता
स्विस व वोट बैंक
वरिष्ठ नेता

गिरे नभ से
गाड़े जाते हैं लोग
भूमि के नीचे

विधानसभा
बनाते विधायक
शब्दों का किला

***********
जमीर तक
जला के रख देती
पेट की आग

नाच नचाती
तरह तरह से
पेट की आग 

खेल दिखाती
गजब गजब के
पेट की आग

सब जला के
कर देती है राख
पेट की आग



*****************


पीकर पानी
चली आग लगाने
लेखनी मेरी

पीती है पानी
उगलती है आग
लेखनी मेरी

रातों की नींद
कभी लेती है छीन
लेखनी मेरी


समेट देती
पन्नों में ही ब्रह्माण्ड
लेखनी मेरी

दिल छू आई
उनका भीतर से
लेखनी मेरी

रोती है कभी
बहाती है आंसू भी
लेखनी मेरी

होता है दर्द
चिल्लाने लग जाती
लेखनी मेरी

औरों का दुःख
देख के कराहती
लेखनी मेरी

देश की सोती
जवानी को जगाती
लेखनी मेरी

महका देती
बसंत में बगिया
लेखनी मेरी



************


बिठाने नाव
केवट श्रीराम का
पखारा पांव


जागता रहा
उसके साथ साथ
नभ में चाँद

बंद नहीं की
ठण्ड में भी खिड़की
नभ में चाँद

रातों को फूल
अपनी रंगत में
नभ में चाँद

रातों को देख
मुस्कराती चमेली
नभ में चाँद

ढूंढता सूर्य
दिन में छुप जाता
नभ में चाँद

जब भी आता
तारों को लिए साथ
नभ में चाँद

उसे तो कभी
ऊपर को देखता
नभ में चाँद

एक वही था
रात निभाया साथ
नभ में चाँद

************

मिटा देते हैं
खींची हुयी लकीरें
पानी व मन

नहीं लड़तीं
मंदिर मस्जिद की
ईंटें कभी भी

कहीं जड़ दो
मंदिर या मस्जिद
ईंटों की भक्ति

खुदा से खुद
खोदा जिसने पाया
खुद में खुदा  

बेलन धारी
खुश तो रोटी ना तो
सिर पे मारी

मैके बेचारी
ससुराल आकर
चण्डिका नारी

ब्यूटी पार्लर
ज्यादा वक्त गुजारी
शहरी नारी

रोटी के कोने
बिटिया के लापता
बड़ी हो गयी

बना कन्हैया
आज का दुर्योधन
खींच के चीर

आज भी बैठे
राष्ट्र में धृतराष्ट्र
सत्ता का लोभ

ले के चलती
घर कि जिम्मेदारी
घर की चाभी

बेलन धारी
खुश तो रोटी ना तो
सिर पे मारी


प्रातः पत्तियां
सर्दियों में अकड़ी
आंसू में भीगी

सोख लेता है
जीवन के रस को
बालू सा धन

मुझे ही नहीं
मा को भी संभाली
बुढ़िया दादी

सर्द की रात
सूखने नहीं पाती
कवि की स्याही

बनाया घर
तेरे लिए शीशे का
पत्थर पड़े

लोगों ने कहा
आया गली में तेरी
दीवाना मुझे

कैसे मैं कहूँ
तेरी तंग गली में
अकेला मैं हूँ

जुड़ने लगे
जब तुझसे तार
बिजली गिरी

प्रेम का धागा
बांध दिया उसने
तोड़ न सका

डोलूं बाजार
तू ना खरीददार
जान कर भी



डंक का डर
शहद की मिठास
एक चुनाव

सुगंध देते
नहीं देते वो फूल
खाने को फल

उपजाता है
सभ्यता का आभाव
कड़वे बोल

बागी सोच :: कड़वे भाषण

छिछली नदी
लहरों को उठाती
शोर मचाती


जब भी देखा
भागते ही अँधेरा
दीये का डर

उड़ता कौवा
लगा दिया सामने
चन्द्र ग्रहण

बदला रंग
चेहरे के ऊपर
मन के भाव

कर ही दिया
हौसला जो उछला
मेघ में छेद

छू कर आई
हिम्मत जो जुटाई
लक्ष्य की चोटी /अपना लक्ष्य

चाहे कितनी
सुखा न पाती गर्मी
कवि की स्याही

ये है वो पंख
दिखाया आसमान
बिठाये मुझे

लेकर गये
बादलों से ऊपर
मुझे ये पंख

मछलियाँ भी
दिखातीं करतब
पेट के लिये


कैसा करिश्मा
चमक रहे साथ
जुड़े दो चाँद
 
चढ़ता पारा
ठन्डे शरबत की
बढती मांग

नीचे गिरते
निगम परेशान
जल स्तर से

दुखी धरती
चुरा लेता सूरज
गर्मी में जल  


घर से दूर
एकांत में निकला
तुझे पाने को
वहां भी शोर मचा
मुझको भगाने को

मैं कैसा मूर्ख
डोलता बाजार में
कहीं वो दिखे
जब कि मालूम है
वो तो व्यापारी नहीं 


हीरो बना है
देश द्रोही कन्हैया
भूले शहीद 


सबकी गर्मी
किसान की नजर
फसल पर

गर्मी में दिल
चाहता हरदम
शीतल पेय

व्याकुल वृक्ष
बोल रहे सूर्य से
क्यों जला रहा

उगले रवि
अम्बर से क्रोधाग्नि
तपती जमीं

घिरेगा रवि !
कर ना ज्यादा गर्व
मेघों में तू भी

ना कर पार
आते ही होंगे मेघ
हद को रवि !


जल जाता है
सामने  जो आता है
थार की सांस

भेजता थार
मिला सूर्य से हाथ
गरम हवा

गर्मी में टारे
यहाँ का बालू वहां
मरू में हवा

भुनते जीव
थार का रेगिस्तान
भाड़ का बालू

पीठ पे पानी
लिए ढूंढता खाना
थार में ऊंट

मरु फलक
सितारे सी चमक 
अकेला पेड़

मरू से लड़ा
हिम्मत से अकेले
जिन्दा हूँ खड़ा

अकेले जिया
किसी मुसाफिर को
छाया न दिया

मरुस्थल में
अंगूठी का नगीना
हरा सा पेड़

गर्मी में टारे
यहाँ का बालू वहां
मरू में हवा

पीठ पे पानी
लिए ढूंढता खाना
थार में ऊंट

खुद पे डंडा
लगा भर देने से  
हो जाता खुदा

दुखी किसान
मुरझाई फसल
गर्मी की मार

प्यासे डोलते
पशु छटपटाते
गर्मी के मारे

तपती राह
व्याकुल पथिक
गर्मी की मार

दुबके रहें
जी करता घर में
गर्मी के मारे

बनी है भट्टी
धूप में खड़ी कार
गर्मी की मार

प्यासा लातूर
जल हो गया दूर
गर्मी की मार

रख दी खोल
बांच लो ये किताब
एक पन्ने की

रख दी खोल
सरकार की पोल
एक तस्वीर

सिमटी हुईं
हजारों कहानियां
ये एक पन्ना


अपने ही थे
छीन जमीं आसमां
बेगाना किये

अपने ही थे
छीने जमीं अम्बर
किये बेघर



हरेक दिन
कुछ नया सिखाता
गुरु हमारा

मेरी छाँव में
कितने फूले फले
बूढ़े हो चले 

उम्र बिताई
चेहरे की झुर्रियां
यही कमाई


खर्च दी उम्र
बदले मिली बस
माथे की झुर्री

चेहरे की है  
ऊबड़ खाबड़ में
छुपा तजुर्बा

प्यार की छाँव
कहती ये झुर्रियां
और भी घनी  


नारी या नर
संवेदना के बिना
गया वो मर

चाहे कितनी
सुखा न पाती गर्मी
कवि की स्याही