Saturday, 16 July 2022

Kahan kahan royen, ghazal


किये हमसे जो तुम बर्ताव, कहाँ कहाँ रोयें। 

दिए गहरे तुम्हारे घाव, कहाँ कहाँ रोयें। 


गया होता छलनी सीना, चलाये तीरों से  

सहे उस पर भी बड़े ताव,  कहाँ कहाँ रोयें।


दे दी मुश्किलें भारी, कि निकलना मुश्किल 

खेले ऐसे ही तुम दाव, कहाँ कहाँ रोयें।

 

चहक उठता था चमन दिल का,  तुमसे मिल के कभी 

बंद कर दिया देना भाव,  कहाँ कहाँ रोयें।  


पार हो जायेगी बैठे थे हम उम्मीदों में   

डुबोये प्यार की तुम नाव, कहाँ कहाँ रोयें। 


मना कर दिया पेड़ों ने, अब तो देने से

जुड़ाने को थोड़ी छाँव, कहाँ कहाँ रोयें।


चुभन देती है बड़ी दर्द, 'देव' उन तीरों की 

छीना जीने का भी चाव, कहाँ कहाँ रोयें।


(C)  एस. डी. तिवारी 


(C)  एस. डी. तिवारी