Saturday, 8 August 2015

Bhojpuri -Haiku

भोजपुर बा देश आपन  भोजपुरी बा भाषा
दुआरे  आवे पानी संग पावे भेली व बताशा
मीठी बाटे बोली अइसन कान में घोरे मिस्री
मन के छुए गीत इहाँ क सोहर फगुआ कजरी
गंगा मईया की अंचरा में
भर गईल
दशरथ क घर
किलकारी से

धन्य भईलीं
महतारी कौशिल्या
गोद में राम

भोर से शाम
दशरथ कौशिल्या
पुकारें राम


देहले बाणं
प्राण देइ के वीर
हम्में आजादी

कई देहलं
देश खातिर वीर
शीश अर्पण

वेद पुराण
गूढ़ ज्ञान क खान
देश आपन

अथाह ज्ञान
गीता वेद विज्ञान
देश क थाती

शहीदन क -
मिलल बा तिरंगा
लेइ के प्राण

रखिहा ध्यान
झुका ना पावे केहू
एकर शान

पोखरा खेत
कै देहलस एक
बरिस मेघ

कूद गईल 
गड़ही में मेझुका 
परते बुन्नी

हमरे गांव 
गली में खेवत बा 
सेना का नाव

बहवलस 
खुँसाईल नदिया 
रामू क छान्ह

जाने केकर 
बहा के ले आईल 
बाढ़ खटिया


सास पतोह 
हिल मिल गईलीं
मेला जाये के

चल देहलं
बाबा थरिया छोड़ 
नून तेज बा

हांफ गईल
पोकियावत पप्पू
बाछा के धरे 

पहिर बिट्टू 
गईल गांव घूम्मे 
नया कपड़ा 

रात भईल
हो गईल सुल्लह  
मेहरारू से

आजी लेहलीं 
सबेरही मथनी
मट्ठा तैयार 

बाबा क कुर्सी
दिन भर सेके ले 
जाड़ा में घाम

चला देखीं जा 
उ घरे धुआं नाहीं 
फांका ता नाहीं

रसोई बेला
छत से धुआं नाहीं 
गैस क चूल्हा  

चाचा की कान्हे 
सबेरहीं फरसा  
नरेगा केंद्र 

मुर्गा क बांग 
पहलवान जी क इरफ़ान चाचा क 
ट्रेक्टर स्टार्ट 

टंगा गईलं 
बिजली की खम्भा पे 
सलमान जी 

माई क दुनो 
कपार पर हाथ 
ढील परल 


चढ़ गईल
बिलार छींका पर
बचवा/ लइका भुक्खे

भुला न पावे
माई माथे लगावे
करिया टीका

एक्के रोटी में
पप्पू और पिल्ला क
फरियत बा

रोवत पप्पू
कौवा की चोंच में बा
हाथ क रोटी


गोद ओकर
अबहिनो बा खाली
सातवीं होली

कुल काजर
पोता गईल मुहें
मरलं  हाथ

भूल न पावे
माई माथे लगावे
करिया टीका

एक्के कटोरी
दुनो खात रहलें
पप्पू व पिल्ला

पक्कल आम
पठवलस एगो
चीख के सुग्गा

दौरवले  बा  
घोडा के कुकरौछी
बिना लगाम

जेकरी घरे
अंगना में तुलसी
वैद न आवे

घरे लागल
तुलसी जी क थान
चाय क स्वाद

पड़ोसिन में
सवेरहीं झगरा
पण्डोहा पर

का हेराईल
रतिया क खोजेले
भगजोगनी

बगईचा में
चमकेले तरई
होते अन्हार

जींस में देख
लागलं भुसुराये
बुढऊ बाबा

बाजे लगेले
शिवालय क घंटी
होते भिंसार


गांवें हमरी
पानी की संघें मिले
बतासा भेली

संगीत बरी/सबसे मीठ
भाषा बा भोजपुरी
कान क मिस्री

फाग कजरी
सोहर चैता लोरी
गावे भोज्पुरी


पतई झार
पेड़ कुल उघार
पतझड़ में

बंद हो जाला
कमल में भंवरा
रस क लोभ

गईल जान
माछी क पीयत क
कप में चाय

कुंथत बाणं
बिन्ह देले बा हाडा
फुल्लल मुंह

हवा बजावे
बंशी क मीठ धुन
बँसवारी में

करे लागल
पीपर करतल
हावा चलल

घर में जाला
खुलल बाटे ताला
महीना बाद

पंचन में से
चुप्पे उठ गईलं
हावा खोले के

टाँगल बाटे
आम की पेड़ पर
सोना क रस

बिन घलेली
दुआरे क किरौना
आ के चिरई

बिसतुईया
छोड़ के पराईल
दबल पोंछ


समा गईल
छोट्टी मुट्टी सुरंग
टनन अन्न

बनत बाटे
बैतरणी क नाव
गोदान दे के

गंगा मईया
हमनी क असरा
तोरे अंचरा

जनि अईहा
गरमी में पजरा
बसाले देह


गोईयां मारे
घर की पिछवारे
सिटी अन्हारे

इन्द्र देवता
धो देलन मुफ्त में
क़स्बा हमार

चंपा चमेली
राती बगइचा में
खिल्ले तरई

प्रधानो अब
पावत बाणं स्वाद
परधन क

करिया बानीं
मिठ बोल से प्यारी
कोयल रानी

तबहीं नीक
कौवा मुंह ना खोले
कर्कश बोले

ले जात बानीं
चींटी परवाह के
मरल कीट

ज़ूम गईलीं
गिरल गुर सूंघ
गली क चींटी

हार ना माने
केतनो बेर गिरे
चढ़े में चींटी

बन गईल
मिठाई क चाशनी
चींटी क कब्र

मिल जुल के
चींटी बना देहलीं
भेली क चीनी

गोर मुखड़ा
लगा के सोहे आम
करिया तिल्ली

आम खाये क
घुलाय के चूसे में
दुगुना मजा

आम क आम
संघही मिली छाँह
पेड़ लगा के

पेड़ लगावा
फल की संघे पावा
पुन्य प्रताप

पिये ले पानी
उगले ले अगन
मोर कलम

हाथे सजल
झूलत बा मेहंदी
तीज क झूला

तीज त्यौहार
सावन क फुहार
हिलोरे मन

सावन मास
हावा बहे गावत
गीत कजरी

मनवा मोर
चाहत क कटोरी
कब ले भरी

औरी जगावे
सावन क फुहार
मन क आग

सून सावन
ना अइलं साजन
डँसे के खड़ा

भर गईल
दशरथ क घर
किलकारी से

बाजे लागल
पडोसी क कुकर
झांकत भोर

पड़ल छींटा
उज्जर धोती पर
नारी में गेना

अकेले मोर
गड़ल कई आँख
देखे के नाच

धईले गोहूँ
जामल बोरिया में
चुअत छत

दोनों एक्के में
अंझुराय गईलीं
लौकी करेली

छान्ह के छाँह
कइले बा फैलल
लौकी क बेल

सौ का भईलं
उ खटिया धईलं
देखा का होला

पतोहिया न -
बेटवा त ठीक बा
कान भरेले


तड़के बोले
पडोसी क कूकर
भोर भईल

डाक्टर बोल
जीयते मरलस
दिल में गांठ

जउले रही
नाहीं पनपी प्रेम
दिल में गांठ

लागल नीम
छोट मोट हकीम
घर की पास

खारा सागर
लहर गावे गीत
सुने में मीठ

केतनो बड़ -
मौत ओकर छोट
हो जाय गुंडा

बीत गईल
अनमोल सावन
पी क नौकरी


पचाई खाना
पचा लेव तब्बे त
पेट क बात


चौथो हिस्सा भी
संघे नाहीं चलेला
अर्धांगिनी क

प्यार समेट
देली सूत लपेट
भाई की हाथे

पक्का कै देला
राखी क कच्चा सूत
रिश्ता क गांठ

ताँका

धागा में बान्हे
बहिन क दुलार
भाई क प्यार
पवित्र सम्बन्ध क
बाटे राखी त्यौहार

मोती जइसे
निहुर के उठा ला
टूटल रिश्ता

एगो देखावा
तीन तोहरी ओर
होइ अंगुरी

लड़ के भला
कहवाँ हो पावेला
केहु क भला


दिन दे देला
अपन रोशनी भी
रात खातिर

जय श्री कृष्ण

कृष्णावतार
वासुदेव क कीर्ति
कंस क काल

कान्हा क बंशी
गईया और गोपी
मोहे सब ही

कृष्ण क रास
गोपियन क तृप्त
प्रेम क आस

पाय के नांव
डूबलीं श्रीकृष्ण में
मीरा दीवानी

बना दे काम
कउनो बिगड़ल
कृष्ण क नावं

कृष्ण क लीला
भक्तन के दे देला
सच्चिदानंद

  - एस० डी० तिवारी 


परा गईल
खजुआवत बाणं
काट के मस

कौनो भाषा बा
त उ बा भोजपुरी
सबसे मीठ

ह भोजपुरी
मातृ भाषा हिंदी क
आपन पुत्री

सांझी की बेला
गांव क पगडंडी
गोरु क मेला

चाँद अईलं
सुरुज हेरईलं
खोजे खातिर

गाय क खुर  
उड़ावत बा धूर
गोधूलि बेला

गंगा से मिल 
हो जाला समुन्दर  
गंगा सागर 

**********************

बा जिंदगानी
भोजपुरी क्षेत्र क
गंगा क पानी

आश्रय देली 
करोड़न लाल के 
गंगा मइया

मईल होइ 
माँ होइहं उदास 
गंगा क जल  

चललीं सखी
गुनगुनात गीत
गंगा नहाये

स्वच्छ रखल
हमनी क धरम
गंगा माई के

देह की संगे
मनवो के धो देली
गंगा मईया

पुन्य भी पावा
आत्मा हो जाय शुद्ध
गंगा नहाय


लगाई पार
माई क जयकार
प्रेम से बोला ...

करी जे पाई
सुख और संपत्ति
माई क भक्ति

हम बालक
माँ तोहरी सहारे
तू भव तारे

हमरो नाव
अब पार लगा रे
तू भव तारे

जेकर चाहे
माँ तू भाग संवारे
तू भव तारे

तोरी शरण
माँ कृपा बरसा रे
तू भव तारे 

**************************

ना बुताईल
रावण फुकाईल
रावणी दीया

फिर देखाई
उ केतनो फुकाई
रावणी कला


हरेक साल 
कौवा क भाग जागे 
पितरपख 

पूछे ला कौवा  
बइठल मुंडेर 
के आवत बा

आन्ही का जानी
घमंड में डूबल
फूल क गंध

न होखे साथी
केतनो पुचकारा
मातल हाथी

हवा लागल
हो गईल बादर
बड़ा अवारा

गर्म कपड़ा
संदूक से बहरा
जाड़ा आईल

सुखा के खेत
पहुना बन मेघ  
अईलं घेर 

पीठ खुजावे  
भइंस पगुरावे
बईठ कौवा 

पीछे चलल 
लइकन क गोल 
मदारी वाला 

चिरई आ के
खोजत बाटीं खोता 
कटल पेड़ 

सास गरम 
पतोह झोंक देले  
बेसी ईंधन 

चढ़ गईल
सिकहर बिलार 
बबुआ भुक्खे 

आवत बानं
धईले पायजामा
डोरी टूटल

जाम गईल 
घरे धईले चना  
चुवत छत  

छान्ह की नीचे 
सरकत खटिया 
कई गो छेद

गारी की संघे 
थरिया परसाई 
समधी भाई

भिड़ गईलीं 
देवरान जेठान
घर के पोती  

बाँट लेहलीं 
सास के दे दलान 
पतोह घर  

पानी पियावे
जुम गईल गोल
द्वारे बरात 

लक्ष्मी जी भरें  
दिवाली पर धन 
सबकी घरे   

लक्ष्मी क कृपा
बरसे सब पर  
शुभ दिवाली 

खुद मिठाई 
उनके दा बतासा 
लक्ष्मी के झांसा !

मनावत बा 
भारत में दिवाली 
चीन का लड़ी 

हवा में धुँआ 
मिठाई में जहर 
इहे दिवाली ? 

बहे लागेले 
जुकाम जब होला 
नाक से नदी

कईलीं छेद
मंथरा थरिया में 
जे में खईलीं

मिल्ली  मिठाई 
लइका कुल खुश  
दीया दिवारी 

कीकियात बा 
खिचलस पपुआ
पिल्ला क पोंछ 

एक्के रोटी में  
दूनू क फरियाला 
पप्पू आ पिल्ला

कनई पोत   
रोवत बा बबली 
द्वारे बिछली

नीबू मरीचा 
बन्हाइल चौखटे 
नई दुकान

ज्यों ही देखेला 
भैंसा भड़क जाला  
तानल छाता

ताके दुलहा 
सेरात बा खिचड़ी 
दुचक्का चाही 

बाइक खड़ी 
बिना हवा तेल क 
बेटा बहरा 

बिगार देलं 
गोईडे क जमीन 
असकतीहा 

जुमली चींटी 
साफ करे खातिर 
गिरल गुर 

चललीं चींटी 
परवाह करे के 
मस क लाश 

खेवत बाटे 
पप्पू क बनावल 
नाव के चींटा 

मुस्किया देला
अंधउल क फूल
सुरुज देख

लजाय जाला
अढ़उल क फूल
चाँद देख के

नहाय धो  के
मंदिर के चलल
गेना क फूल

नयी गूंथल
छोटी में अटकल
भूसा क कण

सुरुज की संघे
खिड़की से घुसल
भोरे में माछी

खड़ी पानी में
जोहत बाटीं उगे के
सुरुज देव

करत बाट
मिठाई क प्रचार
मिल के हाडा

जुमलं हाडा
अगोरिया करे के
मिठाई पर

दबल पोंछ
छोड़ के पराईल
बिसतुईया

पर्दा हटल
नीचे गिर परल
बिसतुईया

होंठ पाकल
खईला क निशानी
आम पकल

भोर से साँझ
सुरुज के ताकेले
सूरजमुखी

कूद गईल
मेझुका गड़ही में
बुन्नी से बचे

दूसर खन्नी
मूस के बहरियाय
किरअ बिल में

मरीचा तीत
ओहि माटी जामल
ऊख बा मीठ

फेका गईल
कप क कुल चाय
च्यूँटा क टांग

गिरल माछी
चाय की भगोना में
छना गईल

करकट में
भईल भड़भड़
बुन्नी क बाजा

गाडल बाटे
कतलो पर ताके
आलू क आँख

कुक्कुर जात
पोंछ रहलो पर
घुम्मे उघार

यात्री खीचेलं
पहिया पर बैग
ताकेलं कुली

जाने न स्वाद 
आम पर झूलल  
माटा क झोल 

बाटुर योगी 
कय देलं उजार
बसल मठ

पिये ले पानी
उगले ले अगन
मोर कलम

कब्बो कपार 
कब्बो पांव उघार 
छोट रजाई 

सवेर साँझ 
बाबा क जाड़ा बीते  
कउड़ा संगे 

गिरल पारा
घास में छिटाईल 
मोती क दाना

थक्केला नाहीं
सागर क लहर 
देख के मन 

जाले कहत  
नदिया ई बहत  
रुकिहा मत 

जुटल पंच
जइसहीं बरल   
द्वारे कउड़ा 


समेट देले 
कलम पन्ना पर 
पूरा ब्रह्माण्ड 

फेंक के ढेला 
नचा देलं लइका 
झील में चाँद 

सोख घल्लस 
पियासल धरती 
पहिल बुन्नी 

मोर जिंदगी 
कर्जा में बा डूबल 
तब्बो हमार

अनेक पक्षी 
एगो पेड़ कटे त
होखें बेघर

रसोईघर 
मसाला क महक 
मुंह में पानी 

पराग चुरा 
फूलन क चलल 
बसंती हवा

मन के भावे 
बगिया महकावे 
बसंती हवा

कौआ बइठ
खजुआवत बाटे 
भैंस क पीठ

करत बानं
मिठाईन क हाड़ा
पहरेदारी

कय ठो रोटी 
खा घलेलं मालिक 
गिन्ने कुकुर 

भइल स्वाहा 
अपने भष्मासुर 
शिव क माया 

कहे कुंआरी
जय शिव शंकर
सुन्दर वर

प्रेम से बोले
जे जय बम भोले
पूरा हो काम 


गुड क गुण
जीभ पर मिठास
खून बढ़ावे 

रोवाय देले 
अपनी हत्यारा के 
कटत प्याज 

महके जब 
धनिया क चटनी 
बेसी खुराक

चिढेला आलू
ओकर खा घालेला 
करैला चीनी 

लगा लेहलीं 
मनी प्लांट क पौधा 
खर्चा बढ़ल

हमपे रंग
जनि डाला हे कान्हा
भीजे चुनरी

नीक ना लागे
मोहे कउनो रंग
कोरी चुनरी

डलबा रंग
ता देबों हम गाली
कहे ले साली

भीजे चुनरी
ना मारा पिचकारी
मो पे मुरारी

खेलत श्याम
बन के हमजोली
राधा से होली

बाटे मलाल 
ना मललीं गुलाल 
गोरी की गाल 

भावे ना मोहे 
होली क एक्को रंग 
पिया ना संग 

कतहुँ जाई
बगइचा से फूल 
टूट के जाई 

देखेला जब 
भाग जाला अन्हार 
दीया क डर 

खेले के होली 
ले के रंग गुलाल 
चलल टोली 

बचे न पाई 
हर केहु रंगाई 
होली की रंग  

गर्मी क रानी 
पियावे मीठा पानी
लीची दीवानी 

लीची  रानी के 
मुंह से लीहा हाल
टोवें न गाल 


जाड़ा क घाम  
बइठल बुढ़िया  
छिम्मी छीलत 

पाकल आम 
ताकत बा लइका 
ढेला लेइ के    

पाकल आम 
गिरल भदाक से
केकरी मुंहे  

चीख के सुग्गा  
एगो पठवलस
हमके आम  

चलली गोरी  
लगाय के गजरा 
पी के पजरा 

मेंहदी हाथ  
पहिरउली गोरी 
गर में हार 

बुढऊ बाबा 
चल देहलँ खेते 
तान के छाता 

सुत्तिं कइसे 
रात भर खोंखत 
बुढऊ लग्गे  

होत बिहान  
गइया बोलावेले 
दुहे के थान  




राखी क धागा 
जेकरी ना कलाई 
बाटे अभागा 

करेलीं याद
भईया के बहिना
राखी त्यौहार 


खा के मिठाई 
दीदी के उपहार  
राखी त्यौहार

रोली चन्दन 
भईया की लिलार  
रक्षा बंधन 


सुन के धुन 
झूमे पूरा गोकुल 
कान्हा क बंशी 

भईलें धन्य 
देवकी वासुदेव 
कृष्ण क जन्म  

बन के काल 
कंस का उतरल 
कृष्णावतार 

पाय के नांव 
श्रीकृष्ण में डूबलीं 
मीरा दीवानी 

विष पियाय 
पूतना बोलवलीं
आपन काल 

कपारे सुत
लेहले वासुदेव 
नन्द की घरे

गावे सोहर 
जुटलीं मेहरारू 
नन्द की घरे 

यशोदा मग्न 
कोरा में नन्दलाल 
नन्द की घरे 


नीम की छांहें 
पीटेलँ  खलिहर 
तास क पत्ता 

अउते जाड़ा
कमर कस लेलीं 
धुनकी रानी 

शुरू भईल 
कउअन क मेला 
भोज बीतल 

स्वामी खईलँ  
गिनत बा कुकुर 
कय ठो रोटी 

गुर  का ठिल्ला
हाड़न क होत बा 
पहरेदारी  


केहू भी करी
कटी आलू बेचारा
भोज भंडारा

केहू के हाथ
तुरंते थाम ले ला
आलू आवारा

संवार दे ले 
जेकरी इहाँ जा ले
प्याज दुलारी

लइका देख
हरियर सब्जी साग 
सिकोरें नाक

बिका गईल
नैहर का पाजेब
नशा क लत 

भईल खाली 
गुड़िया क गुल्लक 
नशा क लत 

घरे आईल 
बोतल में कलह 
पीये क लत 

ओकरा गर्त 
लउकेला जन्नत 
नशा क लत 

बीबी से होला 
रोजाना तकरार 
नशा क लत 

मुंह क बास 
तोपेलँ पान चबा 
पीये का लत 

गिर गईलें
नारी में एक दिन 
नशा क लत  

परल जब   
छा गईल कंगाली 
नशा क लत 

स्कूल क फीस 
टरल वो महीना 
नशा क लत 

दिल दिमाग 
घरो भईल खाली 
पीये क लत 

चले न पायी
बात की साथ पाक 
भीतरघात 

केहू न जाने 
पढ़ हाथ क रेखा 
भाग क लेखा

पक्का बेशक 
शक बोउला पर 
रिश्ता ख़तम 

मोर अंगना 
तोहरी बिन सून 
गौरैया रानी 

लगाय के उ 
चोर लेहलँ दिल 
जूड़ा में फूल 

फंस गईल 
बोललीं बा सुन्दर 
ओकर बाल 

जी क जंजाल 
निहारे हर कोई 
सुन्दर बाल 

ना गल पायी 
हुस्न की आगे दाल 
उज्जर बाल 

छींक बेहाल 
बा सबकर हाल 
मिर्चा क छौंक 

मक्खन डाल
तड़का वाली दाल
मुंह में पानी 

खाये में और 
बढ़ जाला जायका 
होखे रायता 

बनल खाना 
महतारी की हाथ 
बहुते स्वाद 

पावेले संग 
पालक इतराले 
सोवा क जब 

आलू अवारा
थाम लेला तुरंते 
केहू क हाथ 

केहू की घरे 
जायके खप जाले
प्याज बेचारी 

करेला केहू 
कटे आलू बेचारा 
भोज भंडारा

कहेले कम 
छुपावेले अधिका
मुस्कराहट 

जाड़ा क भोर 
घास पे छीटाईल
मोती क दाना

नहाय धोय 
मंदिर जाये वदे  
फूल तैयार 


आवा खेलीं जा 
हमनी क फगुआ
हे हो बबुआ

खेला तू होरी
ना करा बरजोरी
मोसे कन्हैया

रूठल भौजी
खेले खातिर होली
कहवां जाईं

डाल की पात
बइठल ऊपर
किरौना खात

नाहीं अघात
पालक क पतई 
किरौना खात

*******

हाइकु परिचय (भोजपुरी) 
हाइकु, एगो जापानी कविता क विधा बाटे, जेकर शुरुआत १६ वीं शताब्दी में हो गईल रहे। एगो जापानी कवि बाशो के हाइकु क जनक मानल जाला। हाइकू मात्र सत्रह मात्रा में लिखे जाये वाली सबसे छोटी कविता होले, और संगहीं सारगर्भित भी। एकर लोकप्रियता अउर सारगर्भिता क अनुमान एही बात से लगावल जा सकेला कि आज दुनिया की हर भाषा में हाइकु लिखल जाय रहल बा। 
कुछ विद्वान हाइकु काव्य के विदेशी बताय के आलोचना भी करेलन लेकिन साहित्य के कौनो भाषा, क्षेत्र आ तकनीक के सीमा में ना बान्हल जा सकेला। हम त ई कहब कि जइसे मारुति कार, जापानी हो के भी छोट होखला से हमरी इहां की आम आदमी तक पहुँच बना लेहले बा, वही तरह हाइकु भी आम आदमी तक बड़ी आसानी से पहुँच सकेला। कांहे से कि ऐमे आम आ साधारण बाते के, जवन प्रकृति अउर हमनी के जीवन से जुडल होले, सुन्दर अउर विशेष विधि से कम से कम यानी सत्रह अक्षरों में कह देहल जाला। ई विधि उ कवि लोगन के वरदान बाटे, जे अच्छा भाव, ज्ञान व विचार त रखेला लेकिन छंद बंध करे क क्षमता ना होखला से आपन कविता लिख ना पावेलन। 
हिंदी हाइकु मात्र १७ अक्षर में लिखल जा रहल बा वही तरह से भोजपुरी हाइकु भी सत्रह अक्षर में लिखल जा सकेला।देखे में त लगी कि हाइकु लिखल केतना आसान बा पर लिखे बइठला पर पता चली कि केतना कठिन भी बा। कई बेर त ५ मिनट से भी कम समय में हाइकु बन जाई आ कई बार एक्के हाइकु  लिख्खे में घंटन लग जाला। एकर कारण बाटे एकरा  लिख्खे क कला अउरी सारगर्भित होखल। एगो छोट्टी मुट्टी हाइकु बहुत बड़ बात कहे क सामर्थ्य रखेला अउर साधारण बात के भी अइसन असाधारण तरीका से कह देला जे के पढ़ के पाठक रोमांचित हो जाला अउर एगो अलगे आनंद क अनुभूति करेला। .
हाइकु में मात्र १७ अक्षर के, तीन पंक्ति में बाँट के, आपन विचार प्रकट करे के होला। एमे कौनो दृश्य विशेष या बिम्ब के दर्शावे के होला। एतना कम अक्षर में बिम्ब प्रस्तुति की संगें रचना के रुचिकर भी रखे के होला, जवन कि एगो कठिन काम बा। काहे से कि एमे कवि आपन पूरी बात विस्तार से ना कह पावेला। हाइकु लिखल गहीर सोच, अध्ययन अउर अभ्यास क परिणाम होला। हाइकु लिखे वाला केहू भी अपना के पूरा पारंगत ना कह सकेला। 
अपनी कला से हाइकु एगो अपूर्ण कविता हो के भी पूरा भाव देवे में सक्षम होला। हाइकु अइसन चतुराई से कहल जाला कि पाठक आ श्रोता अपने ज्ञान अउर विवेक क प्रयोग कय के ओकरी भाव अउर उद्देश्य के पूरा कय लेला। चूकि पाठक के हाइकु के पढ़े खातिर ओमे पूरा रूप से घुसे के पड़ेला, उ हाइकु से अपने के जुडल अउर आनंदित अनुभव करेला।

हाइकु में कौनो दूगो भाव, विचार, बिम्ब अथवा परिदृश्य के मात्र १७ वर्ण में तीन पंक्ति में, दू या अधिक वाक्यांश में एह तरीका से व्यवस्थित करे के होला कि पहली अउर अंतिम पंक्ति में ५-५ वर्ण अउरी दूसरी पंक्ति में ७ वर्ण होखें। दूनों भाव, विचार या दृश्य के तुलनात्मक रूप से एह तरह से प्रस्तुत कयल जाई कि अलग होय के भी परस्पर सम्बंधित होखें।
उदहारण खातिर एगो हमार हाइकु पढ़ीं जा  -

दाना लेइके // मूस हाथ जोडले // बिल्ली घात में 

येह हाइकु में 'दाना लेइके मूस हाथ जोडले ' एक बिम्ब प्रस्तुत कय रहल बा यानी कि ई पंक्ति मूस की खाये क व्यव्हार प्रतिबिम्बित करत बाटे, अउर ओसे अलगा एगो अउरी बिम्ब हवे 'बिल्ली घात में' ई पंक्ति बिल्ली की भोजन क व्यवहार दर्शावत हवे, यानी कि बिलारो भोजन की जुगत में बा अउर उ भोजन की रूप में चूहिया के देखत बाटे। इहां दूसरका बिम्ब पहिला पर निर्भर हवे, अगर चूहिया ना होइ त बिलरियो घात में ना होइ।

एगो बाशो क बहुते प्रचलित हाइकु देखीं जा -
old pond // a frog leaps in // sound of water

एकर भोजपुरी में रूपांतर कईल हमार हाइकु : पुरान ताल // कुदलस मेझुका // पानी में छप्प

एह हाइकु में एक बिम्ब बा पुरान ताल जेम्मे मेझुका कुद्दल, दूसर बिम्ब पानी में छप्प। इहां पाठक की सामने परिदृश्य उभर के आवत बा कि ताल की पानी में 'छप्प' मेझुका की कुदला क परिणाम हवे।

साधारण तौर पर कहल जाय त, हाइकु तीन पंक्ति क बहुते छोट कविता हवे, जवन सत्रह वर्ण यानि अक्षर में लिखल जाला, अउर जेम्मे दू गो भाव अथवा बिम्ब होला अउरी दूनों बिम्ब परस्पर सम्बंधित होला।

- एस० डी० तिवारी 


लेईं १५ ठो हाइकु।  हाइकु पर लेख अलगा से भेजत बानीं

हवा लागल
हो गईल बादर
बड़ अवारा

गर्म कपड़ा
संदूक से बहरा
जाड़ा आईल

सुखा के खेत
पहुना बन मेघ
अईलं घेर 

पीठ खुजावे  
भइंस पगुरावे
बईठ कौवा 

भईल खाली 
गुड़िया क गुल्लक 
नशा क लत 

बिका गईल 
नैहर का पाजेब 
नशा क लत 

आलू अवारा
थाम लेला तुरंते 
केहू क हाथ 

करेला केहू 
कटे आलू बेचारा 
भोज भंडारा

शुरू भईल 
कुकुरन क मेला 
बीतल भोज 




न होखे साथी
केतनो पुचकारा
मातल हाथी

पीछे चलल 
लइकन क गोल 
मदारी वाला 

चिरई आ के
खोजत बाटीं खोता 
कटल पेड़ 



महके जब 

धनिया क चटनी 

बेसी खुराक

लगा लेहलीं 
मनी प्लांट क पौधा 
बढ़ल खर्चा 

नीक ना लागे
मोहे कउनो रंग
कोरी चुनरी


कुछ और हाइकु 

कहेले कम 
छुपावेले अधिका
मुस्कराहट 

जाड़ा क भोर 
घास पे छीटाईल
मोती क दाना

नहाय धोय 
मंदिर जाये वदे  
फूल तैयार 

पक्का बेशक 
शक बोउला पर 
रिश्ता ख़तम 


पाकल आम 

ताकत बा लइका 
लेइ के ढेला     

चीख के सुग्गा  
एगो पठवलस
हमके आम  

- एस० डी०  तिवारी