Friday, 12 April 2019

Pyar boond 1


तेरा मेरा प्यार

बरसा है बहुत यार,
मेरी इन आँखों से,
बूंदों में देख प्यार।

तुम तो थी अनजानी;
तुमसे मिलना हमारा,
बना दी' प्रेम कहानी।

प्यार तुम्हारा' पाकर,
खुशियों से भरा ये दिल,
चढ़ा नीलाम्बर पर।

गगन में उड़ने लगी;
पायी है तेरा साथ,
जबसे' मेरी जिंदगी।

पड़ी है जबसे नजर,
तेरे रूप पर दिलवर;
चौंधियाई है डगर।

मैंने लौ को' जगाया;
दिल में पड़ा था कबसे,
अँधेरे को भगाया।

दिल की जलती चाहत,
सूरत देख तुम्हारी;
पा जाती है राहत।

सोच में है बसाया,
तेरा ही केवल नाम;
ना कुछ और समाया।

नक्षत्रों का चमत्कार,
कहूं तुझको पा लेना;
कि मेरा गहरा प्यार।

हो चुके हैं बेकार,
काम के थे हम बन्दे,
जबसे किया है प्यार।

दिल ने पीया मेरे -
नशे में जीया हर पल;
प्यार को बहुत तेरे।

होता अलग कुछ और;
होते तुम साथ मेरे,
सुन्दर हर एक ठौर।

उनके गुस्से को हम,
मेरा क्रोध वो थूके,
दोनों का प्यार न कम।

खोल रखा था बाहें;
थाम लेने की तुझको,
मन में' बसी थीं चाहें।

तुम्हारे' लौ से भरा,
दिल का प्रत्येक कोना,
रहता तो ही उजला।

रहता है डरता दिल;
तुम्हें न खो दे फिर से
पाया है अति मुश्किल।

बरसा दिया है प्यार,
मुझ पर तूने इतना;
भीगा पड़ा हूँ यार।

प्यार का तू समुन्दर;
डूबे पड़े नीचे हम,
गहराईयों में अंदर।

प्यार में तुम भी धोखा,
बैठे हुए हो खाये,
किस्सा नहीं अनोखा।

खोदा है दिल पे' नाम;
रोये ना तो क्या करे!
घर में पड़ी गुलफाम।

पड़े हैं हम बदनाम,
गली में तेरे कारण;
अभी तक तू अनजान।

खेत में जैसे खाद,
जिंदगी के लिए प्यार,
होती जरूरी बात।

आग लगी सावन में,
बुझा तू आ के साजन,
इस ऋतु अति पावन में।

ये' दर्द मेरे मन के,
दिए तो हैं सब तेरे;
आँसुओं में ढलके।

साथ तुम्हारे बैठ,
खो जाता जहाँ में उस;
चमकते तारे देख।

चलाती तेरी चिन्तन,
दिन हो या चाहे रात;
दिल की मेरे धड़कन।

करते परस्पर प्यार;
अनुरक्ति भरे दो दिल,
क्यों जलते' उनके यार?

प्यार में हो यदि हार,
उसका नहीं करना गम,
जीत ही समझो यार।

छीन लिये श्रीमान,
मेरी प्रशंसा करके;
अधरों की मुस्कान।  

तुम जब तक न थे मिले,
दिल अनजान था बिल्कुल;
प्यार के ना सिलसिले।

न प्यार में तड़पा हो,
शायद ही' होगा कोई;
इक कहर न बरपा हो।

तड़पाया' जिसे न प्यार,
जानते किसी को अगर;
दिखाओ हमको यार।

पीया वो जीवन भर,
तेरी आँखों का नशा;
पाया न दिल से उतर।

वो तो सताये खूब,
थे हम भी कहाँ के कम;
प्यार जताये खूब।

रति में गंवाया है,
कितना बड़ा सा अरसा;
जिंदगी बिताया है।

प्रेम में' अँधा होकर,
दौड़ तो लगाए बहुत;
अंत में मिली ठोकर।

कितने अच्छे लगते,
आते जब सपनों में;
अब तो हम्हीं भगते।

ले आऊंगा' उठाकर,
यदि प्यासे हो प्रियवर;
हेतु तुम्हारे' सागर।

संग में तुम नहीं थे,
क्या बताऊँ मैं कैसे,
सारे मौसम बीते।

मेरे हाथ न आया,
प्यार का कोई छोर;
दीवाना कहलाया।

टांक दूँ लाओ बटन,
तुम्हारी कमीज की,
टूटी पड़ी है, सजन।

फिर गाओ न मनमीत,
मिले हम पहली बार,
जो गाये थे' तुम गीत।

हुआ' स्वर्ग सा आभास;
जिंदगी में तुम आये,
मेरे' होकर के खास।

हुआ चलने का समय,
निकल आये चाँद तारे,
अब बस भी करो प्रणय।

खोये' रहते हैं यार;
हुआ है दिल को जबसे,
तेरे' रूप का दीदार।

इसमें क्या' मेरी खता;
आ पाया मैं न तुझ तक,
दिया ना तूने पता।

लो, बाँहों में भर लो,
मुझे मेरे सनम तुम;
ऑंखें बंद कर लो।

हमसे तो ये अच्छे,
लटके गले से तेरे,
मोतियन के गुच्छे।

हुआ कुछ ऐसा असर;
तेरे प्यार में रहता,
दिल नीले अम्बर पर। 

अब दे दे तू पतवार,
प्यार खेवने की नाव;
मेरी पड़ी मझधार।

बदल जाय ऋतु भरसक,
इस प्यार के मौसम में;
न आने' देंगे पतझड़।

फिरते हो आंख चुराए;
करना था ये ही अगर,
फिर दिल में क्यों आये।

कैसे कहूं मैं यार'
कहीं का न छोड़ा तेरा,
बोलना 'तुमसे प्यार'।

लगा ज्यूँ उड़ने लगी,
जबसे मिला तेरा साथ,
यूँ पंख लिए जिंदगी।

तुझसे ही छूटा था;
सुनी क्या तूने आवाज,
जब दिल ये टूटा था।

सतह थी खुरदरी, पर,
घूमते रहे हम दोनों;
प्यार में इक धुरी पर।

जबसे हुआ है प्यार,
छाया रहा इस दिल पर,
केवल तेरा खुमार।

जिंदगी थमी थी' पड़ी,
होते ही तुमसे प्यार
अपने ही' चलने लगी।

झुका ली' तूने गोरी,
इस तरह से नजरों को,
अब पकड़ गयी चोरी।

जागा या फिर सोया,
नाम के तेरे घूंट,
पी के' नशे में खोया।

बीत न जाए पूरी,
जिंदगी तू तू मैं में,
बातें और जरूरी। 

मारो न दृग के बाण,
ऐसे मेरे प्रियतम,
निकल ही जाय प्राण।

आ रहा' धीरे धीरे,
देखो वो मेरे पास,
मेरा चाँद सखी रे।

इन आँखों में तुम हो,
बसे ही रहना सदा,
सांसों में भी तुम हो।

तेरे' दीदार में है,
मदिरा में कहाँ नशा,
हमारे प्यार में है।

मैंने लौ क्या' लगायी,
दिल में प्रेम की तेरे;
स्वयं को ही जलाई।

दिवस, सुबह और शाम
प्यार में मैंने किया,
जिंदगी तेरे नाम।

लुक छुप चाँद सी छटा,
बिखरी तेरी जुल्फें,
छायी ज्यूँ' काली घटा।

दोगे कुछ तो' सौगात;
पता तो होगा तुमको,
है खास बड़ी ये रात।

आया तेरे करीब,
होता जा रहा तब से,
थोड़ा थोड़ा गरीब।

पाये जब से' सोहबत,
खुद खोये कि पाएं हम,
तुम्हारी मोहब्बत।

चुभ गया है जिगर में,
तेरी नज़रों का तीर;
लगा है' दर्द उभरने।

तब तक ना प्यारे थे,
हम तुमको न प्यार किये;
तुम भी न हमारे थे।

प्रेम के पुष्प खिले;
हो गया जी सुगन्धित,
इस तरह जो तुम मिले।

तुम हो इतनी सुन्दर;
दिल हो गया मेरा ये,
गहरा प्रेम समुन्दर।

निकाल के तुम मौका,
चले आओगे खुद दर,
था ये मुझको' भरोसा।

तुम्हीं तो इक चारा;
खा गये बेईमान,
फिरता है बेचारा।

करे रखे थे चौड़े,
दिल के मैंने रस्ते;
चले' आओगे दौड़े।

एक ही बिस्तर पर,
मुंह करके थे सोये,
मैं तो इधर, तुम उधर।

कसम खा लिए थे तुम,
आओगे ना फिर कभी;
आये थे फिर भी तुम।

यहाँ कभी आते हो;
घर के वातावरण में,
शहद घोल जाते हो।

कहाँ से तुम आये हो!
हमको भी ले लो साथ,
ऋतु सुहानी लाये हो।

जबसे उठाया बोझ,
दिल ने प्यार का तेरे;
भार से खा रहा लोच।

उपर कब्र के दीया,
जीते जी तो प्यार की
ज्योति ना तूने दिया।

खोल रखे थे कबसे,
दिल के दरवाजे को;
प्रिये! फिर क्यों भटके?

तुम देते रहे जहर,
हमें प्यार का पल पल;
हम पिये आठों पहर।

तुमने है हमें दिया,
प्यार की ऐसी सजा;
तन्हाई में जीया।

फेंका तुमने पत्थर,
चोट मुझे पहुँचाने;
चुना प्यार समझकर।

देखते रहे तारे,
बेचैनी को हमारी;
साथ में' जागे सारे।

कहूं क्यों तुमको चाँद;
कहाँ दिखता है बोलो,
एक जैसा हर रात।

हममें खूब जमेगी;
लगता है देख तुम्हें,
शहनाई' जब बजेगी।

चुटकी भर सिंदूर,
लगाया तेरे माथे;
तुम मेरे हुए' हुजूर।

अग्नि के सात फेरे,
लगा के तुम्हारे साथ;
हो ही गए' हम तेरे।

सितारों को बुलाया,
बनने खातिर साक्षी;
जब तुमको अपनाया।

१००

जब क्रोध हमें आया,
पी गए मैं और तुम;
हम दोनों ने' निभाया।

अम्बर हो गया लाल;
रहा नहीं अब जाता,
आकर तू ही संभाल।

उड़ जाती है मेरे
इन नयनों से निंदिया;
मीठे प्यार में' तेरे।

तुम्हारी' मुलाकातें;
भुला देती हैं अक्सर,
जरूरी कई बातें।

मटक के' चलना तेरा;
हिरनी सा बल खा के
देख के' गिरना मेरा।

सुन हे मेरे सजना!
अपने से तुम हमको
युदा कभी ना करना।

बसाया था घरौंदा,
प्यार का मेहनत से;
तुमने फिर क्यों तोड़ा।

लाया सितारे तोड़,
तेरे लिए ही दिलवर;
मुझको गयी क्यों छोड़?

देखता हूँ' सुन्दर मुख,
जब कभी मैं ये तेरा;
मिलता प्यारा सा सुख।

विगत जनम का नाता,
होगा तभी तो जोड़ी;
तुमसे गढ़ा विधाता।

कूड़े में बिना खुला,
भेजा सनम जो तुमको,
मेरा' प्रेम पत्र मिला।

तू और तेरा प्यार,
मिल जाए अगर दिलवर;
हो जाय जीवन पार।

कहीं की तू है परी;
तो मेरी भी ये चिट्ठी,
मुहब्बत से है भरी।

प्रेम पत्र तुम्हारे,
लिखे थे जो तुम हमको,
रख लिए हैं संभाले।

गलतफहमियां तोड़ीं,
हमारे बीच का प्यार;
कहीं का नहीं छोड़ीं।

रूप की' रानी हो तुम;
मन में समाकर मेरे,
प्रेम कहानी हो तुम।


चाही हवा मिटाना,
दिल से तुम्हारा नाम;
पड़ी मुंह की खाना।

प्यार इतना' पाओगे,
मेरे पास आकर तुम;
लौट फिर न जाओगे।

न मिटेगा' तेरा चित्र;
यह तो मेरा दिल है,
न दर्पण मेरे मित्र।

देख सुबह मुंह तेरा,
तस्वीर से होता दिन,
रोजाना शुभ मेरा।

छपे दोनों का साथ;
निमन्त्रण पत्र पे नाम,
जोहा था कई साल।

देखे' दिल तेरी ओर,
बन के पागल पखेरू;
चाँद को जैसे चकोर।

थामा है तूने' डोर;
जीवन पतंग मेरी,
अब आसमान की' ओर।

दे देना अपने गम,
हमको बेहिचक तुम;
मानो ढो लेंगे हम।

दिल उदास हो जाता;
तुम बिन ज्यूँ चाँद बिना 
वो' आकाश हो जाता।

दिल को हुआ है प्यार;
नित चाहता है प्रियतम,
तेरी बाँहों का हार।

था कितना भोला दिल;
प्यार में तेरे खाया,
भांग का गोला दिल।

यौवन में' तुम और हम;
प्रतीक्षा इक दूजे की,
करते रहते  हरदम।

जिंदगानी को गढ़ा,
कितने ही चोट खाकर;
जीवन में' तेरे मढ़ा।

देख रहे थे मंजर,
ऊपर से चाँद तारे;
तुम घोंपे थे खंजर।

कर लेते' कैसे बंद;
आँखों में उतरे तुम,
आँखों की पुतली बन।

रहती है आँखों में
हरदम तस्वीर तेरी;
मूंदूँ तो कैसे मैं।

छीन लिए मेरे' चैन,
तेरे चंचल दो नैन
और मृदुल ये बैन।

तेरे नैनों का रस,
हो गया है पीकर मन,
आज नशे में बेबस।

बार बार वही गीत,
सुनने को जी होता
गाया जो' तुमने मीत।

मैं तो लगा कांपने;
धधकती जिया में आग,
लगाया जो आपने।

अकेले रह रही थी,
पड़ी माघ की सर्दी में,
विरहन जल रही थी।

अपने आप नहाता,
सौतेला था वो बच्चा,
दिन भर नाक बहाता।

अब तेरे दुःख मेरे,
और मेरे सुख तेरे,
पड़े प्यार के फेरे।

अगर नहीं तुम होते,
प्यार को तरस जाते,
हम भी हम ना होते। 

न कि जी बहलाने को,
प्यार किया है तुमसे,
जीवन भर निभाने' को।

माथे डाल सिन्दूर,
जीवन में प्रियवर ने
प्यार का भरा सुरूर। 

कहते, प्यार करते हो!
साथ मेरे तपने से,
फिर क्यों तुम डरते हो ?

१४० 


*********

राग अनुराग

विचित्र प्रेम की गली;
ग़मों की हुई बरसात,
बही आंसू की नदी।

कौन है' भला नगर में,
हँसता चले अकेला,
इस प्यार की डगर में।

न लड़ाई ना संग्राम;
प्यार ने लिया कितना,
बलिदान मेरे राम!

किस्मत का था मारा,
बस रस के लिए भौंरा,
कैद हुआ बेचारा।

वो रूठे तो समझे,
प्यार के गहरे कितने,
अपने रिश्ते उनसे।

ये कैसा अचम्भा है,
मार देता है प्यार,
पर रहता जिन्दा है।

दिल उनको चाहा था,
बाद में बनकर पागल;
दिन रात कराहा था। 

दर्पण हरजाया है,
सामने जिसको पाया,
गले से लगाया है।

रहना सदा मुस्काते;
ना जाने तुमसे कहाँ,
किसे प्यार हो जाये।

बना के रखा अँधा,
प्रेम का चढ़ा सुरूर;
अब न काम का बंदा।

रखते फूल औ इतर,
बदौलत हुस्न के ही,
अपनी शान औ कदर।

किसी से' हो गया प्यार,
क्या चीज अजीब है ये,
जीना हुआ दुस्वार।

हुआ उनका दीदार,
लगीं उठने तरंगें,
बज उठे दिल के तार।

समझो मेरे दिलवर,
न उगाओगे यदि प्यार,
बनाओगे' दिल बंजर।

देख ना पाये चाँद,
मुआ हो गया अस्त भी,
ढूंढने में ही दाग।

छायी मेरे ऊपर,
याद तुम्हारी मीठी,
आकाश बेल बनकर।

तुम्हीं ना सम्भाले;
जो प्रेम पत्र भेजे,
पाते ही' फाड़ डाले।

आंसू ही न बहाते;
कई बार प्यार के खत,
फाड़े भी हैं जाते।

शुरु प्यार का सिलसिला;
उनका भेजा वो पत्र,
मुझे जैसे ही मिला।

खोल दी पोल पट्टी;
प्यार की हम दोनों के,
दिवार खोंसी चिट्ठी।

पढ़ लिया मेरा' भाई;
छुपा कर रखी चिट्ठी,
गाल पे' चपत लगायी।

चलाया प्रेम गाड़ी,
फ़ोन पर करके चैट;
समझा मुझे अनाड़ी।

वो तो दिया ही था,
नंबर बदल फ़ोन भी
प्यार में दिया धोखा।

दे गया' फोन सौगात;
जोहती रहती हूँ मैं,
कभी ना करता बात।

ना ही माल घुमाता,
ना सिनेमा दिखलाता,
मुफ्त में' प्यार जताता।

जाते हो जब कहीं' मिल;
कितना खुश हो जाता,
तुम क्या जानो ये दिल।

होते नहीं हो पास;
कैसे कहूं कि कितना,
दिल हो जाता उदास।

यादों में उनकी' मरें;
बढ़िया तो यही है न!
चल उनसे चैट करें।

प्रेम की उठी जो  लहर;
पायी नहीं किनारा,
ढा डाली बड़ा कहर।

प्रेमी गले' जब मिलते,
पवन मदिर बह चलती,
अनेकों फूल खिलते।

भिगोये थे हम पांव,
आती हुई लहरों में,
दोनों पकड़ के हाथ।

दूर सिंदूरी शाम,
हम दोनों देखते थे,
एक दूजे को थाम।

तारों में' देखा जोश;
छुप के कहाँ बैठ गया,
चाँद तेरा खामोश।

ऊँची दिल में उठकर,
डुबोई मुझे जबरन,
प्यार की कोई लहर।

भिगोई हमारा तन,
आकर झमाझम बारिश;
पर भीग न पाया मन।

आकर कारे बदरा,
बरसे थे कुछ ऐसे;
धुल गया' मेरा कजरा।

अवगुण चित्त ना धरो;
प्रभु ने जैसा बनाया,
उस रूप में प्यार करो।

देखा है होते प्यार,
चुप चाप दबाकर पांव
ढोल बजाकर व्याह।

बनाकर मुझको टट्टू;
सवार पड़ी वो अब तक,
जिस पर था मैं लट्टू।

दर्द बहुत होता है;
कोई बड़ा सा रहता,
ये दिल अति छोटा है।

पल भऱ में होता है,
किसी से किसी को प्यार;
सालों संजोता है।

रखे जिया हम खोले;
वो चले गए पर दूर,
मुंह से कुछ ना बोले।

उनके दिल में देखा;
समझ के कोई दर्पण;
छवि थी मेरे लेखा।

असर प्यार के विष का,
मार देता घोंट गला,
प्यार ही दवा इसका।

लगाये रहा चकोर,
सारी रात टकी एक,
रति में चाँद की ओर।

रुधिर बहा ना बेशक;
प्रेम की दुर्घटना में,
चोट से हुआ था' कष्ट।

बस आने जाने में;
खो दिया प्यार कितना,
रूठने मनाने में।

पहले ही ये सोचा;
प्यार में एक दिन तो,
खाना होगा धोखा।

दबाये अपना पांव,
चल के आता है प्यार,
हमारे दिल के गांव।

साथ ही मेरे चला;
तन्हाइयों में विस्मृत,
स्मृतियों का काफिला।

निस दिन ढूंढते रहे,
प्यार की तलहटी को;
गहरे में डूबते रहे।

मिले वो पहली बार;
उठते औ झुकते रहे,
दृग उनके बार बार।

गये थे पहली बार,
उनके घर तो आकर,
वो ही खोले किवाड़।

धीरे मुझे छुआ था,
उसने जब पहली बार;
बेहाल दिल हुआ था।

जाने की तो कर दी;
अभी तो तुम आये हो,
इतनी भी क्या जल्दी।

आसमान में आके,
सब तारे टिमटिमा के,
दिल में प्यार जगाते।

१९५  

*******

विरह विरक्ति

अति रोया था बादल;
किससे किया था प्यार,
गयी रात, वो पागल।

रहा दिल सदा उदास;
देकर गया था सब कुछ,
पर वही नहीं था पास।

जबसे हुआ है दीद,
इश्क में हमको गम का;
दूर ही रहती नींद।

क्या दिन दिखाया खुदा,
ऑंखें देखतीं तारे,
दोनों की युदा युदा।

मेज पे होती सुबह,
एक ही केवल प्याली,
कोई तो' होगी वजह।


होकर के' तुझसे युदा,
है रहना बड़ा मुश्किल;
तू तो रूप का खुदा।

बैठा हुआ' फूलों पर,
तुम ना थे साथ मेरे,
सदा चिढ़ाता भ्रमर।

फूलों में न थी गंध,
तुम थे ना मेरे संग,
नहीं थी कहीं सुगंध।

हमसे गए तुम दूर,
रखे संजोये हमने,
सपने हो गए चूर।

उदास दिनों में साथ,
निभाती रहती है मेरा,
तुम्हारी मधुर याद।

जितना मैं बिसराई,
तुम्हारी भूली यादें,
और अधिक गहराई।

आकर के' उनकी याद,
रख देती भिगो कर के,
खुली वो' मेरी किताब।

रखा संभाले याद,
प्रेम का' बचा तुम्हारे,
यही है बस सौगात।

घिस भी चुके हैं शब्द;
पर आज भी पढ़ती मैं,
पायी जो पहला खत। 

अकेले ऊब जाता;
जाकर समुन्दर पर,
लहरों में डूब जाता।

जाने के' उनके बाद,
छत पर आना जाना,
कर दिया' है बंद चाँद।

१२६

काटी अँधेरी रात;
कैसे कहूं अकेले,
मैं जुगनुओं के साथ।

देखते रहें हम उन्हें;
तारे भी सारी रात,
जागते रहे नभ में।

ताने मारते' तारे,
तुम बिन देख के मुझको,
अम्बर में मिल सारे।

बड़ा विकल कर जाती,
तुम्हारे बिना मुझको,
कोयल बाग में' गाती।

नभ में सबसे प्यारा;
खोजते रही अकेले
लगता कौन सितारा।

सूखा रहा आकाश,
आये ना लौट बादल,
हिया था बड़ा उदास।

तरसा कितना ये मन;
दूर रहे सांवरिया,
बरसा भी नहिं सावन।  

जाय बसा वो विदेश;
रिझाता रहता मुझको,
फ़ोन पे' भेज सन्देश।

क्या करती मैं बतियाँ!
रे सखि चैट पर उनसे,
चैन न पाऊं रतियाँ।

करना' पड़ता संतोष;
निहार फ़ोन पर सूरत,
दिल रह जाता मसोस।  

भेजता' रहा ईमेल;
छुपा परदे के पीछे,
खेला प्यार का खेल।

मुआ' लाया ही क्यों घर;
दिया तलाक की अर्जी,
प्यार का नाटक कर।

आग लगे' अदालत को,
दे देती है इजाजत
तलाक की' वकालत को।  

टूट के बिखरा यहीं;
दिल टूटने की आवाज,
तूने सुना भी नहीं।

तूने ही दिल तोडा;
जिंदगी को हमारी,
नर्क की ओर मोड़ा।

तूने दिया भरोसा,
निकाल अपना रुमाल
आंसू मेरे पोंछा।

क्या क्या मैंने सोचा,
कहाँ छोड़ गया बैरी,
प्यार में दे के' धोखा।

प्यासा रहा' ये जीवन,
निर्मोही ने तरसाया,
उम्र भर मरूस्थल बन।

चुप चाप घर से निकल,
औरों से  निभाया साथ,
करके मुझसे वो छल।

रातें रोयीं तुम बिन,
गये विदेश तो पलकें,
भीगी रहीं' तारे गिन।

किसी और की हो ली;
लौट के आये हो तुम,
जा ली उसकी डोली।

ये कैसा है हिसाब,
दे रहे हो तलाक तुम
ले के मेरा शबाब।

काटी थी सारी रात,
बदल बदल कर करवटें;
दिल में' तुम्हारी याद।

दिल में लगा लिया लौ;
उन्हीं के प्रेम की आग,
पूरी' जला दी मुझको।

रात बुझा के दीया,
तुझे याद कर भोर तक,
जलाई अपना जिया।

पूछती रहतीं गलियां;
तुम नहीं होते साथ,
गया कहाँ तेरा' पिया।

करते रहे प्रतीक्षा,
तुम्हारी देर तलक;
तुम ले रहे परीक्षा।

बनाया था' मैंने घर,
तेरे ही घर के पास;
बदल लिया तूने पर।

हम बड़े उदास हुए;
जब कभी भी तुम मेरे,
नहीं आस पास हुए।


१९ ६ 



मौसम

आयी रिमझिम फुहार,
भीग हुआ मतवाला
धरे मन हर्ष अपार।

कैसे' कहूं इस सावन,
सखि भीगी मैं कितना;
संग में रहे साजन।

सावन में सखियन संग,
झूलूँगी जी भर झूला;
मन में भर के उमंग।

सखि री सावन आया,
धरा पर धाक जमाया,
सजन मगर तरसाया।

सावन बैरी आया;
बिरह में मुझे जला के,
रोज रोज तड़पाया।

सावन पड़ी अकेली,
सुलग रही हूँ विरह में;
बता उपाय सहेली।

आये कारे बदरा,
पिया बिन देख अकेले,
धोये मेरा कजरा।

सखि! मन में सावन की,
रे! ख़ुशी बहुत समायी,
अबकी पी आवन की।

बैरी बहुत सताया;
छीना रातों की नींद,
सावन में ना आया।

काला हुआ आकाश,
घन ले अषाढ़ महीना,
जगाने आया प्यास।

निर्दयी बड़े थे' मेघ,
अकेला पाकर करते,
भावनाओं से खेल।

पी रहे मेरे पास,
बारहों महीने मैं तो
मनाई सखि! मधुमास।

घुमड़ कर आये मेघ,
सागर से भी गहरा
तेरा मेरा प्यार देख।

होते तुम अगर पास;
लगता है सुनो प्रियवर,
हर मौसम मुझे खास।

जगा है मन में प्यार,
सखि! सुन देख के गिरती
सावन की बौछार।

है हमें अब तक याद,
दोनों भीगे थे साथ;
बरसात की वो रात।

लम्बी होतीं रातें,
पिया न संग जब होता,
किससे करूँ' मैं बातें।

ऋतु बसंत आता है,
फूलों को हँसते देख,
मन रसिक हो' जाता है।

मधुर मधुर जब कोयल,
बसंत में गाने लगती,
प्रेम में आकुल युगल।

बसंत में ले अंगड़ाई,
प्रेमियों का दिल झूमा,
बागों में कोयल गाई।

बागों में उतरे अलि,
और प्रेम के रसिया,
देखकर खिलती कली।

रंग गया ऋतु के रंग;
हुआ ये मन मतवाला,
सखि देखो आया बसंत।

छा जाती है बहार,
बसंत की जब धरती पर,
जाग उठता है प्यार।

प्रियतम कब आओगे;
अब आ गया मधुमास,
मुझको मधु लाओगे।

रे सखि! अबकी मधुमास,
मिल गयी उनको छुट्टी;
है पिया मिलन की' आस।


सावन में कष्ट विकट;
घुड़क घुड़क डराया घन,
पी न था मेरे निकट।

जाड़े की वो ठिठुरन;
तुम चले गये थे दूर,
जलाती रही तन मन।

आ' जाती खिलखिलाती,
अंगना जाड़े की धूप;
मन भीतर से छू जाती।

पड़ते ही' करती छन्न,
जाड़े में ठंडी ओस;
जल जाता मेरा मन।

बसंत के' वो खिले दिन,
तनिक ना भाये अबकी;
अकेले' तुम्हारे बिन।

तुम बिन सताया बड़ा,
कैसे कहूं मैं साथी,
अकेले में ये जाड़ा।

सर्दी हो चाहे गर्मी;
होती नहीं कभी कम,
सजना की बेशर्मी।

गर्मी की लेती आड़,
तो बोल पड़ता पिया,
चल चलते हैं पहाड़।

गर्मी का ऐसा असर;
आने को पास आतुर,
होता पिया तर बतर।

गाने लगा मन कजरी,
सखि! सावन के महीने,
घेरे देख के बदरी।

चले जा रहे बादल;
जोहती रह गयी वाट,
लिए मैं सूखा आंचल।

ले के मधु का प्याला,
सखि री! आ गया बसंत;
था न पिलाने वाला।

खिले सुमन, महका चमन,
धूम मची बसंत की;
मधुमास में बहका मन।

फूले टेसू के फूल;
गाती है कोयल रोज,
प्रियतम न जाना भूल।

सखि! अमवा बौराये,
अबकी ऋतु बसंत में,
निष्ठुर पिया न आये।

ना दे मुझको छतरी;
ऋतु की पहली बारिश,
भीगने का करता, जी।

बदले मौसम हजार,
अडिग रहा हर ऋतु में
हम दोनों का प्यार।

मछली दबी मिट्टी में,
कैसे तैर के जाये,
पी मिलन को' गर्मी में।

प्रेम ऋतु पूरे साल;
रूखा सूखा मन रखे,
रखता क्यों मलाल!

बारिशों ने सताया
तन्हाई में बूंदों से
मुझे प्यार हो आया

मुझे तो भायी बड़ी
अकेले में साथी बन
पड़ती बूंदों की' झड़ी

२३२  


घर परिवार समाज

बड़ा हुआ हूँ पलकर,
इन चार दीवारों में;
यह मेरा प्यारा घर।

ये प्यारा सा' घर बार;
करता हूँ मैं इसकी,
दिवारों से भी प्यार।

ये छोटा सा' परिवार;
रखता है मेरे लिए
खुशियां समेट अपार।

साथ में जो, परिवार,
रखता है बांधकर के;
है वो परस्पर प्यार।

नन्हां सा इक बालक,
खींच लेता है सबका,
प्यार हृदय का नाहक।

होता जहाँ है प्यार;
लगते नहीं हैं अपने,
कभी भी ऊपर भार।

माँ का प्यारा आंचल;
छाँव कहाँ दे सकते,
घने कितने' भी बादल।

प्यार और सत्कार;
अपनी मनवाने के,
सर्वोत्तम हथियार।

कारोबार से प्यार,
होतीं इसी से पूरी
आवश्यकता हजार।

कुत्ता पूंछ हिलाता;
स्वामी से मिलकर वो
अपना प्यार जताता।

खेलों में लगा ध्यान;
बना लगन व प्रेम से,
खिलाड़ी आज महान।

कहाँ बजी शहनाई;
उछलने लगा है दिल,
बारात किसकी' आई।

कही आंसू की धार,
डोली के चलते ही,
कितना सुता से प्यार।

ऐसे हुए दीवाने,
शाम को उनकी गली
दीया चले जलाने।

जिंदगी बुर्के में ढका,
मौत ढक दिया कफ़न में
वो रह गया झांकता।

मुझे नहीं है चिंता,
प्रेम में पास फेल की
ले लेने दे परीक्षा।

समझ पाये हम खेल,
कितना कठिन है प्रेम
परीक्षा में रहे' फेल।

कंधे पर रखा हाथ,
अचानक ही उन्होंने;
दिल पर डोला नाग।

राही से करके' प्यार;
पछताना पड़ता है,
बिछुड़ के एक दिन यार।

गले फूलों का हार,
डाला एक दूजे के;
दिल को गये थे हार।

सामने' जो भी होता,
प्रेम की इस नगरी में;
अपनी अपनी रोता।

बड़ी सिद्दत से लिखा,
किताब मेरे प्रेम की;
मुझसे' भी पैसा लिया।


ढूंढ के पढ़ते रहे,
प्यार की पहली चिट्ठी;
अश्रु भी झरते रहे।

एक दिन हम न होंगे;
प्यार के तब भी मेले,
जहाँ में कम न होंगे।

दिलवर को' मुझसे प्यार,
लगता है बहुत ही कम,
थैली से बेसुमार।

सोचा होगा मीठा;
चखने पर पाया स्वाद,
प्रेम का बहुत तीखा।

हम तुम जवान होंगे;
दिखा देंगे दुनिया को
प्रेमी महान होंगे।

बढ़ के' छोकरे होंगे;
दुनिया में मुहब्बत की,
खाते ठोकरें' होंगे।

बाल सहलाते रहे;
दिल धक् धक् करता रहा,
खंजर पजाते रहे।

होंठ सिल जीना पड़ा;
लगे न आरोप कोई,
अश्रु भी पीना पड़ा।

तोड़ दिया आईना;
सूरत तुम्हारी उसमें
नजर मुझे आई ना।

हम दोनों का प्यार
टूटा कि लगे ढूंढने;
ढालने को' गजलकार।

लगी है देख जलने,
हमें ये दुनिया सारी;
लगी तू साथ चलने।  

अनुरक्ति के' होने में;
सुना है आनंद बड़ा,
छुप छुप कर रोने में।

विवेक यदि खोना है;
प्रेम क्यों ना कर लेते
नशे का' क्यों रोना है।

बुढ़ापे में' रोपाया,
देकर के पैसे बाल;
फिर भी कुछ ना पाया।

पीये थे बेहिसाब,
जाकर मदिरालय में;
तोड़े थे दिल जनाब।

जुड़ते तो हैं दो मिल;
छुड़ाने पर मगर क्यों?
टूटता एक ही दिल।

हिया की अपने लगी,
जता पाते वो जब तक;
उन्हें ही छोड़ भगी।

जीवन को किया खाक,
छीन के नूर सारा;
कह दिया तीन तलाक।

प्रेम की रखते चाह;
जिंदगी भर की तुमसे
तब ही तो किया व्याह।

मेरे घर भी' बजी थी,
उस रात को शहनाई;
दुल्हन बन के' सजी थी।

छोड़ी थी एक न गत;
प्यार में धोखा खाकर,
पीने की डाली लत।

टूटे सभी अरमान,
जब प्यार में जनाब के;
करने लगे मधुपान।

दिल को गए थे हार;
डाल दिया जब उन्होंने
गले फूलों का हार।

सारे जग से कह दी,
मैं तो उसकी हो गयी;
लगा हाथों मेहदी।

माथे लगा सिंदूर;
देखते ही समझे थे
अब हो गयी वो दूर।

मेरी प्यारी गुड़िया;
चूम लेता हूँ गाल,
है वो प्यार की' पुड़िया।

वह तो बड़ी भोली थी;
प्यार में जिसने बांधा,
मधुर उसकी' बोली थी।

जो रचा स्वयंवर है,
हमारा और उनका;
साक्षी ये अम्बर है।

बनीं कई थी साली,
गांठ में जब था दाम;
दूर जेब जब खाली।

अपनी शादी के' बाद;
अब होगा एक ही घर,
रखेंगे हम आबाद।





३१०


सावन की ये बदली;
देख उन्हें मौसम में,
तबियत अपनी बदली।


दिल ये' बोलता होता,
प्यार में उनकी भाषा
कैद में' जैसे तोता।

जिंदगी बेहद जली;
पड़ी इस दोपहरी में,
आये तुम छाँव मिली।


प्रकृति 

फूल पर बैठी तितली;
इठलाती रही जी भर,
उसी के रंग, रंग ली। 

हवा के झोंकों में झूम;
अठखेलियों में डूबे,
दो फूल परस्पर चूम। 

वो पीला, वह भी पीली;
एक ही रंग में रंगे
प्रेमी फूल व तितली। 

होकर के मतवाली,
झूला रही फूलों को
गुलाब की एक डाली। 

गुलाब की दो टहनियां,
यूँ मिला रहीं दो फूल;
दूल्हा और दुल्हनिया। 

गुलाब पंखुड़ी शर्मीली,
राह में रोक के ओस
होठ कर रही गीली। 

टहनी पर लदे समूल;
हवा में झूल हिंडोला,
मस्तियाँ कर रहे फूल। 

राह चलती चीटियां;
मिल कर सब आपस की
क्षेम कहतीं चीटियां। 

कली ने ऑंखें खोली;
तेरे प्यार की दीवानी,
तितली मीठे बोली। 

प्यार का गाना गाया;
रस का प्यासा भौंरा,
फूल को तान सुनाया। 

मंडराया आ कुमुद पर,
मान अपमान को छोड़;
प्यार में पागल भ्रमर। 

दिन भर ही सूरजमुखी,
उसका प्यार पाने को
सूरज का मुख तकती। 

खाये मैंने तमाम;
जिस पेड़ का भाता था,
यह उसी का है आम।


319


जूड़ा व चमेली का
प्यार है कितना गहरा;
जमा रंग गोरी का।

निकली लगा सहेली;
मंडराने लगे भौरे,
गेसुओं में चमेली।

मैं हूँ भक्त बताता,
फूलों का ले सहारा,
प्रभु से प्रेम जताता।

मन को दौड़ाती हूँ;
बसा है पिया विदेश,
कहाँ ना घुमाती हूँ।

पायल को झनकाती;
मन झंकृत हो जाता,
पास चली जब आती।

लगता अम्बर सूना;
चाँद है गायब मेरा,
तम में सारा कोना।

देखा है जब से उसे;
जन्नत के परी जैसी,
लगने लगी है मुझे।



343




मैं तो' हुआ मतवाला;
इन आँखों से पीया,
उन आँखों का प्याला।

प्यार बहती नदी है;
बांध कोई ना रोके,
उफान में रहती है।

अधिक यौवन से प्रेम
बूढ़े और बुढ़िया में,
बार बार पूछें' क्षेम।

बता ही दी कहानी;
ढलका कर के चुनरी,
हाय बैरी जवानी।

लेती है वो निहार;
चढ़ी उमर यौवन की,
दर्पण रोज कई' बार।

वह तो' बड़ी भोली थी;
उसकी तो वो थी अदा,
मारी जो गोली थी।

थी आँखों ने' की खता;
पड़ा काटना दिल को,
जिंदगी भर की सजा।

समक्ष वो जब आये,
देखकर सूरत उनकी
दोनों नैन जुड़ाये।

नदी तकती मेघ को;
अपनी प्यास बुझाने
देखूं' मैं पी नेह को।

मेरे हृदय का तार,
छेड़ दिया है तुमने;
गाता प्रेम मल्हार।

जलाया तूने' चिराग;
ज्योति जरा मिली नहीं,
घर में लगाया आग।

मेघ ने' आंखें मूंदे;
श्रावण मास बरसाया,
रिमझिम प्रेम की' बूदें।

आंचल छोड़ हटी थी,
मेरी परछायीं भी;
जैसे शाम हुई थी।



381



बांध आयी' पीपल पर
खोलेगी अब धागा
प्यार सफल होने पर

प्यार से सींचे बाबा
आज उस वृक्ष का फल
चाव से' पोता खाता

घर जब बनाया था
मिस्त्री को कुछ ईंटें
मैंने' भी थमाया था

यत्न से चीजें लाया
इच्छानुसार घर मैं   
बड़े प्यार से' सजाया

सजाया फुलवारी है
सींचता हूँ रोजाना
मुझे बड़ी प्यारी है

अपने कर कमलों से
रोपा पुष्प प्रिय मेरे
खुश होता गमलों से

पा जाता है महफ़िल
फुदकने लगता बहुत
सीने में सोया दिल

रुतबे वाली बीबी
रुतबा ही थोपेगी
प्यार तो क्या ही देगी