Friday, 25 April 2025

Mukadama

बेचारी की किस्मत छली गयी। 

सोने की नयी चेन ली वो भी चली गयी।  

एक विद्यालय में अध्यापन कर रही थी।  
 घर के सामने रिक्शा से उतर रही थी। 
किसी ने सोने की चेन खींच लिया। 
वह पीछे दौड़ी, देखने वालों ने ऑंखें मींच लिया। 
अभी बिलकुल नयी बनवायी थी। 
पूरे लाख की आयी थी।
बेचारी ठगी रह गयी।
रपट लिखाने वह थाने गयी।  
दरोगा ने रपट लिखने को ना किया। 
बोला बीमा तो नहीं करवाई हो!
किसी से खिंचवा के क्लेम करने आयी हो। 
महिला सुनकर भौचक्की रह गयी। 
रपट लिखाने के लिए अड़ी रह गयी। 
जाओ अभी बहुत काम है। 
मेरा दिमाग पहले ही जाम है। 
वी आई पी विजिट है, बन्दोबस्त करना है। 
मंत्री जी का कुत्ता लापता है, उसे भी ढूंढना है।
बाद में आकर रपट भी लिखा देना।
जाओ तब तक पता करो   
पता लगे तो बता देना। 

महिला ने ऊपर से दबाव बनाया। 

मगर पुलिस भी उससे दबी हुई थी।

मामले में कुछ नहीं कर रही थी

पुलिस स्वयं ही डरी हुई थी।

दरोगा ने पूछा, किसने देखा? गवाह कहां है?

कौन ले गया? साक्ष्य कहां है?       

पहचान का चिन्ह बताओ,

चेन की फोटो और बिल लाओ।

चेन तुम्हारी ही है इसका सबूत दिखाओ

तभी हम कुछ कर पायेंगे

और तुम्हारी चेन वापस दिलायेंगे।


मुकदमा दायर हुआ,

कचहरी गांव से दूर थी।

मग्गू के पास, भैंस पाने का

जज्बा भरपूर थी।

वह प्रातः ही तैयार हो जाता,

ठीक से खाने का समय भी नहीं मिल पाता।

बीबी खाना बांध देती थी,

रोटी, तरकारी के साथ देती थी।

मग्गु समय से कचहरी पहुंच जाता

कभी जज साहब छुट्टी पर होते

कभी वकील तैयारी करके नहीं आता।

तारीख पड़ जाती

अगली तारीख पर फिर तारीख पड़ जाती।


कोर्ट का मामला था

हर तारीख पर जाना आवष्यक होता।

हर बार वकील को पैसे देने होते

भाड़ा किराया, सो अलग होता।

मग्गू की जेब खाली होती गई

दिन ब दिन, उसकी बदहाली होती गई।

अगली तारीख पर फैसला दिला दूंगा कहकर हांकता

अबकी पैरबी के लिये वकील

साथ ही पैसे मांगता।

अन्त में आ ही गई वह षुभ घड़ी

जिस दिन मिलनी थी मग्गू को डिक्री।        

सभी आष्चर्य से उसे देखने लगे

कचहरी के बाबू इनाम मांगने लगे।

बधाइयों का तांता लगा

अन्जान लोगों से भी नाता लगा।

करनी पड़ी जेब, थोड़ी और ढीली

उसे आदेष की प्रति मिली।


भैंस लेने का आदेष लेकर पहंुचा थाने

भैंस तो जमा थी मवेषी खाने।

दस साल बीत चुके थे

मग्गू जी मुकदमा जीत चुके थे।

भैंस को उन्हें वापस दिलवाने,

सिपाही ले गया मवेषी खाने।

मग्गू ने कोर्ट का आदेष दिखाया

चौकीदार भैंस को लेकर आया।

खाने बगैर वह बेहाल हो गई थी

वह बेचारी भैस क्या थी

भैंस का कंकाल हो गई थी।



समीप आते आते वह गिर पड़ी

अब भैंस का षव ही मग्गू के सिर पड़ी।

सिपाही ने समझाया,

करने के लियेे भैंस का मुआवजा हासिल,

करना होगा नये सिरे से मुकदमा दाखिल।


या फिर कसाईखाने से सम्पर्क कर लो

इसके खाल के ही कुछ ले लो।

मग्गू ने मरी भैंस लेने से मना कर दिया

नया मुकदमा दाखिल कर दिया।

फिर वही तारीख पर अगली तारीख

सालों साल गये बीत।  

                  

मग्गू एक दिन जोर का बिगड़ा

वकील से कर बैठा झगड़ा

इतना समय निकल गया

कब आयेगा फैसला।

न्यायालय की लेकर आड़

वकील ने भी लगायी लताड़।

पता है कोर्ट में कितना काम होता है

फैसला करना क्या आसान होता है!

चारा का फैसला हो गया क्या

तुम्हारा केस तो बाद में आया।


फिर से दस साल लगे

सत्य की विजय हुई।

फैसला हुआ मग्गू को कीमत मिले

जितने में वह भैंस खरीदी।

सोचकर उसका दिल हिल रहा था

इतना तो चमड़े का ही मिल रहा था।

फिर भी बूढ़ा मग्गू खुष है

भागते भूत की लंगोटी भली

दवाई मंगाने के लिये पैसे नहीं है

चलो उधार लेने की मुसीबत टली।




मग्गू का मुक़दमा 


बेचारे मग्गू की किस्मत छली गयी 

उसकी भैंस चोरी चली गयी। 

चारा चराने के लिए छोड़ा था 

पेड़ के नीचे तनिक पड़ा था। 

जैसे ही थोड़ी आंख लगी 

बेचारी जाने कहाँ जा लगी। 

चारों ओर ढूंढा पता नहीं लगा 

बेचारा रह गया जैसे ठगा। 

रपट लिखाने वह थाने गया

दरोगा ने रपट लिखने से मना किया। 

बोला बीमा तो नहीं करवाया है!

खुद ही गायब कर दावा करने आया है। 

जाओ अभी बहुत काम है 

मेरा दिमाग पहले ही जाम है। 

वी आई पी विजिट है बंदोबस्त करना है। 

विधायक के लापता कुत्ते को ढूंढना है। 


जाओ खुद ढूंढ लो मिल जय तो बता देना 

तभी आकर रपट लिखा देना। 

मग्गू इधर उधर सिर पटका भैंस नहीं मिली 

पड़ोसियों ने मिलकर प्रदर्शन किया तो रपट लिखी। 

दरोगा ने पूछा किसने देखा घ् गवाह कहाँ है घ्

कौन ले गया घ् साक्ष्य कहाँ है घ्

पहचान का चिन्ह बताओ 

भैंस की फोटो लाओ। 

किसी तरह पता चल ही गया 

भैंस एक दबंग के यहाँ थी बंधी। 

मगर पुलिस उससे दबी हुई थी 

मामले में कुछ नहीं कर रही थी 

क्योंकि स्वयं ही उससे डरी हुई थी। 

दरोगा टालते हुए बोला दूसरे दिन आना  

भैंस तुम्हारी ही है इसका सबूत लाना। 

तभी हम कुछ कर पाएंगे 

और तुम्हारी भैंस वापस दिलाएंगे। 

  

मुक़दमा दायर हुआ 

कचहरी गांव से दूर थी। 

मग्गू के पास भैंस पाने का 

जज्बा भरपूर थी। 

वह तड़के ही तैयार हो जाता 

ठीक से खाने का समय भी नहीं मिल पाता। 

बीबी खाना बांध देती थी

रोटी तरकारी के साथ देती थी। 

मग्गू समय से कचहरी पहुँच जाता 

कभी जज साहब छुट्टी पर होते 

कभी वकील तैयारी करके नहीं आता। 

तारीख पड़ जाती 

अगली तारीख पर फिर तारीख पड़ जाती। 


कोर्ट का मामला था 

हर तारीख पर जाना आवश्यक होता। 

हर बार वकील को पैसे देने होते 

भाड़ा किराया सो अलग होता। 

मग्गू की जेब खाली होती गयी 

दिन ब दिन उसकी बदहाली होती गयी। 

अगली तारीख पर फैसला दिला दूंगा कहके हांकता 

अबकी पैरबी के लिए वकील साथ ही पैसे मांगता। 

अंत में आ ही गयी वह शुभ घडी 

जिस दिन मिलनी थी मग्गू को डिक्री। 

सभी आश्चर्य से उसे देखने लगे 

कचहरी के बाबू इनाम मांगने लगे। 

बधाईयों का तांता लगा 

अनजान लोगों से भी नाता लगा। 

करनी पड़ी जेब थोड़ी और ढीली

उसे आदेश की प्रति मिली। 


भैंस लेने का आदेश लेकर वह पहुंचा थाने 

भैंस तो जमा थी मवेशीखाने। 

दस साल बीत चुके थे 

मग्गू जी मुक़दमा जीत चुके थे। 

भैंस को उन्हें वापस दिलवाने 

सिपाही ले गया मवेशीखाने। 

मग्गू ने कोर्ट का आदेश दिखाया 

नम्बरदार भैंस को लेकर आया। 

चारा वगैर वह बेहाल हो गयी थी 

बेचारी भैंस क्या थी भैंस का कंकाल हो गयी थी। 

पास आते ही वह गिर पड़ी 

अब भैंस की लाश ही मग्गू के सिर पड़ी। 

सिपाही ने बताया  करना जो मुआवजा हासिल 

करना होगा नए सिरे से मुक़दमा दाखिल।  


या फिर चमड़े वाले से संपर्क कर लो 

इसके खाल के ही कुछ ले लो। 

मग्गू ने मरी भैंस लेने से मना कर दिया 

दावे का मुक़दमा दाखिल कर दिया। 

फिर वही तारीख पर अगली तारीख 

सालों साल गए बीत। 

मग्गू एक दिन जोर का बिगड़ा 

वकील से कर बैठा झगड़ा। 

इतना समय निकल गया कब आएगा फैसला। 

न्यायलय की लेकर आड़ 

वकील ने भी लगाई लताड़। 

पता है कोर्ट में कितना काम होता है 

फैसला करना क्या आसान होता है!

चारा का फैसला हो गया क्या घ्

तुम्हारा केस तो बाद में आया। 

फिर से दस साल लगे 

सत्य की विजय हुई। 

फैसला हुआ मग्गू को कीमत मिले 

जितने में उसने भैंस खरीदी। 

सोच कर उसका दिल हिल रहा था 

इतना तो चमड़े का ही मिल रहा था। 

फिर भी बूढ़ा मग्गू खुश है 

भागते भूत की लंगोटी भली 

दवाई लाने के लिए पैसे नहीं है 

चलो उधार लेने की मुसीबत टली। 


Sunday, 13 October 2024

Hindu Dharm



शाश्वत धर्म सनातन, जिसका ओर न छोर।
थमाया है मनुष्य को, मानवता की डोर।\

हिन्दू-धर्म करवाता, स्वयं से पहचान। 
आत्मदर्शन से मिले, साक्षात् भगवान।

धर्म मानव का रक्षक, जीवन का आधार।
धर्म यदि मर जाएगा, तुमको देगा मार।


 


हिन्दू-धर्म ब्रह्म का दर्पण है।
सम्पूर्ण जीवन का दर्शन है।
मानव जाति का मार्गदर्शक;
यह आत्म-शुद्धि का साधन है।

हिन्दू धर्म जीवन का दर्शन है। 
आध्यात्मिकता का दर्पण है।   
मानवता व प्रकृति का पोषक,    
ईश्वर की लब्धि का साधन है।


हिन्दू धर्म प्रदर्शन नहीं, दर्शन है। 
सुचिता, संयम अरु अनुशासन है। 
सुखमय जीवन का मार्गदर्शक,   
मोक्ष प्राप्त करने का साधन है। 


सनातन धर्म उदार है; ना कट्टर, ना जड़। 

मानवता का धर्म ये, सच्चरित्र देता गढ़।

ईश्वर का विधान ये, विज्ञान है महान ये।
जीवन-मोक्ष के मार्ग को, ज्ञानी लेते पढ़।

महान भारत का अस्तित्व निहित हिंदुत्व में। 
हिंदुत्व का अस्तित्व धर्म-ग्रंथों के प्रभुत्व में। 

धर्म-ग्रंथों की प्रभुता; उनके ज्ञान, सम्मान से,   
ज्ञान-चक्र का सतत संवेग, ग्रंथों के अमरत्व में। 



हिन्दू धर्म, राम के आदर्शों का आधार है।
हिन्दू धर्म, श्रीकृष्ण के ज्ञान का भंडार है।
धरती को पाप, अधर्म से बचाने के लिए,
समय समय पर करता दानवों का संहार है। 



विज्ञान प्रभु का विधान नहीं, वरदान है एक।
जीवन को सुविध बनाने का निदान है एक।
जीव और तत्वों के गुणों का ईश्वर ही दाता,
विज्ञान विद्यमान तथ्यों का ज्ञान है एक।


शिक्षा, स्वास्थ का समान अधिकार है, संविधान में!
जाति, धर्म का फिर क्यों आधार है, संविधान में?
निर्धन जन तो पड़ा हुआ अब भी पिछड़ों के जैसा,
नाम का पिछड़ा मलाई खाता अपार है, संविधान में।


ईश्वर का सबसे प्यारा, हिन्दू धर्म। 
मानवता का है सहारा, हिन्दू धर्म। 
बहता रहेगा अनवरत, अनंत तक,  
बनकर अमृत की धारा, हिन्दू धर्म। 



सबसे सुन्दर जगत में, हिन्दू धर्म महान। 
जन्म से मरण तक, संस्कार विद्यमान। 
आत्मा से परमात्मा के संबंधों का दर्शन,
जीवन सुगम करने का, है सम्पूर्ण विधान। 


राम, कृष्ण की जन्म भूमि, शिवशंकर का वास।

मद्धम हुआ प्रभाव अब, दिखता नहीं प्रकाश।

रावण, कंस के वंशज दिखते, यत्र, तत्र, सर्वत्र;

किसका ये अभिशाप; हुआ पावनता का नाश।




सबसे सुन्दर हिन्दू धरम है।
हर जीव का रखता मरम है,
मेरा पावन हिन्दू धरम है।

ब्रह्मा, विष्णु अरु शिव यहाँ हैं।
मानवी गुणों की नींव यहाँ है।
सत्य का है प्रतीक धर्म ये,
प्रभु को प्रिय हर जीव यहाँ है।
वैदिक धर्म, पावन परम है।

 

यहाँ ॐ मन्त्र का उच्चारण।  

ब्रह्म तत्व करता है धारण।
ईश्वर की भक्ति और श्रद्धा।

पर-उपकार पुण्य का कारण।

परपीड़न तो पाप चरम है। 

 

जीवन का पूर्ण यह दर्शन।
ईश्वर का विनम्र यह वंदन।
वेदों का ज्ञान, सिद्धांत यहाँ,  

शुचि संस्कारों का यह उपवन। 

मानव-धर्म उसका ही करम है। 

 

संचालक स्वयं नारायण हैं। 

हरि-वचन गीता, रामायण हैं।

दान, दया, अध्यात्म नीतियां, 

प्रभु के घर का पथ पावन है। 

मिटा देता मिथ्या भरम है। 

सबसे सुन्दर हिन्दू धरम है।



धर्म तो आचरणपरक है; 

मानव मूल्यों का कनक है;

नियमों से ये बंधा हुआ, 

धर्म जीवन की सड़क है। 

 

धर्म, जीवन का दर्शन है;  

सम्यक ज्ञान व चिंतन है;

परमात्मा की गवेषणा में,  

धर्म, आत्मा का मंथन है।  

 

मानवता की साधना में है, 

धर्म संयम-अनुपालना में है; 

धर्म, परहित में समाहित, 

ईश्वर की उपासना में है। 

 

नहीं टीका, ना छत्रों में है; 

धर्म, न रंगीन वस्त्रों में है; 

ना ही किसी आडम्बर में ये, 

धर्म तो वेद-मन्त्रों में है।  

 

धर्म, पाप के वारण में है;

नैतिकता के धारण में है; 

सत्पुरुषों के आचरण में, 

धर्म, सत्य के कारण में है। 

 

धर्म सुखों का आधार है; 

धर्म श्रेष्ठतम व्यवहार है; 

परमात्मा की ओर उन्मुख,

धर्म ही जीवन का सार है। 

 

वेदों के अभिमन्त्रण में है; 

ईश्वर के आमंत्रण में है; 

धर्म है मानवता की धुरी,  

धर्म आत्मनियंत्रण में है।  



समाज को कर्मपूजा की विधि सिखाया ब्राह्मण ने।    

वेद, पुराण, ग्रंथों को कंठस्थ कर बचाया ब्राह्मण ने।

धर्मसंस्कृति और संस्कारों को रखे हुए है जीवित वो,  

धर्मोत्थान कर, ईश्वर में आस्था जगाया ब्राह्मण ने। 

 

स्वयं दरिद्र होकर भीसमाज को ऊँचा रखता रहा। 

पूजापाठदान से ही, जीवन उसका चलता रहा।
विरोध और त्रासदियां झेल कर भी ब्राह्मण वर्ग;
नीतिगत शिक्षा प्रदानचरित्र निर्माण करता रहा।



गुण, दोष और कर्म सब, है ईश्वर के हाथ।  

करता वही ऊंच नीच, कुल में भेजता नाथ।


जाति में बंटा था समाज, उसे तो कोसते हो!

उसी जाति, धर्म को फिर क्यों पोषते हो?

आपस में लड़ा भिड़ा कर काम निकालते,

बाद में दिखावे के लिए मन मसोसते हो!




दुनिया में पैदा किया, जीव सभी भगवान। 

मिटाये उसकी कृति को, होता वो शैतान।  


धर्म के प्रति जो कट्टरपन है, 

दिखावा और अक्खड़पन है।  

आस्था से अधिक स्वार्थ, ढोंग;  

सत्ता हथियाने का प्रयत्न है।  


गंगा-जमुनी तहजीब तो कहते हो।

पृथक प्रवाह में फिर क्यों बहते हो?

दो नदियों के संगम की भांति मिल,

मुख्य धारा में क्यों नहीं रहते हो?

 



सनातन धर्म के सपूतों, उर में श्रद्धा जगाओ तुम।

त्याग आलस्य, निद्रा को, धर्म की ज्योति जलाओ तुम।

जगत में सबसे है सुन्दर, हिन्दू-धर्म ये तुम्हारा,  

लगे न कुदृष्टि शोभा को, प्राण की भांति बचाओ तुम। 

 

ज्ञान के कोष वेदों में, सभी का लाभ उठाओ तुम। 

पुष्पों से चारु कानन के, जीवन अपना सजाओ तुम।  

प्रभु का प्रताप है तुम पर, हृदय रखना बसा कर के,    
श्रेष्ठतम है सनातन धर्म, जगत भर को जताओ तुम।

 

पाठ, शान्ति अहिंसा का, विश्व भर को पढ़ाओ तुम।  

विरोधी षड्यंत्र न रच लें, सजग सचेत हो जाओ तुम। 

हिन्दू-धर्म की जय हो, उपायों को करो ऐसे, 

रुधिर बह जाये रक्षा में, तनिक न हिचकिचाओ तुम। 


हिन्दू धर्म विशाल महासागर है 
पंथ बनाने वाले तालाब बनकर रह जाएंगे 
हिन्दू धर्म पर्वत की भांति अटल है 
पंथ बनाने वाले तिनके सा बह जायेंगे 
हिन्दू धर्म सूर्य  शाश्वत उज्जवल /प्रदीप्त 
पंथ तो नन्हें तारों सा मात्र टिमटिमाएँगे  




रिम झिम होय रही सावन में, राम अकेले वन में ना। 
सिया की धरे वियोग मन में, राम अकेले वन में ना। 

बादल अमृत जल बरसाए, तरुवर पुष्प लता हरषाये 
सारे जीव युगल कानन में, राम अकेले वन में ना। 

दादुर मोर मचावें शोर, पपीहा गावे होते भोर  
बिजली चमके रह रह घन में, राम अकेले वन में ना। 

सुग्रीव हनुमत को पठायो, जाओ शीघ्र ढूंढ के लाओ 
सीता छुपी कहाँ त्रिभुवन में, राम अकेले वन में ना। 






भारत प्रयाग में सिमट गया, कुम्भ के नहान में। 
संगम लोगों से पट गया, कुम्भ के नहान में। 

महाकुम्भ का अजब संयोग।  
श्रद्धालुओं को पुण्य का भोग।  
बीस पच्चीस का अद्भुत मेला, 
संसार भर से आये लोग। 
संतों का रेला डट गया, कुम्भ के नहान में।

सामाजिक अंतर पाट कर। 
धनी-निर्धन एक घाट पर।
नागा, साधु, संत, सन्यासी; 
पोते चन्दन तिलक ललाट पर। 
अखाड़ों का भेद हट गया, कुम्भ के नहान में।

सैकड़ों करोड़ आयी भीड़। 
प्रयाग में कैसे समायी भीड़! 
भीड़ का नया कीर्तिमान बना, 
सुचारु फिर भी नहायी भीड़। 
पापों का बोझ सब छंट गया, कुम्भ के नहान में।

गंगा मईया में स्नान कर। 
आत्मशुद्धि का उत्तम अवसर। 
मोक्ष प्रदायी कुम्भ स्नान, 
अमृत की बूँद गिरी यहाँ पर। 
भक्तों का बंधन कट गया, कुम्भ के नहान में। 

(C) एस. डी. तिवारी 

गंगा मईया का प्रताप हुआ 
अब तक का पाप कट गया 
खली घड़ा 
अब की कुम्भ बड़ा अचम्भा 
ये कुम्भ नहीं महाकुम्भ है 
आया बारह दर्जन वर्ष पश्चात् 
घर बार छोड़ के आये
रेल का शीशा तोड़ के आये 
सतुआ पिसान बटोर के आये 
कुम्भ में संगम नहाये 
जोड़ के आये 

कितनी मुश्किलें झेले 
कोसों पैदल चले 

भीड़ के रेले 


Friday, 15 March 2024

kshanikayen

 

प्यार मांगने से नहीं मिलता, अर्जित होना चाहिए । 

प्यार कहने से सच्चा नहीं होता, परिलक्षित होना चाहिए । 


मन पसंद स्वाद पाने के लिए कोई उम्र नहीं होती 

संस्कृतियांऔर संस्कार निभाने के लिए कोई उम्र नहीं होती 



Sunday, 31 December 2023

Ram ka vakeel

 
राम का भव्य मंदिर बन जाएगा।
देश-विदेश से पर्यटक आएगा।
अयोध्यावासी की आय बढ़ेगी,
क्षेत्र का आर्थिक सुधर हो पायेगा।
 
अयोध्या में राम भक्त पटे होंगे।
भक्तों की सेवा में लोग जुटे होंगे।
कई व्यवसाय सेवाओं से लोग,
कमाई के साथ खुशियों से अटे होंगे।
 
वृहत राष्ट्र का यह पर्यटन होगा।
उमड़ता यहाँ पर जन जन होगा।
इस सृष्टि को जो है चलाने वाला,
प्रभु राम को करता नमन होगा।
 
यहाँ मंदिर बना आलीशान होगा।
लोगों के सौहार्द का निशान होगा।
प्रसाद बेच रहा, इस स्थल पर,
बैठा हिन्दू और मुसलमान होगा।
 
चलाता है सम्पूर्ण सृष्टि का विधान।
संविधान से उसको डराता है इन्सान।
रखता शक्ति, वो चाहेगा लिख देगा,
मिटाकर, राष्ट्र का नया संविधान।
 
राम-नाम में लगा अरबों का मन है। 
राम नाम ही साधु संतों का जीवन है 
कितनों के कठिन समय का सहारा,
कितनों का निःशुल्क मनोरंजन है। 
 
अवध से है रामसेतु तक, राम का नाम।
जोड़ रखा है राष्ट्र को सब, राम का नाम।
राम नाम में है सफल, एक अपार बल,
रोकता दुष्परिणाम सकल, राम का नाम।
 
श्रीलंका पर्यटन चला रहा, राम के नाम पर।
करोड़ों प्रति वर्ष कमा रहा, राम के नाम पर।
भारत में जन्मा जन्म स्थान का विवाद कर
राष्ट्र को क्षति पहुंचा रहाराम के नाम पर। 
 
मन में विश्वास जगाता, राम का नाम।
कर्म हेतु उत्साह जगाता, राम का नाम।
राम नाम हर लेता बहुतों के दुःख को,
बुरी शक्ति को है भगाताराम का नाम।
 
दशानन के शीश दस, मिथ्या, घृणा, लोभ,
मद, मत्सर, ईर्ष्याकाम, मोह, द्वेष  क्रोध।
कुचल के रख देता सभी को राम का नाम,
और मिटा देता है जीवन के सब क्षोभ।
 
जीवित रहे राम का नाम, रावण क्यों चाहेगा !
धरती से हो पाप तमाम, रावण क्यों चाहेगा !
उसे तो भोग चाहिएवैभवविलास चाहिए,   
कोई धाम हो राम के नाम, रावण क्यों चाहेगा !
  
खुद के कार्य हों निर्वाध, रावण यही चाहता।
वाधित हो राम के काम, रावण यही चाहता।
दुनिया हो गयी राम-मय तो उसकी चलेगी,
फैले उसी का ताम झाम, रावण यही चाहता।
 
मंदिर से और भी सुदृढ़ होगा राम का नाम।
अब कभी नहीं संकीर्ण होगा राम का नाम।
विश्व भर में छाया हुआ है राम का प्रताप,
और बढ़ेगा, जब जीर्ण होगा राम का नाम। 

लोकतंत्र में किसी के वोट बैंक के डर से। 


बहुसंख्यक अपने अधिकार को तरसे। 
रहना पड़ा, राम लला को भटकते दूर,
कहीं पर बाहर, अपने अवध नगर से। 
 
राम में करोड़ों लोग लगे बझे होते हैं।
मन के विकारों को सब तजे होते हैं।
कोई पूजा, दर्शन और कीर्तन करता,
बहुत से लोग राम नाम भजे होते हैं।
 
राम नाम में अगर वो नहीं समायेंगी।
वो सभी शक्तियां आसुरी हो जाएँगी।
विध्वंसक कार्यों में विनिवेशित होकर,
कहीं कहीं राष्ट्र को क्षति पहुंचाएंगी।
 
सद्चरित्र को पुष्ट करता, राम का नाम।
मन में उपजे कष्ट हरता, राम का नाम। 
आसुरी शक्तियां जो भी उत्पन्न होतीं,
उन सबको नष्ट करता, राम का नाम। 
 
मन का मैल धुल जाता, भजने से 'राम'
जीवन अमृत मिल जाता, भजने से 'राम'
दुर्गुणों से लड़ने का अद्भुत बल मिलता,
रावण का दम हिल जाता, भजने से 'राम'
 
राम, मात्र नाम नहीं, रामायण-सूत्र है।
है तो ईश्वर, कहने को दशरथ पुत्र है।
राम नाम में मानवता के आदर्श सभी,
कृपा, करुणा, और सुखों का समुद्र है।
 
राम पूजन में निवेश है, कितनी शक्ति।
राम भजन में निवेश है, कितनी शक्ति।
जाने से बच जाती है विध्वंस की ओर,
राम नमन में निवेश है, कितनी शक्ति।
  
दुःख, दरिद्रता के शाप हटाता, राम का नाम।
ऊपर आये सब पाप भगाता, राम का नाम।
बस जाता है राम का नाम जिसके हृद में,
अनेकानेक संताप मिटाता, राम का नाम।
 
राम-नाम में दया, धर्म और करुणा रमा 
राम का नाम ही है दान, कृपा और क्षमा
विश्व में शांति स्थापित करने का 'राम'
संतों ने दिया है एक अद्भुत मन्त्र थमा
 
राम नाम अनेक लोगों को भक्ति देता।
भक्तों को अनेक पापों से विरक्ति देता।
आदर्श के पथ पर चलने को प्रेरित कर,
राष्ट्र को प्रेम की अलौकिक शक्ति देता।
 
राम-नाम जीवन का एक महामंत्र है।
कलियुग में निष्पाप का अद्भुत यंत्र है।
जगत को शांति मार्ग पर चलाने वाला,
मिला एक अलौकिक और सरल तंत्र है।
 
 
 
 
जब जहाँ मेरा वादी चाहेगा, मे लार्ड!
राम-मंदिर तो बन जायेगा, मे लार्ड!
 
भक्तों पर अनेक कृपा बरसाई।
राक्षसों से पृथ्वी रिक्त कराई।
अपने मंदिर को तरस रहा है,
जिसने है सारी सृष्टि बनायी।
एक दिन महिमा दिखलायेगा,
मंदिर भी वही बनाएगा, मे लार्ड! राम मंदिर  ...
 
भक्त बनाने जब आगे आते। 
प्रतिवादी अनेक धौंस जमाते।
झगड़ा तो कभी रगड़ा करने को,
नेता उन्हें बहु भांति उकसाते।
भक्त, कब तक प्राण सुखायेगा!
एक दिन राम को बुलाएगा, मे लार्ड! राम मंदिर ..
 
मूर्त रूप में नहीं दिखता वो।
हर जीव में मगर बसता वो।
प्राण जिसे कहते, वही तो है,
वायु बन सांसों में चलता वो।
विरोधियों के बुद्धि में घुस कर,
अपनी शक्ति दिखायेगा, मे लार्ड! राम मंदिर  ...
 
मेरे तर्क, यदि मान्य होंगे।
प्रभु के गुण सम्मान्य होंगे।
पापियों का बल बढ़ता जायेगा,
देश में भरे धन धान्य होंगे।
उसको यदि न्याय नहीं मिला,
तो  न्याय भी पछतायेगा, मे लार्ड! राम मंदिर  ...
 
अवमानना से वह नहीं डरेगा।
तुम्हें भी कटघरे में खड़ा करेगा।
कुछ भी नहीं असंभव उसको,
मंदिर तो उसका अवश्य बनेगा।
पापी हैं जो भी इस धरती भर,
करनी का भोग चखायेगा, मे लार्ड! राम मंदिर  ...
 
धर्मों से ऊपरभगवान है वो। 
सबका ही कृपानिधान है वो।
नाम लेकर गया दुनिया से,
धरती पर रहा महान है वो।
कितना भी अमृत करे धारण,
 रावण, फिर भी मर जायेगा, मे लार्ड! राम मंदिर  ...
 
मनुष्यों में रह, वह देखता सब।
आवश्यकता  पर, होगा प्रकट।
मंदिर है उसके होने का प्रतीक,
राष्ट्र का होता है, जैसे ध्वज।
एक नाम रोकता, कितने विध्वंस,
पुण्यात्मा ही समझ पायेगा, मे लार्ड! राम मंदिर  ...
 
ऐसे ही बेघर रहे यदि राम लला।
मंदिर बना रहे विवाद का मसला।
करोड़ों की भावना से हो खिलवाड़,
राष्ट्र का कैसे हो पायेगा भला।
राम के बिना, दानव सिर उठाएंगे,
मानव व्याकुल हो जायेगा, मे लार्ड! राम मंदिर  ...
 
बड़ा ही धैर्य दिखाया है राम ने।
इतना सहा, नहीं आया सामने।  
बन जाने दो अब मंदिर श्रीमान,
तो आएगा वो तुम्हें थामने।  
भक्त होंगे, मोड़ लेगा मुंह वह
दैत्यों से फिर कौन बचायेगा, मे लार्ड! राम मंदिर  ...