क्यों चले हो पशु बनने को
थोड़ी मिट्टी थोड़ा कागज लेकर ?
पा न सकोगे आदमियता फिर से ,
प्राणों की भी आहुति देकर !
जिंदगी दरिया की तरह बह जाती है
कचरा लेकर साथ बहाओगे
समुद्र में मिलाने से पहले सब का सब
मुहाने पर छोड़ जाओगे
पीछे मुड़ कर देखोगे जब जब
बहुत बहुत पछताओगे
कुछ भी देने को जाओगे तब
आदमीयता फिर नहीं पाओगे
सागर में मिलने में मुश्किल न होगी
स्वच्छ जल बहाओगे
थोड़ी मिट्टी थोड़ा कागज लेकर ?
पा न सकोगे आदमियता फिर से ,
प्राणों की भी आहुति देकर !
जिंदगी दरिया की तरह बह जाती है
कचरा लेकर साथ बहाओगे
समुद्र में मिलाने से पहले सब का सब
मुहाने पर छोड़ जाओगे
पीछे मुड़ कर देखोगे जब जब
बहुत बहुत पछताओगे
कुछ भी देने को जाओगे तब
आदमीयता फिर नहीं पाओगे
सागर में मिलने में मुश्किल न होगी
स्वच्छ जल बहाओगे