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लखनऊ की अदब
लखनऊ की अदब, सारी दुनिया से अलग।
उसके मन में बसा जो भी पाया झलक।
मधुर भाषा का स्वाद, जैसे पूजा प्रसाद,
जब कानो में घुसे, घोले मिश्री का रस।
संस्कृत यहाँ की, हमें विरासत में मिली
बचाये रखना सभी, हो कर के सजग।
शानो शौकत यहाँ, चहकती रौनक यहाँ
नबाबों का शहर, है अपना प्यारा अवध।
फलों का राजा बसा, इसके अंचल में आ
मुंह में अमृत लगे, मीठे आमों का रस।
शाम जब ढलने लगे, मन मचलने लगे
सुनने को बेताब, सब कव्वाली गजल।
आसमां का समां, देखा आकर यहाँ
शकुं देता है भर, गोमती का ये तट।
चिकनकारी महान, रोटि रुमाली शुभान,
खींच लेती सहज, मुगलई की महक।
गए दुनिया में कहीं, भटक आये यहीं,
'देव' लायी है खींच, लखनऊ की ललक।
(C) एस0 डी0 तिवारी
लखनऊ की अदब, सारी दुनिया से अलग।
उसके मन में बसा जो भी पाया झलक।
मधुर भाषा का स्वाद, जैसे पूजा प्रसाद,
जब कानो में घुसे, घोले मिश्री का रस।
संस्कृत यहाँ की, हमें विरासत में मिली
बचाये रखना सभी, हो कर के सजग।
शानो शौकत यहाँ, चहकती रौनक यहाँ
नबाबों का शहर, है अपना प्यारा अवध।
फलों का राजा बसा, इसके अंचल में आ
मुंह में अमृत लगे, मीठे आमों का रस।
शाम जब ढलने लगे, मन मचलने लगे
सुनने को बेताब, सब कव्वाली गजल।
आसमां का समां, देखा आकर यहाँ
शकुं देता है भर, गोमती का ये तट।
चिकनकारी महान, रोटि रुमाली शुभान,
खींच लेती सहज, मुगलई की महक।
गए दुनिया में कहीं, भटक आये यहीं,
'देव' लायी है खींच, लखनऊ की ललक।
(C) एस0 डी0 तिवारी
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