Friday, 9 December 2016
Thursday, 1 December 2016
Haiku Dec 26 shadi
बुझे न पिया
कुछ ऐसा करना
प्रेम का दीया
शुरू हो जाती
तीन टांग की दौड़
शादी के बाद
जाम हो जाती
दोनों की एक टांग
शादी के बाद
चलतीं साथ
दो आत्माएं मिल के
शादी के बाद
दिव्य हो जाती
पहली काली रात
शादी के बाद
पति पत्नी के
सुख दुःख एक
शादी के बाद
होती जिंदगी
एक दूजे के लिए
शादी के बाद
दो दिल मिल के
ग्यारह से लगते
शादी के बाद
दिया व बाती
रौशनी भर जाती
शादी के बाद
मोती व धागा
मिल के होते माला
शादी के बाद
नव दम्पति
दो दिलों का मिलन
शादी के बाद
होता है प्यार
खटपट में भी
शादी के बाद
बंधा खूंटे से
घूम रहा था साँड़
शादी के बाद
पत्तों से लदा
धनी पेड़ का दर्द
फूल न फल
इत्ता डुबोया
कोई ना जो उबारे
उत्तो प्रदेश
निर्मल बाबा
चार समोसा खाया
कुछ ना पाया /पेट में गैस
बढ़ता जब
लेते हैं अवतार
राम व कृष्ण
धरा पे अत्याचार
रावण या कंस का
सहसा हुई
भारी बर्फ़बारी में
फंसी बेचारी
मित्रों, आईये लिखते हैं कुछ हाइकु इस चित्र पर
बर्फ से ढके
हिमपात के बाद
घाटी के रस्ते
चलना संभल के
पहिये फिसलते
एस० डी० तिवारी
थमने लगी
होते ही बर्फ़बारी
घाटी की गति
ठण्ड का कोप
पड़ गया पहाड़
बर्फ को ओढ़
बर्फ ज्यों पड़ी
बेचारे पहाड़ों की
थमी जिंदगी
हरी वादियां
हिमपात के बाद
श्वेत मैदान
सपने जैसा
बर्फ़बारी देखना
तमिल वासी
किधर जाएँ
भारी बर्फ़बारी में
ओझल राहें
गिरते जब
जम जातीं निगाहें
बर्फ के फाहे
बांधती पग
बरफ की परत
चींटी की चाल
चींटी सी होती
बर्फ़बारी के बाद
गाड़ी की चाल
उड़ते वक
हिमगिरि पे लगे
गिरती बर्फ
खुली जो आँखें
खिड़की के बाहर
हिम की पांखें
सर्दी में पक्षी
हिमालय को छोड़
दक्षिण ओर
हरी वादियां
हिमपात के बाद
क्षीर सागर
श्वेत चादर
ओढ़ के हिमालय
क्षीर सागर
सपना जानें
बर्फ़बारी देखना
केरल वासी
पहन लेता
नित प्रातः हिमाद्रि
स्वर्ण मुकुट
ढकी फिजायें
कोहरे में हो गयीं
ओझल राहें
छाया कोहरा
आसमान से गिरा
सफ़ेद पर्दा
धूप न पकी
सूरज की रोशनी
धुंध में ढकी
बरस पड़ा
कोहरे का कहर
शीत लहर
लपेट लिया
कोहरे का कहर
कांपा शहर
रवि न धूप
कोहरे का कहर
दोनों पहर
गाड़ी की चाल
कोहरे का कहर
गयी ठहर
था दिन भर
कोहरे का पहरा
रवि के घर
टपका नीचे
बनकर कोहरा
मेघ का स्वेद
धूप न पकी
सूरज की रोशनी
धुंध में ढकी
बीच धार में
उन्हें बचाने चले
हम भी डूबे
हो गयी शाम
अब तो पड़ गया
तुझसे काम
डाल सूरज
बदल रहा वस्त्र
धुंध का पर्दा
गया देकर
दो हजार का नोट
सन सोलह
लक्ष्मी जी आईं
मुझे दिसंबर में
दादा बनायीं
राष्ट्र प्रमुख
अमेरिका के ट्रम्प
हारी हिलेरी
राष्ट्र ने छोड़
बनाई पहचान
मंगल यान
झेले त्रासदी
सोलह में ध्वंस की
सीरिया तुर्की
लेकर आये
संग नया साल
नई ऊंचाई
अँधेरा कक्ष
कोने में चमकतीं
बिल्ली की ऑंखें
धारण करे
काम क्रोध व लोभ
मन बीमार
ध्यान व ज्ञान
करने के हैं तंत्र
काबू में मन
मन पे काबू
सुन्दर जीवन का
उत्तम जादू
दाम ना कौड़ी
मन खाने को दौड़े
गर्म फुलौड़ी
पाप की काई
मन पे तो ले जाता
गहरी खाईं
छाने ना पाय
मन पर विकार
करो उपाय
हो गयी शाम
अब तो पड़ गया
तुझसे काम
डाल सूरज
बदल रहा वस्त्र
धुंध का पर्दा
हो रहा विदा
जय श्रीराम कह
सन सोलह
सुप्रभातम
सबको मुबारक
नवल वर्ष
हर सुबह
ले के आना खुशियां
सन सत्रह
मंगलमय
रहे पूरा समय
सन सत्रह
नूतन वर्ष
हो कदमों के नीचे
नया उत्कर्ष
लेकर आये
संग नया साल
नई ऊंचाई
हासिल किया
अब तक की उम्र
खर्च के साँस
तोड़ने बढ़े
हाथ पड़ा हटाना
रोटी की भाप
जलने लगा
भगौने में से दूध
निकल भागा
रुकते नहीं
पहाड़ पर पानी
चढ़ी जवानी
पालती तुम्हें
जननी जन्म भूमि
चाहती प्रेम
सुस्वागतम
विदा गत वर्ष का
नव वर्ष का
काम क्रोध व लोभ
मन बीमार
ध्यान व ज्ञान
करने के हैं तंत्र
काबू में मन
मन पे काबू
सुन्दर जीवन का
उत्तम जादू
दाम ना कौड़ी
मन खाने को दौड़े
गर्म फुलौड़ी
पाप की काई
मन पे तो ले जाता
गहरी खाईं
छाने ना पाय
मन पर विकार
करो उपाय
हो गयी शाम
अब तो पड़ गया
तुझसे काम
डाल सूरज
बदल रहा वस्त्र
धुंध का पर्दा
हो रहा विदा
जय श्रीराम कह
सन सोलह
सुप्रभातम
सबको मुबारक
नवल वर्ष
हर सुबह
ले के आना खुशियां
सन सत्रह
मंगलमय
रहे पूरा समय
सन सत्रह
नूतन वर्ष
हो कदमों के नीचे
नया उत्कर्ष
लेकर आये
संग नया साल
नई ऊंचाई
हासिल किया
अब तक की उम्र
खर्च के साँस
तोड़ने बढ़े
हाथ पड़ा हटाना
रोटी की भाप
जलने लगा
भगौने में से दूध
निकल भागा
रुकते नहीं
पहाड़ पर पानी
चढ़ी जवानी
पालती तुम्हें
जननी जन्म भूमि
चाहती प्रेम
सुस्वागतम
विदा गत वर्ष का
नव वर्ष का
आलू पराठा
किसको नहीं भाता
प्रातः का नाश्ता
आलू का दम
बने जो आलू-दम
मुंह में पानी
घेर लेता है
आलू टिक्की का दोना
पार्टी का कोना
खड़ी हो जाती
गोलगप्पे के पास
आलू की टिक्की
बिक्री के ट्रिक्स
फूल हुआ पैकेट
थोड़ी सी चिप्स
है पटा पड़ा
मुम्बई का बाजार
बटाटा बड़ा
रहे अधूरी
बगैर आलू पूरी
भोज भंडारा
हत्यारे पर भी
सुगंध बरसाता
चन्दन वृक्ष
कवि की पत्नी
कविता को कहती
सौत अपनी
फूलों को चूमीं
सुबह ही आकर
सूर्य की रश्मि
होकर मौन
सब कहता दिल
सुनेगा कौन
ढेर सी बातें
कह देती हैं ऑंखें
भाषा न शब्द
अनेकों बातें
कहने में सक्षम
आँखों के रंग
प्रभु ने बांटा
ज्यों गुलाब में कांटा
सुख व दुःख
कवि को वाह
स्त्री के मन को भाये
प्रेम की राह
राजा या रंक
हुस्न का ऐसा रंग
झुकते सभी
खिलती कली
मंडराने ऊपर
आ जाते अलि
खिलते जब
मंडराने लगते
फूलों पे भौंरे
गोभी का फूल
रंग न गंध भाये
क्षुधा मिटाये
विवाह मंच
पहने वरमाला
दूल्हा दुल्हन
बैठे शातिर
बना के चक्रव्यूह
भेदना टेढ़ा
गलती कर
नेता मढ़ते दोष
किसी के और
हवा भी देना
मंजिल की राह में
लगी हो आग
खाली हो जाता
रोजाना एक दिन
उम्र का घड़ा
है सीधी सादी
जिंदगी को करते
जटिल हम्हीं
प्रभु ने दिया
हमें श्रेष्ठ ये भेंट
हंसी व प्रेम
मनुष्य ऐसा
जिसे प्रभु ने बख्शा
हंसी व प्रेम
बहता जाये
समय सरिता में
जीवन पानी
भाग्य से पाये
जीवन अनमोल
व्यर्थ न जाये
नेता मढ़ते दोष
किसी के और
हवा भी देना
मंजिल की राह में
लगी हो आग
खाली हो जाता
रोजाना एक दिन
उम्र का घड़ा
है सीधी सादी
जिंदगी को करते
जटिल हम्हीं
प्रभु ने दिया
हमें श्रेष्ठ ये भेंट
हंसी व प्रेम
मनुष्य ऐसा
जिसे प्रभु ने बख्शा
हंसी व प्रेम
बहता जाये
समय सरिता में
जीवन पानी
भाग्य से पाये
जीवन अनमोल
व्यर्थ न जाये
Subscribe to:
Comments (Atom)



