कोरोना के साइड इफ़ेक्ट
पाठ सिखाने आया कोरोना
1
घंटी बजते ही डर लगता है,
हर शख्श आजकल कोरोना दिखता है।
सभी हो गए जैसे अछूत हों,
किसी डायन के जाये पूत हों।
मगर बहुत दम घोंटू है ये।
जाने कैसा अदृश्य भूत है,
लगता कोई यम का दूत है।
खौफ में डाल दिया जन जन को,
झकझोर कर रखा भुवन को।
बचने को जन ढूंढता कोना।
पाठ सिखाने आया कोरोना।
2
प्रदूषणकारी तत्व समाप्त है।पशु-पक्षी में हर्ष व्याप्त है।
मानवीय अत्याचारों से परे।
सरि, गिरि, वन खुशियों से भरे।
सदियों से दुसह दुःख सह रहीं,
गंगा, यमुना स्वच्छ बह रहीं।
सिर के ऊपर चाँद सितारे,
प्रसन्न चमक रहे हैं सारे।
मनुष्य के होते काम बेढब,
जिनसे दुखी हो जाते ये सब।
प्रकृति से करो न खेल घिनौना।
पाठ सिखाने आया कोरोना।
फैली है शांति चारों ओर।
लुप्त तेरा मेरा का शोर।
फिरते थे जो शेर बन के।
डर से पड़े हैं घरों में दुबके।
विज्ञान समक्ष भूले भगवान् को।
आमंत्रण देते रहे शैतान को।जगने लगी उन लोगों में भक्ति।
स्मरण हो आयी ईश्वर की शक्ति।
'मनुष्य बनो', यह धर्म सिखाता,
फिर भी मनुष्य सीख न पाता।
अब ना सीखे, फिर मत रोना।
पाठ सिखाने आया कोरोना।
4
कितना भी ऊँचा उठ जाओगे।
गगन को तुम ना छू पाओगे।
रहेगा प्रभु ऊपर ही तुमसे,
जब चाहेगा, गिरायेगा धम्म से।
प्रकृति से न खिलवाड़ तुम करना,
ये सब उसी ईश्वर की रचना।
कितना भी उन्नति कर ले विज्ञान
इंसान नहीं हो सकता भगवान्।
इंसान धर्म से विमुख हो जायेगा,
राह दिखाने वह फिर आएगा।
दम्भ, दुष्कर्मों को है धोना।
पाठ सिखाने आया कोरोना।
५
विदेशों से सामान था आता।
कमीशन स्विस बैंक को जाता।
आयात पर निर्भरता सारी।
पड़ रही अब राष्ट्र पर भारी।
कारखाने अपने बंद हो गए।
चीन के भरोसे हम हो गए।
अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी।
आया अवसर अब न खोना।
पाठ सिखाने आया कोरोना।
६
पीएम ने ज्यूँ बोला लॉक डाउन।
खड़ा हो गया पूरा टाउन।
लम्बी लम्बी कतार लगाकर,
निकल परचून की दुकानों पर।
ना कहीं आना, ना कहीं जाना,
मगर पेट को कैसे मनाना।
ढाबा, होटल बंद हो गए,
पैकेट खा के तंग हो गए।
न चाट, न पानी पूरी है,
पिज्जा, चाउमीन से भी दूरी है।
पाठ सिखाने आया कोरोना।
५
विदेशों से सामान था आता।
कमीशन स्विस बैंक को जाता।
आयात पर निर्भरता सारी।
पड़ रही अब राष्ट्र पर भारी।
कारखाने अपने बंद हो गए।
चीन के भरोसे हम हो गए।
अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी।
छिन गयी कितनों की नौकरी।
होली दिवाली अगर बनाओ,
पटाखे, पिचकारी घर में बनाओ।होली दिवाली अगर बनाओ,
आया अवसर अब न खोना।
पाठ सिखाने आया कोरोना।
६
पीएम ने ज्यूँ बोला लॉक डाउन।
खड़ा हो गया पूरा टाउन।
लम्बी लम्बी कतार लगाकर,
निकल परचून की दुकानों पर।
ना कहीं आना, ना कहीं जाना,
मगर पेट को कैसे मनाना।
ढाबा, होटल बंद हो गए,
पैकेट खा के तंग हो गए।
न चाट, न पानी पूरी है,
पिज्जा, चाउमीन से भी दूरी है।
अपनी रोटी अपने ही पोना।
पाठ सिखाने आया कोरोना।
७
सब कुछ उलटा पुलटा हो रहा।
धैर्यवान अपना सब्र खो रहा।
बड़े बड़ों पर जुल्म ढा रहा।
सेठ पका रहा, नौकर खा रहा।
सड़क पर देख नोट बिखेरा।
उठाने वालों ने मुंह है फेरा।
लॉक डाउन में फंसी बारात।
देश परदेश घूमी जमात।
हेरोइन रही है, बर्तन मांज।
बीबी दिखाती मियां को आंख।
मुश्किल चैन से घर में सोना।
पाठ सिखाने आया कोरोना।
८
लॉक डाउन की विपत्ति बड़ी।
बढ़ती जा रही संकट की घडी।
जो जहाँ गया है वहीँ पर फंसा।
किससे कहे वह अपनी दशा।
ट्रेन का पहिया पटरी से उतरा,
वायुयान का पंख भी कतरा।
सड़कें खाली खाली दिख रहीं।
खनकती नहीं थाली दिख रही।
उदर की क्षुधा मिटाने के लिए,
एक पैकेट भोजन पाने के लिए,
घंटों कतार में खड़ा होना।
कितना और सताएगा कोरोना।
सड़कें खाली खाली दिख रहीं।
खनकती नहीं थाली दिख रही।
उदर की क्षुधा मिटाने के लिए,
एक पैकेट भोजन पाने के लिए,
घंटों कतार में खड़ा होना।
कितना और सताएगा कोरोना।
९
महामारी ने ऐसा जकड़ा है।
दबंग भी आज दुबका पड़ा है।
अपने सगों से संग है छूटा।
अपराधों का क्रम है टूटा।
लगता घोटाले बंद हो गए।
लोग धर्म के पाबंद हो गए।
भविष्य को लेकर डर रहा है।
महामारी ने ऐसा जकड़ा है।
दबंग भी आज दुबका पड़ा है।
अपने सगों से संग है छूटा।
अपराधों का क्रम है टूटा।
लगता घोटाले बंद हो गए।
लोग धर्म के पाबंद हो गए।
भविष्य को लेकर डर रहा है।
मजदूर पलायन कर रहा है।
धनी निर्धन की एक समस्या।
कैसे आये हाथ रुपय्या।
राजनीति का मगर खिलौना।
ढूंढती क्या कुछ देगा कोरोना।कैसे आये हाथ रुपय्या।
राजनीति का मगर खिलौना।
१०
मंदिर-मस्जिद पर लटके ताले हैं,
द्वार पर खड़े पुलिस वाले हैं।
न भक्त दिख रहे, न ही पुजारी।
गायब हो गए कहाँ भिखारी ?
न भोग लग रहा, न प्रसाद मिलता।
न अगरबत्ती, न फूल ही चढ़ता।
मायूस पड़े फल, फूल वाले।
द्वार पर खड़े पुलिस वाले हैं।
न भक्त दिख रहे, न ही पुजारी।
गायब हो गए कहाँ भिखारी ?
न भोग लग रहा, न प्रसाद मिलता।
न अगरबत्ती, न फूल ही चढ़ता।
मायूस पड़े फल, फूल वाले।
चढ़ावा के कबसे पड़े हैं लाले।
पूजा पाठ अब घर पर हो रहा।
बिन दर्शन, भक्त धैर्य खो रहा।
प्रभु! अब कोई उपाय करो ना।
दूर भगाओ भारत से कोरोना।११
आजकल नुस्खों की भरमार है।
क्या काम का? क्या बेकार है?
कोई अदरक, लहसन खिला रहा,
कोई हल्दी-दूध पिला रहा।
यज्ञ और हवन हो रहे हैं।
सैनिटाईज़ भवन हो रहे हैं।
पर वह भी बड़ा मायावी है,
कभी चांदनी, कभी धारावी है।
खड्ग चंडिका से मंगवाएंगे,
रक्तबीज का रक्त सुखाएँगे।
चाहे पड़े त्रिशूल चुभोना।
मार भगाएंगे हम कोरोना।
घनाक्षरी
करी करतूत चीन, गलतियां छुपाने हेतु,
सारे ही संसार का, ध्यान भटकायो है।
भेज कर सेना को, भारत की सीमा पास,
संख्या में ज्यादा का, धौंस दिखलायो है।
भारत बलवान को, गलवान में ललकार,
शांति प्रिय देश को बिना, बात उकसायो है।
भारत के सिपाही, ठहरे बलशाली, वीर,
चीनियों की रीढ़ तोड़, वापस पठायो है।
गरदन मरोड़ वीर, चीन को किये हैं पस्त,
किस भांति पचासों मरे, समझ ना आयो है।
दिया गीदड़ भभकी, भारत को नाना भांति
चीन पाकिस्तान को, संग में मिलायो है।
खड़े हैं भारत वीर, सीमा पर सीना तान,
चीन के मन भीतर भय, अतिशः समायो है।
स्वदेशी अभियान
लोकल को अपनाएंगे।
अच्छे दिन आ जायेंगे।
विदेशों से आयात घटेगा।
राष्ट्र का व्यापार बढ़ेगा।
तकनिकी विकास होगा।
जन धन का गबन थमेगा।
घरेलू उद्योगों को लगा,
आत्म निर्भर हो पाएंगे। अच्छे दिन ...
रोजगार का सृजन होगा।
स्वावलम्बी हर जन होगा।
अपनी संस्कृति में रह कर,
श्रमिक वर्ग प्रसन्न होगा।
उनके हितों की रक्षा हेतु,
श्रमिक कानून अपनाएंगे। अच्छे दिन ...
लघु कुटीर उद्योग खुलेंगे।
शांति से अपना काम करेंगे।
अंधी दौड़ के चक्कर से बच,
विदेशी कुचक्र में नहीं फसेंगे।
देशी वस्तुओं के प्रयोग का
जन जागरण जगायेंगे। अच्छे दिन ...
उद्योग गांव तक जाएगा।
नयी तकनीक सिखाएगा।
कारखाने होंगे गाँव गांव में,
सभी को संपन्न बनाएगा।
स्वदेशी के आंदोलन से अब,
विकास की रेल दौड़ाएंगे। अच्छे दिन ...
मजदूर चला है गांव
कामगार चला है अपने गांव।
मजदूर चला है अपने गांव।
पेट में भूख और नंगे पांव।मजदूर चला है अपने गांव।
श्रम से नहीं घबराया है वो।
अपना स्वेद बहाया है वो।
जिस शहर ने ठुकराया आज
जीवन दे के बनाया है वो।
इंसानों से इंसानों का दुराव।
मजदूर चला है अपने गांव।
चला जा रहा धरे पटरी वो।
धूप में भी न धरे छतरी वो।
जन्मभूमि की ओर चला है,
सिर पर धरे हुए गठरी वो।
जन्मभूमि की ओर चला है,
सिर पर धरे हुए गठरी वो।
नहीं है सिर पर कोई छाँव।
मजदूर चला है अपने गांव।
ना तो पास खाने को है।
ना ही साधन जाने को है।
परदेश में पड़ा कष्ट में,
ना कोई सहलाने को है।
एस. डी. तिवारी
क्रमशः ... २
ना ही साधन जाने को है।
परदेश में पड़ा कष्ट में,
ना कोई सहलाने को है।
किस्मत ने खेला कैसा दांव।
मजदूर चला है अपने गांव।
एस. डी. तिवारी
क्रमशः ... २
2
मजदूर चला है अपने गांव।
पेट में भूख और नंगे पांव।मजदूर चला है अपने गांव।
मंजिल हजारों मील है दूर।
पैदल चलने को वो मजबूर।
बस, गाड़ी 'लॉक डाउन' में बंद,
वह थक कर हो गया है चूर।
पांवों में छाले, तन पे ताप।
मजदूर चला है अपने गांव।
सडकों पर कुचला जा रहा।
मौसम में मसला जा रहा।
कष्ट का पहाड़ इतना बड़ा,
हौसला भी फिसला जा रहा।
हौसला भी फिसला जा रहा।
कैसे करेगा ऐसे में बचाव।
मजदूर चला है अपने गांव।
कोई रिक्शा या साइकिल पर,
मजदूर चला है अपने गांव।
कोई बैसाखी सहारे चलकर,
लिए जा रहा सामान सिर पर,
लिए जा रहा सामान सिर पर,
बच्चे, बूढ़े का बोझ कंधे पर।
मन ढोये जा रहा गहरे घाव।
मजदूर चला है अपने गांव।
- एस. डी. तिवारी
क्रमशः - ३
क्रमशः ... ३
मजदूर चला है अपने गांव।
- एस. डी. तिवारी
क्रमशः - ३
क्रमशः ... ३
राह में हुआ न कोई सहारा।
पुलिस ने भी डंडा ही मारा।
सिर पर है गठरी का बोझ,
चला जा रहा जीवन से हारा।
शासन का न अच्छा बर्ताव।
मजदूर चला है अपने गांव।
अभी राशन का बकाया देना।
मित्रों से उधार उठाया देना।
आमदनी का कहीं ना नांव।
मजदूर चला है अपने गांव।
खाली हाथ वो आया था।
कर्म का धर्म निभाया था।
यहीं पर सब खा पी गया,
जो थोड़ा बहुत कमाया था।
अब पार लगेगी कैसे नाव।
मजदूर चला है अपने गांव।
एस. डी. तिवारी
सब कुछ मिल रहा, तस्वीरों में
सच कहाँ इनकी तकदीरों में।
इस देश में नहीं है श्रम का भाव।
कामगार चल दिया अपने गांव।
- एस. डी. तिवारी
जमाव बहाव स्वाभाव रिसाव
यहीं पर सब खा पी गया,
जो थोड़ा बहुत कमाया था।
अब पार लगेगी कैसे नाव।
मजदूर चला है अपने गांव।
एस. डी. तिवारी
भोजन मिल रहा, घर मिल रहा,
टी. वी. पर ही मगर मिल रहा।सब कुछ मिल रहा, तस्वीरों में
सच कहाँ इनकी तकदीरों में।
इस देश में नहीं है श्रम का भाव।
कामगार चल दिया अपने गांव।
- एस. डी. तिवारी
श्रम से उसका नाता है
श्रम ही भाग्य विधाता है
श्रम में स्वेद बहाता है।
आज पड़ा अपने हाल,
जो राष्ट्र का निर्माता है।
फिर भी क्यों मजबूर है।
वह भारत का मजदूर है।
एकाध नहीं, हजार मील।
छोड़ आया अपना नीड़।
कमा लेगा यहाँ पे कुछ,
कम होगी थोड़ी पीड़।
उसकी मंजिल बहुत दूर है।
वह भारत का मजदूर है।
न घर बार, न ही नोट था।
पास में बस एक वोट था।
दे दिया वो भी जालिमों को,
भाग्य का ही सब खोट था।
भाग्य भी उसका क्रूर है
ना तो पास खाने को है।
ना ही साधन जाने को है।
परदेश में पड़ा कष्ट में,
ना कोई सहलाने को है।
राह में थक कर के चूर है।
वह भारत का मजदूर है।
मजदूर
चला जा रहा धर पटरी वो।
छाँव रखे ना ही छतरी वो।
जन्मभूमि की ओर चला है,
उठाये हुए सिर गठरी वो।
पैदल चलने को मजबूर है।
वो भारत का मजदूर है।
पड़ गए पांव में छाले हैं,
पर गांव जाने की ठाने है,
मातृ भूमि की याद आयी,
बचपन की यादें पाले है।
गांव की माटी का नूर है।
वह भारत का मजदूर है।
भूख लेकर गया वो घर से।
आपदा ने धकेला शहर से।
सरकार वहां भी है तो क्या !
कराह रहा झुकी कमर से।
सांत्वना भी कोसों दूर है।
वह भारत का मजदूर है।
पग पग पर है शोषण उसका।
समुचित नहीं है पोषण उसका।
औरों के लिए स्वेद बहाता,
कष्ट में होता क्षण क्षण उसका।
हराम नहीं उसे मंजूर है।
वह भारत का मजदूर है।
समुचित नहीं है पोषण उसका।
औरों के लिए स्वेद बहाता,
कष्ट में होता क्षण क्षण उसका।
हराम नहीं उसे मंजूर है।
वह भारत का मजदूर है।
एस. डी. तिवारी
मगरूर गुरुर निष्ठुर भरपूर
मेरे भारत देश की, अजब गजब की रीति।
जहाँ रखती स्थान बड़ा, भूख से राजनीति।
ग्यारह हजार कोटि का, बजट भोज का पास।
श्रमिक फिर क्यों भटक रहा, धारे भूख व प्यास ?
एस. डी. तिवारी
बबुआ क बतकही
काकी पुछलस काका से
अपनी वीर बांका से
सुनात बानी किरौना आइल बा
सागरी दुनिया ओसे डेराइल बा
कल कारखाना बंद हो गईल
छोट पर खेलत रहलीं जा
किरौना के
नोकरिहा परात बानन
पैसा बँटात बा
शहर चलल बा गांव की ओर
मुंह पर घुंघटा कराइ
चीन से चलल बे
कैलाश पर्वत पर शिव बाबा रोक देहलन
ई ससुरा घूम के यूरोप पड़े आयिल बा
नटयिये धरत बा
घरे में रहीहे
केहू से न बोलिहे बतिययिहे
दारु की पंक्ति
लोग अपना रोग छुपा रहे,
अस्पताल जाने पर कोरोना बता रहे।
जाँच करने गलियों में जा रहे,
डॉक्टर नर्स पत्थर खा रहे।
कोविड कांड - १६
चोर बंद लॉक डाउन में,
झपट्टे वाले खाने की लाइन में,
बिन मास्क हत्थे मजदूर चढ़ा,
मुस्तैदी से पुलिस ने पकड़ा,
दस्ताने पहने हाथों में जकड़ा,
दो सौ सत्तर का इल्जाम मढ़ा,
'तू ऐसे घूम रहा है?
कोरोना वायरस झूम रहा है।'
'साब आपको कोरोना की पड़ी है।
मेरे लिए तो भूख बड़ी है।'
एस. डी. तिवारी
१२
कोरोना कब जायेगा गुरु ?
तीसरा लॉक-डाउन शुरू ।
१७
इस
कोरोना
के पीछे हुई,
देश की बंदी में;
डूबे हैं हम मंदी में।
पर स्वच्छ हर नदी है;
स्वच्छ सम्पूर्ण धरती है।
घन प्रसन्न देखते ही बनते,
कभी थे हमसे दूर दूर ही रहते।
जो दिल्ली आने में संकुचाते थे,
नीला आकाश, धुएं से भरा पाते थे,
अब आने में तनिक ना मुंह बिचकाते;
मई के महीने में भी वे, ख़ुशी से आ जाते।
मैं तो कहूंगा, इस प्रकार की बंदी हर वर्ष हो।
पंद्रह दिनों के लिए ये देश और दुनिया बंद हो।
- एस. डी. तिवारी
**
कई पुण्य कमाएंगे,
कई मालामाल हो जायेंगे।
कोई मुनाफाखोरी करेगा,
कोई जमाखोरी से तिजोरी भरेगा।
गबन होगा, घोटाले होंगे
माल गटकने वाले होंगे।
एस. डी. तिवारी
****
मरेगा कोरोना - गीत
कोरोना तनहा हो के मरेगा।
वो पड़ा अकेला रो के मरेगा।
संपर्क में उसके ना आएंगे।
सैनिटाइजर प्रयोग में लाएंगे।
हाथ अच्छे से धो के मरेगा।
कोरोना तनहा हो के मरेगा।
स्वच्छता का रखेंगे आचार।
उसे मिले ना उसका आहार।
भूख से बेबस हो के मरेगा।
कोरोना तनहा हो के मरेगा।
जनता कर्फ्यू लगाएंगे हम।
कड़ियाँ तोड़ तड़पाएँगे हम।
ताकत अपनी खो के मरेगा।
कोरोना तनहा हो के मरेगा।
एस डी तिवारी
कोरोना की बजा दिया
कोरोना की लंका बजा दिया।
भगाने का डंका बजा दिया।
माना तू बलवान बहुत है,
हम भी तो सावधान बहुत हैं।
शंख और घंटा बजा दिया।
भगाने का डंका बजा दिया।
ताली बजाया, थाली बजाया,
चम्मच से कटोरी खाली बजाया,
द्वार, बाल्कनी, छत पे बजाया,
कोई खड़े, कोई बैठे बजाया।
कोई पटक, डंडा बजा दिया।
भगाने का डंका बजा दिया।
साधु, संत, योगी ने बजाया,
अफसर, नेता विरोधी ने बजाया।
श्रमिक, किसान, जन-गण मिल,
घर अपने मोदी ने बजाया।
पुजारी और पंडा बजा दिया।
भगाने का डंका बजा दिया।
काशी, मथुरा, हरिद्वार बजाया,
जयपुर, रायपुर, भोपाल बजाया।
दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कलकत्ता,
जम्मू, नासिक, इम्फाल बजाया।
गुलबर्गा, दरभंगा बजा दिया।
भगाने का डंका बजा दिया।
एस डी तिवारी
अपील
मत छोड़ के जा पंछी, की ये देश नहीं बेगाना।
रोयेगी वो डाली निस दिन, जिस पर तेरा बसेरा था।
खुले अम्बर में रहकर भी, औरों का बनाया डेरा था।
संवारने में इस मिट्टी को, अर्पित जीवन तेरा था।
पसीना बहाया इस धरती पर, जीवन यहीं बिता ना! मत छोड़ के ..
तूने ईंटें पत्थर गढ़कर, नगरी है ये बनायी।
बारिस में यहाँ भीगा तू, गर्मी भी तुझे सतायी।
गम न कर जो तेरी मेहनत, तेरे काम न आयी।
तू मजदूर, बनाया तूने, बहुतों का है ठिकाना। मत छोड़ के ..
डोलेगी हवा भी यहाँ की, आँखों में लेकर पानी।
दुखाएगी बहुतों का दिल, किया जो तूने नादानी।
लिखने वाला कौन है तेरी, दुःख से भरी कहानी।
आज नहीं तो कल अखरेगा, तेरा छोड़ के जाना। मत छोड़ के ..
- एस. डी. तिवारी
दूरी का नियम निभाएंगे हम।
निजात कोरोना से पाएंगे हम।
राक्षस बड़े मिटाये धरती से,
कोरोना को भी मिटायेंगे हम।
आया बन असुर कोरोना, आदमखोर
सारी दुनिया को डाला है झकझोर
दैत्य, पिशाच या कि डायन है कोई
ग्रास बनाता सामने आता जो कोई
इंसान खा रहा, सब काम खा रहा
कल-कारखाने भी तमाम खा रहा
करना तुम्हारी लापरवाही।
उसकी करेगी मन की चाही।
रह जाओगे देते ही दुहाई।
फिर कहीं नहीं सुनवाई है।
बाहर न आना जाना होगा।
घर में हरि गुण गाना होगा।
कोरोना को हराना होगा।
सूझ बूझ इसकी दवाई है।
- एस. डी. तिवारी
बहुत हो चुका, मार नहीं अब खाएंगे।
फेंकोगे तुम पत्थर, उठा के ले आएंगे।
उन पत्थरों को जोड़ कर दिवार बनेगी,
तुम्हारे लिए जेल जानदार बनायेगे।
पचास हजार पाते या सरकारी पेंशन खाते, दरोगा जी !
ये बाहर न आते, घर में आराम फरमाते, दरोगा जी !
ये ही श्रमिक सड़क बनाते, पर इनको राह न मिलती,
ये परिश्रम करते हैं, तभी हम मौज उड़ाते, दरोगा जी !
मेरे भारत देश की, अजब गजब की रीति।
जहाँ रखती स्थान बड़ा, भूख से राजनीति।
ग्यारह हजार कोटि का, बजट भोज का पास।
श्रमिक फिर क्यों भटक रहा, धारे भूख व प्यास ?
एस. डी. तिवारी
बबुआ क बतकही
काकी पुछलस काका से
अपनी वीर बांका से
सुनात बानी किरौना आइल बा
सागरी दुनिया ओसे डेराइल बा
कल कारखाना बंद हो गईल
छोट पर खेलत रहलीं जा
किरौना के
नोकरिहा परात बानन
पैसा बँटात बा
शहर चलल बा गांव की ओर
मुंह पर घुंघटा कराइ
चीन से चलल बे
कैलाश पर्वत पर शिव बाबा रोक देहलन
ई ससुरा घूम के यूरोप पड़े आयिल बा
नटयिये धरत बा
घरे में रहीहे
केहू से न बोलिहे बतिययिहे
कितने त्रस्त
पत्नी से ये बतातीदारु की पंक्ति
एस. डी. तिवारी
२
२
मस्ती करने निकला बंदा,
पीछे से पड़ा पुलिस का डंडा।
निकले जब मरकज से जमाती,
पुलिस की होश उड़ा दी।
इक्कीस दिन का क्वारंटाइन डे।
न फसाद का लफड़ा है,
ना ही गली में चोर का शोर,
फैली है शांति चारों ओर,
न छेड़ा कोई लड़की है,
ना नेता की झिड़की है,
न ही वी. आई. पी. का दौरा है,
जुटा रही क्या व्यौरा है ?
पुलिस का रथ क्यों रूका है?
शायद किसी ने थूका है।
- एस. डी. तिवारी
१०पीछे से पड़ा पुलिस का डंडा।
मस्जिद से निकले नमाजी,
पुलिस ने लाठियां भांजी।निकले जब मरकज से जमाती,
पुलिस की होश उड़ा दी।
१३ अ
एक दिन का मनाया वैलेंटाइन डे,इक्कीस दिन का क्वारंटाइन डे।
***
'मेरा करन आएगा, कोरोना को भगाएगा।'
माँ कहती रह गयी, और क्वारंटाइन हो गयी।'मेरा करन आएगा, कोरोना को भगाएगा।'
***
पुलिस कहीं मुर्गा बना रही, कहीं रोटी बाँट रही है।
***
अलकोहल भी मरा, हाथ की सफाई कर रहा,
कितने तरस रहे, भीतर नहीं उतर रहा।
बाल बढ़ गए
नाइ की दुकान बंद है
१५
बाजार बंद हैं, व्यापार बंद है,
लॉक डाउन में कारोबार बंद है।
तिजोरी रोजाना खाली हो रही,
घर में दुकानदार बंद है।
कमाने का आधार बंद है,
दूधवाले का उधार बंद है।
लगता धन की कमी हो गयी,
बड़े मंत्री का प्रचार बंद है।
पापा की कार बंद है,
आने जाने की दरकार बंद है,
कॉलेज बंद, पढ़ाई बंद है,
गर्ल फ्रेंड से प्यार बंद है।
शादी व्याह में बारात बंद है,
विधिवत मंत्रोचार बंद है।
मास्क लगाकर हनीमून,
चुम्बन का संस्कार बंद है।
एस. डी. तिवारी
कोविद कांड १८
सब कुछ बदला बदला सा है,
स्वच्छ गगन, पवन मचला सा है।
थाली बजाया, दीया जलाया,
वो नमकहराम और मुंह बाया।
कल जो बर्फ का पहाड़ था,
आज हॉट स्पॉट है।
कल फाइव स्टार होटल था,
आज कोरोना अस्पताल है।
रोगी को पकड़ पुलिस ले जाती,
जैसे हो कोई बड़ा अपराधी।
लॉक डाउन की बात नहीं मानी,
बेटा अब झेल तू कालापानी।
१९
कोविद कांड १४
न कोई लड़ाई, न झगड़ा है,पुलिस कहीं मुर्गा बना रही, कहीं रोटी बाँट रही है।
कहीं पर पूड़ी तल रही, कहीं सोटी भांज रही है।
***
***
नेता जी आये, भोजन का पैकेट लाये,
दो चार गरीब को देकर फोटो खिंचवाए।***
अलकोहल भी मरा, हाथ की सफाई कर रहा,
कितने तरस रहे, भीतर नहीं उतर रहा।
***
पशु शांति पाकर खैर कर रहे,
आजकल शहरों की सैर कर रहे।
पशु शांति पाकर खैर कर रहे,
आजकल शहरों की सैर कर रहे।
***
कूरियर से पैकेट आया, मुफ्त कोरोना लाया।
बीबी गयी अस्पताल, मियां को कैद में डाल।
***
बाल बढ़ गए
नाइ की दुकान बंद है
१५
बाजार बंद हैं, व्यापार बंद है,
लॉक डाउन में कारोबार बंद है।
तिजोरी रोजाना खाली हो रही,
घर में दुकानदार बंद है।
कमाने का आधार बंद है,
दूधवाले का उधार बंद है।
लगता धन की कमी हो गयी,
बड़े मंत्री का प्रचार बंद है।
पापा की कार बंद है,
आने जाने की दरकार बंद है,
कॉलेज बंद, पढ़ाई बंद है,
गर्ल फ्रेंड से प्यार बंद है।
शादी व्याह में बारात बंद है,
विधिवत मंत्रोचार बंद है।
मास्क लगाकर हनीमून,
चुम्बन का संस्कार बंद है।
एस. डी. तिवारी
कोविद कांड १८
सब कुछ बदला बदला सा है,
स्वच्छ गगन, पवन मचला सा है।
थाली बजाया, दीया जलाया,
वो नमकहराम और मुंह बाया।
कल जो बर्फ का पहाड़ था,
आज हॉट स्पॉट है।
कल फाइव स्टार होटल था,
आज कोरोना अस्पताल है।
रोगी को पकड़ पुलिस ले जाती,
जैसे हो कोई बड़ा अपराधी।
लॉक डाउन की बात नहीं मानी,
बेटा अब झेल तू कालापानी।
१९
छिड़काव किया, हाथ भी धोया,
मास्क लगाकर, घर में सोया।
आंख गड़ाए दो माह हो गए।
रोजाना टी. वी. पर केस नए।
बहुतों की जेब खाली हो गयी।
पतलून ढीली ढाली हो गयी।
अब तो सब्र का बांध टूट रहा।
भय में सभी, आक्रोश फूट रहा।
इतना भी प्रभु! जुल्म न ढाओ।
चक्र उठाओ, त्रिशूल चलाओ।
चाहे लाकर ब्रह्मास्त्र चलाओ।
कोरोना को अब मार भगाओ।
आंख गड़ाए दो माह हो गए।
रोजाना टी. वी. पर केस नए।
बहुतों की जेब खाली हो गयी।
पतलून ढीली ढाली हो गयी।
अब तो सब्र का बांध टूट रहा।
भय में सभी, आक्रोश फूट रहा।
इतना भी प्रभु! जुल्म न ढाओ।
चक्र उठाओ, त्रिशूल चलाओ।
चाहे लाकर ब्रह्मास्त्र चलाओ।
कोरोना को अब मार भगाओ।
न फसाद का लफड़ा है,
ना ही गली में चोर का शोर,
फैली है शांति चारों ओर,
न छेड़ा कोई लड़की है,
ना नेता की झिड़की है,
न ही वी. आई. पी. का दौरा है,
जुटा रही क्या व्यौरा है ?
पुलिस का रथ क्यों रूका है?
शायद किसी ने थूका है।
- एस. डी. तिवारी
लोग अपना रोग छुपा रहे,
अस्पताल जाने पर कोरोना बता रहे।
जाँच करने गलियों में जा रहे,
डॉक्टर नर्स पत्थर खा रहे।
चोर बंद लॉक डाउन में,
झपट्टे वाले खाने की लाइन में,
बिन मास्क हत्थे मजदूर चढ़ा,
मुस्तैदी से पुलिस ने पकड़ा,
दस्ताने पहने हाथों में जकड़ा,
दो सौ सत्तर का इल्जाम मढ़ा,
'तू ऐसे घूम रहा है?
कोरोना वायरस झूम रहा है।'
'साब आपको कोरोना की पड़ी है।
मेरे लिए तो भूख बड़ी है।'
एस. डी. तिवारी
१२
वह
वैसे तो
रोजाना ही
यहीं पे रहता है,
घूप छाँव सहता है,
इस पटरी का राजा है;
न लॉक है, न दरवाजा है;
जानता है ये बड़ी महामारी है;
उस बेचारे की मगर लाचारी है।
आखिर वो बंद करे तो क्या करे?
कहाँ जाए? यहाँ पर पुलिस के पहरे।
अब तो कोई यहाँ आता है ना जाता है,
दूर-दूर तक दिखता, नहीं कोई भी दाता है।
वह जनता है, फिर वापस हाथ नहीं आएगी।
हट गया तो ये जमीन तले से खिसक जाएगी।
डर तो पहले ही मर चुका, अब वह किससे डरेगा?
कोरोना भी क्या बिगाड़ेगा? एक दिन अपने मरेगा।
- एस. डी. तिवारी
कोरोना कब जायेगा गुरु ?
तीसरा लॉक-डाउन शुरू ।
१७
कोरोना
के पीछे हुई,
देश की बंदी में;
डूबे हैं हम मंदी में।
पर स्वच्छ हर नदी है;
स्वच्छ सम्पूर्ण धरती है।
घन प्रसन्न देखते ही बनते,
कभी थे हमसे दूर दूर ही रहते।
जो दिल्ली आने में संकुचाते थे,
नीला आकाश, धुएं से भरा पाते थे,
अब आने में तनिक ना मुंह बिचकाते;
मई के महीने में भी वे, ख़ुशी से आ जाते।
मैं तो कहूंगा, इस प्रकार की बंदी हर वर्ष हो।
पंद्रह दिनों के लिए ये देश और दुनिया बंद हो।
- एस. डी. तिवारी
कई पुण्य कमाएंगे,
कई मालामाल हो जायेंगे।
कोई मुनाफाखोरी करेगा,
कोई जमाखोरी से तिजोरी भरेगा।
गबन होगा, घोटाले होंगे
माल गटकने वाले होंगे।
जब लॉक डाउन खुलेगा,
सब कुछ फिर वैसे ही चलेगा।
सब कुछ फिर वैसे ही चलेगा।
****
मरेगा कोरोना - गीत
कोरोना तनहा हो के मरेगा।
वो पड़ा अकेला रो के मरेगा।
संपर्क में उसके ना आएंगे।
सैनिटाइजर प्रयोग में लाएंगे।
हाथ अच्छे से धो के मरेगा।
कोरोना तनहा हो के मरेगा।
स्वच्छता का रखेंगे आचार।
उसे मिले ना उसका आहार।
भूख से बेबस हो के मरेगा।
कोरोना तनहा हो के मरेगा।
जनता कर्फ्यू लगाएंगे हम।
कड़ियाँ तोड़ तड़पाएँगे हम।
ताकत अपनी खो के मरेगा।
कोरोना तनहा हो के मरेगा।
एस डी तिवारी
कोरोना की बजा दिया
कोरोना की लंका बजा दिया।
भगाने का डंका बजा दिया।
माना तू बलवान बहुत है,
हम भी तो सावधान बहुत हैं।
शंख और घंटा बजा दिया।
भगाने का डंका बजा दिया।
ताली बजाया, थाली बजाया,
चम्मच से कटोरी खाली बजाया,
द्वार, बाल्कनी, छत पे बजाया,
कोई खड़े, कोई बैठे बजाया।
कोई पटक, डंडा बजा दिया।
भगाने का डंका बजा दिया।
साधु, संत, योगी ने बजाया,
अफसर, नेता विरोधी ने बजाया।
श्रमिक, किसान, जन-गण मिल,
घर अपने मोदी ने बजाया।
पुजारी और पंडा बजा दिया।
भगाने का डंका बजा दिया।
काशी, मथुरा, हरिद्वार बजाया,
जयपुर, रायपुर, भोपाल बजाया।
दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कलकत्ता,
जम्मू, नासिक, इम्फाल बजाया।
गुलबर्गा, दरभंगा बजा दिया।
भगाने का डंका बजा दिया।
एस डी तिवारी
अपील
मत छोड़ के जा पंछी, की ये देश नहीं बेगाना।
आयी समस्या मिट जानी, थोड़े दिन का कोरोना।
खुले अम्बर में रहकर भी, औरों का बनाया डेरा था।
संवारने में इस मिट्टी को, अर्पित जीवन तेरा था।
पसीना बहाया इस धरती पर, जीवन यहीं बिता ना! मत छोड़ के ..
बारिस में यहाँ भीगा तू, गर्मी भी तुझे सतायी।
गम न कर जो तेरी मेहनत, तेरे काम न आयी।
तू मजदूर, बनाया तूने, बहुतों का है ठिकाना। मत छोड़ के ..
डोलेगी हवा भी यहाँ की, आँखों में लेकर पानी।
दुखाएगी बहुतों का दिल, किया जो तूने नादानी।
लिखने वाला कौन है तेरी, दुःख से भरी कहानी।
आज नहीं तो कल अखरेगा, तेरा छोड़ के जाना। मत छोड़ के ..
- एस. डी. तिवारी
दूरी का नियम निभाएंगे हम।
निजात कोरोना से पाएंगे हम।
बनकर आया दानव, कोरोना।
मिलकर के दूर भगाएंगे हम।
मानव सम्पर्क से फैलता दुष्ट,
ना कहीं पे भीड़ लगाएंगे हम.
सांसों के द्वारा तन में घुसता,
मुंह पर मास्क लगाएंगे हम।
मानव तन ही इसका वाहक,
नित धोकर दूर बहाएंगे हम।
बचाव ही है, बचने का उपाय,
समझ कर कदम उठाएंगे हम।राक्षस बड़े मिटाये धरती से,
कोरोना को भी मिटायेंगे हम।
- एस. डी. तिवारी
भाग कोरोना
भगाना गर कोरोना, करना है ये पांच ।
खांसी, बुखार हो अगर, तुरत कराओ जाँच।
हाथ धोना भली तरह, रहो भीड़ से दूर।
जाना कहीं आवश्यक, धरो मास्क जरूर।
उठा लेना बालक को, देता अति आमोद।
किसी दूजे के शिशु को, नहीं उठाना गोद।
एस डी तिवारी
भाग कोरोना
भगाना गर कोरोना, करना है ये पांच ।
खांसी, बुखार हो अगर, तुरत कराओ जाँच।
हाथ धोना भली तरह, रहो भीड़ से दूर।
जाना कहीं आवश्यक, धरो मास्क जरूर।
उठा लेना बालक को, देता अति आमोद।
किसी दूजे के शिशु को, नहीं उठाना गोद।
एस डी तिवारी
सारी दुनिया को डाला है झकझोर
दैत्य, पिशाच या कि डायन है कोई
ग्रास बनाता सामने आता जो कोई
इंसान खा रहा, सब काम खा रहा
कल-कारखाने भी तमाम खा रहा
पसंद इसे न फल फूल, न कोई ढोर
आया बन असुर कोरोना, आदमखोर
पुलिस पा गयी है अवसर
डंडा भांजने का सड़क पर
भीड़ भाड़ रहा कहीं न जोर
काल से छिड़ी लड़ाई
दुनिया पे आफत आयी है।
काल से छिड़ी लड़ाई है।
सबके मन में फैला है डर।
जेल बना दिया खुद का घर।
चिंघाड़ मारता चौखट पर।
ये कोरोना आततायी है।
दानव बहुत बड़ा कोरोना।
घेरा जग का कोना कोना।
रहा काम बस हाथ धोना।
कुटुंब में रह तन्हाई है।
किया इसने व्यापार ठप्प।
खेती-बारी, कारोबार ठप्प।
मिलना-जुलना, प्यार ठप्प।
बच्चों की ठप्प पढ़ाई है।
किसी बड़े दैत्य का पूत है।
ये यमराज का यम-दूत है।
माया की कैसी करतूत है।
अब तक का बड़ा कसाई है।
डंडा भांजने का सड़क पर
शहर चल दिया गांव की ओर
काल से छिड़ी लड़ाई
काल से छिड़ी लड़ाई है।
जेल बना दिया खुद का घर।
चिंघाड़ मारता चौखट पर।
ये कोरोना आततायी है।
दानव बहुत बड़ा कोरोना।
घेरा जग का कोना कोना।
रहा काम बस हाथ धोना।
कुटुंब में रह तन्हाई है।
किया इसने व्यापार ठप्प।
खेती-बारी, कारोबार ठप्प।
मिलना-जुलना, प्यार ठप्प।
बच्चों की ठप्प पढ़ाई है।
किसी बड़े दैत्य का पूत है।
ये यमराज का यम-दूत है।
माया की कैसी करतूत है।
अब तक का बड़ा कसाई है।
करना तुम्हारी लापरवाही।
उसकी करेगी मन की चाही।
रह जाओगे देते ही दुहाई।
फिर कहीं नहीं सुनवाई है।
बाहर न आना जाना होगा।
घर में हरि गुण गाना होगा।
कोरोना को हराना होगा।
सूझ बूझ इसकी दवाई है।
- एस. डी. तिवारी
फेंकोगे तुम पत्थर, उठा के ले आएंगे।
उन पत्थरों को जोड़ कर दिवार बनेगी,
तुम्हारे लिए जेल जानदार बनायेगे।
दुनिया पर आफत आइल बा।
काल से छिड़ल लड़ाई बा।
राक्षस बहुत बड़ा कोरोना।
घेरले जग क कोना कोना।
सबकी मन में पइसल डर।
जेल बनल बा अपने घर।
अदमी के ई छुअते धरत बा।
जैसे कउनो भूत उतरल बा।
जान पर बा बनल कोरोना।
दुनिया पर संकट पड़ल बा।
सारी दुनिया देत दुहाई बा। काल से
आवल जाईल छूटल सबकर।
शादी वियाह रुकल सबकर।
बंद हो गईल बस अउर गाड़ी।
बंद सकल दफ्तर सरकारी।
छुट्टी ले के रोटी पकावत।
नौकरी से घर नईखे आवत।
कर्फ्यू में फसल बा पियवा।
मुश्किल में पड़ल बा जियवा।
गोरिया के डसत तन्हाई बा। काल से
एस. डी. तिवारी
कोरोना कोरोना कइके बनला बा डरौना
थरिया बजवलीन ताली बजवालीन
नौ बजे नौ ठो दिया जरवलीन
डर केतना बड़ बा छोटी मुट्ठी किरौना
दुनिया के त्रस्त कइले, पुलिस के भ्रष्ट कइले
टोना
भगवती क मनौना
दबंग रंगदार सबे धइले बा कोना
सूखा देबों घामे हम बनाय के सुखौना
********
मई में वियाह धराइल, लइका गुजरात बा।
मेल्हत बाटे गउवाँ सगरे, जायेके बरात बा। मई में ...
'लॉक डाउन' लागल बाटे, कीने के सामान बा।
कइसे दुलहा घरे अइहें, सबहि परेशान बा।
अइसन में वियाह होइ, नईखे ई हालात बा। मई में ...
महीनन क दिन धइल, नगिचे आ गईल बाटे।
घर वालन क तैयारी, चौपट कुल भईल बाटे।
बैंड, बैंक्वेट क बुकिंग, कैंसिल होखे जात बा। मई में ...
मास्क पहिर के हर्दी लागी, दू गज की दूरी से!
टरले में एके बढ़िया बा, अइसन मजबूरी से।
लॉकडाउन खुल्ले क ढंग, अबहीं न बुझात बा। मई में ...
बुताइल बाटे फूलझड़ी, नयी जोड़ी की मन क।
फोनवे से काम चली, सजनी अउर साजन क।
दुनूं की विरहअ का घडी, जल्दी न ओरात बा। मई में ...
********
नौकरिहा लोग चलल बानं, पैदल गुजरात से
भूखल प्यासल परल बानं, कई दिन रात से
****
पांवों में छाले, तन पे ताप।
मित्रों से उधार उठाया देना।
आमदनी क नांव नाहीं
काल से छिड़ल लड़ाई बा।
राक्षस बहुत बड़ा कोरोना।
घेरले जग क कोना कोना।
सबकी मन में पइसल डर।
जेल बनल बा अपने घर।
कलियुग क एगो कसाई बा। काल से
जैसे कउनो भूत उतरल बा।
जान पर बा बनल कोरोना।
दुनिया पर संकट पड़ल बा।
सारी दुनिया देत दुहाई बा। काल से
आवल जाईल छूटल सबकर।
शादी वियाह रुकल सबकर।
बंद हो गईल बस अउर गाड़ी।
बंद सकल दफ्तर सरकारी।
कतहुँ नईखे सुनवाई बा । काल से
नौकरी से घर नईखे आवत।
कर्फ्यू में फसल बा पियवा।
मुश्किल में पड़ल बा जियवा।
गोरिया के डसत तन्हाई बा। काल से
एस. डी. तिवारी
कोरोना कोरोना कइके बनला बा डरौना
थरिया बजवलीन ताली बजवालीन
नौ बजे नौ ठो दिया जरवलीन
डर केतना बड़ बा छोटी मुट्ठी किरौना
दुनिया के त्रस्त कइले, पुलिस के भ्रष्ट कइले
टोना
भगवती क मनौना
दबंग रंगदार सबे धइले बा कोना
सूखा देबों घामे हम बनाय के सुखौना
********
मई में वियाह धराइल, लइका गुजरात बा।
मेल्हत बाटे गउवाँ सगरे, जायेके बरात बा। मई में ...
'लॉक डाउन' लागल बाटे, कीने के सामान बा।
कइसे दुलहा घरे अइहें, सबहि परेशान बा।
अइसन में वियाह होइ, नईखे ई हालात बा। मई में ...
महीनन क दिन धइल, नगिचे आ गईल बाटे।
घर वालन क तैयारी, चौपट कुल भईल बाटे।
बैंड, बैंक्वेट क बुकिंग, कैंसिल होखे जात बा। मई में ...
मास्क पहिर के हर्दी लागी, दू गज की दूरी से!
टरले में एके बढ़िया बा, अइसन मजबूरी से।
लॉकडाउन खुल्ले क ढंग, अबहीं न बुझात बा। मई में ...
बुताइल बाटे फूलझड़ी, नयी जोड़ी की मन क।
फोनवे से काम चली, सजनी अउर साजन क।
दुनूं की विरहअ का घडी, जल्दी न ओरात बा। मई में ...
********
आयिल ई कइसन बेमारी हो, सकते में बा जियरा।
घेरले बा सबके लाचारी हो, सकते में बा जियरा।
जे जहाँ गईल बा, ओईजहें फँसल बा,
बस, रिक्शा, ना कउनो गाडी चलत बा।
कोरोना क मार बड़ भारी हो, सकते में बा जियरा।
हाथ हम धोवलीन, थरिया बजवालीन,
सबही की संगे, नौ ठो दीया जरवलीन।
थमल ना ई महामारी हो, सकते में बा जियरा।
घेरले बा सबके लाचारी हो, सकते में बा जियरा।
जे जहाँ गईल बा, ओईजहें फँसल बा,
बस, रिक्शा, ना कउनो गाडी चलत बा।
कोरोना क मार बड़ भारी हो, सकते में बा जियरा।
हाथ हम धोवलीन, थरिया बजवालीन,
सबही की संगे, नौ ठो दीया जरवलीन।
थमल ना ई महामारी हो, सकते में बा जियरा।
राशन ओराईल, कुल पैसा ओराईल,
'लॉक डाउन' में बंद, मन घबराईल,
'लॉक डाउन' में बंद, मन घबराईल,
आवे दा पईसा सरकारी हो, सकते में बा जियरा।
भस्मासुर क, ई त पूत बनल बा,
यमराज क कउनो, दूत बनल बा।
अब तू ही बचावा त्रिपुरारी हो, सकते में बा जियरा।
नौकरिहा लोग चलल बानं, पैदल गुजरात से
भूखल प्यासल परल बानं, कई दिन रात से
गोड़वा में जूता नाहीं, चले क बा बूता नाहीं
घमवे में चल देहलन, सिर पर सूता नाहीं
खाये पिए की दिक्कत में सबहि परात बा
चल देहलन पटरी धइले, माथे गठरी धइले
हिम्मत त टूट गईल, किस्मतो रूठ गईल,
जमात से
बात से
कोरोना की जात से
उत्पात से
*****घमवे में चल देहलन, सिर पर सूता नाहीं
खाये पिए की दिक्कत में सबहि परात बा
चल देहलन पटरी धइले, माथे गठरी धइले
चार छः गो रोटी ले के, समान सगरी धइले
हिम्मत त टूट गईल, किस्मतो रूठ गईल,
मेहनत क इनाम ई, काम धाम छूट गईल
बात से
कोरोना की जात से
उत्पात से
ना त लग्गे खाये के बा, ना साधन जाए के बा।
परदेश में रहके बाबू, अब खाली पछतायेके बा।
परदेश में बाटे बहुत कष्ट, हम का करीं ए हजूर,
ठहरलीन मजदूर।
बँटल पईसा सरकारी, हमार खाता बाटे खाली।
शहर छोड़वलस हम्में 'लॉक डाउन' क लाचारी।
डंडा जनि देखावा बाबू, हम त बानीं मजबूर।
ठहरलीन मजदूर।
काम बा न धाम बा, अब त जेबो में न दाम बा।
का खायीं का पियीं, ई परदेश में बड़ा जहां बा।
हमार गांव बा बहुत दूर, हम थक के बानीं चूर।
ठहरलीन मजदूर।
परदेश में रहके बाबू, अब खाली पछतायेके बा।
परदेश में बाटे बहुत कष्ट, हम का करीं ए हजूर,
ठहरलीन मजदूर।
बँटल पईसा सरकारी, हमार खाता बाटे खाली।
शहर छोड़वलस हम्में 'लॉक डाउन' क लाचारी।
डंडा जनि देखावा बाबू, हम त बानीं मजबूर।
ठहरलीन मजदूर।
काम बा न धाम बा, अब त जेबो में न दाम बा।
का खायीं का पियीं, ई परदेश में बड़ा जहां बा।
हमार गांव बा बहुत दूर, हम थक के बानीं चूर।
ठहरलीन मजदूर।
****
पांवों में छाले, तन पे ताप।
केहू चलल साइकिल पर,
कोई बैसाखी सहारे चलकर,
लिए जा रहा सामान सिर पर,
लिए जा रहा सामान सिर पर,
बच्चे, बूढ़े का बोझ कंधे पर।
मन ढोये जा रहा गहरे घाव।
मजदूर चला है अपने गांव।
राह में न केहू सहारा जीवन से हार
ऊपर से पुलिस की डण्डा का मार
मजदूर चला है अपने गांव।
राह में न केहू सहारा जीवन से हार
ऊपर से पुलिस की डण्डा का मार
पुलिस ने भी डंडा ही मारा।
सिर पर है गठरी का बोझ,
चला जा रहा जीवन से हारा।
उसे कमरे का किराया देना।
अभी राशन का बकाया देना।
काम पर जाने का भाड़ा भी,सिर पर है गठरी का बोझ,
चला जा रहा जीवन से हारा।
उसे कमरे का किराया देना।
अभी राशन का बकाया देना।
मित्रों से उधार उठाया देना।
आमदनी क नांव नाहीं
खाली हाथ वो आया था।
कर्म का धर्म निभाया था।
यहीं पर सब खा पी गया,
जो थोड़ा बहुत कमाया था।
अब पार लगेगी कैसे नाव।
मजदूर चला है अपने गांव।
एस. डी. तिवारी
यहीं पर सब खा पी गया,
जो थोड़ा बहुत कमाया था।
अब पार लगेगी कैसे नाव।
मजदूर चला है अपने गांव।
एस. डी. तिवारी